Skip to main content

Gurunanak Peeth will be formed in Rajasthan University | राजस्थान विवि में बनेगी गुरुनानक पीठ

राजस्थान विवि में बनेगी गुरुनानक पीठ

मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने कहा है कि सिखों के पहले गुरू गुरूनानक देवजी का 550वां प्रकाश पर्व प्रदेश में पूरे उत्साह, उल्लास एवं व्यापक जनभागीदारी के साथ मनाया जाएगा। उन्होंने निर्देश दिए कि समाज में भाईचारे और सामाजिक समरसता का संदेश देने वाले गुरूनानक देवजी के इस प्रकाश पर्व पर सालभर कार्यक्रम आयोजित किए जाएं। इसके लिए एक कार्य योजना बनाने के निर्देश भी प्रदान किए।

गुरूनानक देव जी के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए जैसलमेर जिले के पोकरण एवं कोटा के गुरूद्वारा श्री अगमगढ़ साहिब में विकास कार्य करवाएं जाए। साथ ही जयपुर स्थित राजस्थान विश्वविद्यालय में गुरूनानकजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोध एवं अनुसंधान के लिए गुरूनानक पीठ की स्थापना की जाए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि गुरूनानक देव जी के जीवन दर्शन एवं गरीबों के उत्थान के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों से उन्हें लगातार प्रेरणा मिलती रही है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री निवास पर शबद कीर्तन का कार्यक्रम आयोजित किया जाए। साथ ही कला एवं संस्कृति विभाग की ओर से राजधानी जयपुर में उनकी 550वीं जयंती के अवसर पर एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जाए।

सिखों के प्रमुख धार्मिक स्थल सुल्तानपुर लोधी के लिए निशुल्क स्पेशल बस सेवा


श्री गहलोत ने कहा कि इस पुनीत अवसर पर सिख धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थल सुल्तानपुर लोधी की यात्रा के लिए 12 नवम्बर से 15 नवम्बर तक अलवर, बूंदी, कोटा, जयपुर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, जोधपुर से निशुल्क स्पेशल बस सेवा संचालित की जाए। इसके लिए जिला कलेक्टर को अधिकृत करने के साथ सिख समाज के संगठनों के साथ चर्चा कर आवश्यक कार्यवाही की जाए। 

सिख बाहुल्य जिलों में बनाएंगे गुरुनानक स्मृति वन


मुख्यमंत्री ने कहा कि गुरूनानक देव जी के संदेशों में एक स्वस्थ समाज के निर्माण की प्रेरणा भी छिपी थी। ऎसे में उनकी जयंती के अवसर पर वृक्षारोपण जैसे कार्यक्रम आयोजित कर आमजन को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा सकता है। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि गुरुनानक देव जी की सीख को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए सिख बाहुल्य जिलों में गुरूनानक स्मृति वन बनाए जाएं। इन स्मृति वनों में 550वें प्रकाशवर्ष की स्मृति में 550 पेड़ लगाने के भी निर्देश दिए।

Comments

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...