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लाइट हाउस प्रोजेक्ट लागू करने वाला एशिया का पहला शहर बना जयपुर

लाइट हाउस प्रोजेक्ट लागू करने वाला एशिया का पहला शहर बना जयपुर   साकार होगा राजस्थान के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन का सपना - मुख्यमंत्री जयपुर, 9 जनवरी। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने सोमवार को जयपुर विकास प्राधिकरण के परिसर में नेटवर्क ऑपरेशन केंद्र का उद्घाटन कर लाइट हाउस प्रोजेक्ट शुरू किया और जेएलएन मार्ग स्थित जेनपेक्ट बिल्डिंग में जेनपेक्ट तथा सिस्को की भागीदारी से स्थापित ग्लोबल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का उद्घाटन किया। इसी के साथ लाइट हाउस प्रोजेक्ट लागू करने वाला जयपुर एशिया का पहला शहर बन गया। ग्लोबल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के उद्घाटन समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि डिजिटल इंडिया तथा स्मार्ट सिटी के सपने को पूरा करने में राजस्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। तकनीक के क्षेत्र में विश्व की बड़ी कम्पनी सिस्को तथा जेनपेक्ट की भागीदारी से राजस्थान के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन का सपना जल्द ही साकार होगा। जेनपेक्ट तथा सिस्को की भागीदारी से स्थापित इस केंद्र में युवाओं को आईटी से संबंधित उच्च स्तरीय प्रशिक्षण दिया जाएगा। दिल्ली और बैंगलुरू को पीछे छोड़ देगा जयपुर  ...

Tarkashi or Inlaying in wood: Famous Rajasthani Artifact तारकशी - राजस्थान की एक प्रसिद्ध कला

तारकशी या इनले वर्क ऑन वुड - राजस्थान की एक प्रसिद्ध कला जयपुर में 'इनले वर्क ऑन वुड या तारकशी की कला' मध्यकाल से प्रचलित था। लकड़ी पर तारकशी की कला एक अनुपम कला है। तारकशी के कलात्मक कार्य के प्राचीन नमूनों को राजस्थान के पुराने महलों, हवेलियों आदि के दरवाजों, झरोखों की खिडकियों के अलावा सिंहासनों, फर्नीचर, हाथी के हौदों और घोड़े या ऊंट की काठी एवं अन्य कलात्मक वस्तुओं में देखा जाता है। तारकशी एक प्रकार की काष्ठकला है। तारकशी का शाब्दिक अर्थ "तार को कसना" है, अर्थात इस कला में तार को लकड़ी के अन्दर जड़ा जाता है। अंग्रेजी में इसे Inlaying in wood कहा जाता है जिसका अर्थ "लकड़ी में तार जड़ना" है। तारकशी के काम को दृढ़ एवं उच्च तैलीय लकड़ी पर ही किया जा सकता है, क्योंकि दृढ एवं उच्च तैलीय लकड़ी में तार को कसने या जड़ने से तार ढीला नहीं पड़ता है। अतः 'इनले वर्क' में शीशम एवं अन्य पेड़ की दृढ़ लकड़ी प्रयुक्त की जाती है। इस कला में लकड़ी पर तारों द्वारा कलात्मक पैटर्न बनाया जाता है। यह पैटर्न आमतौर पर जटिल ज्यामितीय रूपों या मुगल कला के फूलों-पत्तिय...

