राजस्थान में पशुधन का प्रादेशिक वितरण और उनके मुख्य क्षेत्र -
राजस्थान में पशुओं की विभिन्न प्रजातियों के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रवास को देखते हुए राज्य के मानचित्र के आधार पर समस्त राज्य को 10 भागों में विभाजित किया गया है -
१. प्रथम भाग - उत्तरी पश्चिमी (राठी) क्षेत्र-
- यह क्षेत्र राज्य के उस पश्चिमी भाग में स्थित है, जहां मात्र 25 सेमी से भी कम वर्षा होती है।
- इस क्षेत्र में आने वाले जिले गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर हैं।
- यहां वनस्पति के रूप में यहां कटीली झाड़ियां व रेलोनुरूस हिरसूटस और पेकी अटर्जीज्म नामक घास पाई जाती है।
- राठी गाय यहाँ की प्रमुख नस्ल है।
२. द्वितीय भाग - पश्चिमी क्षेत्र (थारपारकर ) -
- यह क्षेत्र भी 25 सेमी वर्षा वाला भाग है।
- इस क्षेत्र में आने वाले जिलों में जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर और पश्चिमी जोधपुर (शेरगढ़ और फलोदी तहसील) है।
- यह राज्य के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित है।
- इस क्षेत्र की जलवायवीय विशेषता शुष्क तथा रेतीली है।
- इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण फसल बाजरा है।
- थारपारकर नस्ल की गाय इस क्षेत्र की प्रमुख गाय है, जो देश में अधिक दूध देने के लिए मशहूर है।
- इस क्षेत्र के अन्य पशुओं में जैसलमेरी ऊँट और जैसलमेरी भेड़ भी प्रसिद्ध है।
- यहां का नाचना का गोमठ का ऊँट बड़ा प्रसिद्ध है।
- यहाँ लोही बकरी भी पाई जाती है।
३. तीसरा भाग - उत्तरी नहरी सिंचित भू-भाग–
- यह राज्य के कम वर्षा और अधिक तापमान वाले सूदुर उत्तर में स्थित गंगानगर और हनुमानगढ़ का भाग है।
- यहां पर हरियाणवी नस्ल की गाय, नाली नस्ल की भेड़ और मुर्रा नस्ल की भैंस प्रमुखत: पाई जाती है।
४. चतुर्थ भाग - मध्यवर्ती (नागौरी ) क्षेत्र–
- अर्ध शुष्क आंतरिक प्रवाह वाले इस मध्यवर्ती क्षेत्र में नागौर जिला, शेरगढ़ व फलोदी को छोड़कर जोधपुर जिला, बीकानेर जिले की कोलायत तहसील का पूर्वी भाग एवं नोखा तहसील का दक्षिणी पूर्वी भाग, चूरु जिले की सुजानगढ़ तहसील का दक्षिणी भाग तथा पाली जिले की सोजत व रायपुर तहसील सम्मिलित है।
- इस क्षेत्र में भेड़, बकरी, ऊंट, गाय तथा बैल पाले जाते हैं।
- नागौरी गाय की यहाँ की प्रमुख नस्ल हैं। यहां के नागौरी बेल संपूर्ण देश में प्रसिद्ध हैं।
- यहां के मालाणी नस्ल के घोड़े एवं बीकानेरी ऊँट भी मशहूर है। इस क्षेत्र में अंजन और पाला नामक घास पाई जाती है।
५. पांचवा भाग - दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र (सांचौर और कांकरेज)-
- इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा 50 सेमी और लेकिन इस क्षेत्र के माउंट आबू में 150 सेमी में वर्षा होती है।
- क्षेत्र में आने वाले जिलों में सिरोही, जालौर, पाली जिले की खारची, देसूरी, पाली व बाली तहसील है और बाड़मेर जिले के उत्तरी भाग के अतिरिक्त समस्त क्षेत्र आता है।
- इस क्षेत्र के कांकरेज बैल बड़े महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये बहुत ही शक्तिशाली और शरीर में काफी सुडौल होते हैं।
- ये बैल भारी सामान खींचने में सक्षम होते हैं।
६. छठा भाग - दक्षिण और दक्षिण पूर्वी (मालवी ) क्षेत्र-
- इस क्षेत्र में वर्षा 75 सेमी तक होती है जबकि मई का तापमान 32 डिग्री सेल्सियस तथा जनवरी में 18 डिग्री सेल्सियस तापमान होता है।
- इस क्षेत्र में बांसवाड़ा, डूंगरपुर, झालावाड और कोटा जिले आते हैं। यहां डूंगरपुर जिले में अरावली पर्वत श्रेणी, बांसवाड़ा में छप्पन का मैदान, बारां, कोटा और झालावाड में पठारी भू-भाग पाया जाता है।
- यह क्षेत्र मालवी नस्ल के पशुओं के कारण प्रसिद्ध है।
- यहाँ पर सोनाली नस्ल की भेड़, सिरोही किस्म की बकरियां, मुर्रा नस्ल से थोड़ी कमजोर भैंस, भारवाही जाति के ऊंट मिलते हैं।
७. सातवां भाग - दक्षिणी-पूर्वी मध्यवर्ती (गिर ) क्षेत्र-
- इस क्षेत्र में वर्षा लगभग 75 सेमी होती है।
- इस क्षेत्र में राजसमंद, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, अजमेर, भीलवाड़ा तथा बूंदी जिले आते हैं।
- यहां पर भैंसों की स्थानीय नस्ल दरांतीनुमा पायी जाती है।
- यहां की मारवाड़ी नस्ल की भेड़ प्रसिद्ध है।
- अजमेर और नसीराबाद में गिर नस्ल के सर्वश्रेष्ठ जानवर पाए जाते हैं, जिनमें गाय प्रमुख हैं।
८. आठवां भाग- मेवात प्रदेश-
- देहली और उत्तर प्रदेश से लगा हुआ यह क्षेत्र राजस्थान के पूर्व में अलवर और भरतपुर जिलों में विस्तृत है।
- इस क्षेत्र का प्रमुख पशु धन मेवाती गाय, मुर्रा भैंस, अलवरी और बारबरी बकरियां है।
९. नवां भाग- रथ प्रदेश-
- इस क्षेत्र में पानी की अच्छी मात्रा के कारण यहां के लोग खेती में संलग्न होते हैं।
- इस भूभाग में अलवर, भरतपुर तथा धौलपुर जिले आते हैं।
- इस क्षेत्र में मुर्रा भैंस व अलवरी बकरी पाई जाती है।
१०. दसवां भाग- उत्तरी पूर्वी और पूर्वी (हरियाणा) प्रदेश-
- इस क्षेत्र में गंगानगर (पदमपुर, करणपुर, रायसिंहनगर और अनूपगढ़ तहसील के अतिरिक्त) चूरु, झुंझुनू , सीकर, जयपुर और पूर्वी बीकानेर के विभाग आते हैं।
- इस भू-भाग में प्रसिद्ध हरियाणा नस्ल की गाय राठी, थारपारकर और कांकरेज निवसित है।
- भैंसों में मुर्रा नस्ल, भैड़ों में चोकला, नाली और मारवाड़ी नस्लें, बकरियों में जमुनापारी, बड़वानी, अलवरी और सिरोही पाली जाती है।
- इस क्षेत्र में उत्तर पौष्टिक घासें, अंजन, मुरुत, चिम्बर और खाबल पाई जाती है।
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