"पौष बड़ा महोत्सव" एक ऐसा उत्सव है जो हिंदू पंचांग के पौष महीने में राजस्थान के विभिन्न शहरों में सर्दियों का स्वागत करने के लिए बडे उत्साह के साथ मनाया
जाता है। पौष बड़ा नाम में दो शब्द है- पहला पौष हिंदू पंचांग का माह है और दूसरा बड़ा अर्थात दाल का नमकीन बड़ा या पकोड़ा। जयपुर में पौष बड़ा महोत्सव का आयोजन रियासतकाल से मनाया जा रहा है जो अब कई शहरों में आयोजित किया जाता है। इस त्यौहार को मनाने के लिए लोग पौष मास के किसी भी दिन का चुनाव अपनी आसानी के अनुसार करते
हैं तथा अपने आराध्य देव को दाल के बड़े और गर्म हलवे का प्रसाद चढ़ाया जाता है और लोग पन्गत प्रसादी ग्रहण करते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार पौष मास दान करने के लिए बहुत अच्छा
माना जाता है। "पौष बडा" में इस्तेमाल होने वाली सामग्री का ग्रहों से
संबंध माना जाता है, जैसे तेल का शनि ग्रह से, मिर्च का मंगल ग्रह से, जीरा और धनिया का बुध ग्रह
से, गेहूँ का चंद्रमा और पृथ्वी से तथा शुक्र ग्रह से शक्कर का संबंध है। जब
इन ग्रहों की ऊर्जा आदमी को मिलती है तो शीतकाल में 'पौष' प्राण संचारित
होता है। हमारी संस्कृति में कोई भी आहार प्रसाद के रूप में बनाया जा सकता
है। ऋतुकाल के अनुसार भगवान का प्रसाद और परिधान
बदल जाता है। इसलिए सर्दी में भगवान को ऊर्जा पैदा करने वाली सामग्री अर्पित की जाती
है। शीतकाल में प्रभु को सौंठ, अजवाइन और तिल से बना प्रसाद चढ़ाया
जाता है। जबकि वर्षा ऋतु में हल्के वस्त्र पहनाए जाते हैं और जल विहार का आयोजन
किया जाता है।
कहा जाता है कि जयपुर में घाट के बालाजी में श्री बद्रिकाश्रम के
महंत श्री बद्री दास जी के सानिध्य में लक्खी पौष बड़ा महोत्सव सन् 1960 में
मनाया गया था, जिसमें बड़ी संख्या में आम लोगों के लिए पंगत प्रसादी का आयोजन किया गया था, जिसमें लाखों लोगों ने हिस्सा लिया था। जयपुर में मंदिरों में 'पौष बड़ा' बहुत ही प्रचलित हो चुका है। आज
पौष माह में जयपुर में कोई भी दिन ऐसा नहीं होता है कि जयपुर के
किसी कोने में ये पौष बड़ा त्यौहार नहीं मनाया जा रहा हो। इस त्यौहार में सर्दी को ध्यान में
रखते हुए पकोडे, दाल-बाटी-चूरमा, मल्टीग्रेन खिचड़ी आदि का भोग प्रसाद
बनाकर बाँटा जाता है।
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