राजस्थान की गरासिया जनजाति -
गरासिया राजस्थान की कुल आदिवासी जनसंख्या में लगभग 2.5 प्रतिशत है। यह जनजाति मुख्य रूप से उदयपुर जिले के खेरवाड़ा, कोटड़ा, झाड़ोल, फलासिया, गोगुन्दा क्षेत्र एवं सिरोही जिले के पिण्डवाड़ा व आबू रोड़ तथा पाली जिले के बाली क्षेत्र में बसी हुई है। सर्वाधिक गरासिया सिरोही, उदयपुर एवं पाली जिले में है। गरासिया शब्द का उच्चारण कई तरह से किया जाता है - ग्रामिया, गिरासिया, गिरेसिया, ग्रासिया। गरासिया शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के ग्रास शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है 'कौर, निवाला या निर्वाह करने साधन'।
उदयपुर के गरासिया गोगुन्दा (देवला) को अपनी उत्पत्ति मानते हैं। कर्नल जेम्स टॉड ने गरासियों की उत्पति गवास शब्द से मानी है। जिसका अभिप्राय सर्वेन्ट होता है। गरासिया जनजाति के लोग स्वयं को चौहान राजपूतों का वंशज मानते हैं। लोक कथाओं के अनुसार गरासिया जनजाति के लोग यह मानते हैं कि ये पूर्व में अयोध्या के निवासी थे और भगवान रामचन्द्र के वंशज थे। ये लोग यह भी मानते हैं कि उनकी गौत्रें बापा रावल की सन्तानों से उत्पन्न हुई थीं। इनमें होलंकी (सोलंकी), डामोर, सोहान (चौहान), वादिया, राईदरा एवं हीरावत आदि गोत्र होते हैं। ये गोत्र भील तथा मीणा जाति में भी पाई जाती है।
उदयपुर के गरासिया गोगुन्दा (देवला) को अपनी उत्पत्ति मानते हैं। कर्नल जेम्स टॉड ने गरासियों की उत्पति गवास शब्द से मानी है। जिसका अभिप्राय सर्वेन्ट होता है। गरासिया जनजाति के लोग स्वयं को चौहान राजपूतों का वंशज मानते हैं। लोक कथाओं के अनुसार गरासिया जनजाति के लोग यह मानते हैं कि ये पूर्व में अयोध्या के निवासी थे और भगवान रामचन्द्र के वंशज थे। ये लोग यह भी मानते हैं कि उनकी गौत्रें बापा रावल की सन्तानों से उत्पन्न हुई थीं। इनमें होलंकी (सोलंकी), डामोर, सोहान (चौहान), वादिया, राईदरा एवं हीरावत आदि गोत्र होते हैं। ये गोत्र भील तथा मीणा जाति में भी पाई जाती है।
सामाजिक जीवन-
आवास-
भीलों के एवं इनके घरों, जीने के तरीकों, भाषा, तीर कमान आदि में कई समानताएं पाई जाती है। इनके घर 'घेर' कहलाते है। इनके गाँव बिखरे हुए होते हैं। ये गाँव पहाड़ियों पर दूर दूर छितरे हुए पाए जाते हैं। गरासियों के गांव 'फालिया' कहलाते है। ये लोग अपने घर प्रायः पहाड़ों की ढलान बताते हैं। एक गाँव में प्रायः एक ही गोत्र के लोग रहते हैं। इनकी भाषा में गुजराती, भीली, मेवाड़ी व मारवाडी का मिश्रण है। इसमें गुजराती के शब्द अधिक होते हैं। गरासिया बोली में 'च' को 'स' बोलते हैं जैसे चौहान को सोहान बोलेंगे। इसी प्रकार 'स' को 'ह' बोलते हैं, जैसे- सोलंकी को होलंकी।विवाह-
इनमें विभिन्न प्रकार के विवाह प्रचलित हैं-
मौर बाँधिया विवाह-- इस प्रकार के विवाह में फेरे आदि संस्कार होते हैं।पहरावना विवाह- इसमें नाममात्र के फेरे होते हैं।
ताणना विवाह- इसमें वर-पक्ष कन्या-पक्ष को केवल कन्या के मूल्य के रूप में वैवाहिक भेंट देता है।
