राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर [Rajasthan Oriental Research Institute (R.O.R.I.)] -
पृष्ठभूमि
कला और साहित्य के लिए राजस्थान के तत्कालीन रियासतों व राज्यों के शासकों का प्रश्रय व संरक्षण, वल्लभ व नाथ संप्रदायों के नैतिक व सक्रिय समर्थन, नए साहित्य के सृजन कार्यों एवं टीका को सीखने व लेखन के लिए नागौर तपगच्छ के जैन भिक्षुओं के समर्पण तथा पेंटिंग व स्क्रिबल कौशल की कला के लिए यतियों के समर्पण आदि ने प्रांत को मात्रा और गुणवत्ता दोनों में नवीन साहित्य की रचना करने या हजारों पांडुलिपियों की नकल करने के क्षेत्र में समृद्ध करने का मार्ग प्रशस्त किया है।
स्वर्गीय हरप्रसाद सारदा (अजमेर) और पंडित के. माधव कृष्ण शर्मा (बीकानेर) ने पांडुलिपियों को सूचीबद्ध करने का कार्य शुरू किया, जबकि विद्वानों ने डी. आर. भंडारकर एवं इतालवी शिक्षाविद एल.पी. टेस्सीटरी न केवल राज्य की विशाल सांस्कृतिक विरासत के विशाल सर्वेक्षण का संचालन किया, बल्कि जयपुर से प्रकाशित काव्यमाला श्रृंखला के लिए समर्पित भाव से कार्य करने वाले विद्वानों को भी प्रेरित किया।
स्वतंत्रता के भोर में, राजस्थान सरकार ने संस्कृत अध्ययनों के उत्थान के लिए 1950 में संस्कृत मंडल के गठन के साथ-साथ तत्कालीन शासकों, कुलीनों के संरक्षण में तथा मंदिरों, जैन उपासरों और व्यक्तिगत रूप से उपलब्ध राज्य में बिखरी हुई विशाल पांडुलिपि सामग्रियों के संग्रहण एवं संरक्षण के लिए एक उल्लेखनीय पहल की।
राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान का मुख्य कार्यालय जोधपुर में स्थित हैं। इसके अधीन छः शाखा कार्यालय अलवर, भरतपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर, एवं जयपुर में स्थापित हैं।
राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान की स्थापना 1954 में मुनि जिनविजय के मार्गदर्शन में उसके मुख्यालय के रूप में जयपुर की गई। पाठ्यवस्तुओं की आलोचना के क्षेत्र में अपने गहन अध्ययन एवं विशेषज्ञता के लिए सराहे गए विद्वान पुरतत्वाचार्य मुनि जिनविजय 'जैन सिंघी ग्रन्थमाला के प्रधान संपादक' तथा रॉयल एशियाटिक सोसायटी के सदस्य थे।
जोधपुर में मुख्यालय को स्थानांतरित करने के सरकार के निर्णय के बाद संस्थान के स्वयं के भवन का निर्माण करने का निर्णय लिया गया तथा 1 अप्रैल 1955 को भारत के तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा एक भव्य समारोह में इसके भवन की आधारशिला रखी गई तथा कार्य पूर्ण होने पर राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोहन लाल सुखाड़िया द्वारा 14 सितम्बर 1958 को इसका उद्घाटन किया गया। इसके साथ ही 1958 में राजस्थान सरकार ने ‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ का मुख्यालय जयपुर से जोधपुर में परिवर्तित किया गया तथा जयपुर रिपॉजिटरी ने इस संस्थान की पहली रिपॉजिटरी शाखा के उद्देश्य को पूरा किया। इस बीच 1956 में सरकार ने इस संस्थान का पुनर्गठन किया, इसे एक निश्चित प्रशासनिक व्यवस्था दी और लक्ष्य व उद्देश्य निश्चित किए।
परिणामस्वरूप संस्थान ने 1962 में अलवर, टोंक, उदयपुर और कोटा के राज्य पुस्तकालयों से पांडुलिपि-संग्रह प्राप्त किए। इसी प्रकार संस्थान ने बीकानेर और चित्तौड़गढ़ से दान के रूप में बड़ी संख्या में पांडुलिपियों को प्राप्त किया। इस प्रकार अधिग्रहित पांडुलिपियों के इस संग्रह से इन शहरों में शाखा रिपोजिटरी की नींव रखी। मुख्यालय जोधपुर और अन्य रिपॉजिटरी में खरीद व दान के माध्यम से पांडुलिपियों को इकट्ठा करने की प्रक्रिया दशकों तक जारी रही, जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विभाग में 12वीं से 20वीं सदी की विविध 25 विषयों के 1.24 लाख हस्तलिखित पाण्डुलिपियां संग्रहित हैं। जिनका देश-विदेश के शोधार्थी निरन्तर लाभ उठा रहे हैं।
सरकार द्वारा बाद में टोंक की रिपॉजिटरी शाखा को 'अरबी और फारसी अध्ययन केंद्र' के रूप में पुनर्निर्मित दिया गया, जबकि भरतपुर में स्थानीय पंडितों और अन्य लोगों द्वारा 5000 पांडुलिपियों के दान के फलस्वरूप एक नई रिपॉजिटरी शाखा अस्तित्व में आई।
इसके साथ ही विभाग द्वारा 219 महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सम्पादन कर प्रकाशित भी करवाया गया हैं। विभाग तथा शाखा कार्यालयों में संदर्भ पुस्तकालय का भी संचालन किया जा रहा हैं, जिसका उपयोग भारत वर्ष एवं विदेशों के विभिन्न विद्वान शोध संदर्भो के लिए उपयोग करते चले आ रहें हैं।
यहाँ पर विभिन्न दुर्लभ पांडुलिपियों की देख-रेख का कार्य किया जाता है। यहां प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों, लेखों, चित्रों को संरक्षण करने के लिए 'कन्जर्वेशन लेबोरेट्री' उपलब्ध है। फटे-पुराने पत्रों, पांडुलिपियों का उपचार करके उन्हें संरक्षण किया जाता है।
प्रमुख उद्देश्य -
- राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान का प्रमुख उद्देश्य हस्तलिखित ग्रंथों का सर्वेक्षण, संरक्षण, अप्रकाशित ग्रन्थों एवं अनुपलब्ध प्रकाशनों का सम्पादन एवं प्रकाशन एवं शोधार्थियों को अध्ययन की सुविधा उपलब्ध कराना है।
- संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी और अन्य भाषाओं में पांडुलिपियों (विशेष रूप से उन पांडुलिपियों, जिन्हें राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व माना जाता है) का विस्तृत सर्वेक्षण करना।
