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Schemes of Tribal Area Development Department - जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग की योजनाएँ

जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग की योजनाएँ

1. आश्रम छात्रावासों का संचालन



जनजाति छात्र-छात्राएं उनके निवास स्थान के नजदीक वांछित स्तर का विद्यालय नहीं होने की स्थिति में उनके परिवारों की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण दूर-दराज के विद्यालयों में अध्ययन जारी नहीं रख पाते हैं। अतः ऐसे छात्र-छात्राएं अध्ययन जारी रख सकें, इस उद्देश्य से विभाग द्वारा 356 आश्रम छात्रावास संचालित किये जा रहे हैं। इन छात्रावासों में 2000/- रू प्रतिमाह प्रति छात्र-छात्रा की दर से निःशुल्क आवास, भोजन, पोशाक एवं अन्य सुविधाऐं उपलब्ध करायी जाती है। आश्रम छात्रावासों में कार्यरत अधीक्षक एवं कोच को 15 प्रतिशत विशेष भत्ता एवं 10 प्रतिशत मकान किराया भत्ता दिया जा रहा है।

2. आवासीय विद्यालय संचालन योजना



अनुसूचित क्षेत्र, माडा क्षेत्र तथा सहरिया क्षेत्र में छात्र-छात्राओं में शिक्षा के उन्नयन हेतु भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा आवासीय विद्यालयों का निर्माण कराया गया है। आवासीय विद्यालयों में स्वीकृत शैक्षिक/अशैक्षिक पदों पर शिक्षा विभाग से कर्मचारियों/ अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति/पदस्थापन पर लिए जाकर अध्ययन व्यवस्था संचालित की जा रही है। इन आवासीय विद्यालयों में राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर का पैटर्न संचालित किया जा रहा है। वर्तमान में विभाग द्वारा 13 आवासीय विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है, जिसमें हजारों छात्र/छात्राऐं लाभान्वित हो रहे है। आवासीय विद्यालयों में कार्यरत अध्यापकों को 15 प्रतिशत विशेष भत्ता दिया जा रहा है।

3. माॅडल पब्लिक रेजीडेन्शियल स्कूल संचालन



अनुसूचित क्षेत्र में दो माॅडल पब्लिक रेजीडेन्शियल स्कूल, ढीकली जिला उदयपुर (बालिका) एवं सूरपुर जिला डूंगरपुर (बालक) का संचालन किया जा रहा है। दोनों स्कूलों की कुल क्षमता 700 छात्र-छात्रा है जिसके विरूद्ध शिक्षा सत्र 2018-19 में 672 छात्र-छात्राओं को प्रवेश दिया गया है।


4. एकलव्य माॅडल रेजीडेन्शियल पब्लिक स्कूल संचालन



विभाग द्वारा अनुसूचित क्षेत्र में 10, माडा क्षेत्र में 6 एवं सहरिया क्षेत्र में 1 एकलव्य माॅडल रेजीडेन्शियल पब्लिक स्कूल का संचालन किया जा रहा है। उक्त स्कूलों की कुल प्रवेश क्षमता 5300 छात्र-छात्रा के विरूद्ध शिक्षा सत्र 2018-19 में कुल 4940 छात्र-छात्राओं को प्रवेश दिया गया है।



5. बहुउद्देशीय छात्रावासों का संचालन



राज्य की अनुसूचित जनजाति की छात्राएं जो दूर-दराज के क्षेत्र की निवासी है एवं शहर में रहकर पी.एच.डी., नीट (NEET)., पी.टी.ई.टी., आई.आई.टी., ए.आई.ई.ई.ई., पी.ई.टी. व प्रशासनिक सेवाओं एवं अन्य उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु कमरा किराया लेकर अध्ययन करने में असमर्थ है, उन्हें निःशुल्क आवासीय व भोजन की सुविधा उपलब्ध कराये जाने के प्रयोजनार्थ जिला मुख्यालय उदयपुर में 150 बालिकाओं की क्षमता एवं कोटा और बारां में 100 बालिकाओं की क्षमता वाले बहुउद्देशीय छात्रावासों का संचालन किया जा रहा है।


