सिरोही जिले के पोसालिया से करीब 10 किमी दूर ग्राम चोटिला के पास सुकड़ी नदी के किनारे मीणा समाज के आराध्यदेव एवं प्राचीन गौतम ऋषि महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित है जिसे "भूरिया बाबा" के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। वस्तुतः मीणा समुदाय के लोग गौतम महादेव को भूरिया बाबा के नाम से पुकारते हैं। इस मंदिर के परिसर में पश्चिमी राजस्थान के आदिवासियों का सबसे बड़ा दो दिवसीय वार्षिक मेला भरता है। इस वर्ष यह मेला 14 एवं 15 अप्रैल को भरा। मीणा समाज के लिए यह मेला अत्यंत महत्वपूर्ण और भारी आस्था का प्रतीक होता है। मेले को लेकर मीणा समाज की ओर से जोर शोर से तैयारियाँ की जाती है तथा मंदिर को खूब सँवार कर आकर्षक रोशनी से सजाया जाता है।
इस मेले में प्रतिवर्ष सिरोही, पाली व जालोर जिलों सहित पड़ोसी राज्यों से मीणा समाज के लाखों लोग भाग लेते हैं। मेले से एक दिन पूर्व से ही यहाँ श्रद्धालुओं के आने जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
मीणा समाज में भूरिया बाबा के प्रति इतनी अगाध श्रद्धा है कि वे उनके नाम की शपथ लेकर कभी झूठ नहीं बोलते एवं गलत कार्य नहीं करते हैं।
इस मेले में प्रतिवर्ष सिरोही, पाली व जालोर जिलों सहित पड़ोसी राज्यों से मीणा समाज के लाखों लोग भाग लेते हैं। मेले से एक दिन पूर्व से ही यहाँ श्रद्धालुओं के आने जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
मीणा समाज में भूरिया बाबा के प्रति इतनी अगाध श्रद्धा है कि वे उनके नाम की शपथ लेकर कभी झूठ नहीं बोलते एवं गलत कार्य नहीं करते हैं।
विसर्जित की जाती है पूर्वजों की अस्थियां भी-
यहाँ गौतम ऋषि महादेव मंदिर के समीप नदी के एक पवित्र कुंड है जिसे गंगा कुंड के नाम से पुकारा जाता है। मेले के दिन मीणा समाज के लोग कई युगों से चल रही परंपरा का निर्वहन करते हुए अपने पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन इस पवित्र कुंड में करते हैं। इससे पूर्व इस पवित्र कुंड में गंगा के पानी का प्रवाह होने होता है तथा उपस्थित मीणा समाज के लोग जयकारे लगाकर गंगा मैया की आरती और पूजा-अर्चना करते हैं। यह मान्यता है कि गंगा मैया के कुंड में अस्थियों का विसर्जन करने से उनके पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि मीणा समाज के भक्तजनों को कई वर्षों पूर्व स्वयं गौतम ऋषि महादेव ने इस कुंड में अपने पूर्वजों की अस्थियां विसर्जित करने का वरदान दिया था।
भूरिया बाबा का यह मेला मीणा समाज के लिए एक सांस्कृतिक और सामाजिक वार्षिक उत्सव की तरह होता है। यहाँ मेले की वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए मीणा समाज के लोग अपनी एताइयों (अस्थाई बसेरों) में अपने रिश्तेदारों, मित्रों तथा विशेषकर जवाइयों को बुला कर उनकी मेहमान-नवाजी करते हैं। इसमें सबसे खास बात यह है कि मेले के दौरान ये लोग अपने जवाई को एताई में बुलाते हैं व उनके स्वागत एवं सम्मान में महिलाएं व युवतियां लोकगीत गाती हैं। इस अवसर पर मीणा समाज के लोग अपने जवान लड़के-लड़कियों के शादी के रिश्ते भी तय करते हैं। एताइयों पर रिश्तेदारों, जवाइयों व मित्रों को भोजन, मिष्ठान, सुरमा की मनुहार की जाती है।
मेले में श्रद्धा और आस्था का ज्वार इतना अधिक होता है कि संपूर्ण परिसर में दिन भर भूरिया बाबा के जयकारे गूँजते रहते हैं। महाआरती में काफी संख्या में शरीक श्रद्धालु हवन कुण्ड में नारियल की आहुतियां देकर सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
मेले में उत्साह एवं उमंग की अनूठी सांस्कृतिक झाँकी दृष्टिगत होती है जब युवा पांवों में घुंघरू हाथ में रंग-बिरंगी रिबन व अन्य सामग्री के साथ सज धज कर नृत्य करते बाबा के यश गाते नजर आते हैं। आदिवासियों का उत्साह इतना अधिक होता है कि मेले की अंतिम घड़ी तक वे गोदने गुदवाने, हाट बाजार से खरीददारी करने, सगे संबंधियों से मिलने व खाने-पीने की मनुहार करने की ललक बनी रहती है। अंतिम समय में मेलार्थियों के भारी मन से विदाई गीतों के साथ जुदा होते हैं।
अत्यंत कड़े होते हैं मेले के नियम-
गौतम ऋषि मेला प्रबंधन कमेटी की ओर से जारी किए गए सभी नियमों की पालना इस मेले में करना अति आवश्यक है। मेले के दौरान हथियार नहीं लाने, शराब पीकर नहीं आने, हरे पेड़ नहीं काटने, झगड़ा फंसाद नहीं करने, वीडियो व फोटोग्राफी की दुकानें नहीं लगवाने, एताइयों पर ट्रैक्टर नहीं लाने, कमेटी की अनुमति के बिना वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी नहीं करने, रात्रि 8 बजे के बाद मेले में महिलाएं के नहीं घूमने आदि के कड़े नियमों की पालना सभी को करनी होती हैं। इस मेले की एक और विशेषता यह भी है कि इसमें लाखों की संख्या में लोग आने के बावजूद पुलिस का प्रवेश नहीं होता है। मेले की संपूर्ण व्यवस्था को अनुशासित करने एवं कानून व्यवस्था के दायित्व का निर्वहन समाज के परगनावार पंच करते हैं। वे अपने परगने के जागरूक व निष्ठावान युवकों को हाट बाजार, मंदिर मार्ग और एताइयों सहित विभिन्न स्थानों पर निगरानी के लिए तैनात करते हैं। केवल मेला स्थल के बाहर की व्यवस्था पुलिस प्रशासन के हवाले होती है।
is mele ki or bhi khasiat hai jise yaha aana jruri hai .
ReplyDeleteis mele ki jo khasiat hai uska yaha jikr jaruri hai .iske bina ye adhura hai .
ReplyDeleteब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद किरण जी। कृपया बताइए कि क्या विशेष बात छूट गई है।
ReplyDeleteJay bhuriya baba
ReplyDeleteJai ho...
DeleteMe jaisalmer sent hu hmare than bhura baba ka bhavya mandir h or bhadva ki doose KO Mela lagta h or yha k main pujari mhant baba badalnath h be khud is trust ka sanchalan krte h Jo direct haridwar we linked h mera apna parivar pichhle 40 salo sent baba ki aradhna karte as the h isliye mene yh jankary leni chahi ki aakhir history kya h baba ki or hmare yha sent baba kese related h agar kisi KO jankary ho to plz mere watsapp no.8003004382 pe share kre.dhanyavad
ReplyDeleteji...
DeleteSandar
ReplyDeleteआभार.. धन्ययवाद ॥
DeleteJay bhuriya baba ri
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