- आधुनिक वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करके पांडुलिपियों का संग्रह और संरक्षण करना।
- अज्ञात और महत्वपूर्ण पांडुलिपियों को विद्वानों, प्रख्यात शिक्षाविदों तथा संस्थान के इंडोलॉजी के विभिन्न विषयों में विशेषज्ञता प्राप्त विशेषज्ञों की मदद से संपादित करना एवं प्रकाशित करना।
- संस्थान में संदर्भ पुस्तकालय स्थापित करना और संस्कृत तथा भारतीय व अन्य विदेशी भाषाओं में प्रकाशित संदर्भ महत्व की मुद्रित पुस्तकों को क्रय व दान के माध्यम से प्राप्त करके इसे समृद्ध करना।
- विद्वानों को पांडुलिपियों, पुस्तकों और पत्रिकाओं के रूप में स्रोत-सामग्री प्रदान करना, उनके अध्ययन एवं भावी शोधों में उनकी सहायता करना।
- राज्य के लोक और भक्ति साहित्य को एकत्र करना और प्रकाशित करना, जो लोगों में मौखिक परंपराओं के रूप में संरक्षित है तथा जो क्षेत्र के आम लोगों के जीवन व समाज को दर्शाते हैं। मौखिक परंपराओं को संरक्षित करने वाले ये लोग अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने के बावजूद भारतीय ज्ञान की शताब्दियों-लंबी अवधारणाओं के मूल्यों के संरक्षण के लिए अपने जीवन को समर्पित कर रहे हैं।
संगठनात्मक संरचना-
प्रशासनिक रूप से संस्थान राजस्थान के प्रमुख शासन सचिव, कला, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व विभाग द्वारा शासित है तथा दिन प्रतिदिन के कार्यों का प्रशासन व अन्य गतिविधि उन्मुख कार्यक्रम निदेशक द्वारा मुख्यालय में पर्यवेक्षण किए जाते हैं। रिपॉजिटरी शाखाओं की देखरेख वरिष्ठ अनुसन्धान सहायक द्वारा पर्याप्त कर्मचारियों, शैक्षणिक व अन्य लोगों के माध्यम से की जाती है।
विभागीय प्रमुख कार्य
- पुराने ग्रंथों का सर्वेक्षण एवं संग्रहण।
- ग्रंथों के संरक्षण हेतु ग्रन्थ पत्र फ्यूमीगेशन एवं ग्रन्थ पत्र रिपेयर।
- ग्रंथों के संरक्षण हेतु डिजिटाईजेशन करना व प्रकाशनों की बिक्री, इसमें राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन नई दिल्ली का सहयोग लिया जाता है।
- ग्रंथों का सम्पादन एवं प्रकाशन।
- शोध सहायता प्रदान करना।
- आर्ट गैलरी (कला विथि) का संचालन करना ।
विद्वानों को सुविधाएं
- संस्थान में किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय/ कॉलेज/ संस्थानों से जुड़े विद्वानों को उनके डॉक्टरेट या पोस्ट डॉक्टरल शोध के लिए अनुसंधान की सुविधा प्रदान की जाती है।
- केंद्र या प्रांतीय सरकारों या परिषदों/आयोगों के प्रायोजन के तहत अथवा स्वतंत्र रूप से अलग-अलग परियोजनाओं पर कार्य करने वाले व्यक्ति कार्य के मूल्य का निर्धारण करने के पश्चात् सुविधा प्राप्त कर सकते हैं।
- संस्थान द्वारा भारतीय विश्वविद्यालयों से संबद्ध विदेशी विद्वानों को भी संबंधित दूतावास से साख देने पर अनुसंधान की सुविधा प्रदान की जाती है।
उपरोक्त श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले विद्वान निम्नलिखित सुविधाओं के हकदार हो सकते हैं-
- पांडुलिपियों और मुद्रित सामग्री का अध्ययन करने के लिए, संबंधित सामग्री से उद्धरण और नोट्स लेना।
- (i) उनके शोध से संबंधित सामग्री की डिजिटल प्रतियां प्राप्त करना। (दुर्लभ और क्षतिग्रस्त पांडुलिपियों / पुस्तकों की प्रतियां प्रदान नहीं की जाएंगी।)
- (ii) लघु चित्रों / सामग्री की तस्वीरें लेने के लिए, प्रत्येक की एक डिटियल प्रति आवश्यक रूप से संस्थान में विद्वान की कीमत पर जमा कराई जाएगी।
- उक्त सुविधाओं हेतु विद्वानों से भारतीय मुद्रा में शुल्क प्राप्त किया जाता है।
भारतीय और विदेशी विद्वानों से डिजिटल प्रतियों के लिए शुल्क निम्नानुसार है -
विद्वान का प्रकार | Per Exposure | In case Digital copy of complete MS is taken |
Indian scholars | Rs. 5/- | |
Foreign scholars | Rs. 10/- | |
2 Rs. Extra for Print (B/W) |
विद्वानों को, यदि रिक्त हो तो, उनके आने से कम से कम 15 दिन पहले लिखित अनुरोध पर तो आवास सुविधा प्रदान की जा सकती है; जिसके लिए दरें इस प्रकार हैं -
विद्वान का प्रकार | One Person /perday | Two Person /per day |
Indian scholars | Rs. 100/- | Rs. 200/- |
Foreign scholars | Rs. 100/- | Rs. 200/- |
अनुसंधान सुविधाएं संस्थान मुख्यालय जोधपुर में और सभी सात शाखा रिपॉजिटरी में उपलब्ध हैं, जिसके लिए विद्वान संपर्क कर सकते हैं। जिनके संपर्क सूत्र निम्न हैं -
- निदेशक, राजस्थान ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, P.W.D. रोड, जोधपुर। (टेलीफोन- 2430244)
- सहायक निदेशक, राजस्थान ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, महाराजा संस्कृत कॉलेज के अंदर, ओल्ड असेंबली हॉल के सामने, एस.डी. बाजार, जयपुर।
- वरिष्ठ अनुसंधान सहायक, राजस्थान ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, महल चौक, अलवर।
- वरिष्ठ अनुसंधान सहायक, राजस्थान ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, ब्रज विलास पैलेस, कोटा।
- वरिष्ठ अनुसंधान सहायक, राजस्थान ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, आर डी गर्ल्स कॉलेज के पास, भरतपुर।
- वरिष्ठ अनुसंधान सहायक, राजस्थान प्राच्य अनुसंधान संस्थान, स्टेशन के पीछे, गवर्नमेंट प्रेस के पास, बीकानेर।
