Maharana Kumbha - 'A planner of 32 fortifications' -- महाराणा कुंभा - 'दुर्ग बत्तीसी' के संयोजनकार - डॉ. श्रीकृष्ण 'जुगनू'
दुर्ग या किले अथवा गढ किसी राज्य की बडी ताकत माने जाते थे। दुर्गों के स्वामी होने से राजा को दुर्गपति कहा जाता था, दुर्गनिवासिनी होने से ही शक्ति को भी दुर्गा कहा गया। दुर्ग बडी ताकत होते हैं, चाणक्य से लेकर मनु और राजनीतिक ग्रंथों में दुर्गों की महिमा में सैकडों श्लोक मिलते हैं।
महाराणा कुंभा या कुंभकर्ण (शिव के एक नाम पर ही यह नाम रखा गया, शिलालेखों में कुंभा का नाम कलशनृपति भी मिलता है, काल 1433-68 ई.) के काल में लिखे गए अधिकांश वास्तु ग्रंथों में दुर्ग के निर्माण की विधि लिखी गई है। यह उस समय की आवश्यकता थी और उसके जीवनकाल में अमर टांकी चलने की मान्यता इसीलिए है कि तब शिल्पी और कारीगर दिन-रात काम में लगे हुए रहते थे। यूं भी इतिहासकारों का मत है कि कुंभा ने अपने राज्य में 32 दुर्गों का निर्माण करवाया था। मगर, नाम सिर्फ दो-चार ही मिलते हैं। यथा- कुंभलगढ, अचलगढ, चित्तौडगढ और वसंतगढ।
सच ये है कि कुंभा के समय में मेवाड-राज्य की सुरक्षा के लिए दुर्ग-बत्तीसी की रचना की गई, अर्थात् राज्य की सीमा पर चारों ही ओर दुर्गों की रचना की जाए। यह कल्पना 'सिंहासन बत्तीसी' की तरह आई हो, यह कहा नहीं जा सकता मगर जैसे 32 दांत जीभ की सुरक्षा करते हैं, वैसे ही किसी राज्य की सुरक्षा के लिए दुर्ग-बत्तीसी को जरूरी समझा गया हो :
“श्रीमेदपाटं देशं रक्षति यो दुर्गमन्य देशांश्च। तस्य गुणानखिलानपि वक्तुं नालं चतुर्वदन:।। “
(एकलिंग माहात्म्य 54)
कुंभा के काल में दुर्गों के जो 32 कार्य हुए, वे निम्नांकित है-
महाराणा कुंभा या कुंभकर्ण (शिव के एक नाम पर ही यह नाम रखा गया, शिलालेखों में कुंभा का नाम कलशनृपति भी मिलता है, काल 1433-68 ई.) के काल में लिखे गए अधिकांश वास्तु ग्रंथों में दुर्ग के निर्माण की विधि लिखी गई है। यह उस समय की आवश्यकता थी और उसके जीवनकाल में अमर टांकी चलने की मान्यता इसीलिए है कि तब शिल्पी और कारीगर दिन-रात काम में लगे हुए रहते थे। यूं भी इतिहासकारों का मत है कि कुंभा ने अपने राज्य में 32 दुर्गों का निर्माण करवाया था। मगर, नाम सिर्फ दो-चार ही मिलते हैं। यथा- कुंभलगढ, अचलगढ, चित्तौडगढ और वसंतगढ।
सच ये है कि कुंभा के समय में मेवाड-राज्य की सुरक्षा के लिए दुर्ग-बत्तीसी की रचना की गई, अर्थात् राज्य की सीमा पर चारों ही ओर दुर्गों की रचना की जाए। यह कल्पना 'सिंहासन बत्तीसी' की तरह आई हो, यह कहा नहीं जा सकता मगर जैसे 32 दांत जीभ की सुरक्षा करते हैं, वैसे ही किसी राज्य की सुरक्षा के लिए दुर्ग-बत्तीसी को जरूरी समझा गया हो :
“श्रीमेदपाटं देशं रक्षति यो दुर्गमन्य देशांश्च। तस्य गुणानखिलानपि वक्तुं नालं चतुर्वदन:।। “
(एकलिंग माहात्म्य 54)
कुंभा के काल में दुर्गों के जो 32 कार्य हुए, वे निम्नांकित है-
