Skip to main content

समसामयिक घटनाचक्र-

प्रताप अवॉर्ड के लिए 32 खिलाड़ियों का चयन


पिछले पांच साल से राज्य खेल परिषद की उपेक्षा का शिकार रहे महाराणा प्रताप अवॉर्ड के लिए 32 खिलाड़ियों का चयन कर लिया गया है। परिषद की चयन समिति ने वर्ष 2007-08 से 2011-12 तक के लिए ये खिलाड़ी छांटे हैं।

प्रत्येक पुरस्कार विजेता को 51 हजार रुपए, महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा व प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा। परिषद खेल दिवस के अवसर पर समारोह आयोजित करने का प्रयास कर रही है।  

पुरस्कार के लिए चयनित खिलाड़ी

> एथलेटिक्स :-
1.      समरजीत सिंह-  2007-08
2.      मंजुबाला-  2010-11
3.      घमंडाराम-  2011-12
    तीरंदाजी:-
1.      रजत चौहान- 2011-12
     > साइक्लिंग:-
1.      राजेन्द्र विश्नोई-  2009-10
2.      दयालाराम सहारण-  2010-11
3.      दयालाराम जाट  - 2010-11
4.      राकेश कुमार- 2011-12
       > कोर्फबॉल:-
1.      प्रेमचंद सैनी - 2008-09
2.      सुशीला सैनी - 2011-12
       >  रोलबॉल:-
1.      सोनिया सैनी-  2008-09
2.      अनीष सिंह-  2010-11
3.      अजीत सिंह-  2010-11
4.      रमेश सिंह-  2010-11
       >  जूडो:-
1.      बलविन्द्र सिंह-  2009-10    
   > पाल नौकायन :-
1.      शेखर सिंह-  2010-11
       > नौकायन:-
1.      सतीश जोशी-   2007-08
2.      हरीश चन्द्र-  2007-08
3.      गिर्राज सिंह-  2007-08
4.      नरेन्द्र सिंह-  2009-10
5.      संदीप कुमार-  2009-10
6.      राकेश रलिया-  2009-10
      > निशानेबाजी:-
1.      ओमप्रकाश-  2008-09
2.      महेन्द्र सिंह-  2009-10
3.      अपूर्वी चन्देला-  2011-12
        > कबड्डी:-
1.      जगदीप सिंह-  2010-11
         > वॉलीबॉल:-
1.      हेमेन्द्र (मरणोपरांत)- 2009-10
   > पैरा श्रैणी में :-
1.      जगसीर सिंह (एथलेटिक्स, 2007-08),
2.      संदीप सिंह मान (एथलेटिक्स, 09-10),
3.      दीपाली सिंह (एथलेटिक्स, 11-12),
4.      कमलेश शर्मा (तीरंदाजी, 11-12),
5.      किरण टांक (तैराकी, 09-10)

Comments

  1. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट
    का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित
    है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग
    बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया
    है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती
    है...
    Look into my site : फिल्म

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली