किशोर न्याय अधिनियम, 2000 एवं संशोधित अधिनियम, 2006 के अन्तर्गत बच्चों को निम्नानुसार दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाकर पृथक-पृथक गृहों की व्यवस्था की गई है :-
1. देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक -
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(घ) में देखरेख व संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की दी गई परिभाषा में निम्न बच्चों को चिन्हीकृत किया गया हैं, जिनके प्रकरणों की सुनवाई व निपटान सम्बन्धित कार्य 'बाल कल्याण समिति' द्वारा किया जाता है-
1. जो बालक किसी घर या निश्चित निवास स्थान और जीवन निर्वाह के बिना पाया जाता है।
1(a) जो भिक्षावृति करता पाया गया है या स्ट्रीट चिल्ड्रन हो या कार्यशील बालक (बाल श्रमिक) हो।
2. जो एक व्यक्ति (चाहे बालक का संरक्षक हो या न हो) के साथ रहता है और ऐसे व्यक्ति ने-
(i) बालक को जान से मारने या क्षति पहुंचाने की धमकी दी है और धमकी के दिए जाने की एक युक्तियुक्त सम्भाव्यता है या
(ii) किसी दूसरे बालक या बालकों को जान से मार डाला है या गाली दी है या उसका या उनकी उपेक्षा की है और उस व्यक्ति द्वारा प्रश्नगत बालक को जान से मार डाले जाने, गाली दिए जाने की युक्तियुक्त सम्भाव्यता है।
3. जिसको मानसिक और शारीरिक रूप से धमकी दी जाती है या बीमार सहायता करने या देख-रेख करने वाले किसी को भी न रखने वाले टर्मिनल रोग या असाध्य रोग से ग्रस्त होने वाला बालक।
4. जिसके एक माता-पिता या संरक्षक है और ऐसे माता-पिता या संरक्षक बालक पर नियन्त्रण रख पाने के लिए अनुपयुक्त है या असमर्थ बना दिया गया है।
5. जिसके माता-पिता नहीं है और कोई एक देख-रेख करना चाह रहा है या जिसके माता-पिता ने उसका त्याग कर दिया है या समर्पित कर दिया है या जो खो गया है या भाग गया है और जिसके माता-पिता को युक्तियुक्त जाँच के पश्चात् नहीं पाया जाता है।
6. जिसका लैंगिक दुरूपयोग या अवैधानिक कृत्यों प्रयोजनार्थ गम्भीर तौर पर दुरूपयोग किए जाने, सताए जाने या शोषण किये जाने की सम्भावना है या की जा रही है।
7. जिसको भेद्य (Vulnerable) पाया जाता है और औषधि दुरूपयोग या दुर्व्यापार करने में उत्प्रेरित किए जाने की सम्भावना है।
8. जिसे अन्त:करण के विरूद्ध लाभ के लिए गाली दिया जा रहा है या गाली दिए जाने की सम्भावना है।
9. जो किसी सशस्त्र संघर्ष, सिविल उपद्रव या प्राकृतिक आपदा का शिकार है।
2. विधि से संघर्षरत किशोर - वे बच्चे, जिन्होंने संविधान सम्मत तरीके से स्थापित विधि का जाने-अनजाने उल्लंघन किया हो। इनके प्रकरणों में सुनवाई व निपटान सम्बन्धित किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किया जाता है।
किशोर न्याय अधिनियम के अन्तर्गत बच्चों की श्रेणी अनुसार प्रकरणों की सुनवाई व निपटान तक पृथक-पृथक गृहों का प्रावधान किया गया है, जो निम्नानुसार है-
1. सम्प्रेक्षण गृह -
अधिनियम की धारा 8 के अन्तर्गत विधि के साथ संघर्षरत बालक - बालिकाओं हेतु सम्प्रेक्षण गृह का प्रावधान है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक - बालिकाओं को किशोर न्याय बोर्ड के आदेशों से उनकी जांच लम्बित रहने या जमानत होने या अंतिम निपटान तक रखा जाता है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक-बालिकाओं हेतु सभी सुविधाएं यथा भोजन, वस्त्र, चिकित्सा, शिक्षा आदि की नि:शुल्क व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
2. बाल गृह -
अधिनियम की धारा 34 के अन्तर्गत राज्य में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक - बालिकाओं हेतु बालगृह की स्थापना व पंजीयन का प्रावधान है। इन गृहों में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक - बालिकाओं को बाल कल्याण समिति के आदेश से 18 वर्ष तक की आयु होने तक रखने का प्रावधान है। इन संस्थाओं में बालक - बालिकाओं के विकास एवं पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था के साथ-साथ भोजन, वस्त्र, शिक्षा, प्रशिक्षण की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है।
