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राजस्थान समसामयिक सामान्य ज्ञान

राजस्थान में वाइफरेकशन डबल किसिंग टेक्नोलॉजी से एंजियोप्लास्टी

फ्रांस की कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. एम. सी. मोरिस ने जयपुर के चिकित्सकों की टीम के साथ राजस्थान के चिकित्सा इतिहास में प्रथम बार वाइफरेकशन डबल किसिंग टेक्नोलॉजी से एंजियोप्लास्टी की। कॉम्प्लेक्स कॉरोनरी एंजियोप्लास्टी पर दिनांक 9 अप्रैल से शुरू हुई चौथी कांफ्रेंस में यह एंजियोप्लास्टी की गई। इस तकनीक में धमनी और इसकी ब्रांच में एक साथ बैलून डाले गए। इसकी सफलता दर काफी अच्छी होने से अब हृदय रोगियों का उपचार इस नई तकनीक से किया जा सकेगा। जयपुर हार्ट इंस्टीट्यूट में की गई इस सर्जरी का लाइव टेलिकास्ट एस. एम. एस. अस्पताल के कन्वेशन सेंटर में किया गया। अभी हाल में जिस टेक्नोलॉजी से एंजियोप्लास्टी हो रही है
उसकी तुलना में यह पांच से दस प्रतिशत महंगी है लेकिन इसमें अभी तक ज्यादा सफलता मिल रही है। इसके अलावा इस कांफ्रेंस में हृदय आघात को लेकर सिम्पोजियम भी हुई। चिकित्सकों के अनुसार विदेशों में जीवन शैली और भोजन में बदलाव करते हुए व्यायाम करने पर जोर देने के कारण विदेशों में हृदय आघात में कमी आ रही है। वहीं भारत में इनमें तेजी से वृद्धि हो रही है। क्योंकि भारत में इसके विपरीत हो रहा है।

कोटा हुआ अमोनिया का रिसाव

कोटा के बोरखेड़ा क्षेत्र में स्थित चित्रेश कोल्ड स्टोरेज से दिनांक 11 अप्रैल की रात अमोनिया गैस का रिसाव शुरू हुआ। रिसाव से अमोनिया हवा के साथ घुल गई और उसकी चपेट में आने से लोग अचेत होने लगे। गैस की चपेट में आने से अचेत हुए दो दर्जन लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। एहतियात के तौर पर प्रशासन ने इलाका खाली करवा दिया और विशेषज्ञों को बुलाया गया। इस गैस के कारण आंखों में जलन व सांस लेने में तकलीफ होती है और लोग अचेत हो जाते हैं।

हाइड्रोजन एवं नाइट्रोजन गैस को एक निश्चित उच्च तापमान एवं दाब पर गर्म करने से अमोनिया गैस बनती है। यह एसी, फ्रीज व कोल्ड स्टोरेज में ठंडक करने के लिए उपयोग में ली जाती है।

अमोनिया गैस की मात्रा 25 पीपीएम ( पार्ट पर मिलियन) होने पर व्यक्ति के जीवन को संकट में डाल देती है। इसका अर्थ यह हुआ कि वायु के 1 मिलियन भाग में 25 भाग अमोनिया हो तो वह घातक होती है। यह हवा व्यक्ति की साँस द्वारा शरीर में प्रवेश करती है तो श्वसन तंत्र पर बुरा प्रभाव होने से साँस लेने में तकलीफ होती है। अधिक समय तक सम्पर्क में रहने से फैफड़े काम करना बंद कर देते हैं।

बारां जिले के शाहाबाद में मिले आदिम कालीन मानव सभ्यता के प्रमाण

बारां जिले के शाहाबाद उपखंड के करई नदी के किनारे आगर एवं कुंडा खोह में पुरा अवशेषों के साथ पत्थर से बने ऐसे औजार मिले हैं जिससे इन जंगलों में भी मानव सभ्यता के विकास के प्रारंभिक दौर में करीब दस हजार वर्ष पूर्व के प्राचीन काल में मानव का रहना प्रमाणित हो सकता है।
यह खोज करने का दावा बूंदी के पुरातत्व विशेषज्ञ ओमप्रकाश शर्मा कुक्की ने इस क्षेत्र में जानकारी जुटाने के बाद किया। उनके अनुसार शाहाबाद में किले के आगे कुंडा खोह के आसपास पत्थर से बने कोर ब्लेड और तीर के फलक मिले हैं। इनसे मानव शिकार किया करता था। यहां पत्थर से बनी हंटिंग बॉल्स भी मिली हैं। यह गेंदे समूह में बड़े जानवर का शिकार करने के काम आती थीं। कुंडा खोह के अलावा कस्बाथाना के आगे आगर नामक स्थान पर भी करई नदी के किनारे ऐसे अवशेष मिले हैं। आगर में रंगीन पत्थर के मणके, टोंटीदार बर्तन के अवशेष, पत्थर की गेंदेँ व पाषाण उपकरण मिले हैं।
नवोदय विद्यालय, अटरू के इतिहासविद डॉ. टी के शुक्ला ने भी इससे सहमति जताई है।

बारां जिले के आगर में मिले सफेद पीठ वाले दुर्लभ गिद्ध

बारां जिले के शाहाबाद के निकट स्थित आगर गाँव में दुर्लभ सफेद पीठ वाले गिद्ध (व्हाइट रंप्ड वल्चर) देखे गए हैं। यहां करई नदी की तराई में सामान्य लंबी गर्दन वाले गिद्धों की बस्ती से थोड़ी दूरी पर ही ये तीन-चार विलुप्त प्रायः दुर्लभ सफेद पीठ वाले गिद्ध देखे गए। इन गिद्धों के पंखों पर अंदर की ओर सफेद रंग होता है तथा गर्दन पर भी सफेद रिंग बनी हुई होती है। सामान्य गिद्ध पहाड़ों व नदियों के आसपास रहते हैं, वहीं सफेद पीठ वाले गिद्ध पेड़ों पर ही रहते हैं। गिद्धों की सात प्रजातियां होती हैं, जिनमें से सफेद पीठ वाले गिद्ध लुप्त होने के कगार पर हैं।

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