Skip to main content

The Manikya Lal Verma Tribal Research and Training Institute (TRI) Udiapur माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, उदयपुर

माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, उदयपुर

इस संस्थान को टीआरआई (Tribal Research Institute) भी कहते हैं। इस संस्थान की राज्य सरकार द्वारा स्थापना 2 जनवरी, 1964 को उदयपुर में राजस्थान के आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के अध्ययन के संबंध में अनुसंधान और प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई। यह राजस्थान सरकार के जनजाति क्षेत्रीय विभाग के अंतर्गत आने वाला एक शोध एवं प्रशिक्षण है। इसका नाम राजस्थान के आदिवासी आंदोलन के प्रमुख प्रणेता माणिक्य लाल वर्मा पर रखा गया है। उनके समर्पित प्रयासों के कारण संस्थान को वर्तमान स्थल और विशाल भवन में समायोजित किया गया। यह संस्थान वर्तमान में राजस्थान राज्य के दिवंगत मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया की समाधि के पास उदयपुर के अशोकनगर में स्थित है। 

संस्थान ने 1964 से 1979 के शुरुआती समय में राजस्थान सरकार के समाज कल्याण विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य किया और बाद में 1 अप्रैल 1979 को इसे राजस्थान के जनजाति क्षेत्रीय विभाग, राजस्थान को सौंप दिया गया। वर्तमान में यह आयुक्त,  जनजाति क्षेत्रीय विभाग, राजस्थान, उदयपुर के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत है।

जनजातियों के गठित प्रथम आयोग ''श्री एल.एम.श्रीकांत आयोग'' ने अपनी पहली वार्षिक रिपोर्ट में प्रत्येक राज्य जहाँ अनुसूचित जनजाति के लोग काफी संख्या में रहते हैं, में जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया है। इसी क्रम में प्रत्येक राज्य में टीआरआई की स्थापना की गई।  राजस्थान का यह टीआरआई देश के 23 TRI में से एक है। अन्य राज्यों के TRI निम्नांकित स्थानों पर स्थित हैं -

भुवनेश्वर (उड़ीसा) में; रांची (झारखंड), भोपाल (मध्य प्रदेश), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), पुणे (महाराष्ट्र), अहमदाबाद (गुजरात), गुवाहाटी (असम), कोझीकोड (केरल), लखनऊ (उत्तर प्रदेश), उदगमंदलम या ऊटी (तमिलनाडु), हैदराबाद (तेलंगाना), इंफाल (मणिपुर), अगरतला (त्रिपुरा) शिमला (हिमाचल प्रदेश), पोर्ट ब्लेयर (अंडमान निकोबार), रायपुर (छत्तीसगढ़) और मैसूर (कर्नाटक), विजयवाड़ा (आंद्रा प्रदेश), गोवा (गोवा), अरुणाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, नागालैंड, सिक्किम, उतराखंड।

इसके अंतर्गत 1986-87 में एक आदिवासी विकास केंद्र को सोसाइटी एक्ट 1958 के तहत आयुक्त, जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, उदयपुर, राजस्थान की अध्यक्षता में पंजीकृत कराया गया। यह टीआरआई, उदयपुर की एक सहायक संस्था है। 

संस्थान के उद्देश्य

संस्थान की स्थापना का मुख्य उद्देश्य निम्नांकित है -

  1. जनजाति विकास के पंचशील के सिद्धांतों को लागू करने हेतु केन्द्र सरकार, राज्य सरकार एवं अन्य संस्थाओं की विभिन्न योजनाओ की क्रियांविति करना एवं उनके प्रभावों का मूल्यांकन करना।

  2. जनजातियों की भावी विकास जरूरतों की पहचान करना।

  3. राज्य के जनजाति समुदायों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक पहलुओ पर प्रगतिशील अध्ययन एवं चिन्तन को प्रोत्साहित करना है। 

  4. आदिवासी समुदायों को प्रभावित करने वाले पहलुओं पर शोध अध्ययन करना।

  5. जनजाति उप-योजना क्षेत्र के विभिन्न प्रभागों को सहयोग करना तथा आवश्यक वित्तीय पुनर्वितरण के लिए विभिन्न स्रोतों का निर्माण करना।

  6. जनजाति समुदायों की शिक्षा पर सेमिनार आयोजित करना।

संस्थान का प्रशासनिक स्वरूप -



आयुक्त, जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, राजस्थान उदयपुर के नीतिपरक मार्गदर्शन में संस्थान अपनी विभिन्न गतिविधियों का संचालन करता है। 

