आधुनिक राजस्थान के निर्माता के रूप में लोकप्रिय 'पूर्व मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया' का जन्म 31 जुलाई 1916 को झालावाड़ में एक जैन परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री पुरुषोत्तम लाल सुखाडिया एक क्रिकेटर थे जो बॉम्बे तथा सौराष्ट्र की टीम से खेले थे। नाथद्वारा तथा उदयपुर में प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात वे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के लिए मुंबई चले गए जहाँ वे छात्र राजनीति से जुड़े तथा अपने कॉलेज के महासचिव बने। वहाँ वो छात्र हितों के लिए लगातार सक्रिय रहे। इसी दौरान वे प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं यथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल, युसुफ मेहेरली तथा अशोक मेहता आदि के संपर्क में आए। वे सरदार पटेल के नेतृत्व में होने वाली कांग्रेस की बैठकों में नियमित रूप से शरीक होते थे। नाथद्वारा लौटने पर उन्होंने इलेक्ट्रिकल का छोटा सा प्रतिष्ठान प्रारंभ किया। यही प्रतिष्ठान उनकी स्वाधीनता आंदोलन के लिए युवा मित्रों की बैठकों व गतिविधियों का केन्द्र बना। यहाँ वे ब्रिटिश शासन की तानाशाही व अनियमिताओं के अलावा इलाके में सामाजिक-आर्थिक सुधार पर चर्चा करते थे। उन्होंने तथा उनके साथियों ने इस हेतु शिक्षा व सामाजिक जागरूकता के विभिन्न कार्यक्रम भी संचालित किए। श्री सुखाड़िया वास्तव में समाज सुधारक थे। वे छुआछूत के केवल विरोधी ही नहीं थे अपितु उस समय उन्होंने स्वयं अंतर्जातीय करके एक क्रांतिकारी कदम उठाया। 1 जून 1965 को उनका यह विवाह इंदुबाला सुखाड़िया से ब्यावर में आर्य समाज की वैदिक रीति से संपन्न हुआ जिसका उनके गृह नगर नाथद्वारा में उनकी माता, परिजनों व समाज के लोगों ने विरोध किया किंतु उनके मित्रों ने उनका भरपूर सहयोग किया। मित्रों ने समाज के विरोध के बावजूद नगर में नवविवाहित जोड़े का बग्गी में जुलूस निकाला और शानदार स्वागत किया।
वे प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी माणिक्य लाल वर्मा और पंडित जवाहर लाल नेहरू से बहुत प्रभावित थे। उन्हीं से प्रेरणा पाकर वे युवावस्था में ही स्वाधीनता आंदोलन में पूर्ण सक्रिय होने के लिए मेवाड़ प्रजामंडल के सदस्य बने तथा उदयपुर आ गए। नवंबर 1941 में मेवाड़ प्रजामंडल के माणिक्य लाल वर्मा की अध्यक्षता में हुए प्रथम अधिवेशन में उत्तरदायी शासन की स्थापना करने तथा नागरिक अधिकार देने की माँग की गई। इस अवसर पर हरिजनों के कल्याण के लिए 'हरिजन सेवा संघ' की स्थापना की गई तथा इसका कार्यभार मोहन लाल सुखाड़िया को सौंपा गया। भारत छोड़ो आंदोलन व प्रजामंडल के विभिन्न कार्यक्रमों तथा आंदोलनों में सक्रियता से भाग लेने के कारण वे जल्दी ही लोकप्रिय नेता बन गए। प्रजामंडल के आंदोलन के कारण मेवाड़ के महाराणा को झुकना पड़ा तथा राज्य में संवैधानिक सुधार करने पड़े। इन्हीं सुधारों के तहत मेवाड़ में व्यवस्थापिका के चुनाव से पूर्व अंतरिम मंत्रिमंडल का गठन किया जिसमें मेवाड़ प्रजामंडल के नेता मोहन लाल सुखाड़िया व हीरालाल कोठारी को 28 मई, 1947 को मंत्री पद पर नियुक्त किया गया तथा फरवरी 1948 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद भी वे मंत्री रहे। देश की स्वाधीनता के बाद वे मेवाड़ राज्य में और तत्पश्चात अप्रैल 1948 में गठित संयुक्त राजस्थान की सरकार में मंत्री पद पर रहे। 30 मार्च 1949 को बने 'वृहद राजस्थान' के हीरा लाल शास्त्री के मुख्यमंत्रित्व में गठित सरकार में तो वे मंत्री नहीं बन पाए किंतु 1952 में जब जय नारायण व्यास मुख्यमंत्री थे तब वे उनके मंत्रिमंडल में शामिल किए गए। 13 नवंबर 1954 को राज्य के इतिहास का वह प्रमुख क्षण था जब राज्य के लोकप्रिय नेता मोहन लाल सुखाड़िया ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उन्होंने लगातार 17 वर्ष अर्थात 13 नवंबर, 1954 से 9 जुलाई, 1971 तक इस पद पर बने रहने का कीर्तिमान स्थापित किया। उनसे पूर्व राज्य के मुख्यमंत्री जय नारायण व्यास थे जबकि उनके पश्चात बरकतुल्लाह खाँ इस पद पर रहे। राजस्थान का यह दूरदर्शी समाज सेवी राजनेता सन् 1954 में जब राज्य के मुख्यमंत्री पद पर आरूढ़ हुआ तब उनकी उम्र मात्र 38 वर्ष थी। इस समय राज्य की स्थिति बहुत खराब थी। उन्होंने अपने 17 वर्षों के कुशल नेतृत्व से राज्य में कई सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक सुधार किए तथा राज्य को पिछड़े राज्य से एक विकासशील राज्य की ओर अग्रसर किया। इसी कारण उन्हें "आधुनिक राजस्थान का निर्माता (Founder of Modern Rajasthan)" कहा जाता है। राजस्थान के इस जनप्रिय नेता ने कर्नाटक, आंध्रप्रदेश तथा तमिलनाडु के राज्यपाल के पद को भी सुशोभित किया।
