आदिवासी बहुल वागड़ क्षेत्र के डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गाँव में खेली जाने वाली पत्थरमार होली राजस्थान भर में अपनी तरह की अनूठी एवं मशहूर होली है जिसमें लोग रंग, गुलाल तथा अबीर के स्थान पर एक दूसरे पर जमकर पत्थरों की बारिश करते हैं। इस गाँव की वर्षों पुरानी इस परम्परा के अनुसार होली के दूसरे दिन धुलेंडी पर्व पर शाम को इस रोमांचक होली का आयोजन होता है।
इस होली को देखने आसपास के कई गाँवों से हजारों की संख्या में ग्रामीण इकठ्ठे होते हैं। शाम ढलते ढलते पत्थरमार होली खेलने वाले लोग गाँव के श्रीरघुनाथ मन्दिर के सामने के मैदान में जमा हो जाते हैं और इस पत्थरमार होली की शुरूआत करते हैं। सबसे पहले आमने सामने पत्थर उछालने से यह अनूठा कार्यक्रम शुरू होता है। इस विचित्र होली के दौरान वीर रस की धुन पर ढोल नगाड़ों का वादन चलता रहता है और यह कार्यक्रम परवान चढ़ता जाता है। जैसे जैसे नगाड़े की आवाज तेज होती जाती है वैसे वैसे पत्थरों की बारिश भी तेज होती जाती है। बाद में पत्थरों की मार से छितराए समूहों पर पत्थर फेंकने के लिए गोफण ( रस्सी से बनी पारंपरिक गुलैल ) भी प्रयुक्त की जाती है।
स्थानीय अंचल में यह होली ‘पत्थरों की राड़’ के नाम से मशहूर है। राड़ का अर्थ दुश्मनी होता है। इस खतरनाक होली में खेलने वाला एक समूह दूसरे पर इस तरह पत्थर मारता जैसे दुश्मन पर वार किए जा रहे हो। इस होली में वो लोग ही भाग ले सकते हैं जिनमें साहस हो। यहाँ हमला करने में न कहीं कोई वर्जना है और न ही किसी प्रकार की रोक टोक। जिसके जी में आए वह इस युद्धोन्माद वाली पत्थरमार होली में शामिल होकर पत्थरों से हमला करने लगता है। एक पक्ष द्वारा फेंके जाने वाले पत्थरों से बचाव के लिए यूँ तो लोग ढाल एवं अन्य बचाव के साधन काम में लेते हैं किन्तु इस घातक होली में इस कदर पत्थर चलते हैं कि लोग बुरी तरह लहूलुहान भी हो जाते हैं और कई लोग घायल होकर अस्पताल भी पहुंचते हैं। इस वर्ष की राड़ में पचास से ज्यादा लोग घायल हुए जिनका मौके पर उपस्थित चिकित्सकों की टीम ने उपचार किया जबकि दो गंभीर घायलों को जिला अस्पताल भेजा गया।
लोक मान्यता के अनुसार भीलूड़ा में हर साल धुलेंडी पर पत्थरों की होली अनिवार्य है और इस दिन भीलूड़ा की जमीन पर खून की बून्दें गिरना शुभ माना जाता है। ऐसा नहीं होने पर गांव में अनिष्ट की आशंका रहती है।
सदियों से चली आ रही परपंरागत पत्थरमार होली के समय प्रशासन एवं पुलिस के अधिकारी भारी पुलिस बल के साथ तैनात रहते हैं परंतु लोक परंपराओं के आगे सब कुछ चुपचाप देखते रहते हैं। पत्थरों की इस खतरनाक होली को बन्द कराने के कई बार प्रयास भी हुए मगर परंपराओं एवं लोक भावनाओं के आगे सब कुछ निरर्थक रहा।
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