भारत सरकार द्वारा स्थापित "पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र- WZCC" का ग्रामीण शिल्प एवं लोककला का परिसर 'शिल्पग्राम' उदयपुर नगर के पश्चिम में लगभग 3 किमी दूर हवाला गाँव में स्थित है। लगभग 130 बीघा (70 एकड़) भूमि क्षेत्र में फैला तथा रमणीय अरावली पर्वतमालाओं के मध्य में बना यह शिल्पग्राम पश्चिम क्षेत्र के ग्रामीण तथा आदिम संस्कृति एवं जीवन शैली को दर्शाने वाला एक जीवन्त संग्रहालय है। इस परिसर में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के सदस्य राज्यों की पारंपरिक वास्तु कला को दर्शाने वाली झोंपड़ियां निर्मित की गई जिनमें भारत के पश्चिमी क्षेत्र के पांच राज्यों के भौगोलिक वैविध्य एवं निवासियों के रहन-सहन को दर्शाया गया है।
इस परिसर में राजस्थान की सात झोपड़ियां है। इनमें से दो झोंपड़ियां बुनकर का आवास है जिनका प्रतिरूप राजस्थान के उदयपुर के गांव रामा तथा जैसलमेर के रेगिस्तान में स्थित सम से लिया गया है। मेवाड़ के पर्वतीय अंचल में रहने वाले कुंभकार की झोंपड़ी उदयपुर के 70 किमी दूर स्थित ढोल गाँव से ली गई है। दो अन्य झोंपड़ियां दक्षिण राजस्थान की भील व सहरिया आदिवासियों की हैं जो मूलत: कृषक है।
शिल्पग्राम में गुजरात राज्य की प्रतिकात्मक बारह झोंपड़ियां हैं इसमें छ: कच्छ के बन्नी तथा भुजोड़ी गांव से ली गई है। बन्नी झोंपड़ियों में रहने वाली रेबारी, हरिजन व मुस्लिम जाति प्रत्येक की 2-2 झोंपड़ियां है जो कांच की कशीदाकारी, भरथकला व रोगनकाम के सिद्धहस्त शिल्पी माने जाते है। लांबड़िया उत्तर गुजरात के गांव पोशीना के मृण शिल्पी का आवास है जो अपने विशेष प्रकार के घोड़ों के सृजक के रूप में पहचाने जाते हैं। इसी के समीप पश्चिम गुजरात के छोटा उदयपुर के वसेड़ी गांव के बुनकर का आवास बना हुआ है। गुजरात के आदिम व कृषक समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली जनजाति राठवा और डांग की झोंपड़ियां अपने पारंपरिक वास्तुशिल्प एवं भित्ति अलंकरणों से पहचानी जा सकती है। इसके अतिरिक्त लकड़ी की बेहतरीन नक्काशी से तराशी पेठापुर हवेली गुजरात के गांधीनगर जिले की काष्ठ कला का बेजोड़ नमूना है। महाराष्ट्र के कोंकण तट के एक विस्तृत सर्वेक्षण के बाद चुनी गई, कोली झोपड़ी रायगढ़ जिले के समुंदर के किनारे से ली गई है।
कोली झोपड़ी के करीब कोल्हापुर से एक झोपड़ी ली गई है, जो दक्षिणी महाराष्ट्र के चमड़े के चप्पल बनाने वाले शिल्पकारों के आवास का प्रतिनिधित्व करती है। पूर्वी महाराष्ट्र के कुनबीस के जनजातीय किसान समुदाय गोंड और मारिया नामक जनजातीय समुदायों की दो झोपड़ियाँ यहाँ है जो उनके 'डोकरी' नामक शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। सदस्य राज्य गोवा से 5 प्रतिनिधि झोपड़ियां हैं। बिचोलिम के एक कुम्हार की झोपड़ी है जो स्थानीय लेटराइट पत्थर के बनी ईसाई झोपड़ी और एक हिंदू झोपड़ी के समीप है। कोंकण के सुन्दर हरे तालुका के कुलुम्बी आदिवासी किसानों की एक विशिष्ट झोपड़ी है जो उनके घास और गन्ना बुनाई के शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। मंडोवी नदी के किनारे से चुनी गई झोपड़ी पारंपरिक मछुआरे के जीवन निर्वाह के तरीके का प्रतिनिधित्व करती है।
शिल्पग्राम में स्थित बच्चों के लिए झूले, शिल्प बाजार, घोड़े व ऊँट की सवारी, मृण कला संग्रहालय, कांच जड़ित कार्य एवं भित्तिचित्र भी इसके मुख्य आकर्षण हैं।
इस परिसर में राजस्थान की सात झोपड़ियां है। इनमें से दो झोंपड़ियां बुनकर का आवास है जिनका प्रतिरूप राजस्थान के उदयपुर के गांव रामा तथा जैसलमेर के रेगिस्तान में स्थित सम से लिया गया है। मेवाड़ के पर्वतीय अंचल में रहने वाले कुंभकार की झोंपड़ी उदयपुर के 70 किमी दूर स्थित ढोल गाँव से ली गई है। दो अन्य झोंपड़ियां दक्षिण राजस्थान की भील व सहरिया आदिवासियों की हैं जो मूलत: कृषक है।
