मीनाकारी की सर्वोत्कृष्ट कृति जयपुर में तैयार की जाती है जबकि कागज जैसे पतले परत पर मीनाकारी का कार्य बीकानेर के मीनाकार करते हैं।
थेवा कला (कांच के पर स्वर्ण मीनाकारी) के लिए प्रतापगढ़ प्रसिद्ध है।
संगमरमर पर मीनाकारी का कार्य जयपुर में होता है।
कुंदन कला (सोने के आभूषणों में रत्नों की जड़ाई) का कार्य जयपुर तथा नाथद्वारा में बहुतायत से होता है।
पीतल पर मीनाकारी का कार्य जयपुर तथा अलवर में बहुतायत से होता है।
पीतल पर सूक्ष्म मीनाकारी के कार्य को "मुरादाबादी काम" कहा जाता है।
कोफ्तगिरी- फौलाद (स्टील) से बनी वस्तुओं पर सोने के तारों की जड़ाई को कोफ्तगिरी कहते हैं।
कोफ्तगिरी का कार्य जयपुर तथा अलवर में अत्यधिक होता है।
कोफ्तगिरी की कला दमिश्क से पंजाब व गुजरात होते हुए राजस्थान में आई थी।
तहनिशा - तहनिशा के कार्य में डिजाइन को गहरा खोद कर उसमें तार भर दिए जाते हैं। अलवर के तारसाज तथा उदयपुर के सिकलीगर यह कार्य करते हैं।
बीकानेर में चांदी के डिब्बे तथा किवाड़ की जोड़िया बनाने का काम बहुत प्रसिद्ध है।
उदयपुर में व्हाइट मेटल के पशु पक्षी व फर्नीचर बनाया जाता है।
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