झालावाड़ जिले के कंवरपुरा मण्डवालान से मुख्यमंत्री स्वच्छ ग्राम योजना का शुभारंभ

झालावाड़ जिले के कंवरपुरा मण्डवालान से मुख्यमंत्री स्वच्छ ग्राम योजना का शुभारंभ    जयपुर, 6 जनवरी। मुख्यमंत्री स्वच्छ ग्राम योजना गांव को स्वच्छ, स्वस्थ एवं सुन्दर बनाने के लिए प्रारम्भ की गई राज्य सरकार की महत्ती योजना है। यह योजना राज्य की उन ग्राम पंचायतों में लागू की जा रही है जो कि खुले में शौच जाने के अभिशाप से मुक्त (ओडीएफ) हो चुकी है। योजना का राज्य स्तरीय शुभारंभ शुक्रवार को पंचायत समिति खानपुर की ग्राम पंचायत कंवरपुरा मण्डवालान में राज्य जन अभाव अभियोग निराकरण समिति के अध्यक्ष श्रीकृष्ण पाटीदार, संसदीय सचिव श्री नरेन्द्र नागर, जिला प्रमुख टीना कुमारी भील तथा जिला कलक्टर डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी द्वारा किया गया। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए श्रीकृष्ण पाटीदार ने कहा कि जिले की पहली ओडीएफ ग्राम पंचायत कंवरपुरा मण्डवालान के लिए बड़े ही गर्व का विषय है कि मुख्यमंत्री स्वच्छ ग्राम योजना का शुभारम्भ यहां से किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस योजना के प्रारम्भ होने से न सिर्फ ग्राम पंचायत कंवरपुरा मण्डवालान को बल्कि राज्य की ओडीएफ हो चुकी अन्य ग्...

Prasav Sakhi Programme of Rajasthan - राजस्थान का ‘प्रसव सखी‘ कार्यक्रम

राजस्थान का ‘प्रसव सखी‘ कार्यक्रम  (Prasav Sakhi Programme of Rajasthan) राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री ने 2 अक्टूबर 2016 को प्रदेश में ‘प्रसव सखी‘ कार्यक्रम का शुभारंभ किया। प्रदेश में भी अधिक प्रसवभार वाले 30 राजकीय चिकित्सालयों में तमिलनाडु एवं छत्तीसगढ़ राज्यों की तर्ज पर ‘प्रसव सखी‘ कार्यक्रम को पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर प्रारंभ किया गया। इनमें चुनिंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल, जिला अस्पताल एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र शामिल है। इस कार्यक्रम के तहत प्रदेश के राजकीय चिकित्सालयों में ‘प्रसव सखी‘ द्वारा प्रसूता को प्रसव पीड़ा में भावनात्मक सहयोग प्रदान करने एवं डिलीवरी के दौरान चिकित्सालय में उसके साथ ‘प्रसव सखी‘ के रह सकने का प्रावधान किया गया है। इस योजना के तहत प्रसव सखी का चयन करते समय स्वयं के परिवार की प्रसव की अनुभवी महिला को प्राथमिकता दी जाती है। योजना में प्रसव के समय प्रसूता के साथ उसके परिवार की स्वस्थ एवं व्यावहारिक महिला का प्रसव सखी के रूप में सहयोग लिया जा रहा है। प्रसव सखी डिलीवरी के समय प्रसूता को भावनात्मक रूप से सहयोग देने के साथ ही जन्म के...

राजस्थान पशु बांझपन निवारण शिविर योजना (Combat Infertility in Cattle)

राजस्थान  पशु बांझपन निवारण शिविर योजना  (Combat Infertility in Cattle) उद्देश्यः- राजस्थान प्रदेश में उपलब्ध पशुधन में से लगभग 10 प्रतिशत पशुधन प्रतिवर्ष बांझ होता है। बांझ पशुधन का समय पर उपचार होने से इन्हें प्रजनन योग्य बनाकर गर्भित किया जा सकता है। इसके लिये पशुपालकों को अपने पशुओं को बांझ होने से बचाने के उपायों की जानकारी उपलब्ध करवाना तथा उन्हें ऐसे पशुओं का चिह्नीकरण कर समय पर पूर्ण इलाज करवाने के लिये प्रेरित करना आवश्यक है। कार्य योजनाः- इस योजना के तहत् समस्त जिलों में पशुधन की संख्या एवं पशुधन के आधार पर 4 से 5 गांवों के एक काॅम्पेक्ट क्षेत्र का बांझ निवारण शिविर लगाने हेतु चयन किया जाता है। चयनित गांवों के बांझ पशुओं के पशुपालकों की सूची सर्वे कर तैयार की जाती है। प्रत्येक शिविर की अवधि 5 दिवस होती है। प्रत्येक शिविर में कम से कम 50 पशुओं का बांझपन उपचार किया जाना आवश्यक है। शिविरों के आयोजन हेतु औषधियों का उपयोग पशुधन निःशुल्क आरोग्य दवा योजनान्तर्गत उपलब्ध औषधियों में से किया जाता है। शिविरों के आयोजन हेतु यदि ऐसी औषधियों की आवश्यकता है जो विभा...

