Skip to main content

राजस्थान के गौरव - अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी


1. पद्मश्री कर्नल राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़



खेल-

निशानेबाजी



जीवन परिचय-

29 जनवरी 1970 में बीकानेर फौजी परिवार में जन्म।



उपलब्धियाँ-

  1. निशानेबाजी में ओलम्पिक में पदक हासिल करने वाले प्रथम भारतीय खिलाड़ी (2004 में रजत पदक विजेता), 

  2. विश्व निशानेबाजी प्रतियोगिता में कांस्य एवं 

  3. राष्ट्रमंडल खेलों में दोहरे स्वर्ण पदक विजेता।


पुरस्कार एवं सम्मान-

  • राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार ( देश का सर्वोच्च खेल सम्मान ), 

  • अर्जुन पुरस्कार 

  • अतिविशिष्ट सेवा मेडल, 

  • पद्मश्री।



2. बजरंग लाल ताखर-



खेल-

नौकायन ( रोइंग )



जीवन परिचय-

5 जनवरी 1981 में सीकर के बालू बाबा की ढाणी गाँव में जन्म।



उपलब्धियाँ-

  • एशियन गेम्स (2010) में व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण, 

  • एशियन गेम्स (2007) में स्वर्ण, एशियन गेम्स (2006) में रजत, 

  • सैफ खेल 2006 में दो स्वर्ण व दो कांस्य पदक, 

  • एशियाई चैम्पियनशिप 2005 में स्वर्ण पदक, 

  • ओलम्पिक 2008 में क्वार्टर फाइनल तक पहुँचे।



पुरस्कार एवं सम्मान-

महाराणा प्रताप पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार।



3. पद्मश्री कृष्णा पूनिया-



खेल-

डिस्कस थ्रो



जीवन परिचय-

5 मई 1982 को हरियाणा के हिसार जिले में जन्म । चुरू राजस्थान के भूतपूर्व अंतर्राष्ट्रीय एथलीट वीरेन्द्र सिंह से विवाह ।



उपलब्धियाँ-

  • एशियन गेम्स (2010) में कांस्य, 

  • एशियन गेम्स (2006) में कांस्य, 

  • राष्ट्र् मंडल गेम्स (2010) में स्वर्ण, 

  • सैफ खेल 2004 में स्वर्ण व 

  • तीन एशियाई चैम्पियनशिप में क्रमशः एक रजत एवं दो कांस्य पदक, 

  • एशियन आल स्टार में लगातार दो बार स्वर्ण।


पुरस्कार एवं सम्मान-

पद्मश्री, महाराणा प्रताप पुरस्कार, अरावली पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार।



4. लिम्बाराम



खेल-

तीरंदाजी



जीवन परिचय-

30 जनवरी 1972 को उदयपुर जिले के आदिवासी परिवार में जन्म, राष्ट्रमंडल खेल एवं एशियाई खेल 2010 में भारतीय तीरंदाजी टीम के मुख्य प्रशिक्षक ।



उपलब्धियाँ-

  • तीन बार ओलम्पिक में प्रतिनिधित्व, 

  • राष्ट्रमंडल तीरंदाजी चैम्पियनशिप 1995 में टीम स्वर्ण एवं व्यक्तिगत रजत पदक, 

  • एशियन तीरंदाजी चैम्पियनशिप 1992 में स्वर्ण पदक विजेता, 

  • बीजिंग तीरंदाजी एशियन कप 1989 में टीम स्वर्ण एवं व्यक्तिगत रजत पदक ।



पुरस्कार एवं सम्मान-

अर्जुन पुरस्कार व महाराणा प्रताप पुरस्कार ।



5. डॉ. करणी सिंह



खेल-

निशानेबाजी



जीवन परिचय-

21 अप्रैल 1924 में बीकानेर के राजपरिवार में जन्म। दादा महाराजा गंगासिंह से निशानेबाजी की शिक्षा प्राप्त ।



उपलब्धियाँ-

  • एशियाई निशानेबाजी प्रतियोगिता 1979 में स्वर्ण पदक, 

  • विश्व निशानेबाजी प्रतियोगिता 1961 में रजत पदक, 

  • क्ले पिजन नेशनल चैम्पियनशिप 1960 विजेता।


पुरस्कार एवं सम्मान-

1961 में प्रारंभ हुए अर्जुन पुरस्कार के प्रथम विजेताओं में से एक।



6. देवेन्द्र झांझड़िया



खेल-

भाला फेंक(जेवेलिन थ्रो)



जीवन परिचय-

10 जून 1981 को चुरू जिले के गाँव जयपुरिया खालसा में जन्म।



उपलब्धियाँ-

  • पैरा ओलम्पिक 2004 में स्वर्ण चौथे पैराराष्ट्रीय खेल में दोहरे पदक, 

  • बुसान पैराएशियाड (2002) में स्वर्ण, 

  • ब्रिटिश ओपन एथेलेटिक्स (2003) में विश्व कीर्तिमान के साथ स्वर्ण तथा त्रिकूद स्पर्धा में रजत पदक।



पुरस्कार एवं सम्मान-

अर्जुन पुरस्कार व महाराणा प्रताप पुरस्कार।



7. गोपाल सैनी



खेल-

एथलेटिक्स



जीवन परिचय-

8 अप्रैल 1954 को जयपुर में जन्म और जयपुर में ही शिक्षा ।



उपलब्धियाँ-

  • 1976 से 1982 तक कई अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में स्वर्ण व रजत पदक, 

  • 1981 में टोक्यो एशियाई स्पर्धा में पाँच हजार मीटर स्टेपलचेज स्पर्धा में स्वर्ण पदक एवं नवीन एशियाई रिकॉर्ड बनाया जो अब तक कायम है।



पुरस्कार एवं सम्मान-

अर्जुन पुरस्कार।



8. पद्मश्री रघुवीर सिंह-



खेल-

घुड़सवारी



जीवन परिचय-

1951 में झुंझनूं जिले के पाटोदा गाँव में जन्म, घोड़े का नाम ' चेतक ' था। सेना की मशहूर घुड़सवार रेजीमेंट 61 वीं केवेलरी में दफेदार के पद पर रहते हुए सेवाएं दी।



उपलब्धियाँ-

  • सियोल एशियाड (1986) में कांस्य, 

  • दिल्ली एशियाड (1982) में व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण।



पुरस्कार एवं सम्मान-

पद्मश्री, महाराणा प्रताप पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार।



9. सुरेश मिश्रा-



खेल-

बॉलीबॉल



जीवन परिचय-

11 सितंबर 1953 को लक्ष्मणगढ़ (सीकर) में जन्म।



उपलब्धियाँ-

एशियन गेम्स (1974 व 1978) सहित अनेक अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में प्रतिनिधित्व एवं शानदार प्रदर्शन।



पुरस्कार व सम्मान-

अर्जुन पुरस्कार।

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...