राज्य स्तर पर प्रशासनिक कार्यों के निष्पादन में अतिरिक्त मुख्य सचिव, जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, जयपुर का मार्गदर्शन तथा दिशा-निर्देशन प्राप्त होता है।

संस्थान के प्रमुख कार्य-

 

1. शोध एवं मूल्यांकन -

जनजाति योजना के विशेष संदर्भ में राज्य के आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन पर शोध करना तथा राज्य के अन्य लोगों के साथ अनुसंधान के निष्कर्षों की तुलना करना।


2 . सेमिनार, प्रशिक्षण और सम्मेलन-

संस्थान द्वारा जनजाति समुदाय से विभिन्न समस्याओ एवं नवीन चुनौतियो के संदर्भ में सम्बंधित सेमिनार, प्रशिक्षण और सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं।

  3. जनजाति शिक्षार्थियो को शोध छात्रवृत्ति :-

जनजाति समुदाय के अभ्यर्थियो को विद्या वाचस्पति उपाधि (Ph.D.) प्राप्त करने हेतु अधिकतम 3 वर्ष के लिये छात्रवृत्ति प्रदान की जाती हैं।


4. चिकित्सा एवं तकनीकी (नीट/आईआईटी) प्रवेश परीक्षा पूर्व कोचिंग-

चिकित्सा एवं तकनीकी अध्ययन में प्रवेश हेतु प्रतिष्ठित संस्थाओं के माध्यम से कोचिंग योजना अन्तर्गत अनुसूचित क्षेत्र, माडा एवं बिखरी आबादी क्षेत्र के जनजाति छात्र-छात्राओ को चिकित्सा एवं तकनीकी (नीट/आईआईटी) प्रवेश परीक्षा पर्वू  कोचिंग, प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थाओं के माध्यम से करायी जाती है।



5. कला एवं संस्कृति -

जनजातीय कला एवं संस्कृति के विविध पहलुओ से गैर जनजाति समाज को अवगत कराने तथा कला एवं संस्कृति को संरक्षण करने की दृष्टि से विविध कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित किये जा रहे है।

वर्ष 2018-19 में पारम्परिक नृत्य नाटिका ‘‘गवरी’’ के 6 कार्यक्रम उदयपुर शहर के विभिन्न पर्यटन स्थलों पर आयोजित कर विडियोग्राफी एवं फोटोग्राफी करवायी गयी।

तृतीय राज्य स्तरीय फोटोग्राफी प्रतियोगिता का आयोजन माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान उदयपुर में किया गया।


6. अन्य कोचिंग:

संस्थान में अनुसूचित क्षेत्र के जनजाति छात्र/छात्राओं को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओ के लिये कोचिंग कक्षाएँ  आयोजित की जा रही है।

6. पुस्तकालय एवं प्रकाशन-

 

(अ) पुस्तकालय:- 

संस्थान के पुस्तकालय में जनजाति समुदाय से संबंधित पुस्तको/ ग्रन्थों का समृद्ध संग्रह है। पुस्तकालय में विभिन्न विषयों पर 16225 संदर्भ ग्रन्थ व पुस्तकें उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त पुस्तकालय के साथ ही संचालित वाचनालय में 135 पत्र-पत्रिकाएँ प्राप्त होती हैं।

(ब) प्रकाशन सहायता:- 

प्रकाशन सहायता योजनान्तर्गत मौलिक पाण्डुलिपियों एवं शोध अध्ययन के प्रकाशनार्थ सहायता राशि प्रदान की जाती है। वर्ष 2017-18 में 8 पाण्डुलिपियां को प्रकाशन सहायता प्रदान की गयी। 2018-19 में 8 प्रविष्ठियां प्राप्त हुई है।

(स) विभागीय प्रकाशन:- 

संस्थान की ओर से आईएसएनएन पंजीकृत शोध पत्रिका ‘‘ट्राईब’’ का प्रकाशन करवाया जाता है। 


7 .  राज्य सरकार के प्रमुख सलाहकार के रूप में कार्य -

अपने शोध, सर्वे, अनुसंधानों व सेमिनार के माध्यम आदिवासी कल्याण से संबंधित मामलों में राज्य सरकार को सलाह देकर यह संस्थान राज्य सरकार के आदिवासी मामलों के प्रमुख सलाहकार के रूप में कार्य करता है। 

Comments

  1. वेबपेज पर आपका हार्दिक स्वागत. (h) (h) (h)
    ये आलेख आपको कैसा लगा ? कृपया अपने कमेंट द्वारा अवगत कराएँ.

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...