वैभवशाली राजस्थान के गौरवपूर्ण अतीत में पानी को सहेजने की परम्परा का उदात्त स्वरुप यहाँ की झीलों, सागर-सरोवरों,कलात्मक बावड़ियों और जोहड़ आदि में परिलक्षित होता है। स्थापत्य कला में बेजोड़ ये ऐतिहासिक धरोहरेँ जहाँ एक ओर जनजीवन के लिए वरदान है तो वहीं दूसरी ओर धार्मिक आस्था और सामाजिक मान्यताओं का प्रतिबिम्ब भी है।
राजस्थान में प्राचीन काल से ही लोग जल स्रोतों के निर्माण को प्राथमिकता देते थे। आइए इस कार्य से संबंधित शब्दों पर एक नजर डालें।
मीरली या मीरवी- तालाब, बावड़ी, कुण्ड आदि के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव करने वाला व्यक्ति।
कीणिया- कुआँ खोदने वाला उत्कीर्णक व्यक्ति।
चेजारा- चुनाई करने वाला व्यक्ति।
आइए राजस्थान की जल विरासत की झाँकी का अवलोकन करें!
चाँद बावड़ी - आभानेरी दौसा-
दौसा जिले की बाँदीकुई तहसील के आभानेरी गाँव में लगभग 11 वीं शताब्दी में बनी चाँद बावड़ी करीब 100 फुट गहरी एवं विशाल है। किंवदंती है कि इसका निर्माण आभानेरी के संस्थापक राजा चंद्र ने कराया था। अद्भुत कलात्मकता की प्रतीक चाँद बावड़ी के तीन ओर आकर्षक सीढ़ियाँ एवं विश्राम घाट बने हुए हैं। इस बावड़ी के नीचे एक लंबी सुरंग है तथा माना जाता है कि भंडारेज स्थित बड़ी बावड़ी से होती हुई आलूंदा गाँव के कुंड तक जाती है।
जलमहल या मानसागर जयपुर-
जयपुर-आमेर रोड पर स्थित इस मानसागर तालाब का निर्माण सवाई मानसिंह द्वितीय ने जयपुर की जल आपूर्ति के लिए कराया था। इसी मानसागर में सुंदर जलमहल स्थित है। यह काफी समय तक शिकार व सैरगाह बना रहा था। मध्यकालीन वास्तुकला का अद्भुत नमूना यह जलमहल वर्ग आकार में हैं तथा इसमें दो मंजिलें हैं। इसकी अपूर्व सुंदरता इसकी छतरियों व जीनो से दृष्टिगोचर होती हैं।
सागर जलाशय अलवर-
सागर नामक यह जलाशय अलवर में सिटी पेलेस के पीछे दुर्ग की पहाड़ी के नीचे स्थित है। यह आयताकार है तथा इसके चारों तरफ लाल पत्थर की 12 छतरियां है। इसके दक्षिण में मूसी महारानी की छतरी तथा उत्तर में किशन कुंड है। राजस्थानी शैली की स्थापत्य कला इसे अनूठा सौंदर्य प्रदान करती है।
सिलीसेढ़ झील अलवर-
अलवर से 16 किमी दूर तीन ओर से अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से घिरी सिलीसेढ़ एक सुरम्य स्थली है। इस झील के किनारे लेकपैलेस हैं एवं यहाँ नौका विहार के लिए पैडल बोट भी उपलब्ध होती है।
पन्ना मीना की बावड़ी, आमेर जयपुर-
अत्यंत आकर्षक इस बावड़ी के एक ओर जयगढ़ दुर्ग व दूसरी ओर पहाड़ों की नैसर्गिक सुंदरता है। यह अपनी अद्भुत आकार की सीढ़ियों, अष्टभुजा किनारों और बरामदो के लिए विख्यात है। चाँद बावड़ी तथा हाड़ी रानी की बावड़ी के समान इसमें भी तीन तरफ सीढ़ियाँ है। इसके चारों किनारों पर छोटी-छोटी छतरियां और लघु देवालय इसे मनोहारी रूप प्रदान करते हैं।
झीलों की नगरी उदयपुर की जल समृद्धि