- वरिष्ठ अनुसंधान सहायक, राजस्थान प्राच्य अनुसंधान संस्थान, मृदा संरक्षण कार्यालय, विशाल पेट्रोल पंप के सामने, प्रताप नगर, उदयपुर।
आर्ट गैलरी -
‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ के जोधपुर मुख्यालय में एक बड़ा हाॅल भी आर्ट गैलरी के रूप में विद्यमान है, जिसमें अमूल्य साहित्यिक धरोहरों व चित्रों को प्रदर्शित किया जाता है। इसमें सदियों पुरानी शैली से संबंधित अपार मूल्य के लघु चित्र यथा - पाल, पश्चिमी भारतीय, राजपूत, जम्मू-कश्मीर, दक्षिण भारतीय और क्षेत्रीय शैलियों के चित्र; अप्रकाशित और दुर्लभ पांडुलिपियाँ, सुलेख के उत्कृष्ट नमूने, विभिन्न प्रकार की पांडुलिपियाँ यथा - स्क्रॉल पुस्तक (असामान्य लंबाई की कागज या कपड़े की जिसे स्क्रॉल किया जा सकता है), गंडिका (चौड़ाई और मोटाई में बराबर एक आयताकार पांडुलिपि), संपुट फलक (लकड़ी के रंगीन पैनल के साथ पांडुलिपि जिसके दोनों पक्षों को चित्रित किया गया है), चित्र-बंधन काव्य (विभिन्न आकृतियों में चित्रित अलंकारिक रूप में काव्यात्मक बाउंड) आदि, तथा 'द्विपथ', 'त्रिपथ' और 'पंच पथ' के रूप में ग्रंथों और टीकाओं को लिखने की शैली जिसकी ओर आम लोगों की दृष्टि व ध्यान वर्षों तक नहीं गया, संग्रहित है।
यहाँ विश्व-व्यापी नमूने के बीच, अब आगंतुक पाल स्कूल की आर्य महाविद्या, मेवाड़ शैली की आर्य रामायण और गीत गोविंद, जम्मू कश्मीर शैली की भगवत गीता, तंजावुर शैली की दक्षिण भारतीय गीता, पश्चिमी भारतीय शैली की कल्प सूत्र विक्रम संवत 1485, शारदा, बंगला, गुरुमुखी और फ़ारसी के चित्रण के साथ नागरी लिपि का सदी-वार विकास, जैन शैली की जन्मपत्रियां या कुंडलियां, पृथ्वीराज रासो का ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण संक्षिप्त पाठ जिसकी सत्तर के दशक की शुरुआत में धर्नोज (गुजरात) में नकल की गई थी, और अंत में वे रहस्यमय चित्र (आकाश पुरुष, अधै द्विप, त्रिपुर सुंदरी महायंत्र आदि आध्यात्मिक, धार्मिक तपस्या, ज्योतिष संबंधी संकेत और भौगोलिक तथ्य से युक्त) जो आम तौर पर तांत्रिक पूजा में प्रयोग किए जाते थे व जिन्हें लोगों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए माना जाता था।
पांडुलिपि संग्रह
संस्थान की स्थापना के बाद से क्रय, हस्तांतरण और दान के माध्यम से बिखरी पांडुलिपियों को इकट्ठा करने की मुख्य गतिविधियों पर जोर दिया गया है। शारदा, बर्मी, दक्षिण भारतीय, गुरुमुखी और फारसी लिपियों के उत्कृष्ट नमूने के अलावा, संग्रह में पांडुलिपियों की बड़ी संख्या नागरी लिपि से संबंधित है जो 12 वीं और 20 वीं शताब्दी के है। यद्यपि लेखन की कला का श्रेय मुख्य रूप से चीन को जाता है, फिर भी विभिन्न सांस्कृतिक धाराओं में इसके विकास को जानने के लिए हमारे पास कई स्रोत हैं। जहाँ तक भारत का संबंध है, यहाँ पत्थरों, ईंटों, ताड़-पत्तों, बर्च-छाल, लकड़ी, धातुओं और आखिरकार कागज को लेखन के स्रोतों के रूप में माना जा सकता है। इनमें संस्थान में ताड़, भूर्ज-छाल, लकड़ी, धातु, कपड़ा और कागज के विशिष्ट उदाहरण मौजूद है।
पूरा संग्रह विभिन्न प्रकार की भाषाओं, लिपियों और लघु चित्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले विषयों की पांडुलिपियों से समृद्ध है। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में अज्ञात कार्यों के अलावा और तुलनात्मक रूप से स्थानीय भाषा (राजस्थानी) में पांडुलिपियों की एक बड़ी संख्या क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को उजागर करती है, जैसे- वेद-वैदिक, धर्म शास्त्र, दर्शन, इतिहास और पुराण, आयुर्वेद, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, शिल्पा आदि के विभिन्न विषयों पर संग्रह।
संस्थान के मुख्यालय और सात शाखा रिपॉजिटरी के संग्रह में कुल 1.24 लाख की संख्या में पांडुलिपियां जमा है, जो निम्न प्रकार है: -
- जोधपुर - 41,730
- जयपुर - 13003
- अलवर - 7559
- चित्तौड़गढ़ (वर्तमान में उदयपुर में) - 5429
- बीकानेर- 29429
- कोटा - 9966
- भरतपुर - 10100
- उदयपुर - 6910
- कुल 1,24,126
वृहद् संग्रहालय-
राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ में एक बहुत वृहद् संग्रहालय है, जिसमें सभी धर्म, जाति, भाषा के द्वारा प्राप्त प्राच्य ऐतिहासिक साहित्य को अत्यंत ही सलीके व सुन्दरता से काँच के बन्द बक्सों में सजाकर हाॅल में रखा गया है। शीशे के बक्सों पर उस चित्र और हस्तलिखित पांडुलिपि के विषय में भी एक पट्टी के द्वारा समझाया गया है। इन पर उस सामग्री या पांडुलिपि के काल, स्थान तथा विषय से सम्बंधित सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं के बारे में सूचना दी गई है। इस संग्रहालय में कागज पर ही लिखी पांडुलिपियां ही नहीं अपितु भोजपत्र, ताड़पत्र, चर्मपत्र, कपड़ा, ताम्रपत्र, शिलालेख आदि पर भी बने चित्र और लेखों को संरक्षित किया गया है। शोधार्थियों के अध्ययन के लिए इस पुस्तकालय में 30 हजार से अधिक मुद्रित पुस्तकें उपलब्ध हैं।
लघु चित्र-
