Skip to main content

राजस्थान साहित्य अकादमी

राजस्थान साहित्य अकादमी की स्थापना 28 जनवरी, 1958 ई. को राज्य सरकार द्वारा एक शासकीय इकाई के रूप में की गई और 8 नवम्बर, 1962 को इसे स्वायत्तता प्रदान की गई, तदुपरान्त यह संस्थान अपने संविधान के अनुसार राजस्थान में साहित्य की प्रोन्नति तथा साहित्यिक संचेतना के प्रचार-प्रसार के लिए सतत् सक्रिय है।

अकादमी के उद्देश्य एवं कार्य-

1. राजस्थान में हिन्दी साहित्य की अभिवृद्धि के लिए प्रयत्न करना।
2. राजस्थान के हिन्दी भाषा के साहित्यकारों और विद्वानों में पारस्परिक सहयोग की अभिवृद्धि के लिए प्रयत्न करना।
3. संस्थाओं और व्यक्तियों को हिन्दी साहित्य से संबंधित उच्च स्तरीय ग्रन्थों, पत्र-पत्रिकाओं, कोश, विश्वकोष, आधारभूत शब्दावली, ग्रन्थ निर्देशिका, सर्वेक्षण व सूचीकरण आदि के सृजन व प्रकाशन में सहायता देना और स्वयं भी इनके प्रकाशन की व्यवस्था करना।
4. भारतीय भाषाओं एवं विश्व भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्य का अनुवाद करना तथा ऐसे अनुवाद कार्य को प्रोत्साहित करना या सहयोग देना।
5. साहित्यिक सम्मेलन, विचार-संगोष्ठियों, परिसंवादों, सृजनतीर्थ, रचना पाठ, लेखक शिविर, प्रदर्शनियां, अन्तर्प्रादेशिक साहित्यकार बंधुत्व यात्राएं, भाषणमाला, कवि सम्मेलन एवं हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार की अन्य योजनाओं आदि की व्यवस्था करना तथा तद्निमित्त आर्थिक सहयोग देना।
6. राजस्थान के साहित्यकारों को उनकी हिन्दी साहित्य की उत्कृष्ट रचनाओं के लिए सम्मानित करना।
7. हिन्दी साहित्य से संबंधित सृजन, अनुवाद, साहित्यिक शोध व आलोचनापरक अध्ययन संबंधी प्रकल्प, भाषा वैज्ञानिक एवं साहित्यिक सर्वेक्षण, लोक साहित्य संग्रह तथा ऐसे ही प्रकल्पों के लिए राजस्थान की संस्थाओं तथा व्यक्तियों को वित्तीय सहयोग देना तथा स्वयं भी ऐसे प्रकल्पों को निष्पन्न करना।
8. राजस्थान के हिन्दी के साहित्यकारों को वित्तीय सहायता, शोधवृत्तियां आदि देना।
9. अकादमी पुस्तकालय, वाचनालय तथा अध्ययन एवं विचार-विमर्श केन्द्र स्थापित करना और इस प्रवृत्ति के विकास के लिए राजस्थान की हिन्दी संस्थाओं को वित्तीय सहयोग देना।
10. ऐसे अन्य कार्य करना जो अकादमी के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक समझे जावें चाहे वे उपरोक्त कृत्यों में हो या न हों।


राजस्थान साहित्य अकादमी के सम्मान / पुरस्कार-

1.
’साहित्य-मनीषी‘ तथा ’विशिष्ट साहित्यकार सम्मान‘-


साहित्य अकादमी उन मूर्धन्य साहित्यकारों को जिन्होंने अपने रचनात्मक योगदान से साहित्य को विस्तृत व विविध आयाम प्रदान किए तथा नये मान व जीवन मूल्यों की सशक्त धारा प्रवाहित की, ऐसे सरस्वती के उपासकों के कृतित्व के प्रति आदर भाव व कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए उन्हें ’साहित्य-मनीषी‘ तथा ’विशिष्ट साहित्यकार सम्मान‘ से अलंकृत करती है।
2.
अकादमी पुरस्कार परंपरा के पुरस्कार-
अकादमी द्वारा विभिन्न विधाओं पर पुरस्कार देने की परंपरा है जो निम्न अनुसार है-

(i) मीरा पुरस्कार
(ii) सुधीन्द्र (काव्य) पुरस्कार
(iii) रांगेय राघव (कथा, उपन्यास) पुरस्कार
(iv) देवीलाल सामर (नाटक) पुरस्कार
(v) देवराज उपाध्याय (निबन्ध-आलोचना) पुरस्कार
(vi) कन्हैयालाल सहल (विविध विधायें) पुरस्कार
(viii) अन्तरप्रान्तीय साहित्य बन्धुत्व अनुवाद पुरस्कार
(ix) भगवान अटलानी युवा लेखन पुरस्कार
(x) डॉ. सरला अग्रवाल लघुकथा पुरस्कार
(xi) सुमनेश जोशी पुरस्कार (प्रथम प्रकाशित कृति)
(xii) शंभूदयाल सक्सेना पुरस्कार (बाल साहित्य)
(xiii) श्री प्रकाश जैन साहित्यिक पत्रकारिता पुरस्कार
(xiv) नवोदित प्रतिभा प्रोत्साहन पुरस्कार-

इसके अंतर्गत नवोदित प्रतिभाओं की रचनाओं को पुरस्कृत किया जाता है, इनमें विद्यालयों व महाविद्यालयों के विद्यार्थी भी शामिल है।

1. सुधा गुप्ता पुरस्कार(निबंध विधा)
2. चन्द्रदेव शर्मा पुरस्कार (कविता विधा)
3. चन्द्रदेव शर्मा पुरस्कार (कहानी विधा)
4. चन्द्रदेव शर्मा पुरस्कार (निबंध विधा)
5. परदेशी पुरस्कार (निबंध विधा)

इस वर्ष के पुरस्कारों के बालों में एक पोस्ट पूर्व में दी जा चुकी है।

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...