सेवा विवाह - गरासियों में प्रचलित विवाह जिसमें वर, वधू के घर, घर जमाई बनकर रहता है।
आटा साटा विवाह- आदिवासियों में प्रचलित वह विवाह प्रथा, जिसमें लड़की देने के बदले में उसी घर की लड़की को बहू के रूप में लेते है।
खेवणा (माता विवाह) - विवाहित स्त्री द्वारा अपने प्रेमी के साथ भागकर विवाह करना।
मेलबो विवाह - गरासियों में प्रचलित इस विवाह में विवाह खर्च बचाने के उद्देश्य से वधू को वर के घर छोड देते है।
नाता या नातरा प्रथा - इस प्रथा में विवाहित स्त्री अपने पति, बच्चों को छोड़कर दूसरे पुरूष से विवाह कर लेती है।
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रहन सहन एवं पहनावा-
रहन-सहन तथा वेश-भूषा की दृष्टि से गरासिया जनजाति की अपनी एक अलग पहचान है। गरासिया पुरुष धोती कमीज पहनते हैं और सिर पर तौलिया बाँधते हैं। गरासिया स्रियाँ गहरे रंग और तड़क-भड़क वाले रंगीन घाघरा व ओढ़नी पहनती हैं। वे अपने तन को पूर्ण रूप से ढंकती हैं। इस जनजाति विवाहित महिलाएं चमकीले रंग के वस्त्र पहनती हैं जबकि विधवाएं केवल काले या गहरे नीले रंग का उपयोग करती हैं। गरासिया
स्त्रियां कांच का जड़ा हुआ लाल रंग का घाघरा व ओढ़णी, कुर्ता व कांचली प्रमुख
रूप से पहनती है। कुंआरी लड़कियां लाख की चूड़ियां पहनती है व विवाहित
स्त्रियां हाथी दांत की चूड़ियां पहनती है। वे नारियल के खोल की चूड़ियां भी पहनती हैं। इन महिलाओं के चेहरे पर छोटे बिंदुओं का गोदना और ठोड़ी पर बिंदुओं की दो पंक्तियों का गोदना पाया जाता है। गरासिया पुरूष एक धोती, एक झूलकी/ पुठियों (कमीज), और सिर पर साफा (फेंटा) बांधता है। हाथों में कड़ले (कड़े) व भाटली, गले में पत्रला अथवा हंसली और कानों में झेले अथवा मूरकी, लूंग, तंगल आदि पहनते हैं। गरासिया लोगों को वस्त्रों पर कशीदाकारी बहुत पसंद है।
समाज एवं परिवार-
इनका समाज मुख्यतः एकाकी परिवारों में विभक्त होता है। परिवार पितृसत्तात्मक होते है। पिता परिवार का मुखिया होता है। समाज में गोद लेने की परंपरा भी प्रचलित है। इनके समाज में जाति पंचायत का विशेष महत्व है। ग्राम व भाखर स्तर पर जाति पंचायत होती है। पंचायत का मुखिया "पटेल या सहलोत या पालवी" कहलाता है। पंचायत द्वारा आर्थिक व शारीरिक दोनों प्रकार के दंड दिए जाते हैं।
सामाजिक संरचना की दृष्टि से गरासिया आदिवासी दो भागों या जातियों में विभक्त हैं - मोटी जात (मोटी नियात) और नानकी जात (नेनकी नियात)। मोटी का अर्थ बड़े से है तथा नेनकी या नानकी का अर्थ छोटी से है। मोटी नियात के गरासिया स्वयं को उच्च वर्ग के मानते है, जो अपने को बाबोर हाइया कहते है। नेनकी नियात को निम्न श्रेणी का माना जाता है तथा नेनकी नियात के गरासिया माडेरिया कहलाते है। हालांकि इन दोनों भागों में कोई ऐसा विशेष संरचनात्मक तत्त्व नहीं होता है जिससे इनमें कोई अंतर दिखाई पद सके। लेकिन व्यवहार शादी-ब्याह, खान-पान, आदि में ये भेद अत्यधिक स्पष्ट हो जाता है। मोटी जात के गरासिया कहते हैं कि नानकी जात के गरासियों के लिए पवित्र-अपवित्र कुछ नहीं होता है तथा वे सभी तरह का मांस खा लेते हैं।