बंगाल के पाल शासकों के अधीन शुरुआत के साथ भारत में लघु चित्रों का इतिहास 11 वीं शताब्दी (A.D.) तक है। हालांकि शुरुआत के नमूने ताड़ के पत्तों और बर्च की छाल पर दिखाई देते हैं और कागज पर चित्रों को संभवतः 14 वीं और 15 वीं शताब्दी की अवधि में देखा जा सकता है। बाद की शताब्दियों में राजपूत, पहाड़ी, पश्चिमी भारतीय, जम्मू-कश्मीर और दक्षिण भारतीय के रूप में लघु चित्रों की विभिन्न शैलियों का परिणाम देखा गया। इन शैलियों ने विशेष रूप से राजस्थान में क्षेत्रीय उस्ताओं को प्रभावित किया, और मेवाड़, बीकानेर, जोधपुर, जयपुर, कोटा-बूंदी और किशनगढ़ की शैलियाँ धीरे-धीरे आसंदी पर दिखाई दीं। इस संस्थान के पास कुछ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही गयी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय शैलियों के नमूने उपलब्ध है, जैसे गीत गोविंदा, जयपुर की दश महाविद्या, मारवाड़ सदै वाच्च सावलिंग री वार्ता, सिरोही की धन्ना शालिभद्र कथा, किशनगढ़ के नागरीदास के चित्र, बूंदी, कोटा की मधु मालती आदि।
संरक्षण केंद्र
संरक्षण प्रयोगशाला -
मुख्यालय जोधपुर में में एक संरक्षण प्रयोगशाला है पांडुलिपियों के संरक्षण तथा उनकी आयु बढ़ाने के लिए 1992 में स्थापित की गई, जो तकनीकी रूप से कुशल कर्मचारियों की सहायता से अपने कार्यरत है और जल्द ही यह भंडार में जमा सभी पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गई है तथा यह बहन संस्थानों का मार्गदर्शन करने में भी मददगार साबित हुई है। संरक्षण दोनों तरीकों के माध्यम से संसाधित होता है- संरक्षक और उपचारात्मक।
प्रथम विधि संरक्षण के लिए कार्डबोर्ड के भीतर रख कर और फिर से लाल कपड़ों में बंधी हुई पांडुलिपियों को विशाल स्टील अलमीरा में रखा जाता है जो कि जलवायु परिस्थितियों को नियंत्रित रखती है। खराबी की रोकथाम के लिए नेफ़थलीन गेंदों, पैराडाइक्लोरोबेनज़िन और अन्य उपायों का उपयोग किया जाता है। सफाई, धूमन, डी-अम्लीकरण, लेमिनेशन और मरम्मत द्वारा क्षतिग्रस्त सूखी और गीली पांडुलिपियों पर लागू होने वाले उपचारात्मक तरीके हैं।
माइक्रोफिल्म और डिजिटलाइजेशन यूनिट
कंप्यूटर अनुभाग
राष्ट्रीय मिशन फॉर पांडुलिपि, नई दिल्ली की विभिन्न योजनाओं के तहत बिखरी पांडुलिपियों का एक विस्तृत सर्वेक्षण कार्य संस्थान द्वारा किया जा रहा है और कंप्यूटर के माध्यम से एकत्र किए गए डेटा का प्रसंस्करण भी किया जा रहा है।
संदर्भ पुस्तकालय
मुख्यालय में संस्थान का संदर्भ पुस्तकालय 29,950 मुद्रित पुस्तकों से समृद्ध है, जिसमें मुख्य रूप से वे प्रकाशन शामिल हैं जो अब प्रिंट आउट से बाहर की श्रेणी में आते हैं; जैसे- आनंद माला संस्कृत श्रृंखला, काव्यमाला संस्कृत श्रृंखला, चौखम्बा संस्कृत श्रृंखला, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रकाशन और राज्य संग्रहालय, सूरत, भावनगर, पाटन, कलकत्ता और बॉम्बे आदि के जैन प्रकाशनों की विभिन्न श्रृंखलाएँ।
इसी तरह भंडारकर ओरिएंटल इंस्टीट्यूट के एनल्स के सदी पुराने खंड, अखिल भारतीय प्राच्य सम्मेलनों की कार्यवाही भारतीय इतिहास कांग्रेस, भारतीय इतिहास त्रैमासिक, भारतीय इतिहास की पत्रिका, एपिग्राफिका इंडिका और होशियारपुर, वडोदरा और इलाहाबाद के शोध संस्थानों के जर्नल संग्रहित है जो विद्वानों के लिए बहुत महत्व है क्योंकि ये आसानी से सुलभ नहीं हैं।
प्रकाशन
इंडोलोजी पर काम करने वाले विद्वानों को मूल शास्त्रीय और शाब्दिक स्रोत प्रदान करने की दृष्टि से, संस्थान के संस्थापक निदेशक पद्मश्री मुनि जिनविजय ने राजस्थान ओरिएंटल सीरीज़ का शुभारंभ किया, जो संस्थान के प्रकाशन के रूप में उपलब्ध है, जो मुख्यालय और संस्थान की सभी शाखा रिपॉजिटरी में भी पुस्तकालयों में पढ़ने के लिए व बिक्री हेतु उपलब्ध हैं।
अज्ञात और अप्रकाशित स्रोत सामग्री को इस प्रकार विद्वानों की दुनिया के ध्यान में लाया जाता है, जिन्हें विभिन्न विषयों के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है, जिनमें मुख्य रूप से संस्कृत काव्य, हिंदी काव्य, वैदिक साहित्य, लेक्सियन, तांत्रिक साहित्य, चिकित्सा, धर्म, भजन, दर्शन, ज्योतिष, खगोल विज्ञान, रत्न शास्त्र, व्याकरण, काव्यशास्त्र, संगीतशास्त्र, हिंदी साहित्य और क्षेत्रीय इतिहास शामिल हैं। श्रृंखला में संस्कृत के 58 कैटलॉग भी शामिल हैं जिनमें प्राकृत और हिंदी पांडुलिपियों में कुछ एक लाख तक की पांडुलिपियों के विवरण शामिल हैं।
प्रकाशनों की सूची
S.No. | Title & No. | Author | Editor | Year | Price (In Rs.) | |
Prose (Sanskrit) | ||||||
1. | Hammira Mahakavya | 65 | Naya Chandra Suri | Muni Jinavijaya | 1968 | 74/- |
2. | Rajavinod Mahakavya | 8 | Udai Raj | G.N. Bahura | 1956 | NA |
3. | Ishwaravilasa Mahakavya | 29 | Shri Krishna Bhatta Bhatt | M.N. Shastri | 1958 | NA |
4. | Chakrapani Vijaya Mahakavya | 20 | Laxmi Dhar Bhatta | Prof.K.K. Shastri | 1956 | 25/- |
5. | Shatrushalya Charita Mahakavya Vol. I | 181 | Mahakavi Vishva Nath | Dr. B.S.Vyas | 1996 | 156/- |
6. | Shatrushalya Charita Mahakavya Vol. II | 182 | '' | '' | 1996 | 105/- |
7. | Kamabhinandan Mahakavya | 154 | Dhanadeshvara | Dr.D.B.Kshirsagar & O.P. Sharma | 1985 | 17/- |
8. | Krishna Giti | 16 | Kavi Soma Natha | Dr. Priyabala Shah | 1956 | 10/- |
9. | Dashakantha Vadha | 23 | M.M. D.P.Dwivedi | Gangadhar Dwivedi | 1960 | 35/- |
