Skip to main content

Bio Fuel Authority, Rajasthan- - बायोफ्यूल प्राधिकरण, राजस्थान
Important GK for RAS and other Exams


Bio Fuel Authority, Rajasthan-
Introduction-
Bio-Fuel has emerged as alternative sources of energy, from which we can go forward towards energy security. As an alternative to diesel, awareness towards bio-fuel is increased. Seeing the strong prospect of production of Bio Fuel on culturable wasteland of Rajasthan through Jatropha and other such tree borne oil seeds, the Bio Fuel Mission has been started in 2005-06 in the Chairmanship of Hon'ble Chief Minister.
For implementation of the objectives of the Bio Fuel Mission the State Government has declared the Bio Fuel Policy and has constituted the Bio Fuel Authority (BFA).
The State Government of Rajasthan decided to allot culturable wasteland in the identified 12 districts (Baran, Banswara, Bhilwara, Kota, Bundi, Rajsmand, Sirohi, Chittorgarh, Dungarpur, Jhalawar, Udaipur and Pratapgarh) for the farming of Jatropha and other such tree borne oil seeds for the production of Bio Fuel.
Objectives -
The objective of Biofuel Authority is to develop farming of Jatropha, Karanj and other similar oily plants, research, processing, marketing and infrastructure facilities. The wasteland will be developed in the related area and a new direction will be gained in income, employment and industrial development that will help to eradicate poverty in rural areas and the overall growth of the state will be done.
Key points-
Upto 70% of wasteland available in the districts will be allotted to SHGs of BPL families, Gram Panchayats, agriculture co-operative societies, registered societies and village Forest protection and management committees. Preference will be given to BPL families of SHG's. The remaining 30% of wasteland will be allotted to Private companies (registered under Indian company Act, 1956) and Government Enterprises.
Those Government Enterprises and Private Companies will be given preference which will do the following work along with cultivation of Jatropha, Pongamia and other such tree born oilseeds for Bio-Diesel:
  • Establish a processing unit.
  • Establish transesterification unit/Bio diesel refinery.
  • Take up research and development work for package of practice.
  • Establish a nursery for developing of good quality planting material and seeds.
  • Provide employment to local people's on priority.
  • Bio-Fuel Authority will purchase Jatropha produced in the district at minimum support price (MSP).
  • Rajfed is purchasing Jatropha at the rate of 9 /- per kg of MSP.
  • Finance Department has been exempted Jatropha, crude biodiesel and 100 percent biodiesel (B-100) from VAT by Notification No. 135 dated 9:03:08.
Achievements -
  • Total 41127 Ha. barren land has been identified in the 12 districts of Rajasthan (Baran, Banswara, Bhilwara, Bundi, Chittorgarh, Dungarpur, Jhalawar, Kota, Rajsamand, Sirohi, Udaipur and Pratapgarh). Out of which 12858.5 Ha. land has been allotted. 8436.95 Ha. land has been allotted to 941 Self Help group of BPL families and 4421.56 Ha. land has been allotted to 418 Gram Panchyat on Gair Khatedari basis.
  • Under the programme of raising of Jatropha seedling, Land Resource Department of Govt. of India allotted Rs. 225 and Rs.500 in the year 2006-07 and 2007-08 respectively. UP to March 2011, 279.79 Lacs seedling have been raised utilizing Rs. 639.32 Lacs and 255.50 lacs seedling have been planted.
  • A pilot project has been approved by Government of India in Kumbhalgarh block of Rajsamand district and Garhi block in Banswara district as a model of Jetropha under which plantation has been completed. Technical cooperation is being taken in this project from Maharana Pratap University of Agriculture and Technology, Udaipur, and Arid Forest Research Center, Jodhpur.
  • Plantation of Jetropha is being made through NREGA from 2011-12.

बायोफ्यूल प्राधिकरण, राजस्थान- 
परिचय-
बायो-फ्यूल ईंधन ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों के रूप में उभर कर आया है, जिसके द्वारा ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। डीजल के विकल्प के रूप में बायो-फ्यूल ईंधन के प्रति जागरूकता बढ़ी है। राजस्थान की बंजर भूमि में रतनजोत अन्य समकक्ष तैलीय पौधों की खेती के द्वारा बायो-फ्यूल के उत्पादन की प्रबल संभावनाओं को देखते हुए वर्ष 2005-06 में माननीय मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में ‘‘बायो-फ्यूल मिशन’’ का गठन किया गया।

मिशन के उद्देश्यों के क्रियान्वयन हेतु राज्य सरकार द्वारा राज्य में बायो-फ्यूल पॉलिसी घोषित कर अलग से बायो-फ्यूल प्राधिकरण (BFA) का गठन किया गया है। राज्य के 12 जिले (बारां, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, बूंदी, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, झालावाड़, कोटा, राजसमन्द, सिरोही, उदयपुर एवं प्रतापगढ़) रतनजोत एवं अन्य समकक्ष तैलीय पौधों के उत्पादन के लिए उपयुक्त पाए गए हैं।