शिल्पग्राम में गुजरात राज्य की प्रतिकात्मक बारह झोंपड़ियां हैं इसमें छ: कच्छ के बन्नी तथा भुजोड़ी गांव से ली गई है। बन्नी झोंपड़ियों में रहने वाली रेबारी, हरिजन व मुस्लिम जाति प्रत्येक की 2-2 झोंपड़ियां है जो कांच की कशीदाकारी, भरथकला व रोगनकाम के सिद्धहस्त शिल्पी माने जाते है। लांबड़िया उत्तर गुजरात के गांव पोशीना के मृण शिल्पी का आवास है जो अपने विशेष प्रकार के घोड़ों के सृजक के रूप में पहचाने जाते हैं। इसी के समीप पश्चिम गुजरात के छोटा उदयपुर के वसेड़ी गांव के बुनकर का आवास बना हुआ है। गुजरात के आदिम व कृषक समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली जनजाति राठवा और डांग की झोंपड़ियां अपने पारंपरिक वास्तुशिल्प एवं भित्ति अलंकरणों से पहचानी जा सकती है। इसके अतिरिक्त लकड़ी की बेहतरीन नक्काशी से तराशी पेठापुर हवेली गुजरात के गांधीनगर जिले की काष्ठ कला का बेजोड़ नमूना है। महाराष्ट्र के कोंकण तट के एक विस्तृत सर्वेक्षण के बाद चुनी गई, कोली झोपड़ी रायगढ़ जिले के समुंदर के किनारे से ली गई है।
कोली झोपड़ी के करीब कोल्हापुर से एक झोपड़ी ली गई है, जो दक्षिणी महाराष्ट्र के चमड़े के चप्पल बनाने वाले शिल्पकारों के आवास का प्रतिनिधित्व करती है। पूर्वी महाराष्ट्र के कुनबीस के जनजातीय किसान समुदाय गोंड और मारिया नामक जनजातीय समुदायों की दो झोपड़ियाँ यहाँ है जो उनके 'डोकरी' नामक शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। सदस्य राज्य गोवा से 5 प्रतिनिधि झोपड़ियां हैं। बिचोलिम के एक कुम्हार की झोपड़ी है जो स्थानीय लेटराइट पत्थर के बनी ईसाई झोपड़ी और एक हिंदू झोपड़ी के समीप है। कोंकण के सुन्दर हरे तालुका के कुलुम्बी आदिवासी किसानों की एक विशिष्ट झोपड़ी है जो उनके घास और गन्ना बुनाई के शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। मंडोवी नदी के किनारे से चुनी गई झोपड़ी पारंपरिक मछुआरे के जीवन निर्वाह के तरीके का प्रतिनिधित्व करती है।
शिल्पग्राम में स्थित बच्चों के लिए झूले, शिल्प बाजार, घोड़े व ऊँट की सवारी, मृण कला संग्रहालय, कांच जड़ित कार्य एवं भित्तिचित्र भी इसके मुख्य आकर्षण हैं।
शिल्पग्राम मेला और उत्सव-
शिल्पग्राम में हस्तशिल्प मेला भी लगाया जाता है। उदयपुर में यह मेला प्रतिवर्ष दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह में लगाया जाता है जिसको उदयपुर व आसपास के क्षेत्र के लाखों लोग देखने आते हैं। इसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
इस हस्तशिल्प मेले में विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृति केंद्रों के जानेमाने कुशल हस्तशिल्प और कारीगर भाग लेते हैं। हस्तशिल्प मेले के माध्यम से देश के विभिन्न भागों के हस्तशिल्पियों और कारीगरों को अपने उत्पाद ग्राहकों के समक्ष प्रदर्शित करने और उनके सामने ही इन उत्पादों की निर्माण प्रक्रिया दिखाने का अनोखा अवसर प्राप्त होता है। शिल्पग्राम में एक मुक्ताकाशी रंगमंच और एक सभागृह {दर्पण सभागार} है जो विभिन्न रंगमंचीय आयोजनों के लिए उपयुक्त है।
इस हस्तशिल्प मेले में विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृति केंद्रों के जानेमाने कुशल हस्तशिल्प और कारीगर भाग लेते हैं। हस्तशिल्प मेले के माध्यम से देश के विभिन्न भागों के हस्तशिल्पियों और कारीगरों को अपने उत्पाद ग्राहकों के समक्ष प्रदर्शित करने और उनके सामने ही इन उत्पादों की निर्माण प्रक्रिया दिखाने का अनोखा अवसर प्राप्त होता है। शिल्पग्राम में एक मुक्ताकाशी रंगमंच और एक सभागृह {दर्पण सभागार} है जो विभिन्न रंगमंचीय आयोजनों के लिए उपयुक्त है।
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