Skip to main content

राजस्थान के विश्वविद्यालय-
JAGADGURU RAMANANDACHARYA RAJASTHAN SANSKRIT UNIVERSITY

जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय


एक विहङ्गम दृष्टि-


अनादिकाल से भारत देश ज्ञानोपासना का केन्द्र रहा है। यह शाब्दी साधना ऋषियों के अनहद में मुखरित होती हुई साक्षात् श्रुति-स्वरूप में इस धरा पर अवतीर्ण हुई। यह विश्वविदित तथ्य है कि ऋग्वेद मानव के पुस्तकालय की सर्वप्रथम् पुस्तक है। ऋचाओं की अर्चना, सामगानों की झंकृति, यजुर्मन्त्रों के यजन तथा आथर्वणों के शान्ति-कर्मों  से भारतीय प्रज्ञा पल्लवित और पुष्पित हुई । वेदों की श्रुति-परम्परा ने अपनेज्ञान का प्रसार करते हुए उपनिषद्, अष्टादश पुराण, शिक्षा-कल्प-निरुक्त-व्याकरण-ज्योतिष-छन्द, योगतन्त्र, षडदर्शन, रामायण, महाभारत, ललित काव्य, नीतिकाव्य आदि का अमूल्य वाङ्मय सर्वजनहिताय, सर्वजनसुखाय विश्व को दिया। श्रमण परम्परा का बहुमूल्य वाङ्गमय भी संस्कृत में निहित है। इस बहुआयामी साहित्य के विकास के फलस्वरूप भारतीयों की प्रसिद्धि अग्रजन्मा के रूप में हुई तथा वेदों का ज्ञान भारतीय मनीषा का पर्याय बन गया। इस प्रकार भारतीय संस्कृति की संवाहिका होने का गौरव संस्कृत भाषा को जाता है।
संस्कृत के इस विशाल वाङ्मय की कालजयिता का यही रहस्य है कि सहस्त्राब्दियों से गुरुकुलों और ऋषिकुलों आदि में इसका अध्यापन होता रहा। इस गुरुशिष्य-परम्परा को सुनियोजित रूप देते हुए संस्कृत के अनेक अध्ययन केन्द्र देश भर में चलते रहे। उसी परम्परा में ही 20 वीं सदी में अनेक संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापित हुए। उत्तरप्रदेश, बिहार, उड़ीसा, केरल, आंध्रप्रदेश आदि में संस्कृत विश्वविद्यालय विगत कई वर्षों से चल रहे थे। इसी क्रम में राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु वर्षों से चल रहा प्रयास वर्ष 2001 में सफल हुआ ।
सम्पूर्ण संस्कृत वाङ्मय के साङ्गोपाङ्ग अध्ययन और अध्यापन का संचालन करने, सतत विशेषज्ञीय अनुसंधान और उससे आनुषंगिक अन्य विषयों की व्यवस्था करने तथा संस्कृत वाङ्मय में निहित ज्ञान-विज्ञान की अनुसंधान पर आधारित सरल वैज्ञानिक पद्धति से व्यावहारिक व्याख्या प्रस्तुत करने के साथ ही अन्य महत्त्वपूर्ण अनुसंधानों के परिणामों और उपलब्धियों को प्रकाश में लाने के उद्देश्य से राजस्थान राज्य में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय अधिनियम 1998 दिनांक 2-9-1998 से लागू किया गया।
6 फरवरी, 2001 को राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय ने मूर्त्त रूप लिया जिसके प्रथम कुलपति पद्मश्री डॉ. मण्डन मिश्र नियुक्त किए गए।
उपशासन सचिव, शिक्षा (ग्रुप- 6) द्वारा जारी आदेश के अनुसार 27-06-2005 से विश्वविद्यालय का नाम जगद्गुरू रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर कर दिया गया है। यह विश्वविद्यालय ग्राम-मदाऊ, पोस्‍ट – भांकरोटा, जिला – जयपुर में स्थित है।

विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम-


1. शास्‍त्री प्रथम वर्ष
2. शास्‍त्री द्वितीय वर्ष
3. शास्‍त्री तृतीय वर्ष
4. आचार्य प्रथम एवं द्वितीय वर्ष
5. शिक्षा शास्‍त्री
6. विद्यावारिधि ( Ph.D. )

सम्पर्क-


http://www.jrrsanskrituniversity.ac.in/

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...