10. | Karnamritaprapa | 2 | Someshvara Bhatta | Muni Jinavijaya | 1963 | 10/- |
11. | Padya Muktavali | 30 | Shri Krishna Bhatta | Bhatta MN Shastri | 1959 | 35/- |
12. | Sanghapati Rupaji Vamsha – Prashasti | 107 | Shrivallabha Gani | M. Vinayasagar | 1969 | 10/- |
13. | Karan Kutuhala | 26 | Mahakavi Bholanatha | Pt. G.N. Bahura | 1957 | 10/- |
14. | Sangita Raghunandana with commentary | 119 | Vishwanatha Deva | Dr. Dasharatha Sharma | 1974 | 30/- |
15. | Vasavadatta Katha | 28 | Subandhu | Dr. J.M. Shukla | 1966 | 30/- |
16. | Khanda Prashasti | 124 | Hanumat Kavi | M. Vinayasagar | 1975 | 50/- |
17. | Soorsingh Vamsha Prashasti | 166 | Madhava Bhatta | O.P. Sharma | 1991 | 10/- |
18. | Man Prakash | 174 | Rai Muraridas | K.L. Dube | 1991 | 37/- |
19. | Sangeet Madhava | 179 | Prabodhanand Sarasvati | Dr. G.R. Charora | 29/- | |
20. | Takhat Vilas Champu | 183 | Shesha Pandit | O.P. Sharma & Dr. G.R. Charora | 1996 | 22/- |
21. | Sanatkumar Chakri- Charita Mahakavya | 108 | Jinapala Gani | M. Vinayasagara | 1969 | 75/- |
22. | Shringara Haravali | 15 | Shri Harsha | Dr. Priyabala Shah | 1956 | 20/- |
23. | Vasant Vilasa Phagu | 36 | Anonymous | Prof. M.C. Modi | 1960 | 35/- |
24. | Indraprastha Prabandha | 70 | '' | Dr. Dasharath Sharma | 1963 | NA |
25. | Nandopakhyana | 92 | " | Muni Jinavijaya | 1968 | 10/- |
26. | Shankari Sangita | 106 | Kavi Jaya Narayana | L.N. Goswami | 1969 | 10/- |
27. | Rajratnakar Mahakavya | 201 | Mahakavi Sadashiva | Dr. M.C. Pathak | 155/- | |
Prose (Kavya) (Hindi) | ||||||
1. | Kyamkhan Raso | 13 | Kavi Jana | Dr. Dasharath Sharma, Agarachand Nahata & B.L.Nahata Tr. Dr. R.L. Mishra | 1953 | 124/- |
2. | Ratan Raso (Introduction) | 134 | Kavi Kumbhakarna | Dr. Raghuveer Singh & K.R. Sharma | 1982 | 55/- |
3. | Hammir Raso | 135 | Mahesh Kavi | Agarachand Nahata | 1982 | NA |
4. | Kanharade Prabhandha | 11 | Kavi Padmanabha | Prof. K.B. Vyas | 1953 | 111/- |
5. | Veera Vana | 33 | Dhadhee Badar | Rani Laxmi Chundawat | 1960 | 72/- |
6. | Sodhayana | 84 | Kavi Chimanji | Dr. S.D. Kavia | 1966 | 65/- |
7. | Gora Badal Padmini Chaupai | 35 | Kavi Hemaratna | Dr. U.S. Bhatanagar | 1966 | 56/- |
8. | Gora Badal Charitra | 40 | Kavi Hemaratna | Muni Jinavijaya | 1968 | 75/- |
9. | Koorma-vansha-Yasha Prakasha (Lava Rasa) | 14 | Gopaldan Kaviya | M.C. Khared | 1953 | 56/- |
10. | Raghuvara Jasa Prakash | 50 | Kishanaji Adha | Padmashri Sitaram Lalas | 1960 | 75/- |
11. | Gaja-guna-rupaka-bandha | 99 | Keshodas Gadan | Sitaram Lalas | 1968 | 80/- |
12. | Vaitala Pacchisi | 102 | Deidan Naita | Dr. P.L. Menaria | 1968 | NA |
13. | Rajaniti-ra-Kavitta | 104 | Devidas | Dr. N.D. Shreemali | 1968 | 40/- |
14. | Rukmini-Haran | 74 | Sanyaji Jhula | Dr. P.L. Menaria | 1964 | 35/- |
15. | Pratap Raso | 75 | Jachika Jiwana | Dr. M.L. Gupta | 1965 | 60/- |
16. | Bhagata Mala | 43 | Charan Brahmadas | U.R. Ujjwal | 1959 | 39/- |
17. | Bhagata Mala | 78 | Raghavadas | Agarachand Nahata | 1965 | 70/- |
18. | Binhai Raso | 83 | Rao Mahesha Das | S.S. Shekhawat | 1966 | 65/- |
19. | Jugala Vilasa | 32 | Kavi Pithal | Rani Laxmi Kumari Chundawat | 1958 | 20/- |
20. | Kaveendra Kalplata | 34 | Kaveendracharya Saraswati | Muni Jinavijaya | 1958 | 15/- |
21. | Madhu Malati Sachitra Katha | 87 | Chaturbhujadas | Dr. Fateh Singh | 1967 | 55/- |
22. | Sthulibhadra Kakadi | 97 | Depala | Dr. A.R. Jajodia | 1968 | 15/- |
23. | Nehataranga | 63 | Budha Singh Hada | Dr. R.P. Dadhich | 1961 | 30/- |
24. | Ajeeta Vilasa | 155 | Anonymous | Dr. S.D. Barhat | 1984 | 33/- |
25. | Rajasthani Sahitya Sangraha Vol. I | 27 | " | Prof. N.D. Swami | 1957 | 43/- |
26. | Rajasthani Sahitya Sangraha Vol. II | 52 | Anonymous | Dr. P.L. Menaria | 1960 | 25/- |
27. | Rajasthani Sahitya Sangraha Vol. III | 53 | " | L.N. Goswami | 1966 | 65/- |
28. | Rajasthani Veer Geet Sangraha Vol. I | 98 | " | S.S. Shekhawat | 1968 | 55/- |
29. | Rajasthani Veer Geet Sangraha Vol. II | 100 | " | S.S. Shekhawat | 1968 | 50/- |
30. | Rajasthani Veer Geet Sangraha Vol. III | 116 | " | S.S. Shekhawat | 1972 | 95/- |
31. | Rajasthani Veer Geet Sangraha Vol. IV | 129 | " | S.S. Shekhawat | 1979 | 70/- |
32. | Sooraj Prakash Vol. I | 56 | Kavi Karanidan | Padmashri Sita Ram Lalas | 1961 | 75/- |
33. | Sooraj Prakash Vol. II | 57 | " | " | 1962 | 90/- |
34. | Sooraj Prakash Vol. III | 67 | " | " | 1963 | 95/- |
35. | Mira Brihat Padavali Pt. 1 | 96 | Sant Meera Bai | H.N. Purohit | 1968 | 51/- |