6. काॅलेज छात्रावासों का संचालन



अनुसूचित क्षेत्र के महाविद्यालयों में अध्ययनरत् छात्र/छात्राएं, जो दूर-दराज क्षेत्र की निवासी है एवं महाविद्यालय स्थल पर मकान किराए पर लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ है। ऐसे छात्र/छात्राओं को महाविद्यालय स्थल पर निःशुल्क आवासीय सुविधा उपलब्ध कराये जाने के प्रयोजनार्थ काॅलेज छात्रावासों का संचालन किया जा रहा है। वर्तमान में 7 काॅलेज छात्रावासों का संचालन विभाग द्वारा किया जा रहा है। इन छात्रावासों में निवासरत् छात्र/ छात्राओं को राज्य सरकार द्वारा निःशुल्क आवास, अल्पाहार एवं भोजन की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।


7. आश्रम छात्रावासों में विशेष कोचिंग योजना



आश्रम छात्रावासों के कक्षा 10 वीं एवं 12 वीं के छात्र-छात्राओं को आश्रम छात्रावास में ही विषय विशेषज्ञ के माध्यम से 6 माह तक कठिन विषयों की कोचिंग कराई जाती है ताकि छात्र-छात्राऐं कठिन विषयों की अच्छी तैयारी कर अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो सकें। कक्षा 10 वीं में अंग्रेजी, विज्ञान एवं गणित तथा कक्षा 12 में कला वर्ग में अनिवार्य अंग्रेजी व ऐच्छिक अंग्रेजी, वाणिज्य वर्ग में अनिवार्य अंग्रेजी तथा तीनों ऐच्छिक विषय तथा विज्ञान वर्ग में अनिवार्य अंग्रेजी तथा चारों ऐच्छिक विषयों की कोचिंग कराई जाती है।


8. आश्रम छात्रावासों के छात्र-छात्राओं हेतु शैक्षणिक भ्रमण योजना



जनजाति छात्र-छात्राओं को शहरी, वैज्ञानिक, पर्यावरणीय व आधुनिक ज्ञान उपलब्ध कराने की दृष्टि से छात्रावासों के छात्र-छात्राओं को शैक्षणिक भ्रमण कराये जाने हेतु यह योजना संचालित की जा रही है। इसमें जनजाति छात्र-छात्राओं को राजस्थान के शैक्षणिक एवं ऐतिहासिक महत्व के स्थलों पर भ्रमण कराते हुए उनकी जिज्ञासा पूरी करने का प्रयास किया जाता है। इसका मूल उद्देश्य जनजाति के छात्र-छात्राओं को स्मारकों के बारे में ज्ञान प्राप्त कराना ताकि वे राष्ट्रीय विकास की धारा से रूबरू होकर ज्ञान में सुधार ला सकें और व जागरूक तथा जिम्मेदार नागरिक बन सके। यह भ्रमण कार्यक्रम सात दिवसीय होता है जिसमें भोजन, नाश्ता के अतिरिक्त छात्र-छात्राओं को दर्शनीय स्थानों का टिकट एवं ठहरने की व्यवस्था, स्टेशनरी, बसों के किराए का प्रावधान किया गया है।


9. छात्रगृह किराया योजना (केवल राजकीय महाविद्यालय/विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं हेतु)

 

इस योजनान्तर्गत अनुसूचित क्षेत्र के जनजाति के ऐसे छात्र-छात्राऐं जो राजकीय महाविद्यालय/विश्वविद्यालय की स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं में पढते हैं, उनमें से जिन छात्र-छात्राओं को छात्रावास में स्थानाभाव के कारण आवासीय सुविधा नहीं मिल पाती है और वे किराये के मकान में रहकर नियमित अध्ययन करते हैं, उनको इस योजनान्तर्गत आवासीय सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। निम्न अनुसार मकान किराया की राशि निम्नानुसार पुनर्भरण की जाती है-


क्र.सं. स्थान अवधि दर प्रतिमाह प्रति छात्र-छात्रा राशि (10 माह की राशि)
1 संभाग मुख्यालय 10 माह तक 500.00 5000.00
2 जिला मुख्यालय 10 माह तक 400.00 4000.00
3 अन्यत्र स्थान 10 माह तक 300.00 3000.00



जिन छात्र-छात्राओं के माता-पिता आयकरदाता है, उन्हें यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती है। छात्राएं अनुसूचित क्षेत्र की मूल निवासी होने तथा राज्य में ही अध्ययनरत रहने पर ही योजना का लाभ देय होता है।



10. बोर्ड एवं विश्वविद्यालय में प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण जनजाति प्रतिभावान छात्रों को छात्रवृत्ति