गरासिया लोग पूर्णतः प्रकृति जीवी है। इनके निवास कच्चे, घासफूस, बांस-बल्ली से युक्त बड़े ही साफ-सुथरे तथा स्वच्छ पर्यावरण दर्शित मिलेंगे।
गरासिया लोग शिव, भैरव व दुर्गा के उपासक होते है। इनमें कई सारे अंधविश्वास व्याप्त है।
भील गरासियां- यदि कोई गरासिया पुरूष किसी भील (या गमेती) स्त्री से विवाह कर लेता हो तो ऐसा परिवार को भील (या गमेती) गरासिया कहा जाता है।
गरासिया अनाज का भंडारण कोठियों में करते है जिन्हें सोहरी कहा जाता है।
सामाजिक संरचना की दृष्टि से गरासिया आदिवासी दो भागों या जातियों में विभक्त हैं - मोटी जात (मोटी नियात) और नानकी जात (नेनकी नियात)। मोटी का अर्थ बड़े से है तथा नेनकी या नानकी का अर्थ छोटी से है। मोटी नियात के गरासिया स्वयं को उच्च वर्ग के मानते है, जो अपने को बाबोर हाइया कहते है। नेनकी नियात को निम्न श्रेणी का माना जाता है तथा नेनकी नियात के गरासिया माडेरिया कहलाते है। हालांकि इन दोनों भागों में कोई ऐसा विशेष संरचनात्मक तत्त्व नहीं होता है जिससे इनमें कोई अंतर दिखाई पद सके। लेकिन व्यवहार शादी-ब्याह, खान-पान, आदि में ये भेद अत्यधिक स्पष्ट हो जाता है। मोटी जात के गरासिया कहते हैं कि नानकी जात के गरासियों के लिए पवित्र-अपवित्र कुछ नहीं होता है तथा वे सभी तरह का मांस खा लेते हैं।
गरासिया लोग पूर्णतः प्रकृति जीवी है। इनके निवास कच्चे, घासफूस, बांस-बल्ली से युक्त बड़े ही साफ-सुथरे तथा स्वच्छ पर्यावरण दर्शित मिलेंगे।
गरासिया लोग शिव, भैरव व दुर्गा के उपासक होते है। इनमें कई सारे अंधविश्वास व्याप्त है।
भील गरासियां- यदि कोई गरासिया पुरूष किसी भील (या गमेती) स्त्री से विवाह कर लेता हो तो ऐसा परिवार को भील (या गमेती) गरासिया कहा जाता है।
गरासिया अनाज का भंडारण कोठियों में करते है जिन्हें सोहरी कहा जाता है।
गरासियों के मेले-
इनके प्रतिवर्ष कई स्थानीय व संभागीय मेले भरते हैं। गरासियों का प्रमुख मेला 'गौर का मेला या अन्जारी का मेला' है जो सिरोही जिले में वैशाख पूर्णिमा को लगता है जिसे गरासिया का जनजाति कुम्भ कहते हैं। इनके बड़े मेले "मनखारो मेलो" कहलाते हैं। गुजरात के चौपानी क्षेत्र का मनखारो मेलो प्रसिद्ध है। देवला महादेव मेला, गोर मालासोर मेला, गोगुन्दा का मेला, अम्बाजी का मेला, अधर देव मेला, युवाओं के लिए इन मेलों का बड़ा महत्व है। गरासिया युवक मेलों में अपने जीवन साथी का चयन भी करते हैं।
गरासियों के नृत्य -
वालर, गरबा, गैर, कुदा, लूर, मोरिया, मांदल, जवारा व गौर गरासियों के प्रमुख नृत्य हैं। ये नृत्य करते समय लय और आनंद में डूब जाते हैं।
- वालर नृत्य में स्त्री-पुरुष अर्द्धवृत्त बनाकर नाचते हैं। इस नृत्य को करते समय किसी भी प्रकार का कोई वाद्य यन्त्र नहीं बजता हैं।
- मांदल नृत्य गरासिया महिलाओं द्वारा किया जाता हैं। विवाह आदि उत्सवों पर किए जाने वाले इस नृत्य में महिलाएँ वृत्ताकार पथ में नृत्य करती हैं।