समूचा राजस्थान उस समय स्तब्ध रह गया जब इस महान सपूत का देहावसान 2 फरवरी 1982 को बीकानेर में हो गया। उदयपुर में उनका दाह संस्कार किया गया तथा जिस स्थान पर उनका दाह संस्कार हुआ उस जगह समाधि बनाई गई जिस पर कृतज्ञजन स्वाधीनता के इस सेनानी व विकास के पुरोधा को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।
वे प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी माणिक्य लाल वर्मा और पंडित जवाहर लाल नेहरू से बहुत प्रभावित थे। उन्हीं से प्रेरणा पाकर वे युवावस्था में ही स्वाधीनता आंदोलन में पूर्ण सक्रिय होने के लिए मेवाड़ प्रजामंडल के सदस्य बने तथा उदयपुर आ गए। नवंबर 1941 में मेवाड़ प्रजामंडल के माणिक्य लाल वर्मा की अध्यक्षता में हुए प्रथम अधिवेशन में उत्तरदायी शासन की स्थापना करने तथा नागरिक अधिकार देने की माँग की गई। इस अवसर पर हरिजनों के कल्याण के लिए 'हरिजन सेवा संघ' की स्थापना की गई तथा इसका कार्यभार मोहन लाल सुखाड़िया को सौंपा गया। भारत छोड़ो आंदोलन व प्रजामंडल के विभिन्न कार्यक्रमों तथा आंदोलनों में सक्रियता से भाग लेने के कारण वे जल्दी ही लोकप्रिय नेता बन गए। प्रजामंडल के आंदोलन के कारण मेवाड़ के महाराणा को झुकना पड़ा तथा राज्य में संवैधानिक सुधार करने पड़े। इन्हीं सुधारों के तहत मेवाड़ में व्यवस्थापिका के चुनाव से पूर्व अंतरिम मंत्रिमंडल का गठन किया जिसमें मेवाड़ प्रजामंडल के नेता मोहन लाल सुखाड़िया व हीरालाल कोठारी को 28 मई, 1947 को मंत्री पद पर नियुक्त किया गया तथा फरवरी 1948 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद भी वे मंत्री रहे। देश की स्वाधीनता के बाद वे मेवाड़ राज्य में और तत्पश्चात अप्रैल 1948 में गठित संयुक्त राजस्थान की सरकार में मंत्री पद पर रहे। 30 मार्च 1949 को बने 'वृहद राजस्थान' के हीरा लाल शास्त्री के मुख्यमंत्रित्व में गठित सरकार में तो वे मंत्री नहीं बन पाए किंतु 1952 में जब जय नारायण व्यास मुख्यमंत्री थे तब वे उनके मंत्रिमंडल में शामिल किए गए। 13 नवंबर 1954 को राज्य के इतिहास का वह प्रमुख क्षण था जब राज्य के लोकप्रिय नेता मोहन लाल सुखाड़िया ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उन्होंने लगातार 17 वर्ष अर्थात 13 नवंबर, 1954 से 9 जुलाई, 1971 तक इस पद पर बने रहने का कीर्तिमान स्थापित किया। उनसे पूर्व राज्य के मुख्यमंत्री जय नारायण व्यास थे जबकि उनके पश्चात बरकतुल्लाह खाँ इस पद पर रहे। राजस्थान का यह दूरदर्शी समाज सेवी राजनेता सन् 1954 में जब राज्य के मुख्यमंत्री पद पर आरूढ़ हुआ तब उनकी उम्र मात्र 38 वर्ष थी। इस समय राज्य की स्थिति बहुत खराब थी। उन्होंने अपने 17 वर्षों के कुशल नेतृत्व से राज्य में कई सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक सुधार किए तथा राज्य को पिछड़े राज्य से एक विकासशील राज्य की ओर अग्रसर किया। इसी कारण उन्हें "आधुनिक राजस्थान का निर्माता (Founder of Modern Rajasthan)" कहा जाता है। राजस्थान के इस जनप्रिय नेता ने कर्नाटक, आंध्रप्रदेश तथा तमिलनाडु के राज्यपाल के पद को भी सुशोभित किया।
समूचा राजस्थान उस समय स्तब्ध रह गया जब इस महान सपूत का देहावसान 2 फरवरी 1982 को बीकानेर में हो गया। उदयपुर में उनका दाह संस्कार किया गया तथा जिस स्थान पर उनका दाह संस्कार हुआ उस जगह समाधि बनाई गई जिस पर कृतज्ञजन स्वाधीनता के इस सेनानी व विकास के पुरोधा को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।
javahar lal nehru ne aisa kya kiya jo ye inse prabhavit hue
ReplyDeleteवो जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्वाधीनता आंदोलन में किए गए योगदान से प्रभावित थे।
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