**विस्तार कार्य –
1. इसके अंतर्गत चित्तौडगढ का कार्य प्रमुख है, जिसमें कुंभा ने न केवल प्रवेश का मार्ग बदला (पश्चिम से पूर्व किया) बल्कि नवीन रथ्याओं या पोलों, द्वारों का कार्य करवाया और सुदृढ प्रकार, परिखा का निर्माण भी करवाया जो करीब 90 साल तक बना रहा।
2. इसी प्रकार मांडलगढ को विस्तार दिया गया।
3. वसंतगढ (आबू) को उत्तर से लेकर पूर्व की ओर बढाया गया मगर चंद्रावती को तब छोड दिया गया।
4. अचलगढ (आबू) की कोट को किले के रूप में बढाया गया।
5. और यही कार्य जालोर में भी हुआ।
6. इसी प्रकार आहोर (जालोर) में दुर्ग की रचना को बढाया गया जहां कि पुलस्त्य मुनि का आश्रम था।
**स्थापना कार्य-
7. अपनी रानी कुंभलदेवी के नाम पर कुंभलगढ की स्थापना की गई, यह नवीन राजधानी के रूप में कल्पित था, यहां से गोडवाड, मारवाड, मेरवाडा आदि पर नजर रखी जा सकती थी।8. इसी प्रकार जावर में किला बनाया गया।
9. कोटडा में नवीन दुर्ग बनवाया।
10. पानरवा में भी नवीन किला निर्मित किया गया। झाडोल में नवीन दुर्ग बने।
यही नहीं, गोगुंदा के पास घाटे में निम्नलिखित स्थानों पर कोट बनवाए गए ताकि उधर से होने वाले हमलों को रोका जा सके-
11. सेनवाडा
12. बगडूंदा
13. देसूरी
14. घाणेराव
15. मुंडारा
16. आकोला में सूत्रधार केल्हा की देखरेख में उपयोगी भंडारण के लिए किला बनवाया गया।
**पुनरुद्धार कार्य -
कुंभा के काल में निम्नांकित पुराने किलों भी का जीर्णोद्धार किया गया।17. धनोप ।
18. बनेडा ।
19. गढबोर ।
20. सेवंत्री ।
21. कोट सोलंकियान ।
22. मिरघेरस या मृगेश्वर ।
23. राणकपुर के घाटे का कोट ।
24. इसी प्रकार उदावट के पास एक कोट का उद्धार हुआ।
25. केलवाडा में हमीरसर के पास कोट का जीर्णोद्धार किया।
26. आदिवासियों पर नियंत्रण के लिए देवलिया में कोटडी गिराकर नवीन किला बनवाया।
27. ऐसे ही गागरोन का पुनरुद्धार हुआ।
28. नागौर के किले को जलाकर नवीन बनाया गया।
29. एकलिंगजी मंदिर के लिए पिता महाराणा मोकल द्वारा प्रारंभ किए कार्य के तहत किला-परकोटा बनवाकर सुरक्षा दी गई। इस समय इस बस्ती का नाम 'काशिका' रखा गया जो वर्तमान में कैलाशपुरी है।
**नवनिरूपण कार्य –
30. शत्रुओं को भ्रमित करने के लिहाज से चित्तौडगढ के पूर्व की पहाडी पर नकली किला बनाया गया।31. ऐसी ही रचना कैलाशपुरी में त्रिकूट पर्वत के लिए की गई।
32. भैसरोडगढ किले को नवीन स्वरुप दिया गया।
कुंभा की यह दुर्ग-बत्तीसी आज तक अपनी अहमियत रखती है। पहली बार इन बत्तीस दुर्गों का जिक्र हुआ है, कुंभाकालीन ग्रंथों के संपादन, अनुवाद के लिए किए गए सर्वेक्षण के समय मेरा ध्यान इस अनुश्रुति पर गया था तब यह जानकारी एकत्रित हुई। आशा है सबको रुचिकर लगेगी।
- डॉ. श्रीकृष्ण 'जुगनू'
Basanti durg ka nirman kis ne kiya
ReplyDeleteKumbha ne sirohi dist me
Deleteमहाराणा कुम्भा
ReplyDeleteMuje Khumajiki 360 Rani me sati Liralbsika parichay.katy kriya.Shrdhha Dikhaye.muje sant mile.aum
ReplyDelete