भारत के सर्वश्रेष्ठ सृजनकार तथा साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेता गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर पर तीन दिवसीय समारोह ’शब्द रंग राग’ 6 से 9 फरवरी तक जवाहर कला केंद्र जयपुर में पीपुल्स मीडिया थियेटर, जवाहर कला केंद्र और पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा आयोजित किया गया। इस महोत्सव में बैले, रवीन्द्र संगीत, काव्य नाटकों के साथ साथ कविता और कहानियों के कार्यक्रम आयोजित किए गए। 6 फरवरी को शाम को गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की महान कृति ’नष्टनीड’ पर आधारित बैले नृत्य नाटक ’चारूलता’ प्रस्तुत किया गया। इस बैले का नृत्य निर्देशन प्रसिद्ध कत्थक कोरियोग्राफर रेखा ठाकर ने किया जबकि संगीत सुविख्यात ध्रुपद गायिका डॉ. मधुभट्ट तैलंग का था। अशोक राही द्वारा परिकल्पित इस नृत्य नाटिका में ताल संयोजन पं. प्रवीण आर्य ने किया जबकि संगीत संयोजन विवेक उपाध्याय का था। समारोह के दूसरे दिन दोपहर सत्र में बीस युवक युवतियों ने गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं का पाठ किया। इसी दिन एक बहुभाषी काव्य संगोष्ठी आयोजित की गई जिसमें संस्कृत, बांग्ला, हिंदी, राजस्थानी, उर्दू, सिंधी आदि भाषाओं के कवियों ने काव्य पाठ किया।
तीसरे और अंतिम दिन जवाहर कला केन्द्र के कृष्णायन सभागार में हुए टैगोर कथा पाठ में पहले तोता और फिर 'पत्नी का पत्र' कहानी का वाचन हुआ। सुनील शर्मा ने प्रभावी ढंग से तोता का वाचन किया। डॉ. उर्वशी और सुषमा राजीव ने पत्नी का पत्र कहानी का भावपूर्ण वाचन किया। कथा सत्र के संयोजक मोहन क्षौत्रिय ने दोनों कहानियों की समसामयिकता को रेखांकित किया। समारोह की अध्यक्षता लेखिका मृदुला बिहारी ने की। रवीन्द्र रचना महोत्सव का समापन जवाहर कला केन्द्र के रंगायन सभागार में रवीन्द्र नाथ टैगोर के दो काव्य नाटकों "कच देवयानी" तथा "गांधारीर आवेदन" के प्रख्यात नाट्यकर्मी अशोक राही के निर्देशन में मंचन के साथ हुआ। कच देवयानी नाटक की पौराणिक कहानी में दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी को देवताओं के गुरु ब्रहस्पति के पुत्र कच से प्यार हो जाता है। कच शुक्राचार्य से ऐसी अनूठी विद्या सीखने आया है जिससे मरे हुए को जीवित कर दिया जाता है। कच से ईष्या करने वाले दानव बार बार उसका वध कर देते और देवयानी पिता की विद्या से उसे जीवित करा देती है। मृत संजीवनी विद्या सीख कर जब कच जाने लगता है तब देवयानी उसे रोकती है। न रुकने पर वो कच को श्राप दे देती है कि यह विद्या तुम भूल जाओगे। श्राप पाकर भी कच अपने प्रेम का अनादर नहीं करता। वो जाता जाता देवयानी को वरदान देता है कि तुम मुझे भूल जाओगी और जीवन भर सुखी रहोगी। नाटक में विनीता नायर ने देवयानी और सूफीयान खान ने कच की भूमिका अदा की।
गांधारीर आवेदन महाभारत काल की कहानी है। इसमें टैगोर ने दुर्योधन धृतराष्ट्र व गांधारी का संवाद दिखाया है। पिता और माता पांडवों को छल से जुए में हराने से आहत हैं। दुर्योधन के अपने तर्क हैं। वो अभिमान में चूर है। जब गांधारी पापी पुत्र को दंड देने की बात करती है तो धृतराष्ट्र कहते हैं कि जिसने धर्म का उल्लंघन किया है उसको तो दंडित भी धर्म ही करेगा, मैं तो सिर्फ एक बाप हूं। नाटक का समापन गांधारी के युद्धिष्ठिर को दिए आशीर्वाद से होता है जिसमें वो उसे फिर से राज सत्ता पाने का वरदान देती है।
तीसरे और अंतिम दिन जवाहर कला केन्द्र के कृष्णायन सभागार में हुए टैगोर कथा पाठ में पहले तोता और फिर 'पत्नी का पत्र' कहानी का वाचन हुआ। सुनील शर्मा ने प्रभावी ढंग से तोता का वाचन किया। डॉ. उर्वशी और सुषमा राजीव ने पत्नी का पत्र कहानी का भावपूर्ण वाचन किया। कथा सत्र के संयोजक मोहन क्षौत्रिय ने दोनों कहानियों की समसामयिकता को रेखांकित किया। समारोह की अध्यक्षता लेखिका मृदुला बिहारी ने की। रवीन्द्र रचना महोत्सव का समापन जवाहर कला केन्द्र के रंगायन सभागार में रवीन्द्र नाथ टैगोर के दो काव्य नाटकों "कच देवयानी" तथा "गांधारीर आवेदन" के प्रख्यात नाट्यकर्मी अशोक राही के निर्देशन में मंचन के साथ हुआ। कच देवयानी नाटक की पौराणिक कहानी में दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी को देवताओं के गुरु ब्रहस्पति के पुत्र कच से प्यार हो जाता है। कच शुक्राचार्य से ऐसी अनूठी विद्या सीखने आया है जिससे मरे हुए को जीवित कर दिया जाता है। कच से ईष्या करने वाले दानव बार बार उसका वध कर देते और देवयानी पिता की विद्या से उसे जीवित करा देती है। मृत संजीवनी विद्या सीख कर जब कच जाने लगता है तब देवयानी उसे रोकती है। न रुकने पर वो कच को श्राप दे देती है कि यह विद्या तुम भूल जाओगे। श्राप पाकर भी कच अपने प्रेम का अनादर नहीं करता। वो जाता जाता देवयानी को वरदान देता है कि तुम मुझे भूल जाओगी और जीवन भर सुखी रहोगी। नाटक में विनीता नायर ने देवयानी और सूफीयान खान ने कच की भूमिका अदा की।
गांधारीर आवेदन महाभारत काल की कहानी है। इसमें टैगोर ने दुर्योधन धृतराष्ट्र व गांधारी का संवाद दिखाया है। पिता और माता पांडवों को छल से जुए में हराने से आहत हैं। दुर्योधन के अपने तर्क हैं। वो अभिमान में चूर है। जब गांधारी पापी पुत्र को दंड देने की बात करती है तो धृतराष्ट्र कहते हैं कि जिसने धर्म का उल्लंघन किया है उसको तो दंडित भी धर्म ही करेगा, मैं तो सिर्फ एक बाप हूं। नाटक का समापन गांधारी के युद्धिष्ठिर को दिए आशीर्वाद से होता है जिसमें वो उसे फिर से राज सत्ता पाने का वरदान देती है।
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