जैसलमेर के एक कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से जनता में राष्ट्रीयता की भावना का संचार किया। 'कांग्रेस की लावणी', 'नेताओं की लावणी', 'स्वराज्य लावणी', 'स्वराज्य बावणी' आदि प्रमुख रचनाओं का सृजन कर उन्होंने स्वाधीनता की अलख जगाई थी। यह कवि जैसलमेरी लोक रंगमंच, जिसे रम्मत कहा जाता है, के क्रांतिकारी कार्यकर्ता भी थे। उन्होंने रंगमंच को क्रांतिकारी नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने अपनी रम्मत का अखाड़ा 'श्रीकृष्ण कम्पनी' के नाम से प्रारंभ किया। सन् 1943 में उन्होंने अपनी रचना "स्वतंत्र बावनी" को महात्मा गाँधी को भी भेंट किया था। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने इस कवि पर कड़ी निगरानी रखी और इन्हें गिरफ्तार करने का वारण्ट जारी कर दिया। जब उन्हें वारण्ट की सूचना मिली, वह पुलिस कमिश्नर के घर गए एवं अपनी ओजस्वी वाणी में कहा- "कमिश्नर खोल दरवाजा, हमें भी जेल जाना है। हिन्द तेरा है न तेरे बाप का, हमारी मातृभूमि पर लगाया बन्दीखाना है॥" प्रश्न- इस क्रांतिकारी कवि को किस नाम से जाना जाता था?
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