Skip to main content

Indian Institute of Handloom Technology (IIHT), JODHPUR (Rajasthan)



भारतीय हथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर (राजस्थान)

Indian Institute of Handloom Technology (IIHT), JODHPUR (Rajasthan)

जोधपुर का भारतीय हथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान [Indian Institute of Handloom Technology (IIHT)] भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के के बैनर तले विकास आयुक्त और हथकरघा विभाग के तत्वावधान में 16 सितंबर 1993 को भारत के विशेष रूप से उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्र के हथकरघा उद्योग की जरूरतों को पूरा करने के लिए अस्तित्व में आया। IIHT जोधपुर में वस्त्र उद्योग और समाज का नेतृत्व करने के लिए प्रबुद्ध पेशेवर बनने के लिए छात्रों को शिक्षित किया जाता है। संस्थान द्वारा हथकरघा और वस्त्र प्रौद्योगिकी में विश्व स्तर की गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करने के लिए छात्रों पर व्यक्तिगत ध्यान देने के साथ चरित्र निर्माण के मूल्यों को अंकित करने का प्रयास किया जाता है। संस्थान वर्तमान में नयापुरा, चोखा रोड, चोखा, जोधपुर के अपने स्वयं के भवन में संचालित हो रहा है। 

दृष्टि (Vision)-


जोधपुर वस्त्र उद्योग और समाज का नेतृत्व करने के लिए प्रबुद्ध पेशेवर बनने के लिए छात्रों को शिक्षित करना। हथकरघा और वस्त्र प्रौद्योगिकी में विश्व स्तर की गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करने के लिए छात्रों पर व्यक्तिगत ध्यान देने के साथ चरित्र निर्माण के मूल्यों को अंकित करना।

मिशन -


संस्थान का मिशन हथकरघा / वस्त्र उद्योग के लिए उच्च गुणवत्ता वाले तकनीकी व  प्रबंधकीय जनशक्ति की आपूर्ति करना है और हथकरघा / वस्त्र उद्योग के सतत विकास के लिए अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम संचालित करना तथा वस्त्र उद्योग के साथ निकट संपर्क बनाए रखना है ताकि उद्योगों में कार्यरत प्रोफेशनल्स बदलते तकनीकी और पर्यावरणीय वैश्विक परिवर्तनों का सामना करने में सक्षम हो सके।

उद्देश्य -


क) प्रयोगात्मक और अनुसंधान कार्यक्रमों संचालित करना।     
ख) हथकरघा उद्योग के लिए प्रशिक्षण के उच्चतम संभव तकनीकी मानकों को पूरा करने के लिए और हथकरघा क्षेत्र में नियोजित किए जाने वाले तकनीकी कर्मियों के लिए अल्पावधि और दीर्घकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करना।     
ग) संस्थानों एवं हथकरघा उत्पादन इकाइयों के बीच निकटतम संभावित संपर्क बनाने के लिए सेवा के चैनलों को तैयार करना। 

संचालित पाठ्यक्रम -


क्र.सं.     पाठ्यक्रम का नाम        अवधि            प्रवेश हेतु योग्यता
1.     हथकरघा और वस्त्र प्रौद्योगिकी में डिप्लोमा         3  वर्ष    10 वीं उत्तीर्ण 

Comments

  1. राजस्थान से जुडे कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न 👇👇👇
    Click Here

    ReplyDelete
  2. great and best content thanks for Sharing the amazing Content with us
    handicraft factory in jodhpur

    ReplyDelete
  3. need cottons fabric weaver at jodhpur
    salumber (udaipur hatkargha society)
    Girish parmar from mumbai
    9324256262

    ReplyDelete
  4. pls share contact for cottons fabric weaver
    jodhpur
    hatkargha societies of salumber at udaipur

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...