उक्त योजना वर्ष 1993-94 से प्रारम्भ की गई। जनजाति के ऐसे प्रतिभावान छात्र जिन्होंने राजस्थान से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड एवं केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित कक्षा 10 एवं 12 की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है तथा विश्वविद्यालय में स्नातक एवं स्नातकोत्तर की परीक्षा में भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते हैं, उन्हें राशि रू 350/- प्रति छात्र प्रतिमाह की दर से 10 माह तक छात्रवृत्ति दी जाती है।



11. जनजाति छात्राओं को उच्च शिक्षा हेतु आर्थिक सहायता 

(निजी एवं राजकीय महाविद्यालय स्तर की छात्राओं के लिए)



जनजाति महिलाओं को उच्च शिक्षा हेतु प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से वर्ष 1994-95 में यह योजना प्रारम्भ की गई। योजना का लाभ उन छात्राओं को प्राप्त होगा, जो अनुसूचित क्षेत्र की मूल निवासी हों और महाविद्यालय (सामान्य शिक्षा) में अध्ययनरत हों। योजनानुसार प्रत्येक अध्ययनरत छात्रा को राशि रू 500/- प्रतिमाह की दर से 10 माह तक (5000/- रू एकमुश्त) आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना में उन्हीं छात्राओं को आर्थिक सहायता दी जाती है, जिन्होंने महाविद्यालय में पिछली परीक्षा उत्तीर्ण कर अगली कक्षा में प्रवेश लिया हो, साथ ही जिनके माता-पिता आयकरदाता नहीं हैं। राज्य की मूल निवासी होने तथा राज्य में ही अध्ययनरत रहने पर ही योजना का लाभ देय होगा।



12. जनजाति छात्राओं को उच्च माध्यमिक शिक्षा हेतु आर्थिक सहायता



उक्त योजना कक्षा 11 वीं एवं 12 वीं में अध्ययन करने वाली जनजाति छात्राओं को शिक्षा के क्षेत्र में जागृत करने के उद्देश्य से वर्ष 2010-11 से प्रारम्भ की गई। योजना का लाभ उन छात्राओं को प्राप्त होता है, जो अनुसूचित क्षेत्र की मूल निवासी हो और राजकीय विद्यालयों में कक्षा 11वीं एवं 12वीं में नियमित रूप से अध्ययनरत हो। योजनानुसार प्रत्येक अध्ययनरत छात्रा को राशि रू 350/- प्रतिमाह की दर से 10 माह तक (3500/- रू एकमुश्त) आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना में उन्हीं छात्राओं को आर्थिक सहायता दी जाती है, जिनके माता-पिता आयकरदाता नहीं हैं। छात्राएं राज्य की मूल निवासी होने तथा राज्य में ही संचालित राजकीय विद्यालयों में अध्ययनरत रहने पर ही योजना का लाभ देय होगा।


13. जनजाति के कक्षा 6 से 12 तक चयनित छात्र-छात्राओं को प्रतिष्ठित विद्यालयों/ संस्थाओं के माध्यम से अध्ययन योजना



सामान्यतया जनजाति छात्र-छात्राऐं आर्थिक दृष्टि से कमजोर होने के कारण प्रतिष्ठित एवं अच्छी शिक्षा देने वाले निजी शैक्षिक विद्यालयों/संस्थाओं में अध्ययन नहीं कर पाते हैं। राज्य की कतिपय श्रेष्ठ शैक्षिक संस्थाओं में जनजाति छात्रों को सामान्य वर्ग के छात्रों के साथ अध्ययन कराने एवं इन्हें गुणवत्तायुक्त शिक्षा दिलवाए जाने हेतु योजना प्रारम्भ की गई। उक्त योजना के अन्तर्गत
राज्य सरकार द्वारा ट्यूशन फीस, आवास, भोजन, पुस्तकें, स्टेशनरी एवं पौशाक आदि हेतु राशि स्वीकृत की जाती है।