- गौर नृत्य को गणगौर के अवसर पर किया जाता है। यह एक युगल नृत्य हैं, जिसे स्त्री-पुरूष दोनों के द्वारा किया जाता हैं।
- लूर नृत्य को लूर गोत्र की गरासिया महिलाओं द्वारा मेलों व विवाह के अवसर पर किया जाता हैं।
- जवारा नृत्य को होली के अवसर पर किया जाता है। इसे गरासिया स्त्री व पुरूष दोनों करते हैं।
- कूद नृत्य को स्त्री व पुरूष दोनों द्वारा किया जाता हैं। किसी भी प्रकार का वाद्य यन्त्र नहीं बजते हैं तथा यह पंक्तिबद्ध तरीके से किया जाता हैं।
- मोरिया नृत्य गरासियों द्वारा विवाह के अवसर पर गणपति स्थापना के बाद केवल पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
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गरासियों में गोदना परंपरा -
भीलों की तरह इनमें भी गोदना गुदवाने की परंपरा है। महिलाएँ प्रायः ललाट व ठोडी पर गोदने गुदवाती है। चेहरे के गोदना 'माण्डलिया' कहलाते हैं जबकि हाथ-पाँव पर गोदना माण्डला कहलाता है। इनका मानना है कि गुदवाने से पूर्वज उस व्यक्ति की रक्षा करते है एवं जीवन खुशहाल बना रहता है। गोदने में फूल-पत्ते, और जंगली पौधे बनाएं जाते हैं। जानवरों में मोर, बिच्छु, साँप, तोते, आदि गुदवाये जाते हैं। कई बार स्वयं का नाम गुदवाया जाता है। वयस्क युवक-युवतियां अपने प्रेमी-प्रेमिका का नाम भी गुदवाते हैं।
गरासियों की अर्थव्यवस्था -
गरासियों की अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन, शिकार एवं वनोत्पाद के एकत्रीकरण पर निर्भर है। अब ये लोग मजदूरी करने कस्बों व शहरों में भी जाने लगे हैं।
अन्य प्रमुख बातें-
- गरासिया द्वारा सामूहिक रूप से की जाने वाली कृषि को 'हरीभावरी' कहते हैं।
- गरासियों में प्रचलित मृत्युभोज प्रथा को 'कांधिया या मेक' कहते हैं।
- गरासियों के विकास के लिए कार्य करने वाली सहकारी संस्था को 'हेलरू' कहते हैं।
- गरासिया लोग मृतक व्यक्ति की स्मृति मिट्टी का स्मारक बनाते है, उसे 'हूरे' कहते हैं।
- गरासियों की अनाज संग्रहित करने की कोठियों को 'सोहरी' कहते हैं।
- माउण्ट आबू की नक्की झील इनका पवित्र स्थान है जहां ये अपने पूर्वजो का अस्थि विसर्जन करते है।
- मोर को ये आदर्श पक्षी मानते है। इनके कई लोकगीतों में मोर का प्रमुखता से वर्णन आया है।
- ढोल, नगाड़ा, मांदल, ढोलक, कोंडी, चंग, डमरू, थाली, मंझीरा, झालर, घुंघुरू, बांसुरी आदि गरासियों के प्रिय वाद्य है।
- घेण्टी : गरासिया घरों में प्रयुक्त हाथ चक्की को कहते हैं।
this is 50% correct and rest in fiction
ReplyDeleteBahut achhi post hai.
ReplyDeleteRajasthan gk trick ke liy aap ye site bhi dekh skte ho www.hmgktrick.com
thanks
DeleteThere are some need to correction in written passage . Thnks
ReplyDeleteसुझाव देवें kailash सर ..
DeleteThere are some need to correction in written passage . Thnks
ReplyDeleteआपके सुझावों की प्रतीक्षा है..
DeletePrakash Joshi ji Aapne achchi post dali hai magar isme aur bhi bahot sudharna Baki hai
ReplyDeleteThank you so much.....