3. विशेष गृह - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 9 में किशोर न्याय बोर्ड से सजा प्राप्त विधि के साथ संघर्षरत बच्चों को 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक रखने के लिए विशेष गृहों का प्रावधान किया गया है।
4. राजकीय विमन्दित महिला व बाल गृह-
अधिनियम की धारा 48 के अन्तर्गत विमन्दित बालक - बालिका के समुचित संरक्षण, देखभाल व उपचार हेतु राजकीय विमन्दित महिला व बाल गृह, सेठी कॉलोनी, जयपुर को मान्यता प्राप्त संस्थान प्रमाणित किया हुआ है।
5. एड्स पीड़ित बालकों के लिए संस्था-
अधिनियम की धारा 48 के अन्तर्गत एड्स/ एच.आई.वी. से ग्रसित बच्चों के लिए अजमेर जिले में ''स्नेह संसार संस्था'', ग्राम हाथीखेड़ा, अजमेर एवं जालौर जिले में ''वात्सल्य चाइल्ड केयर होम'', ग्राम लेटा, जिला जालौर को मान्यता प्राप्त संस्थान प्रमाणित किया हुआ है।
महिलाओं के पुनर्वास के लिए महिला सदन
महिला सदन का मुख्य उद्देश्य-
> अनैतिक एवं सामाजिक रूप से उत्पीड़ित महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना एवं उनमें नए जीवन का संचार करना।
कार्य-
राज्य सरकार द्वारा जयपुर, अजमेर, बीकानेर, कोटा, जोधपुर एवं उदयपुर में नारी निकेतनों के भवनों का निर्माण कराया गया है।
> इस सदन में महिलाओं को प्रवेश देकर उन्हें निःशुल्क आवास, भोजन, वस्त्र, चिकित्सा एवं शिक्षण-प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
> पुनर्वास व्यवस्था के अन्तर्गत जिन आवासनियों के विरुद्ध विभिन्न न्यायालयों में प्रकरण दर्ज हैं, उनको सम्बन्धित राज्यों एवं जिलों के न्यायालयों में अपना पक्ष रखने हेतु भेजा जाता है तथा न्यायालय के निर्णय अनुसार आवासनियों को उनके अभिभावक व संरक्षकों को सौंप दिया जाता है।
> महिला सदन में रहने वाली महिलाओं को विवाह द्वारा भी पुनर्वासित किया जाता है।
1. देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक -
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(घ) में देखरेख व संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की दी गई परिभाषा में निम्न बच्चों को चिन्हीकृत किया गया हैं, जिनके प्रकरणों की सुनवाई व निपटान सम्बन्धित कार्य 'बाल कल्याण समिति' द्वारा किया जाता है-
1. जो बालक किसी घर या निश्चित निवास स्थान और जीवन निर्वाह के बिना पाया जाता है।
1(a) जो भिक्षावृति करता पाया गया है या स्ट्रीट चिल्ड्रन हो या कार्यशील बालक (बाल श्रमिक) हो।
2. जो एक व्यक्ति (चाहे बालक का संरक्षक हो या न हो) के साथ रहता है और ऐसे व्यक्ति ने-
(i) बालक को जान से मारने या क्षति पहुंचाने की धमकी दी है और धमकी के दिए जाने की एक युक्तियुक्त सम्भाव्यता है या
(ii) किसी दूसरे बालक या बालकों को जान से मार डाला है या गाली दी है या उसका या उनकी उपेक्षा की है और उस व्यक्ति द्वारा प्रश्नगत बालक को जान से मार डाले जाने, गाली दिए जाने की युक्तियुक्त सम्भाव्यता है।
3. जिसको मानसिक और शारीरिक रूप से धमकी दी जाती है या बीमार सहायता करने या देख-रेख करने वाले किसी को भी न रखने वाले टर्मिनल रोग या असाध्य रोग से ग्रस्त होने वाला बालक।
4. जिसके एक माता-पिता या संरक्षक है और ऐसे माता-पिता या संरक्षक बालक पर नियन्त्रण रख पाने के लिए अनुपयुक्त है या असमर्थ बना दिया गया है।
5. जिसके माता-पिता नहीं है और कोई एक देख-रेख करना चाह रहा है या जिसके माता-पिता ने उसका त्याग कर दिया है या समर्पित कर दिया है या जो खो गया है या भाग गया है और जिसके माता-पिता को युक्तियुक्त जाँच के पश्चात् नहीं पाया जाता है।
6. जिसका लैंगिक दुरूपयोग या अवैधानिक कृत्यों प्रयोजनार्थ गम्भीर तौर पर दुरूपयोग किए जाने, सताए जाने या शोषण किये जाने की सम्भावना है या की जा रही है।