14. निःशुल्क स्कूटी वितरण योजना



राज्य की जनजाति छात्राऐं जिन्होंने राजकीय विद्यालयों में अध्ययन कर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान एवं केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित कक्षा 10वीं एवं 12 वीं परीक्षा में प्रथम बार 65 प्रतिशत या इससे अधिक अंक प्राप्त किए हो, उन्हे विभाग द्वारा निःशुल्क स्कूटी वितरण की जाती है। जिस छात्रा ने कक्षा 10वीं में स्कूटी प्राप्त कर ली है तथा कक्षा 12 वीं में भी 65 प्रतिशत या इससे अधिक अंक प्राप्त किया हो तो उसे स्नातक कक्षा में प्रवेश लेने पर प्रथम वर्ष में राशि रू 20,000/- तथा स्नातक के द्वितीय एवं तृतीय वर्ष में क्रमशः राशि रू 10,000/-, 10,000/- नकद दी जाती है। इस योजना में उन्हीं छात्राओं को निःशुल्क स्कूटी दी जाती है, जिनके माता-पिता आयकरदाता नहीं हैं तथा जो राज्य की मूल निवासी होे एवं आगे सामान्य शिक्षा में निरन्तर अध्ययनरत हो।


15. पेयजल योजना



जनस्वास्थ्य अभियांत्रिक विभाग द्वारा 750 से अधिक (जनजाति अनुसूचित क्षेत्र) एवं 1500 से अधिक (गैर अनुसूचित क्षेत्र) की जनसंख्या वाले ग्रामों में पेयजल सुविधा हेतु पम्प एण्ड टेंक निर्माण की योजना संचालित की जाती है।


जनजाति लोग बिखरी आबादी में छितराएं हुए रहते हैं। छितराई आबादी होने से जनजाति उपयोजना क्षेत्र में अधिसंख्य ग्राम जनस्वास्थ्य अभियांत्रिक विभाग के इस नार्मस के अन्तर्गत नहीं आते हैं जिससे उक्त योजना की क्रियान्विति इन ग्रामों में नहीं कर पाता है। अतः इस प्रकार की वंचित जनजाति बाहुल्य ग्रामों/ढाणियों में पम्प एण्ड टेंक योजना, पाईप्ड योजना, पनघट योजना, टयुबवेल, ओपनवेल मय ऐसेसरिज (विद्युत कनेक्शन सहित), पाईप लाईन घरो में पेयजल, हैण्डपम्प निर्माण कराया जाता है।



16. जिला स्तर पर खेल सुविधाओं का विकास



उपयोजना क्षेत्र में जिला मुख्यालय पर छात्र/छात्राओं को बेहतर खेल सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्टेडियम/स्पोर्टस काॅम्पलेक्स का निर्माण करवाया जाता है ताकि जनजाति छात्र/छात्राओ को राष्ट्रीय एवं अन्र्तराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग ले सके।



17. राजकीय शिक्षण संस्थाओं मे अतिरिक्त कमरों का निर्माण


   

राजस्थान राज्य मे कई विद्यालय क्रमोन्नत हुए है एवं नवीन महाविद्यालयो की स्थापना हुई है। विगत वर्षो मे महाविद्यालयो मे भी छात्र/छात्राओ के नामांकन मे वृद्धि हुई है एवं सभी ग्राम पंचायत मुख्यालय पर उच्च माध्यमिक विद्यालय संचालित है। विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में छात्रों के अनुपात मे कमरे निर्मित नहीं है। ऐसे राजकीय शिक्षण संस्थाओं में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग द्वारा अतिरिक्त कमरों का निर्माण किया जाता है।




18. जनजाति वर्ग के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक स्थलों का नवीनीकरण एवं विकास



जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग के माध्यम से उपयोजना क्षेत्र में धार्मिक स्थलों पर दर्शनार्थी के लिए आधारभूत सुविधाओं का निर्माण यथा सामुदायिक भवन, पेयजल, एप्रोच रोड आदि का निर्माण किया जाता है।



19. जलोत्थान सिंचाई योजनाओं का निर्माण एवं बंद पड़ी जलोत्थान सिंचाई योजनाओं का पुनरोद्धार

 

जनजाति उपयोजना एवं अन्य क्षेत्र के नदी नाले एवं बांधों के बैक वाटर में उपलब्ध पानी का सिंचाई हेतु उपयोग करने के उद्देश्य से इस योजना में विद्युत/सोलर मोटर द्वारा पानी लिफ्ट किया जाकर सिंचाई क्षेत्रफल में वृद्धि की जाती हैं। लागत का 10 प्रतिशत भाग नकद/श्रम के रूप में लाभान्वितों द्वारा वहन किया जाता है एवं 90 प्रतिशत राशि अनुदान के रुप में टीएडी द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं। योजना का क्रियान्वयन मुख्यतयाः स्वच्छ परियोजना द्वारा तकनीकी दक्ष अधिकारियों की देखरेख में किया जा रहा है। क्रियान्यन में लाभान्वित काश्तकारों की समिति की भी सहभागिता रहती है। योजना पूर्ण होने पर तीन वर्षो तक कार्यकारी एजेन्सी द्वारा लाभान्वित काश्तकारों की कमेटी के माध्यम से संचालन किए जाने का प्रावधान रखा गया है। तत्पश्चात योजना लाभान्वितों की समिति को संचालन हेतु सौंप दी जायेगी।

विगत वर्षो में निर्मित परन्तु बंद सामुदायिक जलोत्थान सिंचाई योजनाओं का पुनरुद्धार भी इस योजनान्तर्गत उपलब्ध संसाधनों के अनुसार किया जा रहा है।



20. नहरों का सुदृढ़ीकरण/विस्तार



जनजाति उपयोजना एवं अन्य क्षेत्र में पूर्व वर्षो में निर्मित वृहद, मध्यम एवं लघु सिंचाई योजनाओं की नहर प्रणालियाॅं क्षतिग्रस्त होती रहती हैं। जल संसाधन विभाग को इन नहर प्रणालियों के रखरखाव एवं संधारण हेतु राज्य आयोजना मद में पर्याप्त निधियाॅं उपलब्ध नहीं होने से इनके रख रखाव/संधारण हेतु जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग द्वारा राशि उपलब्ध कराई जाती है ताकि जनजाति कृषकों के खेतों की सिंचाई निर्बाध रूप से होती रहे । इसके अतिरिक्त जिन नहरों के विस्तार हेतु जल संसाधन विभाग के पास पर्याप्त राशि उपलब्ध नहीं होती है, उन नहरों के विस्तार का कार्य भी इस योजनान्तर्गत किया जाता है, जिससे अधिकाधिक जनजाति काश्तकार लाभान्वित हो सके एवं सिंचाई के क्षेत्रफल में वृद्धि हो।



21. जल संग्रहण संरचनाओं (एनिकट) का निर्माण एवं पुनरोद्वार


जनजाति उपयोजना एवं अन्य क्षेत्र में अवस्थित नदी व नाले भौगोलिक परिस्थितियों के कारण अत्यधिक ढलान वाले होने से एक ओर तो वर्षा का जल तीव्र गति से बहकर व्यर्थ चला जाता है, वहीं दूसरी ओर जनजाति कृषकों की नालों के समीप की भूमि का कटाव भी होता है। अतः उक्त क्षति को रोकने एवं वर्षा के पानी के संग्रहण के उदेदश्य से जल संग्रहण ढांचों (एनिकट इत्यादि) का निर्माण किया जाता है। जल संग्रहण ढांचों के निर्माण से न केवल क्षेत्र के भू-जल स्तर में वृद्धि होती है, बल्कि संग्रहित जल का उपयोग काश्तकारों द्वारा सिंचाई में भी लिया जाता है। योजनान्तर्गत पूर्व वर्षो में निर्मित जल संग्रहण ढांचों के सम्पूर्ण उपयोग हेतु उनकी मरम्मत/जीर्णोद्धार के कार्य भी कराए जाते हैं।



22. कुओं का विद्युतीकरण एवं विद्युत पंपसेट वितरण योजना

      इस योजनान्तर्गत जनजाति उपयोजना अनुसूचित क्षेत्र एवं गैर अनुसूचित क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के बी.पी.एल. कृषकों के सिंचाई साधनो में सुधार करने हेतु उनके निजी कृषि कूप पर विद्युत कनेक्शन तथा विद्युत पंपसेट उपलब्ध कराया जाता है। इस हेतु कृषक की स्वयं की कृषि भूमि होना अनिवार्य है। कृषक द्वारा उसकी भूमि पर विगत कम से कम तीन वर्षो से खेती की जा रही हो। कुँए/जल स्रोत पर विद्युत कनेक्शन चाहे जाने पर सम्बन्धित विद्युत वितरण निगम लि. द्वारा जारी डिमान्ड नोट की प्रति आवेदन पत्र के साथ संलग्न करना आवश्यक है। विद्युत कनेक्शन हेतु अधिकतम 10000 एवं विद्युत पंप हेतु अधिकतम 15000 की राशि योजनान्तर्गत उपलब्ध कराई जाती है।