36. | Mira Brihat Padavali Pt. 2 | 120 | " | Dr. K.S. Shekhawat | 1975 | 70/- |
37. | Narasi Ji Ro Mahero | 118 | Anonymous | Prof. J.N. Trivedi | 1972 | 45/- |
38. | Achal Das Khichi Ri Vachanika | 173 | Gadan Shivadas | Dr. S.S. Manohar | 1991 | 76/- |
39. | Nanda Batrisi | 162 | Anonymous | H.C. Yhayani & K.B. Seth | 1989 | 40/- |
40. | Hamirayan | 197 | Khem Kavi | Dr. B.M. Jawalia | 1999 | 205/- |
41. | Jan Granthawali Part III | 210 | O.P. Sharma, M.L. Acharya, Kalawati Mathur, B.K. Singh & K.K. Sankhla | 2004 | 205/- | |
42. | Jan Granthawali Part IV | 211 | Jan Kavi | O.P. Sharma, Ratan Lal Kamad, Dr. Ram Kishan Jatav, Dr. Krishan Lal Vishnoi, Moti Lal Bairwa, Dr. Usha Goswami and Khyali Ram Meena | 2005 | 235/- |
Vaidika Sahitya | ||||||
1. | Maharashi Kula Vaibhava Part – I | 6 | Madhusudan Ojha | Mm GS Chaturvedi | 1956 | 77/- |
2. | Maharashi Kula Vaibhava Part – II | 59 | Madhusudan Ojha | Pradyumna Sharma | 1961 | 30/- |
3. | Pathyaswasti | 109 | Madhusudan Ojha | S.D. Swami | 1969 | 67/- |
4. | Mantra Bhagawata | 112 | Nilakantha Bhatta | Dr. Shraddha Kumari Chouhan | 1969 | 15/- |
5. | Madhusudan Ojha ki Saraswat Sadhna | 191 193 | Dr. Fateh Singh & Dr. Govindram | 19971999 | 130/- 110/- | |
Kosha | ||||||
1. | Ukti Ratnakar | 12 | Sadhu Sundar Gani | Muni Jinavijaya | 1957 | 25/- |
2. | Shabdaratna Pradipa | 19 | Anonymous | Dr. H.P. Shastri | 1956 | 10/- |
3. | Ekaksharanama Kosh Sangraha | 64 | " | Muni Ramanik Vijaya | 1964 | 60/- |
4. | Sayaniya Nirukti Kosha | 178 | - | Dr. D.B. Kshirsagar | 1994 | 68/- |
5. | Vastu Ratna Kosha | 45 | Anonymous | Dr. Priyabala Shah | 1959 | 20/- |
6. | Raj. Hindi Sankshipt Shabda Kosha Vol. I | 156 | - | Padmashri Sitaram Lalas | 1986 | 120/- |
7. | Raj. Hindi Sankshipt Shabda Kosha Vol. II | 157 | - | " | 1987 | 145/- |
Agama-Tantra & Mantra | ||||||
1. | Agama Rahasya Vol-I | 88 | Acharya Saryaprasada Dwivedi | Gangadhar Dwivedi | 1967 | 110/- |
2. | Agama Rahasya Vol-II | 110 | Acharya Saryaprasada Dwivedi | Gangadhar Dwivedi | 1969 | 95/- |
3. | Sankhyayana Tantra | 114 | Sankhyayana Muni | L.N. Goswami | 1970 | 35/- |
4. | Simha Siddhant Sindhu Pt. I | 115 | Goswami Shivananda Bhatta | " | 1970 | 100/- |
5. | Simha Siddhant Sindhu Pt. II | 123 | " | " | 1976 | 140/- |
6. | Simha Siddhant Sindhu Pt. III | 160 | " | " | 1989 | 82/- |
Chikitsa (Medical) | ||||||
1. | Bala Tantra | 117 | Kalyana Mishra | Vishnu Dutta Purohit | 1972 | 25/- |
2. | Chhanda Shastra | |||||
3. | Vritta Mauktika | 79 | Chandra Shekhar Bhatta | M. Vinayasagar | 1965 | 125/- |
4. | Svyanbhuchchanda | 37 | Kavi Svayambhu | Prof. H.D. Velankar | 1962 | 15/- |
5. | Vrittajati Samuchhaya | 61 | Virahanka | " | 1962 | 35/- |
6. | Kavidarpana | 62 | " | " | 1962 | 40/- |
7. | Vrittamuktavali | 69 | Shrikrishna Bhatta | M.N. Shastri | 1963 | 20/- |
Stotra | ||||||
1. | Tripura Bharati Laghustava | 1 | Laghu Pandit | Muni Jinavijaya | 1952 | 10/- |
2. | Durga Pushpanjali | 22 | Mm. D.P. Dwivedi | G.D. Dwivedi | 1957 | 40/- |
3. | Shri Bhuwaneshwari Mahastotra | 54 | Prithvidharacharya | Pt. Gopal Narayana Bahura | 1966 | 47/- |
4. | Chandi Shataka | 94 | Bama Bhatta | Gopal Narayana Bahura | 1968 | 40/- |
Darshan (Philosophy) | ||||||
1. | Rajasthan ke Nath Sampraday Aur Sahitya | 190 | Dr.D.B.Kshirsagar Dr. Navalkrishna | 1997 | 130/- | |
2. | Jogpradipaka | 192 | Jaitram | Dr. M.L. Gharote | 1999 | 70/- |
3. | Pramana Manjari | 4 | Sarvadevacharya | Pattabhiram Shashtri | 1953 | NA |
4. | Tarka Sangraha | 9 | Annam Bhatta | Dr. Jitendra Jetley | 1956 | 46/- |
5. | Padartha Ratna Manjusha | 38 | Krishna Mishra | Dalsukh Malavania | 1963 | 10/- |
6. | Buddhi-Vilasa | 73 | Bakhat Ram Shah | Dr. Padma Dhar Pathak | 1964 | 40/- |
7. | Samadarshi Acharya Haribhadra | 68 | Pt. Sukhalal Singhavi | Tr. Shanti Lal Jain | 1963 | 25/- |
Jyotisha (Prognostics) | ||||||
1. | Shakuna Pradipa | 89 | Lavanya Sharma | Muni Jinavijaya | 1968 | NA |
Ratna Shastra | ||||||
1. | Ratnaparikshadi Sapta Grantha Sangraha | 60 | Thakkar Pheru Nahata | 1961 | 67/- | |
Vyakarana (Grammar) | ||||||
1. | Bala Shiksha Vyakarana | 3 | Thakkura Sangram Singh | Muni Jinavijaya | 1968 | 40/- |
2. | Prakritananda | 10 | Pandit Raghunatha | Muni Jinavijaya | 1962 | 20/- |
3. | Karaka-Sambandhodyota | 18 | Rabhasanandi | Dr. H.P. Shastri | 1956 | 10/- |
4. | Chandra Vyakaran | 39 | Acharya Chandra Gomi | Bechardas Jivaraj Doshi | 1967 | 50/- |
Kavya Shastra | ||||||
1. | Vritti Dipika | 7 | Mauni Krishna Bhatta | Purushottam Sharma | 1956 | 10/- |
