बात या वार्ता साहित्य राजस्थानी गद्य विधा का विचारणीय रूप माना जाता है, जिसके प्रमुख रचनाकार चारण जाति के लेखक हुए हैं। कहने को तो यह राजस्थानी साहित्य विधा कहानी-साहित्य विधा का गद्य रूप कहा जा सकता है, किन्तु ये कोरी कल्पना न होकर इतिहास के तत्वों से भी गूंथा हुआ है। कई विद्वान् इसको उपन्यास के इर्द-गिर्द घूमता दर्शाते हैं तथा इसका सम्बन्ध श्रुति परंपरा (सुनी सुनाई बात) से भी जोड़ते हैं। लोक जीवन आचार-विचार, रहन-सहन, रीति रिवाज, राजघराना आदि कई मुद्दों को इस गद्य विधा में सम्मिलित किया गया है। संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश साहित्य की लोकगाथाओं और लोककथाओं की परम्परा से यथायोग्य सामग्री एकत्रित करके राजस्थानी के वार्ता साहित्य ने अपना रूप संवारा है। यह देश, काल और परिस्थितियों से भी प्रभावित हुआ है। सभी वर्गों का मनोरंजन करना तथा राज-दरबारी वातावरण का खाका खींचना इसका प्रमुख प्रयोजन लगता है। मध्यकाल से लेकर आज तक ये परम्परा लोक जीवन में रची-बसी है। राजस्थान की कई घुमक्कड़ जातियों के लोग अपने लोक वाद्य यंत्रों के संगीत की स्वर लहरियों के साथ वार्ता की इस मौखिक...
राजस्थान की कला, संस्कृति, इतिहास, भूगोल व समसामयिक तथ्यों के विविध रंगों से युक्त प्रामाणिक एवं मूलभूत जानकारियों की वेब पत्रिका "The web magazine of various colours of authentic and basic information of Rajasthan's Art, Culture, History, Geography and Current affairs