उद्देश्य-

बायोफ्यूल प्राधिकरण का उद्देश्य रतनजोत, करंज अन्य समकक्ष तैलीय पौधों की खेती, अनुसंधान प्रसंस्करण, विपणन और आधारभूत सुविधाओं का विकास करना है। इससे संबंधित क्षेत्र में बंजर भूमि का विकास होगा तथा आय, रोजगार एवं औद्योगिक विकास को एक नई दिशा मिलेगी, ग्रामीण क्षेत्र में व्याप्त गरीबी को दूर करने में मदद मिलेगी तथा राज्य का चहुँमुखी विकास संभव हो सकेगा।

मुख्य बिन्दु-

जिले में उपलब्ध काश्त योग्य बंजर भूमि का न्यूनतम 70 प्रतिशत भाग बी.पी.एल. परिवारों के स्वयं सहायता समूहों, ग्राम पंचायत, कृषि सहकारी समिति एवं पंजीकृत समिति एवं ग्रामीण वन सुरक्षा एवं प्रबंधन समिति को आवंटित की जावेगी। जिसमें बी.पी.एल. परिवारों के स्वयं सहायता समूहों को प्राथमिकता दी जावेगी। शेष काश्त योग्य बंजर भूमि, अधिकतम 30 प्रतिशत भाग, भारतीय कम्पनीज एक्ट 1956 में पंजीकृत निजी कम्पनियों एवं राजकीय उपक्रमों को आवंटित करने का प्रावधान है।

उन राजकीय उपक्रम एवं निजी कम्पनियों को प्राथमिकता दी जावेगी जिसमें बायो-फ्यूल हेतु रतनजोत, करंज व अन्य समकक्ष तैलीय पौधों की खेती के साथ-साथ निम्न कार्य किया जावेगा-

  •  प्रसंस्करण इकाई की स्थापना
  •  बायो डीजल रिफाईनरी की स्थापना
  •  पैकेज ऑफ़ प्रेक्टिस हेतु अनुसंधान एवं विकास कार्य
  •  उच्च गुणवत्ता की पौध एवं बीज के विकास हेतु नर्सरी स्थापना
  •  रतनजोत, करंज एंव अन्य समकक्ष तैलीय पौधों की खेती
  •  बायो-फ्यूल उद्योग में रोजगार एवं कृषि कार्यो में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता के आधार पर रोजगार उपलब्ध करवाया जावेगा
  • जिले के निर्धारित क्षेत्र में बायो-फ्यूल प्राधिकरण द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उत्पादित रतनजोत की खरीद की जावेगी।l 
  •  राजफैड द्वारा रतनजोत की 9/- रूपये प्रति किलो के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की जा रही है।
  •  वित्त विभाग के नोटिफिकेशन संख्या 135 दिनांक 09.03.08 के द्वारा रतनजोत, क्रूड बायोडीजल एवं 100 प्रतिशत बायो डीजल (बी.100) को वैट से मुक्त कर दिया गया है।
उपलब्धियां-
  •   चिन्हित 12 जिलों के कलक्टर्स द्वारा कुल 41127 हैक्टेयर बंजर भूमि चिन्हित की गई हैं। जिसमें से 12858.50 हैक्टेयर भूमि आंवटित की जा चुकी हैं। 8436.95 हैक्टेयर भूमि 941 स्वयं सहायता समूहों को (बीपीएल परिवारों के) तथा 4421.56 हैक्टयर 418 ग्राम पंचायतों को रतनजोत की खेती हेतु गैर खातेदारी आधार पर आंवटित की जा चुकी है।

  • भू-संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005-06 और 2006-07 में क्रमशः रू 225 लाख रू. 500 लाख कुल 725.00 लाख रतनजोत पौधारोपण हेतु आंवटित किये गये थे। राशि से जिलो में रतनजोत के पौधारोपण का कार्य किया जा रहा है।  
  • भारत सरकार द्वारा राजसमन्द जिले के कुम्भलगढ़ खण्ड में तथा बांसवाड़ा जिले के गढ़ी खण्ड में रतनजोत के मॉडल के रूप में एक पायलेट प्रोजेक्ट स्वीकृत किया गया है जिसके अन्तर्गत पौधारोपण का कार्य पूर्ण हो गया है। इस परियोजना में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर एवं शुष्क वन अनुसंधान केन्द्र, जोधपुर का तकनीकी सहयोग लिया जा रहा है।
  • वर्ष 2011-12 से रतनजोत के पौधारोपण का कार्य नरेगा के माध्यम से कराया जा रहा है।

Comments

  1. Hello sir
    This is sourabh mudra from rajasthan and I want to start biodiesel refinery . Please provide full details about this project

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...