2. | Rasa Dirghika | 41 | Kavi Vidyaram | Pt. Gopal Narayan Bahura | 1959 | 20/- |
3. | Kavya Prakash with Samketa tika Vol - I | 46 | Ct. Bhatta Someshawar | Prof. Rasiklal C. Parikh | 1959 | 70/- |
4. | Kavya Prakash with Samketa tika Vol – II | 47 | " | " | 1959 | 40/- |
5. | Kavi Kaustubha | 95 | Raghunath Manohar | Muni Jinavijaya | 1968 | 10/- |
6. | Govindanand Ghan | 141 | Rasik Guvinda | Dr. Moti Lal Gupta | 1983 | 88/- |
7. | Rasa Makarand | 165 | Kaviraj | Dr. D.B. Kshirsagar | 1991 | 31/- |
8. | Kavya Rasa | 205 | Jai Singh | Dr. Devendar | 2002 | 105/- |
Khagol Shastra (Astrology) | ||||||
1. | Yantra Raja Rachana | 5 | Swai Jai Singh | Kedarnath Jyotrvid | 1953 | NA |
Sangeet (Music) | ||||||
1. | Pundarika Granthawali | 177 | Pundrika Vitthal | Vaidya Buddhiprakash Acharya | 1994 | 160/- |
2. | Sura Tarang | 164 | Sardar Singh | Dr. D.B. Kshirsagar & Dr. M.M.S. Mathur | 1990 | 21/- |
3. | Nritya Ratna Kosha Vol – I | 24 | Maharana Kumbha Karna | Prof. R.C. Parikh & Dr. Priyabala Shah | 1957 | 50/- |
4. | Nritya Ratna Kosha Vol – II | 25 | " | Prof. R.C. Parikh | 1968 | 45/- |
5. | Pathyaratna Kosh | 90 | " | Pt. G.N. Bahura | 1968 | 20/- |
6. | Nritta Sangraha | 17 | Anonymous | Dr. Priyabala Shah | 1956 | 10/- |
Itihas (History) | ||||||
1. | Rathora ri khyat (Hindi Anuvad) | 195 | Kailash Dan & Pushpendra Singh | 1999 | 55/- | |
2. | Rajasthan ka Etihasik Sanskrit Sahitya | 196 | O.P. Sharma & B.K. Singh | 1999 | 90/- | |
3. | Rajasthan ke Etihasik Gadhya Sahitya | 200 | Dr. D.B. Kshirsagar & O.P. Sharma | 2000 | 110/- | |
4. | Bankidas Ri Khyata | 21 | Bankidas Asia | Prof. N.D. Swami | 1956 | 40/- |
5. | Muhata Nainasi Ri Khyata Vol – I (Reprint) | 48 | Muhnot Nainasi | Badriprasad Sakaria | 1984 | NA |
6. | Muhata Nainasi Ri Khyata Vol – II (Reprint) | 49 | " | " | 1984 | 210/- |
7. | Muhata Nainasi Ri Khyata Vol – III (Reprint) | 72 | " | " | 1984 | 68/- |
8. | Muhata Nainasi Ri Khyata Vol – IV | 86 | " | " | 1967 | 67/- |
9. | Marwar-ra-paragana-ri Vigat Vol - I | 1 | " | Dr. N.S. Bhati | 1968 | 130/- |
10. | Marwar-ra-paragana-ri Vigat Vol - II | 111 | " | " | 1969 | 105/- |
11. | Marwar-ra-paragana-ri Vigat Vol - III | 121 | " | " | 1974 | 110/- |
12. | Pashchimi Bharat Ki Yatra | 80 | Coal. James Tod | (Tr.) Pt.G.N. Bahura | 1965 | 182/- |
13. | Sva-Jivani | 161 | Rai Mehta Panna Lal | O.L. Menaria | 1989 | 65/- |
14. | Devi Charita Vol – I | 103 | Budh Singh Charan | H.C. Chaturvedi | 1968 | 90/- |
15. | Devi Charita Vol – II | 113 | " | H.C. Chaturvedi | 1969 | 140/- |
16. | Rajasthan Men Sanskrit Sahitya Ki Khoj | 31 | S.R. Bhandarkar | (Tr.) B.D. Trivedi | 1963 | 15/- |
17. | Rathoda Vamsha ri Vigat & Vamshawali | 93 | Anonymous | Muni Jinavijaya | 1968 | 42/- |
18. | Maharaja Man Singh Ri Khyat | 133 | " | Dr. Narayan Singh Bhati | 1979 | 102/- |
19. | Maharaja Takhat Singh Ri Khyat | 176 | " | Dr. Narayan Singh Bhati | 1993 | 122/- |
20. | Sindhu Ghati Ki Lipi men Brahmanon aur Upanishadon Ke Pratika | 105 | " | Dr. Fateh Singh | 1969 | 15/- |
Hindi Sahitya (Literature) | ||||||
1. | Rajasthan ke Etihasik Bhasha Kavya | 194 | O.P. Sharma, Dr.Vasumati Sharma , & Dr. Govind Ram Charora | 1999 | 120/- | |
2. | Rajasthan Ka Sant Sahitya | 206 | Dr, Vasumati Sharma & Dr. Kamal Kishor Sankhla | 2002 | 275/- | |
3. | Sant Kavi Rajjaba | 76 | - | Dr. Vrajalal Varma | 1965 | 65/- |
4. | Matsya Pradesh Ki Hindi Sahitya Ko Den | 66 | - | Dr. M.L. Gupta | 1962 | 60/- |
List of Catalogues (Sanskrit–Prakrit Series) | ||||||
1. | Part I (Jodhpur collection) | 71 | Muni Jinavijaya | 1963 | NA | |
2. | PartII (A) (Jodhpur collection) | 77 | " | 1964 | NA | |
3. | PartII (B) (Jodhpur collection) | 81 | " | 1965 | 36.50 | |
4. | PartII (C) (Jaipur collection) | 82 | " | 1966 | 21/- | |
5. | PartIII (A) (Jodhpur collection) | 85 | " | 1967 | 38.50 | |
6. | PartIII (B) (Jodhpur collection) | 91 | " | 1968 | 48.75 | |
7. | Part IV (Jodhpur collection) | 125 | " | 1976 | 32/- | |
8. | Part V (Jodhpur collection) | 126 | O.P. Sharma | 1978 | 17/- | |
9. | Part VI (Jodhpur collection) | 127 | R.N. Saraswat | 1979 | 14.75 | |
10. | Part VII (Jodhpur collection) | 130 | M. Vinayasagar & Dr. D.B. Kshirsagar | 1979 | 17/- | |
11. | Part VIII (Jodhpur collection) | 131 | D.N. Sharma & T.D. Joshi | 1979 | 16/- | |
12. | Part IX (Jodhpur collection) | 132 | M. Vinayasagar & Dr. D.B. Kshirsagar | 1979 | 20.75 | |