23. खेल छात्रावासों का संचालन



अनुसूचित क्षेत्र में जनजाति छात्रों को खेल-कूद हेतु प्रोत्साहित करने तथा उन्हें राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं के लिए तैयार करने के उद्देश्य से राजस्थान राज्य क्रीडा परिषद जयपुर के खेल छात्रावास पैटर्न पर जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग द्वारा अनुसूचित क्षेत्र में 12 खेल छात्रावास व एक बहुउद्देशीय खेल छात्रावास का संचालन किया जा रहा हैं, जिनकी प्रवेश क्षमता 875 छात्र/छात्राओं की है। शैक्षणिक सत्र 2017-18 में 6 बालिका खेल छात्रावास में 400 बालिकाएं एवं 7 बालक खेल छात्रावास में 475 कुल 875 बालक/बालिकाओं को प्रवेश दिया गया था। खेल छात्रावास में सम्पूर्ण राज्य के कक्षा 6 से 12 वीं तक के जनजाति खिलाड़ी बालकों को प्रवेश दिया जाता हैं। छात्रावास में छात्रों का चयन विशिष्ट प्रकार के बेट्री टेस्ट और कौशल परीक्षणों के आधार पर किया जाता हैं। प्रवेशित छात्रों को अनुमोदित पैटर्न अनुसार भोजन, आवास, विद्यालय पोशाक एवं अन्य सहायक सामग्री निःशुल्क उपलब्ध करायी जाती है। इन खेल छात्रावासों में प्रवेशित छात्र/छात्राओं को निकटतम विद्यालयों में नियमित अध्ययन की सुविधा के साथ-साथ खेल छात्रावास की समस्त सुविधाओं का लाभ दिया जा रहा है।

24. खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन




वितीय वर्ष 2017-18 में तीन दिवसीय तृतीय राज्य स्तरीय जनजाति छात्रावास खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन प्रतापगढ मुख्यालय पर कराया गया। प्रतियोगिता में वाॅलीबोल, कबड्डी, खो-खो, तीरन्दाजी एवं ऐथेलेटिक्स का आयोजन किया गया। अनुसूचित क्षेत्र एवं गैर अनुसूचित क्षेत्र में संचालित आवासीय विद्यालयों व आश्रम छात्रावासों का संयुक्त दल एवं खेल छात्रावासों से एक बालक एवं एक बालिका दल नेे इस प्रतियोगिता में भाग लिया । प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर रहे छात्र-छात्राओं को ईनाम के साथ ही प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया गया।


25. जनजाति प्रतिभा खेल सम्मान समारोह आयोजन



विभाग द्वारा खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाडियों को प्रोत्साहित करने हेतु इस योजना का संचालन किया जा रहा है। योजनान्तर्गत जिला स्तर पर प्रथम स्थान, राज्य स्तर तथा राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को स्मृति चिह्न, प्रशस्ति पत्र व नकद पुरस्कार प्रदान किया जाता है। साथ ही कार्यक्रम में सम्मानित छात्र-छात्राओं को समारोह स्थल तक आने-जाने के लिए किराये का भुगतान किया जाता है।



26. बेणेश्वर धाम पर जनजाति छात्र-छात्राओं हेतु खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन



