Skip to main content

सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार, 2021 | Subhash Chandra Bose Aapda Prabandhan Puraskar 2021

सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार, 2021 Subhash Chandra Bose Aapda Prabandhan Puraskar 2021
Subhash Chandra Bose Aapda Prabandhan Puraskar 2021

भारत में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में संगठनों और व्यक्तिगत स्तर पर दिए गए अमूल्य योगदान और निःस्वार्थ सेवा को मान्यता और सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार (Subhash Chandra Bose Aapda Prabandhan Puraskar 2021) के नाम से एक वार्षिक पुरस्कार की शुरुआत की है। 

  • इस पुरस्कार की घोषणा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर हर साल 23 जनवरी को की जाती है। 

  • इस पुरस्कार में एक संस्थान के मामले में 51 लाख रुपये नकद और एक प्रमाण पत्र व एक व्यक्ति के मामले में 5 लाख रुपये और एक प्रमाण पत्र दिया जाता है।

  • इस साल पुरस्कार के लिए 1 जुलाई, 2020 से नामांकन मांगे गए थे।

  • पुरस्कार योजना के लिए संस्थानों और व्यक्तिगत रूप से 371 आवेदन मिले थे।

वर्ष 2021 के लिए सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार निम्नांकित को प्राप्त हुआ है-

  • (i) सस्टेनेबल एनवायरमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसायटी (संस्थागत श्रेणी में) 

  • (ii) डॉ. राजेंद्र कुमार भंडारी (व्यक्तिगत श्रेणी में) को आपदा प्रबंधन में उत्कृष्ट कार्य के लिए

आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में 2021 के पुरस्कार के विजेताओं के सराहनीय कार्य का सारांश:

(i) सस्टेनेबल एनवायरमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसायटी (सीड्स) 

  • सस्टेनेबल एनवायरमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसायटी ने आपदाओं के प्रति लचीले समुदाय तैयार करने की दिशा में सराहनीय कार्य किया है। 

  • यह संस्थान भारत के विभिन्न राज्यों में सामुदायिक स्तर पर आपदा तैयारियों, प्रतिक्रिया और पुनर्वास, स्थानीय क्षमता निर्माण व जोखिम करने की दिशा में काम कर रहा है। 

  • इस संदर्भ में गहरी समझ के साथ, स्थानीय नेतृत्व में अलग-थलग पड़े समुदायों तक पहुंचने की विशेष क्षमता होती है, जिन तक पहुंचना मुश्किल होता है और व्यापक कार्यक्रमों के दायरे से बाहर रह जाते हैं। स्थानीय नेतृत्व में अक्सर नया करने की क्षमता है और उनमें स्थानीय व्यवस्थाओं, राजनीति व संस्कृति के प्रति गहरी समझ होती है। 

  • स्थानीय नेतृत्व के महत्व को मान्यता देते हुए सीड्स सक्रिय रूप से अपने समुदायों की कमजोरियों को दूर करने के लिए सक्रियता से क्षमता निर्माण से जुड़ी हुई है। 

  • सीड्स ने कई राज्यों में स्थानीय समुदायों में जोखिम की पहचान, आकलन और प्रबंधन में सामुदानियक नेतृत्व और शिक्षकों को सक्षम बनाकर स्कूलों की सुरक्षा पर काम किया है। 

  • उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा पर कार्यक्रमों के संयुक्त कार्यान्वयन के लिए जिला स्तरीय विभागों और समुदायों के बीच एक सेतु के रूप में सेवाएं देने के लिए नागरिकों, स्थानीय नागरिक कल्याण संगठनों के सम्मिलित प्रतिनिधियों, बाजार व्यापारी संगठनों और राज्यों में स्थानीय समूहों को भी प्रोत्साहन दिया है। 

  • भारत में भूकम्पों (2001, 2005, 2015) के परिणामस्वरूप, सीड्स ने राजमिस्त्रियों के एक समूह तैयार किया है, जो आपदा प्रतिरोधी निर्माण के कार्य में कुशल हैं। ये राजमिस्त्री कई राज्यों में विभिन्न आपात स्थितियों में स्थानीय समुदायों में अग्रदूत बन गए हैं। 

  • सीड्स ने पूर्व चेतावनी और फीडबैक के लिए एआई आधारित मॉडलिंग जैसी तकनीक का भी उपयोग कर रही है, जिससे प्रभावित समुदायों की तैयारियों और फैसले लेने की क्षमता में खासा सुधार हुआ है।

(ii) डॉ. राजेंद्र कुमार भंडारी-

  • डॉ. राजेंद्र कुमार भंडारी भारत में उन अग्रदूतों में शामिल रहे हैं, जिन्होंने सामान्य भू खतरों और विशेष रूप से भूस्खलन पर वैज्ञानिक अध्ययनों की नींव रखी थी। 

  • उन्होंने सीएसआईआर- केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) में भूस्खलन पर भारत की पहली प्रयोगशाला और तीन अन्य केन्द्रों की स्थापना की है। 

  • उन्होंने भारत में आपदाओं पर भी अध्ययन कराए, ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार; जिओटेक्निकल डिजिटल सिस्टम; वाइब्रेटिंग वायर पीजोमीटर्स; लेजर पार्टिकल एनालाइजर; गहराई में जांच के लिए पाइल ड्राइव एनालाइजर और अकॉस्टिक इमिशन तकनीक, भूस्खलन के खिलाफ पूर्व चेतावनी के लिए उपकरण, निगरानी और जोखिम विश्लेषण की व्यवस्था कराई। पेस-सेटिंग आपदा के प्रति लचीले मानव आवास और राजमार्गों के लिए वैज्ञानिक जांचों और इंजीनियरिंग दखल के बीच बने जैविक संबंध का उदाहरण है। 

  • उनके अन्य योगदानों में दिशात्मक ड्रिलिंग के माध्यम से पहाड़ पर गहरी जल निकासी के द्वारा एक बड़े भूस्खलन के स्थायी समाधान का पहला वैश्विक उदाहरण; जमाव के चलते होने वाले भूस्खलन का पहला वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य स्पष्टीकरण; और बिल्डिंग मैटेरियल्स एंड टेक्नोलॉजी प्रमोशन काउंसिल (बीएमटीपीसी) द्वारा प्रकाशिक पहला लैंडस्लाइड हैजार्ड एटलस ऑफ इंडिया शामिल हैं। 

  • उनका नेशनल डिजास्टर नॉलेज नेटवर्क के लिए समर्थन अक्टूबर, 2001 में उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों का हिस्सा बन गया था। 

  • उन्होंने भूस्खलन आपदा अल्पीकरण पर कदम उठाने योग्य सिफारिशें तैयार करने के इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग (आईएनएई) फोरम की अगुआई की थी। 

  • उन्होंने विद्यार्थियों के लिए आपदा शिक्षा को लोकप्रिय बनाने के लिए किताबें भी लिखी हैं।

    उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में इस पुरस्कार के लिए डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर, उत्तराखंड (संस्थागत श्रेणी) और श्री कुमार मन्नान सिंह (व्यक्तिगत श्रेणी) का इस पुरस्कार के लिए चयन किया गया था। 

Comments

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...