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Showing posts from November, 2018

Major Mandi of Rajasthan- राजस्थान की प्रमुख मंडियाँ

क्रम सं.   मंडी नाम स्थान 1 प्याज मंडी     अलवर 2 अमरूद मंडी     सवाईमाधोपुर 3 आंवला मंडी   चौमू (जयपुर) 4 प्‍याज मंडी   रसीदपुरा- फतेहपुर 5 टमाटर मंडी   बस्सी (जयपुर) 6 लहसुन मंडी   छीपा बड़ौदा-छबड़ा (बारां) 7 अश्वगंधा मण्डी    झालरापाटन (झालावाड़) 8 वन उपज मंडी     उदयपुर (अनाज मंडी) 9 मटर मंडी     बसेडी- जयपुर (फ.स) 10 धनिया मंडी     रामगंज मंडी (कोटा) 11 टिण्‍डा मंडी शाहपुरा-जयपुर (फ.स.) 12 मिर्च मंडी टोंक 13 मूंगफली मंडी बीकानेर 14 मेहन्दी मंडी सोजतसिटी-सोजतरोड़ (पाली) 15 फूल मंडी अजमेर (फ.स.) एवं पुष्कर (अजमेर) तथ...

How to do scientific farming of fennel - कैसे करें सौंफ की वैज्ञानिक खेती

औषधीय गुणों से भरपूर है सौंफ - प्राचीन काल से ही मसाला उत्पादन में भारत का अद्वितीय स्थान रहा है तथा 'मसालों की भूमि' के नाम से विश्वविख्यात है। इनके उत्पादन में राजस्थान की अग्रणी भूमिका हैं। इस समय देश में 1395560 हैक्टर क्षेत्रफल से 1233478 टन प्रमुख बीजीय मसालों का उत्पादन हो रहा है। प्रमुख बीजीय मसालों में जीरा, धनियां, सौंफ व मेथी को माना गया हैं। इनमें से धनिया व मेथी हमारे देश में ज्यादातर सभी जगह उगाए जाते है। जीरा खासकर पश्चिमी राजस्थान तथा उत्तर पश्चिमी गुजरात में एवं सौंफ मुख्यतः गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार तथा मध्य प्रदेश के कई इलाकों में उगाई जाती हैं। हमारे देश में वर्ष 2014-15 में सौंफ का कुल क्षेत्रफल 99723 हैक्टर तथा इसका उत्पादन लगभग 142995 टन है, प्रमुख बीजीय मसालों का उत्पादन व क्षेत्रफल इस प्रकार हैं। सौंफ एक अत्यंत उपयोगी पादप है। सौंफ का वैज्ञानिक नाम  Foeniculum vulgare होता है। सौंफ के दाने को साबुत अथवा पीसकर विभिन्न खाद्य पदार्थों जैसे सूप, अचार, मीट, सॉस, चाकलेट इत्यादि में सुगन्धित तथा रूचिकर बनाने में प्रयोग कि...

Water Architecture in the Medieval Rajasthan - मध्यकालीन राजस्थान में जल स्थापत्य

मध्यकालीन राजस्थान में जल स्थापत्य ( Water Architecture in the Medieval Rajasthan) - राजस्थान के अधिकांश भाग में मरुस्थल होने के कारण यहां जल को संरक्षित रखने के परंपरा रही है। यहां वर्षा के पानी को इस तरह के रखा जाता है कि अगली वर्षा तक उससे आवश्यकता पूरी हो सकें- मनुष्य एवं पशुओं के पीने नहाने होने के लिए पानी मिले और खेतों में  सिंचाई भी हो सके। प्रदेश में पानी का इतना महत्त्व था कि बहुत से मध्यकालीन स्थानों के नाम भी कुओं, तालाबों और बावडियों के नाम से जुड़े हुए थे, जैसे किरात- कूप  के नाम पर किराडू-बाड़मेर , पलाश कूपिका के नाम पर फलासिया-मेवाड़ , प्रहलाद कूप  के नाम पर पल्लू -बीकानेर सरोवरों के नाम पर कोडमदेसर, राजलदेसर आदि तालाब के नाम पर नागदा (नाग हद) । राजस्थान में पानी को संजोने, इक्कट्ठा रखने के लिए स्थापत्य निर्माण की आवश्यकता हुई एवं इसके लिए यहां सुंदर कुएं, कुंड, टाँके  तथा बावड़ियां निर्मित की गई।  1. कुएँ - कुओं निर्माण करना आसान था एवं लोग स्वयं बना लेते थे। जब पानी निकल...

