Skip to main content

यूनेस्को के अनुसार भारत के विश्व धरोहर स्थल

1972 में यूनेस्को की सामान्य सभा ने विश्व सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए एक कन्वेशन गठित करने का पूर्ण उत्साह के साथ एक प्रस्ताव स्वीकार किया | इसके मुख्य उद्देश्य निम्नांकित हैं –

1- विश्व सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों को परिभाषित करना |
2- विशिष्ट रूचि और वैश्विक मूल्यों वाले स्थलों एवं स्मारकों की सदस्य देशों से जानकारी प्राप्त कर सूचीबद्द करना |
3- विश्व सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण के उपाय करना |
4- भावी पीढ़ी के लिए विश्व सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों के खजाने के संरक्षण के लिए विभिन्न देशों एवं लोगों के मध्य सहयोग वृद्धि करने का प्रयास करना |

विश्व धरोहर स्थलों की सूची में अभी 812 सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक महत्त्व के स्थल सम्मिलित हैं | इनमें 628 सांस्कृतिक और 160 प्राकृतिक एवं 24 मिश्रित प्रकृति के धरोहर स्थलों को शामिल किया गया हैं | भारत विश्व धरोहर का 1977 से सक्रिय सदस्य है तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय अभिकरणों जैसे - ICOMOS (International Council on Monuments and Sites), IUCN (International Union for the Conservation of Nature and Natural Resources) और ICCROM (International Centre for the study of Preservation and Restoration of Cultural Property) के साथ सहयोग करते हुए संरक्षण कार्य कर रहा है |

भारत में 32 विश्व धरोहर स्थल हैं जिनमें से 25 सांस्कृतिक एवं 7 प्राकृतिक महत्त्व के स्थल हैं-

(अ) सांस्कृतिक स्थल (Cultural Sites )

1. अजंता गुफाएं- महाराष्ट्र (1983)

2. एल्लोरा गुफाएं- महाराष्ट्र (1983)

3. आगरा का किला- उत्तर प्रदेश (1983)

4. ताज महल, आगरा- उत्तर प्रदेश (1983)

5. कोणार्क - सूर्य मंदिर,ओडिशा (1984)

6. महाबलीपुरम के स्मारक समूह- तमिलनाडु (1984)

7. ओल्ड गोवा के चर्च और कॉन्वेंट- गोवा (1986)

8. खजुराहो के मंदिर-मध्यप्रदेश (1986)

9. हम्पी के स्मारक समूह- कर्नाटक (1986)

10. फतेहपुर सीकरी- उत्तर प्रदेश (1986)

11. पटठदकल के स्मारक-  कर्नाटक (1987)

12. एलिफेंटा गुफाएं-  महाराष्ट्र (1987)

13. महान चोल मंदिर- तंजावुर, तमिलनाडु (1987 व 2004)

14. साँची बौद्ध स्तूप व स्मारक- मध्यप्रदेश (1989)

15. हुमायूँ का मकबरा- दिल्ली (1993)

16. कुतब मीनार एवं स्मारक- दिल्ली (1993)

17. महाबोधि मंदिर- बौद्ध गया, बिहार (1999 व 2002)

18. भीमबेटका की गुफाएं- मध्यप्रदेश (2003)

19. चंपानेर पावागढ़ पुरातत्व पार्क- गुजरात (2004)

20. भारतीय पर्वतीय रेलवे-  पश्चिम बंगाल (दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे ), तमिलनाडु में (नीलगिरि माउंटेन रेलवे), कालका-शिमला रेलवे, हिमाचल प्रदेश (1999, 2005)

21. छत्रपति शिवाजी टर्मीनस (पूर्व विक्टोरिया टर्मीनस), मुंबई (2004)

22. लाल किला- दिल्ली (2007)

23. जंतर मंतर- जयपुर, राजस्थान (2010)

24. राजस्थान के पहाड़ी किले- राजस्थान (2013)

25. रानी का वाव - गुजरात (2014)

(ब) प्राकृतिक धरोहर ( Natural Sites )-

1. काजीरंगा नेशनल पार्क - आसाम (1985)

2. मानस वन अभयारण्य- आसाम (1985)

3. केवलादेव नेशनल पार्क भरतपुर - राजस्थान (1985)

4. सुंदरवन नेशनल पार्क- पश्चिम बंगाल (1987)

5. नंदा देवी और फूलो की घाटी नेशनल पार्क- उत्तराखंड (1988)

6. पश्चिमी घाट - महाराष्ट्र (2012)

7. वृहत हिमालय राष्ट्रीय पार्क - हिमाचल प्रदेश (2014)

केवलादेव नेशनल पार्क भरतपुर

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...