राजस्थान का हवेली स्थापत्य-
राजस्थान
में
बड़े-बड़े
सेठ
साहूकारों
तथा
धनी व्यक्तियों
ने
अपने
निवास
के
लिये
विशाल
हवेलियों
का निर्माण
करवाया।
ये
हवेलियाँ
कई
मंजिला
होती
थी। शेखावाटी,
ढूँढाड़,
मारवाड़
तथा
मेवाड़
क्षेत्रों
की
हवेलियाँ स्थापत्य
की
दृष्टि
से
भिन्नता
लिए
हुए
हैं।
शेखावाटी
क्षेत्र की
हवेलियाँ
अधिक
भव्य, आकर्षक
एवं
कलात्मक
है।
जयपुर,
जैसलमेर, जोधपुर,
बीकानेर, तथा
शेखावाटी
के
रामगढ़,
मण्डावा,
पिलानी,
सरदारशहर,
रतनगढ़, नवलगढ़,
फतहपुर, मुकुंदगढ़, झुंझुनूं, महनसर,
चुरू आदि कस्बों
में
खड़ी
विशाल
हवेलियाँ
आज
भी
अपने
स्थापत्य
का उत्कृष्ट
उदाहरण
प्रस्तुत
करती
हैं।
राजस्थान
की
हवेलियाँ अपने
छज्जों,
बरामदों
और
झरोखों
पर
बारीक
व उम्दा नक्काशी
के लिए
प्रसिद्ध
हैं।
जैसलमेर की हवेलियाँ -
जैसलमेर की
हवेलियाँ
सदैव ही देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण
का केन्द्र
रही
है।
1. पटवों की हवेली -
यहाँ
की
पटवों की हवेली अपनी
शिल्पकला, विशालता
एवं
अद्भुत नक्काशी
के
कारण
प्रसिद्ध
है।
पटवों
की
हवेली को सेठ गुमानचन्द बापना
ने
18 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में बनवाया
था। जैसलमेर
की सबसे बड़ी यह
पाँच
मंजिला
हवेली शहर
के
मध्य
स्थित
है।
इस
हवेली के जाली-झरोखे
बरबस ही पयर्टकों
को आकर्षित करते
हैं।
2. सालिमसिंह की हवेली -
पटवों
की
हवेली
के अतिरिक्त
जैसलमेर
में
स्थित
सालिमसिंह की हवेली
का शिल्प-सौन्दर्य
भी
अद्वितीय
है।
इसका निर्माण जैसलमेर राज्य के दीवान सालिम सिंह ने 1815 ई. में करवाया था।
इस
नौ खण्डी हवेली
के
प्रथम सात
खण्ड
पत्थर
के
और
ऊपरी
दो खण्ड लकड़ी के
बने
हुए थे।
बाद
में
लकडी़
के
दोनों
खण्ड
उतार
लिये
गए।
3. नथमल की हवेली -
जैसलमेर राज्य के प्रधानमंत्री नथमलजी द्वारा
19वीं शताब्दी में निर्मित नथमल की हवेली
भी
शिल्पकला
की
दृष्टि
से
अपना अनूठा
स्थान
रखती
है।
इस
हवेली
का
शिल्पकारी
का
कार्य हाथी
और लालू
नामक
दो
भाइयों
ने
इस
सकंल्प
के
साथ शुरू
किया
था
कि
वे
हवेली
में
प्रयुक्त
शिल्प
को
दोहराएंगे नहीं,
इसी
कारण
इसका
शिल्प
अनूठा
है।
बीकानेर की प्रसिद्ध हवेलियाँ -
17 वीं से 20 वीं सदी में निर्मित बीकानेर
की हवेलियाँ भी अपनी कलात्मकता, वैभव तथा स्थापत्य के कारण विश्वभर का ध्यान अपनी
ओर खींच रही है।
इसी कारण वर्ष 2012 में राजस्थान की भव्य विरासत इन हवेलियों को 'वर्ल्ड मोन्यूमेंट वाच' कार्यक्रम में शामिल किया गया
था। बीकानेर
की
प्रसिद्ध
‘बच्छावतों की हवेली’ का निर्माण
सोलहवीं
सदी
के
उत्तरार्द्ध
में
कर्णसिंह बच्छावत
ने करवाया
था।
इसके
अतिरिक्त
बीकानेर
में
मोहता, मूंदड़ा, रामपुरिया, कोठारी, अग्रवाल, रिखजी
बागड़ी, डागा चौक आदि
की
हवेलियाँ
अपने
शिल्प
वैभव
के
कारण विख्यात
है।
बीकानेर
की
हवेलियाँ
लाल
पत्थर
से
निर्मित है।
इन
हवेलियों
में
ज्यामितीय
शैली
की
नक्काशी
है
एवं आधार
को
तराश
कर
बेल-बूटे,
फूल-पत्तियाँ
आदि
उकेरे गये
हैं।
इनकी
सजावट
में
मुगल,
किशनगढ़
एवं
यूरोपीय चित्रशैली
का
प्रयोग
किया
गया
है।
