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रम्मत ' खेल को ही कहते हैं। ऐतिहासिक एवं पौराणिक आख्यानों पर रचित काव्य रचनाओं का मंचीय अभिनय की बीकानेर - जैसलमेर शैली को रम्मत के नाम से अभिहित किया गया है। बीकानेर की रम्मतों का अपना अलग ही रंग है। बीकानेर के अलावा रम्मतें पोकरण, फलौदी, जैसलमेर और आस-पड़ोस के क्षेत्र में खेली जाती हैं। ये कुचामन, चिड़ावा और शेखावटी के ख्यालों से भिन्न होती है। 100 वर्ष पूर्व बीकानेर क्षेत्र में होली एवं सावन आदि के अवसर पर होने वाली लोक काव्य प्रतियोगिताओं से ही इनका उद्भव हुआ है। कुछ लोक कवियों ने राजस्थान के सुविख्यात ऐतिहासिक एवं धार्मिक लोक - नायकों एवं महापुरुषों पर काव्य रचनाएँ की। इन्हीं रचनाओं को रंगमंच पर मंचित कर दिया गया। इन रम्मतों के रचयिताओं के नाम इस प्रकार हैं -
(i) मनीराम व्यास
(ii) सूआ महाराज
(iii) फागू महाराज
(iv) तुलसीराम
(v) तेज कवि (जैसलमेरी)
यहाँ यह उल्लेख कर देना आवश्यक है कि तेज कवि जैसलमेरी रंगमंच के क्रांतिकारी कार्यकर्ता थे। उन्होंने रंगमंच को क्रांतिकारी नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने अपनी रम्मत का अखाड़ा 'श्रीकृष्ण कम्पनी' के नाम से प्रारंभ किया। सन् 1943 में उन्होंने "स्वतंत्र बावनी" की रचना कर उसे महात्मा गाँधी को भेंट किया। उनकी क्रांतिकारी गतिविधि को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने तेज कवि पर निगरानी रखी और इन्हें गिरफ्तार करने का वारण्ट जारी कर दिया। जब उन्हें वारण्ट की सूचना मिली, वह पुलिस कमिश्नर के घर गये एवं अपनी ओजस्वी वाणी मे कहा -
" कमिश्नर खोल दरवाजा,
हमें भी जेल जाना है।
हिन्द तेरा है न तेरे बाप का,
हमारी मातृभूमि पर लगाया बन्दीखाना है॥ "
इससे प्रकार रम्मत और ख्याल के खिलाड़ी सिर्फ मनोरंजनकर्ता ही नहीं थे, अपितु वे समाज में हो रही क्रांति के प्रति पूरी तरह से जागरूक भी थे।
आरंभ में रम्मत को पाठशालाओं में खेलाया जाता था। इसे खेलने वाले 'खेलार' कहलाते थे। बीकानेर में रम्मत होलाष्टक के प्रारंभ अर्थात फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से चतुर्दशी या पूर्णिमा तक खेली जाती है। बीकानेर के लगभग प्रत्येक चौक में रम्मत घाली जाती है।
रम्मत की उल्लेखनीय विशेषताएँ निम्नांकित हैं -
(i) रम्मत प्रारंभ होने से पूर्व मुख्य कलाकार मंच पर आकर बैठ जाते हैं, ताकि हरेक दर्शक उन्हें अपनी वेशभूषा एवं मेक-अप में देख सके।
(ii) संवाद विशेष गायकों द्वारा गाए जाते हैं। ये मंच पर ही बैठे रहते हैं और मुख्य चरित्र उन गायकों द्वारा गाये जाने वाले संवादों को नृत्य व अभिनय करते हुए स्वयं भी बोलते जाते हैं।
(iii) रम्मत में मुख्य वाद्य नगाड़ा तथा ढोलक होते हैं।
(iv) कोई रंगमंचीय साज-सज्जा नहीं होती। मंच का धरातल थोड़ा-सा ऊँचा बनाया जाता है।
(v) रम्मत में निम्नलिखित मुख्य गीत गाये जाते हैं -
# रामदेवजी का भजन :- रम्मत शुरु होने से पहले यह भजन गाया जाता है।
# चौमासा :- यह वर्षा ॠतु के वर्णन का गीत है।
# लावणी :- देवी-देवताओं की पूजा से संबंधित गीत है।
# गणेश वंदना :- इसमें गणेशजी की वन्दना की जाती है।
(vi) रम्मत की सबसे उल्लेखनीय विशेषता उसकी साहित्यिकता है। वाद्यवादक व संगत करने वाले कलाकार रम्मत में स्वयं मनोरंजन का विशेष साधन बन जाते हैं और लोक समाज में इन वाजिन्दों साजिन्दों की बहुत इज्जत होती है।
(vii) रम्मत के शेष तत्व शेखावटी ख्याल से मेल खाते हैं। फर्क इतना ही रहता है कि जहाँ शेखावटी ख्याल पेशेवर ख्याल की गिनती में आ गए हैं, रम्मत आज भी गैर पेशेवर सामुदायिक जनरंजन के लोकनाट्य का ही रूप बनाए हुए है।
(viii) इसमें किसी भी जाति का व्यक्ति भाग ले सकता है।
रम्मत के कुछ विख्यात खिलाड़ियों के नाम इस प्रकार है -
स्वर्गीय श्री रामगोपाल मेहता
साईं सेवग
गंगादास सेवग
सूरज काना सेनग
जीतमल
और गीड़ोजी।
ये सभी बीकानेर के हैं। गीडोजी अपने समय के विख्यात नगाड़ावादक रहे हैं। इन रम्मतों में अत्यधिक लोक ख्याति अर्जित करने वाली रम्मते हैं -
हेड़ाऊ री रम्मत,
अमरसिंह री रम्मत,
पूरन भक्त री रम्मत,
मोरध्वज री रम्मत,
डूंगजी जवाहर जी री रम्मत,
राजा हरिशचन्द्र री रम्मत
और गोपीचन्द भरथरी री रम्मत।
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prakash ji badi mehnat se sahi jankari uplabdh karva rahe hain aachcha pryas he
ReplyDeleteसराहना के लिए धन्यवाद प्रमोद जी। ये सब आप मित्रों के सहयोग व उत्साहवर्धन का परिणाम है। आपका सहयोग मुझे निरंतर प्राप्त हो रहा है। इस सब के लिए आभार।
ReplyDeleteBahut He Sarahniya or gyanwrdhak ullekhnkiya hai
ReplyDeleteBahut hi Sarahniya or gyanwrdhak ullekh Kiya hai
ReplyDeleteधन्यवाद आपका बहुत बहुत।
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