नौटंकी का शाब्दिक अर्थ है 'नाटक में अभिनय करना।
जयशंकर प्रसाद नौटंकी को नाटक का अपभ्रंश मानते हैं। उनके अनुसार नौटंकी प्राचीन राग काव्य या गीतिकाव्य की ही स्मृति है। रामबाबू सक्सेना के अनुसार नौटंकी लोकगीतों और उर्दू कविता के मिश्रण से पनपी है। कालिका प्रसाद दीक्षित कुसुमाकर कहते हैं कि नौटंकी का जन्म संभवतः ग्यारहवीं सदी में हुआ और अमीर खुसरो द्वारा किए गए प्रयत्नों से इसे आगे बढ़ने का मौका मिला। नौटंकी का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ माना जाता है। राजस्थान में नौटंकी करौली, भरतपुर, धौलपुर, अलवर, गंगापुर सिटी तथा सवाई माधोपुर आदि क्षेत्रों में मंचित की जाती है। भरतपुर की लोक मंचीय कलाओं में नौटंकी का ग्रामीण जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भरतपुर में इसे हाथरस शैली में अधिक प्रस्तुत किया जाता है। नौटंकी पुरानी ख्याल शैली है जिसकी नाटकीयता एवं संवाद शैली संगीतात्मक है। भरतपुर, डीग तथा धौलपुर आदि में स्वर्णकार भूरीलाल, ठा. कल्याण सिंह, ठा. बद्रीसिंह, नत्थाराम, बाबूलाल हकीम आदि कई मण्डलियों द्वारा नौटंकी का खेल दिखाया जाता रहा है।
इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है-
(i) इस नाट्य में सारंगी, शहनाई, ढपली आदि वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
(ii) इसमें पुरुष एवं महिलाएँ दोनों अभिनय करते है।
(iii) यह गाँवों में अधिक लोकप्रिय है।
(iv) इसे सामाजिक उत्सव, मेलों एवं शादियों के अवसर पर प्रस्तुत किया जाता है।
(v) ग्रामीणों के मनोरंजन के लिए इस नाट्य में प्रस्तुत किए जाने वाले प्रमुख लोकप्रिय नाटक हैं -
अमरसिंह राठौड़
आल्हा - ऊदल
हरीश्चंद्र तारामती
सत्यवान सावित्री
लैला मजनूँ
शियापौष
इन्दलहरण
फूलमदे
भक्त पूरणमल आदि ।
(vi) इसके अखाड़े अपनी-अपनी कम्पनियों के निजी नाम से जाने जाते हैं।
(vii) हाथरस शैली की नौटंकी में पारसी नाटकों की तर्ज पर आयोजन होते हैं।
(viii) मास्टर नत्थाराम को नौटंकी का आदि प्रवर्तक माना जाता है। उनके शिष्य मा. गिर्राज को नौटंकी के श्रेष्ठ कलाकार के रूप में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा तुलसी पुरस्कार भी मिल चुका है।
(ix) इसकी ख्याल गायकी के संवादों में बहरतबील, लावणी सादी, लावणी लंगड़ी, दबोला, चौबोला, कव्वाली, गजल, दादरा और ठुमरी छन्दों में संगत की प्रधानता होती है।
(x) यह एक व्यावसायिक मंचीय कला है।
जयशंकर प्रसाद नौटंकी को नाटक का अपभ्रंश मानते हैं। उनके अनुसार नौटंकी प्राचीन राग काव्य या गीतिकाव्य की ही स्मृति है। रामबाबू सक्सेना के अनुसार नौटंकी लोकगीतों और उर्दू कविता के मिश्रण से पनपी है। कालिका प्रसाद दीक्षित कुसुमाकर कहते हैं कि नौटंकी का जन्म संभवतः ग्यारहवीं सदी में हुआ और अमीर खुसरो द्वारा किए गए प्रयत्नों से इसे आगे बढ़ने का मौका मिला। नौटंकी का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ माना जाता है। राजस्थान में नौटंकी करौली, भरतपुर, धौलपुर, अलवर, गंगापुर सिटी तथा सवाई माधोपुर आदि क्षेत्रों में मंचित की जाती है। भरतपुर की लोक मंचीय कलाओं में नौटंकी का ग्रामीण जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भरतपुर में इसे हाथरस शैली में अधिक प्रस्तुत किया जाता है। नौटंकी पुरानी ख्याल शैली है जिसकी नाटकीयता एवं संवाद शैली संगीतात्मक है। भरतपुर, डीग तथा धौलपुर आदि में स्वर्णकार भूरीलाल, ठा. कल्याण सिंह, ठा. बद्रीसिंह, नत्थाराम, बाबूलाल हकीम आदि कई मण्डलियों द्वारा नौटंकी का खेल दिखाया जाता रहा है।
इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है-
(i) इस नाट्य में सारंगी, शहनाई, ढपली आदि वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
(ii) इसमें पुरुष एवं महिलाएँ दोनों अभिनय करते है।
(iii) यह गाँवों में अधिक लोकप्रिय है।
(iv) इसे सामाजिक उत्सव, मेलों एवं शादियों के अवसर पर प्रस्तुत किया जाता है।
(v) ग्रामीणों के मनोरंजन के लिए इस नाट्य में प्रस्तुत किए जाने वाले प्रमुख लोकप्रिय नाटक हैं -
अमरसिंह राठौड़
आल्हा - ऊदल
हरीश्चंद्र तारामती
सत्यवान सावित्री
लैला मजनूँ
शियापौष
इन्दलहरण
फूलमदे
भक्त पूरणमल आदि ।
(vi) इसके अखाड़े अपनी-अपनी कम्पनियों के निजी नाम से जाने जाते हैं।
(vii) हाथरस शैली की नौटंकी में पारसी नाटकों की तर्ज पर आयोजन होते हैं।
(viii) मास्टर नत्थाराम को नौटंकी का आदि प्रवर्तक माना जाता है। उनके शिष्य मा. गिर्राज को नौटंकी के श्रेष्ठ कलाकार के रूप में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा तुलसी पुरस्कार भी मिल चुका है।
(ix) इसकी ख्याल गायकी के संवादों में बहरतबील, लावणी सादी, लावणी लंगड़ी, दबोला, चौबोला, कव्वाली, गजल, दादरा और ठुमरी छन्दों में संगत की प्रधानता होती है।
(x) यह एक व्यावसायिक मंचीय कला है।
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