Portraiture of Rasikpriya books in Mewar - मेवाड़ में रसिकप्रिया ग्रंथों का चित्रांकन-

मेवाड़ में रसिकप्रिया ग्रंथों का चित्रांकन मेवाड़ में महाराणा जगत सिंह प्रथम , महाराणा अमर सिंह द्वितीय एवं महाराणा जय सिंह के काल में रसिकप्रिया ग्रन्थ का चित्रांकन किया गया। रसिक प्रिया नामक पद्यात्मक ग्रन्थ की रचना ब्रज भाषा के कवि केशव दास ने ओरछा नरेश के भाई महाराजा इन्द्रजीत सिंह के राज्याश्रय में 1591 ई. में की थी। इस महान रचना का विषय श्रृंगार के दोनों पक्ष संयोग और वियोग है। राधा कृष्ण की प्रेमलीला के लौकिक एवं आध्यात्मिक रहस्यों का उद्घाटन जयदेव के गीत गोविन्द के पश्चात् रसिक प्रिया में ही हुआ है। 16 वीं सदी में रचित इस ग्रन्थ की ख्याति शीघ्र ही दूर-दूर तक फैल गई और 17 वीं शताब्दी के मध्य तक यह राजस्थान में विभिन्न चित्र शैलियों के चित्रांकन की विषय वस्तु बन गया। मेवाड़ के अलावा मारवाड़, बूंदी, एवं बीकानेर शैलियों में भी रसिक प्रिया पर आधारित चित्र निर्मित हुए हैं। मेवाड़ में सर्वप्रथम महाराणा जगत सिंह प्रथम के काल में रसिक प्रिया का चित्रांकन हुआ। उदयपुर के राजकीय संग्रहालय में कृष्ण चरित्र के 327 लघु चित्र है, जिनमें सूरसागर का संग्रह भी है। इसी संग्रह में रसिक प्...

अरावली देववन संरक्षण अभियान

अरावली पर्वत श्रृंखला में बसे हुए गांवों के आस-पास ग्राम-देवियों और देवताओं के स्थान को देवरा कहा जाता है। इन देवस्थानों के चारों और विशाल वृक्ष बहुतायत से मिलते है। ये प्रजातियाँ  किसी न किसी देववन में पायी जाती है। इस प्रकार के वनकुंजों को देववन कहा जाता है। ग्रामवासी देववन की वनस्पति को कोई हानि नहीं पहुंचाते। अरावली में ऎसे देववनों की परम्परा है। पशु चराई, अतिक्रमण, निर्वनीकरण, खनन, एनीकट, निर्माण, कटान आदि के कारण वन विभाग देव वनों को बचाने का प्रयास कर रही है। जो ग्रामवासियों को देवरा स्थल पर विशाल मन्दिर बनाने का प्रलोभन देकर विशाल वृक्षों को काटने का प्रयास करते हैं, उन लोगों के खिलाफ वन विभाग वन अधिनियमों के तहत सख्त कार्यवाही करती है। मालपुरा पीपलामाता एवं बलिया खेड़ा बड़ला भेरू जी ऎसे ही उदाहरण है, जहां मन्दिरों के साथ वन सुरक्षित हैं। उदयपुर (दक्षिण) वनमण्डल द्वारा वर्ष 1992 से भारत में अपनी तरह का अनूठा अभियान अरावली देव-वन संरक्षण अभियान प्रारम्भ किया गया था ताकि इस प्राकृतिक धरोहर को नष्ट होने से बचाया जा सके। अभियान के अन्तर्गत ग्राम वन सुरक्षा एवं प्...