Skip to main content

Sherub Arora of Sri Ganganagar won Third Prize in CSIR Innovation Award for School Children-2019

स्कूली बच्चों के लिए सीएसआईआर इनोवेशन अवार्ड-2019 में श्री गंगानगर के शेरूब अरोड़ा ने जीता तृतीय पुरस्कार -

Sherub Arora of Sri Ganganagar won Third Prize in CSIR Innovation Award for School Children-2019

स्कूली बच्चों के लिए सीएसआईआर इनोवेशन अवार्ड-2019 में राजस्थान के श्री गंगानगर के नोजगाय पब्लिक स्कूल के नौवीं कक्षा के छात्र शेरूब अरोड़ा ने तृतीय पुरस्कार जीता है। इसके अंतर्गत उन्हें 30000 रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाएगा। शेरूब अरोरा को उनके नवाचार युक्त प्रोजेक्ट 'GREEN DESERT' के निर्माण के लिए दिया गया है। 'GREEN DESERT' एक ऐसा उपकरण है, जो रेगिस्तान एवं कम पानी वाले क्षेत्रों में होने वाली न्यून वर्षा के जल को एकत्रित करके पौधों को बहुत कम पानी में पोषण देने के लिए किया जा सकता है। शेरूब ने बारिश के पानी का बेहतर दोहन करने के लिए एक बहुत ही सरल और बहुत उपयोगी "जल-बैटरी" (water battery) बनाई है। यह जल-बैटरी वर्षा जल का संग्रह करती है जिसका उपयोग पौधों को सींचने में किया जाता है। नके द्वारा निर्मित प्रत्येक जल-बैटरी में 17 लीटर की जल धारण क्षमता होती है। यह जल-बैटरी अपशिष्ट प्लास्टिक की बाल्टियों से बनी होती है, जिसमें एक फिशनेट धागा होता है और सबसे नीचे ऊर्ध्व सुरंग होती है।

उनके द्वारा निर्मित जलकोष (reservoir) से बहुत कम मात्रा (लगभग 50 मिली प्रतिदिन) में पानी मुक्त होता है जो फिशनेट धागे के माध्यम से जमीन में पेड़ों की जड़ों तक पहुंचता हैं, जिससे पेड़ों को बेहतर जड़ें विकसित करने में मदद मिलती है। विशेष रूप से सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए उपयोगी इस तरह के आविष्कार बड़े पैमाने पर किए जा सकते है।

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर-CSIR) ने स्कूली बच्चों के बीच रचनात्मकता बढ़ाने के लिए 26 अप्रैल, 2002 को स्कूली बच्चों के लिए डायमंड जुबली इन्वेंशन अवार्ड की घोषणा की थी। इस दिन को पूरे विश्व में 'वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी डे' के रूप में भी मनाया जाता है। इस प्रतियोगिता का उद्देश्य स्कूली बच्चों में रचनात्मकता और नवीनता का पता लगाना है और आईपीआर के बारे में जागरूकता पैदा करना है। वर्ष 2011 से इस पुरस्कार का नाम बदलकर ''स्कूली बच्चों के लिए सीएसआईआर इनोवेशन अवार्ड'' कर दिया गया है। 

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...