13. | Part X (Chittorgarh collection) | 136 | Dr. D.B. Kshirsagar | 1982 | 42/- | |
14. | Part XI (Jiapur collection) | 137 | M. Vinayasagar & Jamanalal Baldwa | 1984 | 86.50 | |
15. | Part XII (Udaipur collection) | 138 | Dr. B.M. Jawalia | 1983 | 62/- | |
16. | Part XIII (Bikaner collection) | 139 | Bhuramal Yati | 1984 | 73/- | |
17. | Part XIV (Jodhpur collection) | 140 | D.N. Sharma | 1985 | 36/- | |
18. | Part XV (Jodhpur collection) | 145 | D.N. Sharma | 1985 | 42/- | |
19. | Part XVII (Jodhpur collection) | 146 | D.N. Sharma | 1985 | 60/- | |
20. | Manuscript Part XIX (Chittorgarh collection) | 147 | Dr. D.B. Kshirsagar | 1984 | 37.50 | |
21. | Part XVI (Jodhpur collection) | 148 | O.P. Sharma & B.K. Singh | 1984 | 75.75 | |
22. | Part XX (Bikaner collection) | 149 | Bhuramal Yati | 1991 | 46/- | |
23. | Part XVIII (Jaipur collection) | 150 | Vinayasagar & Jamanalal Baldwa | 1984 | 105.50 | |
24. | Part XXI (Alwar collection) | 151 | O.L. Menaria, Vinayasagar & V.M. Sharma | 1985 | 147/- | |
25. | Part XXIII (Bikaner collection) | 167 | Bhuramal Yati | 1991 | 46/- | |
26. | Part XXIV (Jodhpur collection) | 168 | D.N. Sharma | 1993 | 56/- | |
27. | Part XXV (Kota collection) | 169 | N.L. Trivedi & O.P. Sharma | 1992 | 99/- | |
28. | Part XXVI (Bikaner collection) | 170 | Bhuramal Yati & K.L. Vishnoi | 1990 | 48/- | |
29. | Part XXVII (Bikaner collection) | 186 | Dr. Usha Goswami | 1999 | 70/- | |
30. | Part XXVIII (Bharatpur Collection) | 211 | -- | 2007 | 490/- | |
List of Manuscript (General) | ||||||
1. | Part I (Jodhpur collection) | 42 | G.N. Bahura | 1960 | 30/- | |
2. | Part II (Jodhpur collection) | 51 | " | 1961 | 12/- | |
3. | Derashri collection | 175 | P.D. Pathak | 1992 | 86/- | |
List of Suchi-Patra (Hindi-Raj. Series) | ||||||
1. | Part I (Jodhpur collection) | 44 | Dr. P.L. Menaria | 1960 | 37.50 | |
2. | Part II (Jodhpur collection) | 58 | Dr. P.L. Menaria | 1961 | 15/- | |
3. | Part III (Jodhpur collection) | 122 | O.L. Menaria | 1974 | 14.50 | |
4. | Part IV (Jodhpur collection) | 128 | O.L. Menaria | 1978 | 34.50 | |
5. | Part V (Jaipur collection) | 142 | O.L. Menaria & Vinayasagar | 1983 | 62/- | |
6. | Part VI (Jaipur collection) | 143 | O.L. Menaria & Vinayasagar | 1983 | 79/- | |
7. | Vidyabhushan Grantha Suchi (Jaipur collection) | 55 | G.N. Bahura & L.N. Goswami | 1984 | 10/- | |
8. | Manuscript Part VIII (Chittorgarh collection) | 144 | Dr. D.B. Kshirsagar & B.K. Singh | 1983 | 58.50 | |
9. | Part XI (Jodhpur collection) | 153 | Dr. S. Sharma | 1991 | 51/- | |
10. | Part X Derashri (Udaipur collection) | 158 | Dr. B.M. Jawalia & Dr. D.B. Kshirsagar | 1990 | 35/- | |
11. | Part IX (Alwar collection) | 159 | Dr. R.K. Jatav | 1990 | 38/- | |
12. | Part VII (Jodhpur collection) | 163 | O.P. Sharma & M.L. Acharya | 82/- | ||
13. | Part XII (Chittorgarh collection) | 171 | R.N. Purohit | 1991 | 74/- | |
14. | Manuscript Part XIII (Udaipur collection) | 172 | Dr. B.M. Jawalia & Dr. D.B. Kshirsagar | 1990 | 78/- | |
15. | Part XIV (Bharatpur collection) | 180 | Dr. Ramkishan, Dr. Vinodkumar, Dr. Devkumar | 1995 | 57/- | |
16. | Part XV (Jodhpur Collection) | 198 | Kalawati Mathur | 1999 | 125/- | |
17. | Part XVI (Jodhpur Collection) | 199 | Dr. Govind Ram Charora | 1999 | 70/- | |
18. | Part XVII (MotiChand Khajanchi Collection, Bikaner) | 202 | Dr. Krishan Lal Vishoni | 2002 | 130/- | |
19. | Part XVIII (Bharatpur collection) | 203 | Dr. Krishan Lal Vishnoi | 2002 | 145/- | |
20. | Part XIX (Jodhpur Collection) | 204 | Dr. Govind Ram Charora | 2002 | 105/- | |
21. | Part XX (Bikaner collection) | 207 | Dr. Krishan Lal Vishnoi | 2007 | 180/- | |
22. | Part XXI (Kota Collection) | 208 | Khyali Ram Meena | 2007 | 130/- | |
23. | Part XXII (Jodhpur Collection) | 208 | Brijesh Kumar Singh | 2007 | 235/- | |
24. | Part XXIV (Bikaner Collection) | 214 | Dr. Kirshan lal Vishnoi | 2007 | 275/- | |
Swaha - Patrika | ||||||
1. | Vol. I Year I | 1968 | NA | |||
2. | Vol. II & III (combined) | 1969 | NA | |||
Pratisthan - Patrika | ||||||
1. | Vol. I Year I | 1985 | 31/- | |||
2. | Vol. II Year II | 1986 | 31/- | |||
3. | Vol. III Year III | 1987 | 21/- | |||
4. | Vol. IV-V Year IV-V | 1988-89 | 64/- | |||
5. | JAN-Granthavali | 2003 | 35/- |
Is there any effort to complete the entire publication of Simha Siddhanta Sindhu? Vols. 4 and 5 were planned as per the preface of Vol. 3 published in 1989.
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