विभाग द्वारा संचालित खेल छात्रावासों में प्रवेश देकर उन्हे प्रचलित खेलो में दक्ष प्रशिक्षक द्वारा प्रशिक्षण देकर प्रोत्साहन किये जाने के उद्देश्य से यह योजना वर्ष 2007-08 से प्रारम्भ की गई है। अनुसूचित क्षेत्र में जनजाति समुदाय के लिए डूंगरपुर जिले की आसपुर पंचायत समिति के साबला ग्राम स्थित बेणेश्वर धाम में मेले का प्रतिवर्ष आयोजन होता है जिसमें अनुसूचित क्षेत्र के सभी जिलों से जनजाति समुदाय के लोग एकत्रित होकर परम्परागत खेल स्पर्धा के लिए अपने साथ धनुष तीर लेकर आते हैं। जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, उदयपुर, जिला प्रशासन डूंगरपुर एवं राजस्थान राज्य क्रीड़ा परिषद, जयपुर के संयुक्त तत्वाधान में मेला स्थल पर पारम्परिक खेलो का आयोजन मेला स्थल पर किया जाता है। 3 दिन की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। प्रतियोगिता मुख्यतः एथेलेटिक्स, तीरंदाजी खेल में 14 वर्ष से कम बालक एवं बालिका वर्ग, 14 वर्ष से उपर पुरूष व महिला वर्ग, रस्सा कस्सी पुरूष व महिला वर्ग, गिडा डोैट व सतौलिया पुरूष वर्ग में एवं मटका दौड़ केवल महिला वर्ग में आयोजित की जाती है। तीरंदाजी में भाग लेने वाले प्रत्येक खिलाड़ी को अपने अपने तीर कमान साथ लाना अनिवार्य है।
आयोजित प्रत्येक खेल व इवेन्ट में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले पुरूष, महिला प्रतियोगी को क्रमशः 501, 401, 301, 201 रूपये नकद राशि पारितोषिक स्वरूप प्रदान की जाती है। रस्सा कस्सी में प्रथम दो स्थान प्राप्त करने वाले पुरूष व महिला दल को 2501 व 1501 रूपए पारितोषिक स्वरूप दिए जाते हैं। गिडा डोट में 9-9 खिलाड़ी व सतोलिया में 7-7 खिलाड़ी तथा रस्सा कस्सी में 9-9 खिलाड़ी भाग लेतेे हैं। गिडाडोट व सतोलिया के प्रथम व द्वितीय स्थान पाने वाले को क्रमशः 1001 व 701 रूपये पारितोषिक दिया जाता है।


27. अनुसूचित क्षेत्र के उत्कृष्ट जनजाति खिलाड़ियों को प्रोत्साहन हेतु नकद राशि



जनजाति प्रतिभावान खिलाडी बालक-बालिकाओं को जो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित खेलकूद प्रतियोगिताओं में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान/पदक प्राप्त होने पर
अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लिए क्रमशः 0.50, 0.25 व 0.15 लाख तथा राष्ट्रीय स्तर के लिए क्रमशः 0.25, 0.15 व 0.10 लाख नकद प्रदान किए जाते हैं। यह योजना अनुसूचित क्षेत्र के सभी जिलों में संचालित की जा रही है।


28. मानगढ़ धाम, घोटिया आम्बा, भैरव महोत्सव में जनजाति खेलकूद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन


अनुसूचित क्षेत्र में जनजाति समुदाय के लिए बांसवाड़ा जिले की पंचायत समिति, आनन्दपुरी, बागीदौरा, तलवाड़ा तथा प्रतापगढ़ जिले में पंचायत समिति अरनोद एवं धरियावद मे प्रतिवर्ष आयोजित मेलों में 'जनजाति खेलकूद प्रतियोगिता एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम' का आयोजन होता है। जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, उदयपुर, जिला प्रशासन एवं राजस्थान राज्य क्रीडा परिषद, जयपुर के संयुक्त तत्वाधान में मेला स्थल पर तीन दिवसीय पारम्परिक खेलों का आयोजन किया जाता है। प्रतियोगिता मुख्यतः एथेलेटिक्स, वालीबाल, कब्बड़ी, फुटबाल, खो-खो, तीरंदाजी खेल में 14 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका वर्ग, 14 वर्ष से ऊपर पुरूष व महिला वर्ग, रस्सा कस्सी पुरूष व महिला वर्ग, गिडा डोट व सतौलिया पुरूष वर्ग में एवं मटका दौड केवल महिला वर्ग में आयोजित की जाती है। यह योजना वर्ष 2009-10 से संचालित है।

29. कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम




जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग द्वारा अनुसूचित क्षेत्र में जनजाति वर्ग के लिए रोजगार सृजन एवं आजीविका के अवसर बढाने के उद्देश्य से राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। इस योजना में अनुसूचित जनजाति अभ्यार्थियों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के उपरान्त 50% को रोजगार के अवसर भी प्रदान किये जाने का भी प्रावधान किया गया है।

एम.ओ.यू. के अन्तर्गत 2 वर्ष (2017-18 एवं 2018-19) में 10000 पात्र लाभार्थियो को प्रशिक्षण प्रदान करने के उपरान्त 50% को रोजगार के अवसर प्रदान करने का लक्ष्य प्रदान किया गया है। जिसके विरुद्ध माह सितम्बर,18 तक 6166 प्रशिक्षणार्थियो को प्रशिक्षण दिया गया। 


Source- 

TAD, Rajasthan

जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग





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राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...