Rajasthan Gk Online Test - GK QUIZ - सामान्य ज्ञान क्विज 21 November 2018

प्रश्न - 1 भारत सरकार द्वारा सेवा में गुणवत्ता सुधार, सेवाओं में मूल्यवर्धन तथा बैंक सेवा से वंचित ग्रामीण आबादी के वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को हासिल करने हेतु दर्पण परियोजना का शुभारंभ किया गया। दर्पण (DARPAN) का पूरा नाम क्या है ? उत्तर- डिजिटल एडवांसमेंट आफ रूरल पोस्ट ऑफिस फॉर ए न्यू इंडिया प्रश्न- 2 पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री श्रीमती ममता बनर्जी ने 21 फरवरी 2017 को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर उरांव लोगों द्वारा बोली जाने वाली यूनेस्को की सूची में लुप्तप्राय भाषा के तौर पर सूचीबद्ध किस भाषा को राज्य आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया?  उत्तर- कुरुख प्रश्न- 3 किस राज्य की सरकार द्वारा निर्धन परिवारों को निशुल्क बिजली कनेक्शन दिए जाने हेतु ''प्रकाश है तो विकास है योजना'' का शुभारंभ किया? उत्तर- उत्तर प्रदेश प्रश्न- 4 पृथ्वी विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा तीसरा अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव 2017 का आयोजन नेपाल, बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और पुर्तगाल के संयुक्त सहयोग से किस शहर में किया गया ? उत्तर- चेन्नई प्रश्न - 5 मानसिक स्वास्थ्य पर 21वी विश्व कांग...

Saccharum munja- कैसे करें उपयोगी मूंजा घास की खेती-

मुंजा एक बहुवर्षीय घास है, जो गन्ना प्रजाति की होती है। यह ग्रेमिनी कुल की सदस्य है। इसका वैज्ञानिक नाम सेक्करम मूंज (Saccharum munja) है। मूंज को रामशर भी कहते हैं। यह  घास  भारत,  पाकिस्तान  एवं अपफगानिस्तान के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पायी जाती है। इसका प्रसारण जड़ों एवं सकर्स द्वारा होता है। यह वर्ष भर हरी-भरी रहती है। इसके पौधों की लम्बाई 5 मीटर तक होती है। यह एक खरपतवार है, जो खेतों में पाया जाता है। बारानी एवं मरूस्थलीय प्रदेशों में इसका उपयोग मृदा कटाव व अपक्षरण रोकने में बहुत सहायक होता है। यह एक बहुवर्षीय पौधा है। इसके पौधे एक बार जड़ पकड़ लेने के बाद लगभग 25-30 वर्ष तक नहीं मरते हैं। अधिकतर अकृषि योग्य भूमि जहां कोई फसल व पौधा नहीं पनपता, वहां पर यह खरपतवार आसानी से विकसित हो जाती है। यह नदियों के किनारे, सड़कों, हाईवे,  रेलवे लाइनों और तालाबों के पास, चरागाहों, गोचर, ओरण आदि के आसपास जहाँ खाली जगह हो वहां पर स्वतः प्राकृतिक रूप से उग जाती है। इसकी पत्तियां बहुत तीक्ष्ण होती हैं। इसकी पत्तियों से हाथ या शरीर का कोई भाग लग जाए तो वह जगह कट सक...

rajasthan gk Grasses of Rajasthan - राजस्थान में पशुचारे के लिए उपयोगी घासें

1. सेवण घास- सेवण घास का वानस्पतिक नाम: लेसीयूरस सिंडीकस (Lasiurus Sindicus) सेवण एक बहुवर्षीय घास है। यह पश्चिमी राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है। यह घास 100 से 350 मिमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण घास है। इसमें जड़ तन्त्र अच्छा विकसित होता है, इस कारण यह सूखा सहन कर सकती है। यह कम वर्षा वाली रेतीली भूमि में भी आसानी से उगती है। सेवण का चारा पशुओं के लिए पौष्टिक तथा पाचक होता है। भारत के अलावा यह घास मिश्र, सोमालिया, अरब व पाकिस्तान में भी पाई जाती है। भारत में मुख्यतः पश्चिमी राजस्थान, पंजाब व हरियाणा में पाई जाती है। राजस्थान में जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर व चूरु जिले में यह अन्य घासों के साथ आसानी से उगती हुई पाई जाती है। इसकी मुख्य विशेषता है कि यह रेतीली  मिट्टी में आसानी से पनपती है, इसी कारण यह थार के रेगिस्तान में बहुतायत से विकसित होती है। इसको घासों का राजा भी कहते हैं। इसका तना उर्ध्व, शाखाओं युक्त लगभग 1.2 मीटर तक लम्बा होता है। इसकी पत्तियां रेखाकार, 20-25 सेमी. लम्बी तथा पुष्प गुच्छा 10 सेमी. तक लम्बा होता है। ...