सवाई माधोपुर
शहर
के
निकट
स्थित
रणथम्भौर
दुर्ग
अरावली
पर्वत
की
विषम
आकृति
वाली
सात
पहाडि़यों
से
घिरा
हुआ
है।
यह
किला
यद्यपि
एक
ऊँचे
शिखर
पर
स्थित
है,
तथापि
समीप
जाने
पर
ही
दिखाई
देता
है।
यह
दुर्ग
चारों
ओर
से
घने
जंगलों
से
घिरा
हुआ
है
तथा
इसकी
किलेबन्दी
काफी
सुदृढ़
है।
इसलिए
अबुल
फ़ज़ल
ने
इसे
बख्तरबंद
किला
कहा
है।
ऐसी
मान्यता
है
कि
इसका
निर्माण
आठवीं
शताब्दी
में
चौहान
शासकों
ने
करवाया
था।
हम्मीर
देव
चौहान
की
आन-बान
का
प्रतीक
रणथम्भौर
दुर्ग
पर
अलाउद्दीन
खिलजी
ने
1301
में
ऐतिहासिक
आक्रमण
किया
था।
हम्मीर
विश्वासघात
के
परिणामस्वरूप
लड़ता
हुआ
वीरगति
को
प्राप्त
हुआ
तथा
उसकी
पत्नी
रंगादेवी
ने
जौहर
कर
लिया।
यह
जौहर
राजस्थान
के
इतिहास
का प्रथम
जौहर
माना
जाता
है।
रणथम्भौर
किले
में
बने
हम्मीर
महल,
हम्मीर
की
कचहरी,
सुपारी
महल,
बादल
महल,
बत्तीस
खंभों
की
छतरी,
जैन
मंदिर
तथा
त्रिनेत्र
गणेश
मंदिर
उल्लेखनीय
हैं।
गणेश
मन्दिर
की
विशेष मान्यता
है।
Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली'' में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...
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