अनूठा है शेखावाटी का हवेली स्थापत्य -
शेखावाटी
की
हवेलियाँ
अपने
भित्तिचित्रों
के
लिए विख्यात
हैं।
शेखावाटी
की
हवेलियाँ
स्वर्णनगरी के रूप
में विख्यात
हैं।
- नवलगढ़
(झुंझुनूं)
में
सौ से ज्यादा हवेलियाँ अपनी
शिल्प
सौन्दर्य
बिखेरे
हुए
हैं।
यहाँ
की
हवेलियों
में रूप निवास, भगतो की हवेली, जालान की हवेली, पोद्दार की हवेली और भगेरियाँ की हवेली
प्रसिद्ध हैं।
- बिसाऊ
(झुंझुनूं)
में
नाथूराम पोद्दार की हवेली, सेठ जयदयाल केठिया की, हीराराम बनारसी लाल की हवेली तथा सीताराम सिंगतिया की हवेली
प्रसिद्ध
है।
- झुंझुनूं
में
टीबड़ेवाला की हवेली तथा ईसरदास मोदी की हवेली
अपने
शिल्प
वैभव
के
कारण अलग
ही
छवि
लिए
हुए
हैं।
- मण्डावा
(झुंझुनूं) में सागरमल लाडिया, रामदेव चौखाणी तथा रामनाथ गोयनका की हवेली,
डूंडलोद (झुंझुनूं)
में
सेठ लालचन्द गोयनका,
मुकुन्दगढ़
(झुंझुनूं)
में
सेठ राधाकृष्ण एवं केसरदेव कानोड़िया की
हवेलियाँ,
चिड़ावा
(झुंझुनूं)
में बागड़िया की हवेली, डालमिया की हवेली,
महनसर
(झुंझुनूं)
की सोने -चाँदी की हवेली,
श्रीमाधोपुर
(सीकर)
में
पंसारी की हवेली, लक्ष्मणगढ़
(सीकर) केडिया एवं राठी की हवेली प्रसिद्ध
है।
- झुंझुनूं
जिले
की
ये
ऊँची-ऊँची
हवेलियाँ
बलुआ
पत्थर,
ईंट, जिप्सम
एवं
चूना,
काष्ठ
तथा
ढलवाँ
धातु
के
समन्वय
से निर्मित
अपने
अन्दर
भित्ति
चित्रों
की
छटा
लिये
हुए
हैं।
- सीकर
में
गौरीलाल बियाणी की हवेली,
रामगढ़ (सीकर)
में
ताराचन्द रूइया
की
हवेली
समकालीन
भित्तिचित्रों के
कारण
प्रसिद्ध
है।
फतहपुर
(सीकर)
में नन्दलाल देवड़ा, कन्हैयालाल गोयनका
की
हवेलियाँ
भी
भित्तिचित्रों
के
कारण प्रसिद्ध
है।
- चुरू की
हवेलियों
में
मालजी का कमरा, रामनिवास गोयनका की हवेली, मंत्रियों की हवेली
इत्यादि
प्रसिद्ध
है। चुरू
की सुराणा की हवेली में 1100 दरवाजे एवं खिड़कियाँ
है।
भव्यता बिखेरती राजपूताने की हवेलियाँ -
खींचन
(जोधपुर)
में
लाल
पत्थरों
की
गोलेछा एवं टाटिया परिवारों
की
हवेलियाँ
भी
कलात्मक
स्वरूप
लिए
हुए है। जोधपुर
में
बड़े मियां की हवेली, पोकरण की हवेली,
राखी हवेली,
टोंक
की सुनहरी कोठी,
उदयपुर
में बागौर की हवेली,
जयपुर
का
हवामहल, नाटाणियों की हवेली, रत्नाकार पुण्डरीक की हवेली,
पुरोहित प्रतापनारायण जी की हवेली
, कोटा
में जालिम सिंह द्वारा निर्मित झालाजी की हवेली, देवता
श्रीधरजी की हवेली इत्यादि
राजस्थान के प्रसिद्ध हवेली
स्थापत्य
के
विभिन्न
रूप
हैं।
अजमेर में पुरातत्व विभाग द्वारा
संरक्षित 'बादशाह की हवेली' है जिसे बादशाह अकबर
की अनुमति उसके अमीर के निवास के लिए बनवाया गया था।
राजस्थान
में
मध्यकाल
के
वैष्णव
मंदिर
भी
हवेलियों जैसे
ही
बनाये
गये
हैं।
इनमें
नागौर
का
बंशीवाले
का
मंदिर, जोधपुर
का
रणछोड़जी
का
मंदिर,
घनश्याम
जी
का
मंदिर, जयपुर
का
कनक
वृंदावन
आदि
प्रमुख
हैं।
देशी-विेदेशी
पर्यटकों को
लुभानें
तथा
राजस्थानी
स्थापत्य
कला
को सरंक्षण
देने
के
लिए
वर्तमान
में
अनेक
हवेलियों
का
जीर्णोद्धार किया
जा
रहा
है।
Suprrrr
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