1. तीर्थराज पुष्कर -
यह अजमेर से 11 किमी दूर है। पुष्कर ब्रह्माजी के मंदिर के लिए विश्व प्रसिद्ध है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामेश्वरम आदि तीर्थोँ के बाद पुष्कर में भी स्नान करना आवश्यक माना है । कहा जाता है कि विश्वामित्र ने यहाँ पर तपस्या की थी व भगवान राम ने यहाँ गया कुंड पर पिता दशरथ का पिण्ड तर्पण किया था। पांडवो ने भी अपने निर्वासित काल का कुछ समय पुष्कर में बिताया था। पुष्कर को गायत्री का जन्मस्थल भी माना जाता है। यहाँ प्रतिदिन तीर्थयात्री आते हैं लेकिन प्रसिद्ध पुष्कर मेले में हजारों देशी-विदेशी तीर्थयात्री आते हैं। यह मेला कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक चलता है।
2. कपिलमुनि का कोलायत -
सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल की तपोभूमि कोलायत बीकानेर से लगभग 50 किमी दूर है। कार्तिक माह (विशेषकर पूर्णिमा) में यहाँ झील में स्नान का विशेष महत्व है।
3. भर्तृहरि -
अलवर से 35 किमी दूर है यह नाथपंथ की अलख जगाने वाले राजा से संत बने भर्तृहरि का समाधि स्थल। यहाँ भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को मेला लगता है । कनफडे नाथ साधुओं के लिए इस तीर्थ की विशेष मान्यता है।
4. रामद्वारा, शाहपुरा (भीलवाड़ा) -
यह भीलवाडा करीब 50 किमी दूर है व सडक मार्ग द्वारा जिला मुख्यालय से जुडा हुआ हैं। यह रामस्नेही सम्प्रदाय के श्रद्धालुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। इस संप्रदाय का मुख्य मंदिर रामद्वारा के नाम से जाना जाता हैं। यहॉ पूरे भारत से और विदेशों तक से तीर्थयात्री आते हैं। यह शहर लोक देवताओं की फड पेंटिंग्स के लिए भी प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी वीर बाँकुरे केसरसिंह बारहठ की हवेली एक स्मारक के रूप में यहाँ विद्यमान हैं। यहॉ होली के दूसरे दिन प्रसिद्ध फूलडोल मेला लगता हैं, जो लोगों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र होता हैं। यहॉं के ढाई इंची गुलाब जामुन मिठाई बहुत प्रसिद्ध है।
5. खाटूश्यामजी -
जयपुर से करीब 80 किमी दूर सीकर जिले मेँ स्थित खाटूश्यामजी का बहुत ही प्राचीन मंदिर स्थित है। यहाँ भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की पूजा श्याम के रूप में की जाती है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया था कि कलयुग में उसकी पूजा श्याम (कृष्ण स्वरूप) के नाम से होगी। खाटू में श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है, जबकि निकट ही स्थित रींगस में धड़ स्वरूप की पूजा की जाती है। प्रतिवर्ष यहाँ फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष में नवमी से द्वादशी तक विशाल मेला भरता है, जिसमें देश-विदेश से लाखों भक्तगण पहुँचते हैं। हजारों लोग यहाँ पदयात्रा करके भी पहुँचते हैं, वहीं कई लोग दंडवत करते हुए श्याम के दरबार में अर्चना करने आते हैं। प्रत्येक एकादशी व रविवार को भी यहाँ भक्तों की लंबी कतारें लगी रहती हैं।
6. हनुमानगढ़ का सिल्ला माता मंदिर-
सिल्ला माता का मंदिर 18 वीं शताब्दी में स्थापित है। यह कहा जाता है कि मंदिर में स्थापित माता जी सिल्ल पत्थर घग्घर नदी में बहकर आया था। यह मंदिर हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय पर वैदिक नदी सरस्वती के प्राचीन बहाव क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर की मान्यता है कि सिल्ला माता के सिल पीर में जो कोई भी दूध व पानी चढ़ाता है, उसके त्वचा सम्बन्धी रोगों का निवारण हो जाता है। इस मंदिर में प्रत्येक गुरुवार को मेला लगता है।
7. सालासर बालाजी-
राजस्थान के चुरू जिले के सालासर में स्थित हनुमानजी का मंदिर है। यह बालाजी का मंदिर बीकानेर सड़क मार्ग पर जयपुर से 130 किमी व सीकर से 57 किमी की दूरी पर है। यहाँ हर दिन हजारों की संख्या में देशी-विदेशी भक्त मत्था टेकने आते हैं। इस मंदिर में हनुमानजी की वयस्क मूर्ति स्थापित है अतः भक्तगण इसे बड़े हनुमानजी भी पुकारते हैं। चैत्र पूर्णिमा व आश्विन पूर्णिमा के दिन सालासर में विशाल मेला लगता है।
8. चौहानों की कुल देवी जीणमाता-
जीणमाता का मंदिर सीकर से 29 किमी दक्षिण में अरावली की पहाड़ियों के मध्य स्थित है। इसमें लगे शिलालेखों में सबसे प्राचीन विक्रम संवत 1029 (972 A.D.) का शिलालेख है। इससे पता चलता है कि यह मंदिर इससे भी प्राचीन है। जीण माता चौहानों की कुल देवी है। इस मंदिर में जीणमाता की अष्टभुजी प्रतिमा है। यहाँ चैत्र व आसोज के नवरात्रि में शुक्ल पक्ष की एकम से नवमी तक लक्खी मेला भरता है। राजस्थानी लोक साहित्य में जीणमाता का गीत सबसे लम्बा माना जाता है। इस गीत को कनफ़टे जोगी केसरिया कपड़े पहन कर, माथे पर सिन्दूर लगाकर, डमरू व सारंगी पर गाते हैं। इस मंदिर के पश्चिम में महात्मा का तप स्थान है जो धूणा के नाम से प्रसिद्ध है। जीण माता मंदिर के पहाड़ की श्रंखला में ही रेवासा पीठ व प्रसिद्ध हर्षनाथ पर्वत है।
9. मेवाड़ अधिपति एकलिंग महादेव-
उदयपुर से 25 किमी उत्तर में महादेव शिवजी का एक प्राचीन व अत्यंत प्रसिद्ध मंदिर है जिसे एकलिंग जी का मंदिर कहते है। यह अरावली की पहाड़ियों के मध्य स्थित है। इस गाँव का नाम कैलाशपुरी है। एकलिंग जी मेवाड़ के महाराणा के इष्टदेव हैं। महाराणा "मेवाड़-राज्य" के मालिक के रुप में एकलिंग जी को ही मानते हैं तथा वे स्वयं को उनका दीवान ही कहते हैं । इसके निर्माण के काल के बारे में तो ऐसा कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है लेकिन एक जनश्रुति के अनुसार सर्वप्रथम इसे गुहिल वंश के बापा रावल ने बनवाया था। फिर महाराणा मोकल ने उसका जीर्णोद्धार कराया। महाराणा रायमल ने नये सिरे से वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर के अहाते में कई और भी छोटे बड़े मंदिर बने हुए हैं, जिनमें से एक महाराणा कुम्भा का बनवाया हुआ विष्णु का मंदिर है। लोग इसे मीराबाई का मंदिर के रुप में भी जानते हैं।
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