कुचामनी ख्याल -
इसका उद्गम नागौर जिले का कुचामन शहर है। लोक जीवन के विख्यात लोक नाट्यकार 'लच्छीराम' द्वारा इसका प्रवर्तन किया गया। उन्होंने प्रचलित ख्याल परम्परा में अपनी शैली का समावेश किया। इस शैली की विशेषताएँ निम्नलिखित है-
(i) इसका रूप गीत-नाट्य या ऑपेरा जैसा होता है।
(ii) इसमें लोकगीतों की प्रधानता होती है।
(iii) लय के अनुसार ही नृत्य में ताल होती है। आलापचारी की समाप्ति पर पात्र अपना कमाल दिखाते हैं।
(iv) इसे खुले मंच (ओपन एयर) पर प्रस्तुत किया जाता है। मंच पर पर्दे का प्रयोग नहीं होता है। मंच के लिए तख्त का प्रयोग किया जाता है।
(v) इसमें पुरुष ही स्त्री चरित्र का अभिनय करते हैं।
(vi) इस ख्याल में संगत के लिए वादक ढोल, शहनाई आदि प्रयुक्त करते हैं।
(vii) इसमें प्रायः नर्तक ही गाने गाते हैं लेकिन जब नर्तक की साँस उखड़ जाती है तो मंच पर बैठे अन्य सहयोगी गायक गायन जारी रखते हैं।
गीत बहुत ऊँचे स्वर में गाये जाते हैं।
(viii) इसमें सरल भाषा एवं सीधी बोधगम्य लोकप्रिय धुनों का प्रयोग होता है और अभिनय की कुछ सूक्ष्म भावभिव्यक्तियाँ होती है।
(ix) इसमें सामाजिक स्थितियों पर व्यंग्य आधारित कथावस्तु भी सम्मिलित की जाती है।
लच्छीराम स्वयं एक अच्छे नर्तक, लेखक एवं चित्रकार थे। उन्होंने 35 ख्यालों की रचना की जिनमें चाँद नीलगिरि, राव रिड़मल तथा मीरा मंगल मुख्य है। उनके पास अपनी खुद की नृत्य मण्डली थी, जो वह पेशेवर नृत्य के लिए भी उपयोग करते थे। सर्वप्रथम हलकारी का प्रारंभ भी इन्हीं ने किया था। यद्यपि लच्छीराम के निधन को 60 साल से अधिक हो गए हैं, पर उनके ख्याल राजस्थान के सभी क्षेत्रों में आज भी दिखाए जाते हैं। ख्याल में संगत के लिए ढोल वादक, शहनाई वादक व सारंगी वादक मुख्य रूप से सहयोगी होते हैं। इन दिनों इस ख्याल शैली के प्रमुख कलाकार उगमराज खिलाड़ी है।
इसका उद्गम नागौर जिले का कुचामन शहर है। लोक जीवन के विख्यात लोक नाट्यकार 'लच्छीराम' द्वारा इसका प्रवर्तन किया गया। उन्होंने प्रचलित ख्याल परम्परा में अपनी शैली का समावेश किया। इस शैली की विशेषताएँ निम्नलिखित है-
(i) इसका रूप गीत-नाट्य या ऑपेरा जैसा होता है।
(ii) इसमें लोकगीतों की प्रधानता होती है।
(iii) लय के अनुसार ही नृत्य में ताल होती है। आलापचारी की समाप्ति पर पात्र अपना कमाल दिखाते हैं।
(iv) इसे खुले मंच (ओपन एयर) पर प्रस्तुत किया जाता है। मंच पर पर्दे का प्रयोग नहीं होता है। मंच के लिए तख्त का प्रयोग किया जाता है।
(v) इसमें पुरुष ही स्त्री चरित्र का अभिनय करते हैं।
(vi) इस ख्याल में संगत के लिए वादक ढोल, शहनाई आदि प्रयुक्त करते हैं।
(vii) इसमें प्रायः नर्तक ही गाने गाते हैं लेकिन जब नर्तक की साँस उखड़ जाती है तो मंच पर बैठे अन्य सहयोगी गायक गायन जारी रखते हैं।
गीत बहुत ऊँचे स्वर में गाये जाते हैं।
(viii) इसमें सरल भाषा एवं सीधी बोधगम्य लोकप्रिय धुनों का प्रयोग होता है और अभिनय की कुछ सूक्ष्म भावभिव्यक्तियाँ होती है।
(ix) इसमें सामाजिक स्थितियों पर व्यंग्य आधारित कथावस्तु भी सम्मिलित की जाती है।
लच्छीराम स्वयं एक अच्छे नर्तक, लेखक एवं चित्रकार थे। उन्होंने 35 ख्यालों की रचना की जिनमें चाँद नीलगिरि, राव रिड़मल तथा मीरा मंगल मुख्य है। उनके पास अपनी खुद की नृत्य मण्डली थी, जो वह पेशेवर नृत्य के लिए भी उपयोग करते थे। सर्वप्रथम हलकारी का प्रारंभ भी इन्हीं ने किया था। यद्यपि लच्छीराम के निधन को 60 साल से अधिक हो गए हैं, पर उनके ख्याल राजस्थान के सभी क्षेत्रों में आज भी दिखाए जाते हैं। ख्याल में संगत के लिए ढोल वादक, शहनाई वादक व सारंगी वादक मुख्य रूप से सहयोगी होते हैं। इन दिनों इस ख्याल शैली के प्रमुख कलाकार उगमराज खिलाड़ी है।
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