पूर्व आईएएस अधिकारी शिक्षाविद् श्री अनिल बोर्दिया का रविवार 2 सितम्बर 2012 की रात ह्रदयाघात हो जाने से जयपुर में देहावसान हो गया। वे अपने पीछे पत्नी श्रीमती ओतिमा बोर्दिया, एक पुत्री, एक पुत्र, दो भाई एवं तीन बहिनों का भरा पूरा परिवार छोडकर गए हैं। श्री बोर्दिया का अंतिम संस्कार मंगलवार 4 सितम्बर को जयपुर के आदर्श नगर श्मशान घाट में किया गया।
**जीवन परिचय-**
श्री अनिल बोर्दिया का जन्म 5 मई, 1934 में इंदौर में जाने माने शिक्षाविद् डॉ. केसरीलाल बोर्दिया के यहाँ हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा उदयपुर के विद्या भवन स्कूल में हुई तथा बाद में उन्होंने उदयपुर के एम.बी. कॉलेज और दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज में इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की।श्री अनिल बोर्दिया ने संपूर्ण जीवन शिक्षा और विशेष रूप से वंचित वर्ग की शिक्षा को समर्पित कर दिया था। शिक्षा के क्षेत्र में इनकी अतीव रुचि रही थी और उम्र भर वे राजस्थान के शैक्षिक विकास की दिशा में प्रयत्नशील रहे। शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सन् 2010 में इन्हें पद्मभूषण से पुरस्कृत किया गया। इसके अलावा श्री बोर्दिया को अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कई बार सम्मानित किया गया उनके शैक्षिक विचारों को राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा जगत में बड़ा महत्व दिया जाता था। श्री अनिल बोर्दिया का 1957 में देश की सबसे प्रतिष्ठित भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में चयन हुआ। एक लोक सेवक के रूप में उन्होंने स्वयं को शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट बनाने का प्रयास किया। उन्होंने राजस्थान में आईएएस अधिकारी के रूप में कार्य करते हुए शैक्षिक विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। इसके बाद उन्हें भारत सरकार के शिक्षा विभाग में 1974 में संयुक्त सचिव तथा 1977 में राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम का महानिदेशक नियुक्त किया गया। यहाँ रहते हुए उन्हें भारत की प्रौढ़ शिक्षा नीति निर्मित करने का श्रेय दिया जाता है। शिक्षा प्रशासक के साथ साथ श्री बोर्दिया एक उत्कृष्ट शिक्षक भी थे। उन्होंने 1980 से 1982 तक यूनेस्को के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एडुकेशन प्लानिंग (IIEP) पेरिस में अध्यापन कार्य भी किया था। 1985 में आपको भारत सरकार में अतिरिक्त शिक्षा सचिव बनाया गया जिसमें उन्हें नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्माण की जिम्मेदारी भी दी गई। उस समय देश के शिक्षा मंत्री श्री पी. वी. नरसिम्हाराव तथा प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी थे। उनके योगदान के फलस्वरूप संसद में मई 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रस्तुत की गई। 1987 में उन्हें भारत सरकार में शिक्षा सचिव नियुक्त किया गया। इस पद पर 1992 तक कार्य करते हुए उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करवाने का अवसर प्राप्त हुआ। 1992 में सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने राजस्थान में शिक्षा के सार्वजनीकरण एवं गुणवत्तापूर्ण व आनंददायी शिक्षा के लिए उन्हीं के द्वारा संकल्पित लोक जुम्बिश परियोजना के अध्यक्ष के रूप में उत्कृष्ट कार्य किया। पूरे देश में इस परियोजना सराहा जाने लगा। 2001 में उन्होंने अन्य नवाचार कार्यक्रम 'दूसरा दशक' प्रारंभ किया जिसके तहत 11 से 20 वर्ष आयु समूह की शिक्षा और विकास पर केन्द्रित था। दूसरा दशक कार्यक्रम प्रदेश के 7 जिलों के 9 ब्लॉक में चलाया जा रहा है। श्री अनिल बोर्दिया ने 1976 से 1982 तक यूनेस्को शिक्षा संस्थान (यूआईई), हेम्बर्ग के उपाध्यक्ष तथा 1980 से 1982 तक अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो ऑफ एजुकेशन (आईबीई), जिनेवा के अध्यक्ष रहते हुए अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा में भी सार्थक भूमिका निभाई। वे 1990 में हुई 'शिक्षा सबके लिए' पर अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस के योजनाकारों तथा नेतृत्व देने वाले शिक्षाविद् में से एक थे। उनके अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा में किए गए विशिष्ट योगदान को देखते हुए उन्हें 1996 में यूनेस्को द्वारा एवीसेन्ना स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। सेवानिवृति के बाद भी श्री बोर्दिया के शैक्षिक विचारों को राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा जगत में बड़ा महत्व था इसीलिए उन्हें शिक्षा का अधिकार लागू करने के लिए बनाई गई कमेटी का अध्यक्ष भी बनाया गया। इसके अतिरिक्त भी राजस्थान सरकार एवं भारत सरकार ने उन्हें समय समय पर शैक्षिक सलाह के लिए आमंत्रित किया था।
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