7. जिसको भेद्य (Vulnerable) पाया जाता है और औषधि दुरूपयोग या दुर्व्यापार करने में उत्प्रेरित किए जाने की सम्भावना है।
8. जिसे अन्त:करण के विरूद्ध लाभ के लिए गाली दिया जा रहा है या गाली दिए जाने की सम्भावना है।
9. जो किसी सशस्त्र संघर्ष, सिविल उपद्रव या प्राकृतिक आपदा का शिकार है।
2. विधि से संघर्षरत किशोर - वे बच्चे, जिन्होंने संविधान सम्मत तरीके से स्थापित विधि का जाने-अनजाने उल्लंघन किया हो। इनके प्रकरणों में सुनवाई व निपटान सम्बन्धित किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किया जाता है।
किशोर न्याय अधिनियम के अन्तर्गत बच्चों की श्रेणी अनुसार प्रकरणों की सुनवाई व निपटान तक पृथक-पृथक गृहों का प्रावधान किया गया है, जो निम्नानुसार है-
1. सम्प्रेक्षण गृह -
अधिनियम की धारा 8 के अन्तर्गत विधि के साथ संघर्षरत बालक - बालिकाओं हेतु सम्प्रेक्षण गृह का प्रावधान है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक - बालिकाओं को किशोर न्याय बोर्ड के आदेशों से उनकी जांच लम्बित रहने या जमानत होने या अंतिम निपटान तक रखा जाता है। इन गृहों में विधि से संघर्षरत बालक-बालिकाओं हेतु सभी सुविधाएं यथा भोजन, वस्त्र, चिकित्सा, शिक्षा आदि की नि:शुल्क व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
2. बाल गृह -
अधिनियम की धारा 34 के अन्तर्गत राज्य में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक - बालिकाओं हेतु बालगृह की स्थापना व पंजीयन का प्रावधान है। इन गृहों में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक - बालिकाओं को बाल कल्याण समिति के आदेश से 18 वर्ष तक की आयु होने तक रखने का प्रावधान है। इन संस्थाओं में बालक - बालिकाओं के विकास एवं पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था के साथ-साथ भोजन, वस्त्र, शिक्षा, प्रशिक्षण की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है।
3. विशेष गृह - किशोर न्याय अधिनियम की धारा 9 में किशोर न्याय बोर्ड से सजा प्राप्त विधि के साथ संघर्षरत बच्चों को 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक रखने के लिए विशेष गृहों का प्रावधान किया गया है।
4. राजकीय विमन्दित महिला व बाल गृह-
अधिनियम की धारा 48 के अन्तर्गत विमन्दित बालक - बालिका के समुचित संरक्षण, देखभाल व उपचार हेतु राजकीय विमन्दित महिला व बाल गृह, सेठी कॉलोनी, जयपुर को मान्यता प्राप्त संस्थान प्रमाणित किया हुआ है।
5. एड्स पीड़ित बालकों के लिए संस्था-
अधिनियम की धारा 48 के अन्तर्गत एड्स/ एच.आई.वी. से ग्रसित बच्चों के लिए अजमेर जिले में ''स्नेह संसार संस्था'', ग्राम हाथीखेड़ा, अजमेर एवं जालौर जिले में ''वात्सल्य चाइल्ड केयर होम'', ग्राम लेटा, जिला जालौर को मान्यता प्राप्त संस्थान प्रमाणित किया हुआ है।
महिलाओं के पुनर्वास के लिए महिला सदन
महिला सदन का मुख्य उद्देश्य-
> अनैतिक एवं सामाजिक रूप से उत्पीड़ित महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना एवं उनमें नए जीवन का संचार करना।
कार्य-
राज्य सरकार द्वारा जयपुर, अजमेर, बीकानेर, कोटा, जोधपुर एवं उदयपुर में नारी निकेतनों के भवनों का निर्माण कराया गया है।
> इस सदन में महिलाओं को प्रवेश देकर उन्हें निःशुल्क आवास, भोजन, वस्त्र, चिकित्सा एवं शिक्षण-प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
> पुनर्वास व्यवस्था के अन्तर्गत जिन आवासनियों के विरुद्ध विभिन्न न्यायालयों में प्रकरण दर्ज हैं, उनको सम्बन्धित राज्यों एवं जिलों के न्यायालयों में अपना पक्ष रखने हेतु भेजा जाता है तथा न्यायालय के निर्णय अनुसार आवासनियों को उनके अभिभावक व संरक्षकों को सौंप दिया जाता है।
> महिला सदन में रहने वाली महिलाओं को विवाह द्वारा भी पुनर्वासित किया जाता है।
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