Skip to main content

राजस्थान समसामयिक घटनाचक्र - राजस्थान में प्रथम मसाला पार्क स्थापित

जीरा, धनिया एवं बड़ी सौंफ जैसे बीजीय मसालों के प्रसंस्करण के लिए जोधपुर में स्थापित राजस्थान के प्रथम स्पाइसेस पार्क का उद्घाटन पिछले दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की उपस्थिति में केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा द्वारा किया गया। स्पाइसेस बोर्ड ने जोधपुर के पास ओसियां तहसील के रामपुरा बाटियां गांव में राजस्थान सरकार द्वारा निःशुल्क प्रदान की गई 60.07 एकड भूमि में इस पार्क का निर्माण किया है जिसके निर्माण में कुल 27 करोड रुपए खर्च किए हैं। इस पार्क में बीजीय मसालों विशेषकर राज्य में अत्यधिक उत्पादित होने वाले जीरा व धनिया के अलावा बड़ी सौंफ, मेथी जैसे अन्य बीजीय मसालों के प्रसंस्करण की मशीनें तथा अन्य सामान्य अवसंरचनात्मक सुविधाएँ उपलब्ध है। प्रति घण्टा दो टन की क्षमता वाली प्रसंस्करण सुविधाओं में 100 ग्रा. से 50 कि.ग्राम तक के माल के प्री-क्लीनिंग, ग्रेडिंग, कलर-सेटिंग, ग्राइंडिग तथा पैकिंग सुविधाएं शामिल है। इस स्पाइसेस पार्क में उपलब्ध ये सुविधाएं अंतर्राष्ट्रीय प्रतिमानों के समतुल्य हैं। प्रसंस्करण कार्य में शामिल पैकिंग सुविधाओं में 25 ग्राम और 100 ग्राम के उपभोक्ता पैकों से लेकर 50 कि.ग्रा. तक के बड़े पैक्स भी तैयार किए जा सकते है। मशीनों की स्थापना पूरी हो चुकी है तथा प्लांट का ट्रायल रन भी किया जा चुका है। बोर्ड बैच प्रोसेस में 250 कि.ग्रा प्रति घंटा क्षमता वाली एक विसंऋमण सुविधा की स्थापना प्लांट भवन में ही कर रहा है। बॉयलर हाउस का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और अन्य कार्य प्रगति पर है। पार्क में भाप विसंऋमण सुविधाओं का कार्य भी चालू है। 

 

बोर्ड पार्क में निर्यातकों को अपने प्रसंस्करण प्लांट्स की स्थापना के लिए पट्टे पर व्यक्तिगत स्लॉट भी आवंटित कर रहा है। पार्क में अपनी खुद की सुविधाएं स्थापित करने में निर्यातकों की ओर से प्रतिक्रिया काफी उत्साहजनक रही है। बीस निर्यातकों को पार्क में अपनी प्रंसस्करण यूनिटों की स्थापना करने का अवसर प्राप्त होगा। उनमें से काफी लोगों ने अपनी मशीनरी स्थापित करने तथा सिविल निर्माण कार्य प्रारंभ करने के लिए बोर्ड के सामने अपनी परियोजना रिपोर्ट भी प्रस्तुत की है। प्रसंस्करण के लिए कच्चे माल का भण्डारण सुनिश्चित करने तथा प्रसंस्कृत माल की देखभाल के लिए पार्क में विभिन्न बीजीय मसालों के लिए अलग अलग छः वेयर हाउस है। कच्चे माल के भण्डारण के लिए लगभग 1000 टन भण्डारण क्षमतावाली दो, जो केवल धनिया के लिए है जबकि बाकी बीजीय मसालों के लिए लगभग 1000 टन भण्डारण क्षमता वाली अन्य दो-दो वेयर हाउस है। बीजीय मसालों के लिए तैयार उत्पादों के लिए लगभग 1000 टन भण्डारण क्षमता वाली दो और वेयर हाउसों का निर्माण पूरा हो चुका है। बिजली की बेरोकटोक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पार्क में 33 के वी ए सब-स्टेशन सहित ट्राँसफॉर्मर और 250 के वी ए डी.जी. सेट उपलब्ध कराया गया है और इसके अलावा एक सुसज्जित अग्निशमन व नियंत्रण सिस्टम भी होगा। मसाला बढाने वाले गांवों की तरक्की के उद्देश्य से पार्क में बोर्ड के प्रादेशिक और आंचलिक कार्यालयों का कार्य प्रारंभ होगा। सम्मेलन कक्ष, प्रशिक्षण कक्ष तथा लघु गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला स्थापित करने का स्थान, बैंक व सीमा शुल्क सहित अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई है।

Comments

  1. बहुत उम्दा प्रयास !!

    ReplyDelete
  2. प्रयास की सराहना के लिए धन्यवाद रणजीत सिंह जी, कृपया स्नेह बनाए रखें।

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...