Delete"गरासिया जनजाति के लोग स्वयं को चौहान राजपूतों का वंशज मानते हैं।" Sorry prakashji ye aise hi nahi mante, ye hakikat hai aur inmese ek Mai hu aur mere barot bhi hai aur humari vanshavali me hai ki mere purvaj chittaurgarh ke the aur wo Chauhan the
ReplyDeleteकृप्या आपका नम्बर दीजिए, मुझे चौहान गरासिया के बारे में और जानकारी चाहिए और अगर आपके पास इनके भाट या बरोट का नम्बर है तो कृप्या वो भी दे दीजिए। धन्यवाद
Deleteआप कृपया मुझे चौहान गरासिया के बारे में और जानकारी दे सकते हैं क्या? और यदी आपके पास इनके भाट या बरोट का नम्बर है तो कृपया आप वो मुझे दे सकते हैं क्या? मुझे चौहान गरासिया के बारे में अधिक जानकारी चाहिए। धन्यवाद।
DeleteIwant some other information about their dress... The work which used on their dresses
ReplyDeleteआदरणीय श्री प्रकाश जी जोशी आपको सादर खम्मा घणी सा माना कि आपने सही लिखा है किंतु जो आदिवासी लिखा है वह उचित नहीं है क्योंकि गरासिया एक आदिवासी ही नहीं है गरासिया एक क्षत्रिय कुल में आते हैं फिर आपने आदिवासी क्यों लिखा हम स्वयं चौहान राजपूतों का वंशज मानते हैं गरासिया एक क्षत्रिय कुल के हैं यह भी हम भली भांति जानते हैं और आज भी मान रहे हैं कई अधिक लोग भी गरासिया में खुद को आदिवासी साबित करने लगे किंतु यह उचित नहीं है गरासिया स्वयं भगवान श्री राम चंद्र के वंशज मानते हैं और हम अभी भी मान रहे हैं कि हम स्वयं रघुवंशी ही हैं परंतु अब वह भाषा शैली नहीं है रघुवंशी यों को कोई भाषा नहीं बोल रहे हैं अभी तो गरासिया की एक अलग ही भाषा है और कहीं लोग गरासिया में अलग-अलग है और अलग-अलग भाषा शैली है उसमें बोल रहे हैं कुछ गलत हो तो हमे क्षमा चाहते हैं जय मेवाड़ जय राजपूताना जय श्री आशापुरी नमन
ReplyDeleteआपकी भावनाओं का ह्रदय से सम्मान करता हूँ . मैंने इस आलेख में सरकार द्वारा जारी ट्राइबल सूची को तथा शोध आलेखों को आधार बनाया हैं. यहाँ ये भी लिखा हैं कि गरासिया स्वयं को चौहानों का वंशज मानते हैं .
DeleteKya bakwas hai st ke adiwasi apne aap ko rajput mante hai to une junral me samil kr do
Deleteराजपूत है आदिवासी ही पर घृणा है तो आरक्षण किस बात का निकल जाए
Deleteइसमें सिसोदिया चौहान सोलंकी और परमार भी है ये सब गरासिया जाती मै आज भी है खाली चौहान नहीं है हर गरासिया भी अलग अलग वंशज के है ये सारे वंश के लोग है जो मेरे गांव मै आज भी बरवा आता है वंशावली गाने
DeleteAap rajput Ho to adiwasi ka fadya utana bnd kr do
ReplyDeleteReservation to jangal me rhne ke karan arthik situation kharab hone ke karan diya gya tha...
Deleteगरासिया की कूलदेवी कोन है
ReplyDeleteGrasiya kevel ek hi गोत्र के नही है जो उनकी कुल देवी एक ही है गरासिया में अलग अलग गोत्र है सबकी अलग अलग कुलदेवी है जैसे चौहानो की आशापुरा माँ, सिसोदिया की अम्बे माँ , परमारों की चामुण्डा माँetc इसी प्रकार अन्य गोत्र भी जैसे हिमावत,पंचावत ,हिरावत,डंगरावत,राजावत,नगावत,मलावत,
DeleteGrasiya kevel ek hi गोत्र के नही है जो उनकी कुल देवी एक ही है गरासिया में अलग अलग गोत्र है सबकी अलग अलग कुलदेवी है जैसे चौहानो की आशापुरा माँ, सिसोदिया की अम्बे माँ , परमारों की चामुण्डा माँetc इसी प्रकार अन्य गोत्र भी जैसे हिमावत,पंचावत ,हिरावत,डंगरावत,राजावत,नगावत,मलावत,
Deleteक्या आप मुझे और जानकारी दे सकती हैं?
DeleteGarasiya rajput hi h .. halat Situation ke according change hote rahte h.. jangal me rahane ke karan arthik condition poor ho gyi..Tb us time scheduled tribe st me shamil kiya..
ReplyDeleteGarasiya rajput hi h .. halat Situation ke according change hote rahte h.. jangal me rahane ke karan arthik condition poor ho gyi..Tb us time scheduled tribe st me shamil kiya..
ReplyDeleteRight
Deleteगरासिया राजपुत ही है जब गोगुदा में महाराणा प्रताप का राजतिलक होने के बाद कुछ राजपुत जंगलों में बसे हुए थे और बहुत गरीब थे उन राजपुतों की आर्थिक स्थति को देखते हुए उन्हे एसटी category में शामिल किया गया।
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