पूर्व का वेनिस व भारत का दूसरे कश्मीर माना जाने वाला उदयपुर अरावली की सुंदर सुरम्य वादियों से घिरा हुआ है। उदयपुर के महाराणा जल संरक्षण तथा जल के सदुपयोग के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे, इसलिए उन्होंने अपने शासनकाल में कई बाँध तथा जलकुण्ड बनवाए थे। ये कुण्ड उस समय की विकसित इंजीनियरिंग का सबूत हैं। यहाँ की सात प्रमुख छोटी-बड़ी झीलें हैं- पीछोला, दूध तलाई, गोवर्धन सागर, कुम्हारिया तालाब, रंगसागर, स्वरूप सागर, फतहसागर इन्हें सामूहिक रूप से 7 बहनों के नाम से जानते है। ये झीलें कई शताब्दियों से इस शहर की जीवनरेखा बनी हुई है।
इनमें से पीछोला व फतहसागर झीलें अधिक प्रसिद्ध हैं और ये अत्यंत सुन्दर व मनोहारी है। उदयपुर के पास ही महाराणा उदयसिंह द्वारा निर्मित एक बड़ी झील उदयसागर एवं 'बड़ी तालाब', छोटा मदार व बड़ा मदार तालाब स्थित है।
पीछोला झील
पीछोला का निर्माण 14 वीं शताब्दी के अन्त में राणा लाखा के काल एक बंजारे ने कराया था और बाद में राजा उदयसिंह ने इसे ठीक कराया था। पीछोला में स्थित टापू पर जगमंदिर व जगनिवास नामक दो महल है जिनका प्रतिबिम्ब झील में पड़ता है। ये महल लेक पेलेस के नाम से विख्यात है। बादशाह बनने से पहले शाहजहाँ भी इस झील के महलों में ठहरा था। यह झील लगभग 7 किमी लंबी व 2 किमी चौड़ी है।
फतहसागर झील
फतहसागर झील, पीछोला से डेढ़ किमी दूर है। इस झील का निर्माण सर्वप्रथम महाराजा जयसिंह द्वारा सन् 1678 में किया गया था परंतु अतिवृष्टि ने इसे तहस-नहस कर दिया। इसका सशक्त पुनर्निर्माण महाराणा फतेहसिंह ने छः लाख रुपयों की लागत से कराया। फतहसागर झील पीछोला झील से एक नहर द्वारा मिली हुई है। साढ़े दस वर्गमीटर में विस्तृत फतहसागर के मध्य दो टापू हैं जिनमें से एक बड़े टापू पर 'नेहरू उद्यान' बना है एवं छोटे टापू पर एशिया की एकमात्र 'सौर वेधशाला' स्थापित है जिसमें सूर्य से संबंधित शोध की जाती है। इस झील की आधारशिला ड्यूक ऑफ कनाट द्वारा रखी गई थी। फतहसागर पूरे भारत में अपने किस्म का अकेला बाँध है।
राजसमंद झील
इसका निर्माण 1662 ई. में मेवाड़ के राणा राजसिंह ने करवाया था। यह बनास की सहायक गोमती नदी पर बाँध बनाकर निर्मित की गई है। राजसमंद झील की पाल का स्थापत्य सौंदर्य अति मनोहारी है। पाल पर प्रत्येक नौ सीढ़ियों (चौकियों) के बाद एक बड़ी सीढ़ी बनाई गई है इसलिए इन्हें नौ चौकी पाल कहते हैं। नौ चौकी पाल पर सुंदर छतरियां निर्मित है जिनकी छत, स्तम्भों व तोरण द्वार पर उत्कीर्ण मूर्तिकला व नक्काशी अतिआकर्षक है। यहाँ 25 शिलालेख पर मेवाड़ का इतिहास संस्कृत में अंकित है। इसके दूसरी ओर कांकरोली में झील के तट पर पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय की द्वितीय पीठ का भगवान द्वारकाधीश का मंदिर है।
Comments
Post a Comment
Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार