सांझी, संझ्या, मामुलिया, रली आदि कई नाम से जाना जाने वाला ये पर्व प्रत्येक घर में मनाया जाता है जिसमें महिलाएं विशेषकर कन्याएं अपने घर के मुख्य द्वार के पास की दीवार पर गोबर और फूलों से सझ्याँ की झांकी बनाती है । लोक देवी गौरी (पार्वती) का रूप भी है संझ्या- साँझी की प्रतिष्ठा राजस्थान में लोक देवी गौरी (पार्वती) के रूप में भी है, इसीलिए यहाँ संध्या देवी को प्रातःकाल में दूध व पुष्प से तथा शाम को शक्कर मिले आटे को छिड़क कर पूजते हैं। लड़कियाँ इस पर्व में साँझी को माता पार्वती मानकर अच्छे घर तथा वर के लिए कामना करती है। गोबर और पुष्पों से होता है संझ्या का अलंकरण - इस पर्व में पहले दिन कुंवारी लड़कियां अपने घर के मुख्य द्वार के समीप गेरू से एक सम चौरस आकृति बनाती है, फिर इस पर चूने से बोर्डर बनाती है। गोबर से अलग-अलग आकृतियां बनाकर उन्हें फूल व पत्तियों से सजाया जाता है। बाद में इसकी पूजा-अर्चना की जाती है। इसे प्रतिदिन भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में शाम को घर के बाहर संझ्या बनाने से पितृ खुश होते हैं और सुख-समृद्धि प्रदान करने के साथ ह...
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