Skip to main content

The Central Sheep and Wool Research Institute, Avikanagar, Tonk ---- केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, टौंक-


The Central Sheep and Wool Research Institute is a premier Institute of Indian Council of Agricultural Research (ICAR) engaged in research and extension activities on sheep and rabbits. It was established in 1962 at Malpura in Rajasthan. Now campus is popular by the name of Avikanagar. The campus is spread over an area of 1510 hectare. It has three Regional Research Centres in different climatic zones of the country to develop region specific technologies.

1. North Temperate Regional Station (NTRS) was established in 1963 in temperate region at Garsa, Kullu in Himachal Pradesh. 
2. The Southern Regional Research Centre (SRRC) was established in 1965 in sub temperate region at Mannavanur in Tamil Nadu
3. Arid Region Campus (ARC) was established in 1974 at Bikaner in arid region of Rajasthan. 

The Institute and its sub-stations have been working for enhancing the productivity of sheep and rabbit by applying scientific methods and developing new technologies. 

केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान राजस्थान के टौंक जिले में मालपुरा के पास अविकानगर में स्थित है यह संस्थान भेड़ और खरगोश के क्षेत्र में अनुसंधान और विस्तार गतिविधियों में कार्यरत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) का एक प्रमुख संस्थान है यह राजस्थान में टौंक जिले में मालपुरा  में 1962 में स्थापित किया गया था, जो अब यह परिसर अविकानगर के नाम से लोकप्रिय है इसका परिसर में 1510 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है विशिष्ट प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए देश के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में इसके तीन क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र भी कार्यरत है, जो निम्न है-
1. उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्रीय केन्द्र (North Temperate Regional Station-NTRS) गर्सा, कुल्लू, हिमाचल प्रदेश में है, जिसे शीतोष्ण क्षेत्र में 1963 में स्थापित किया गया
2.  दक्षिणी क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र (Southern Regional Research Centre-SRRC) मन्नावानुर, तमिलनाडु में उप शीतोष्ण क्षेत्र में 1965 में स्थापित किया गया था
3. इसका शुष्क क्षेत्र कैम्पस (Arid Region Campus-ARC) राजस्थान के शुष्क क्षेत्र में बीकानेर में 1974 में स्थापित किया गया था
यह संस्थान तथा इसके उप स्टेशन वैज्ञानिक तरीकों को लागू करने तथा नई प्रौद्योगिकियों के विकास से भेड़ और खरगोश की उत्पादकता बढ़ाने के लिए कार्य कर रहें है

The Institute has developed new strains of Avikalin for carpet wool production and Bharat Merino sheep for fine wool production in temperate climate. The scientific breeding, feeding and management practices were developed for improving the production traits of Malpura, Marwari, Magra and Chokla sheep. A prolific sheep from crossing of Malpura, Garole and Patanwadi breeds has been developed and its performance evaluation is ongoing under semi-arid climate. Some of the important technologies developed by the Institute are-

  •       Intensive lamb production for mutton,
  •       Complete feed block for scarcity feeding, 
  •       Artificial insemination, embryo transfer technology,   
  •       Iindigenous sponges for estrus synchronization, 
  •       Area specific mineral mixture, 
  •       Cost effective worm control program,
  •       Disease data information system for organized sheep and
  •       Goat farms and wool hair blended woollen products and meat and meat products.

संस्थान ने कालीन ऊन उत्पादन के लिए कालीन "अविकालीन भेड़" और समशीतोष्ण जलवायु में ऊन उत्पादन के लिए "भारत मेरिनो भेड़" की नई उपनस्लों को विकसित किया गया है वैज्ञानिक ढंग से प्रजनन, भोजन देने और प्रबंधन-प्रविधियों के विकास द्वारा मालपुरा, मारवाड़ी, मगरा तथा चोकला भेड़ो के उत्पादन लक्षण में सुधार किये गए हैं मालपुरा, गरोले एवं पाटनवाड़ी नस्लों के संकरण से विपुल उर्वर भेड़ विकसित की गई है तथा इसके प्रदर्शन के मूल्यांकन का कार्य किया जा रहा है संस्थान द्वारा विकसित महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में से कुछ निम्नानुसार हैं-
  • ·         मांस के लिए गहन भेड़ शावक उत्पादन
  • ·         कमी की स्थिति में पोषण के लिए पूरा अवरुद्ध करना
  • ·         कृत्रिम गर्भाधान, भ्रूण स्थानांतरण तकनीक,
  • ·         मद तुल्यकालन के लिए स्वदेशी स्पंज,
  • ·         क्षेत्र विशिष्ट मिनरल्स का मिश्रण,
  • ·         लागत प्रभावी कृमि नियंत्रण कार्यक्रम,
  • ·         संगठित भेड़ के लिए रोग डेटा सूचना प्रणाली
  • ·         बकरी फार्म्स व ऊन बाल मिश्रित ऊनी उत्पादों
  • ·         मांस व मांस उत्पाद

Important Milestones of the Institute-

संस्थान की महत्वपूर्ण उपलब्धियां-

1964-       Introduced Romney Marsh, South Down and Rambuillet sheep
1971-
       Introduced Soviet Merino sheep
1974-
       Introduced Dorset and Suffolk sheep
1975-
       Introduced Karakul sheep at Bikaner
1977-
       Evolved Avikalin and Avivastra sheep
1982-     
    Introduced rabbits at CSWRI, Avikanagar and SRRC, Mannavanur
1983-     
    Evolved synthetic strains of Mutton, Nali and Chokla
1986-     
    Evolved Bharat Merino sheep
1990-     
    Lambs born using pelleted frozen semen
1991-     
    Developed protocal for freezing of ram semen in straws
1992-     
    Lambs born through embryo transfer technology
                 
   Established Asian Small Ruminant Information Centre
1996-     
    Introduction of Awassi sheep
1997-     
    Introduction of Garole sheep        
2007-          Developed area specific mineral mixture
                 
   Impregnated intra veginal sponges for estrus synchronization
2009-         Introduced Patanwadi sheep at Avikanagar
2010-     
   Introduced Kendrapada sheep at Avikanagar

Comments

  1. mujhe goot farm ki trening karni h plse help

    ReplyDelete
  2. Sir, goat farming traning center rajasthan main kon kon se hai

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...