राजस्थान विविधताओं से परिपूर्ण है। यहाँ राम, कृष्ण हनुमान, शिवशंकर, गणेश, माँ दुर्गा आदि देवी देवताओं के मंदिर है तथा उनकी पूजा अर्चना तो हिंदू धर्म के अनुसार होती ही है लेकिन यहाँ की लोक संस्कृति में कई लोक देवता और लोक देवियां भी जनमानस की आस्था में रचे बसे हैं। इसके अलावा यहाँ रामभक्त विभीषण और राम के रिपु रावण दोनों के मंदिर विद्यमान है तथा उनकी पूजा भी की जाती है। विभीषण के मंदिर के बारे में हम पिछली एक पोस्ट में जिक्र कर चुके हैं। अब हम यह रोचक तथ्य बताते है कि राजस्थान के जोधपुर शहर में अपने आपको रावण का वंशज मानने वाले एक ब्राह्मण समुदाय के लोग श्राद्ध पक्ष की दशमी को लंकेश रावण का श्राद्ध करते हैं तथा यहाँ के अमरनाथ मंदिर परिसर में स्थापित रावण की मूर्ति की विशेष पूजा अर्चना करते हैं। जोधपुर के दवे, गोधा श्रीमाली समाज के लोग रावण को स्वयं का पितर मानते हैं तथा इसी कारण वे प्रतिवर्ष उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। इस समाज के लोगों ने गत वर्ष यहाँ रावण का मंदिर भी स्थापित किया था। श्राद्ध क्रिया के दौरान इसमें पूजा-अर्चना की जाती है तथा बाद में यहाँ पर तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है। इसके बाद रावण की प्रतिमा एवं उसकी कुलदेवी मां को खीर-पूडी का भोग लगाया जाता है। इसके साथ ही ब्राह्माणों को भोजन भी कराया जाता है। इस समाज के लोग मानते हैं कि श्रीलंका में राम-रावण युद्ध में रावण के मारे जाने पर उसके वंशज यहां जोधपुर आकर बस गए थे। ये लोग रावण को प्रकांड पंडित एवं विद्वान मानते हुए उसमें अटूट आस्था रखते हैं। हर साल रावण का श्राद्ध पूरी श्रद्धा से करते हैं। दशहरे के पर्व पर जहां एक और सभी जगह खुशी मनाई जाती हैं तथा रावण दहन किया जाता हैं वहीं इस समाज के लोग इस दिन को सूतक मानते हुए स्नान करते हैं। एक और बात राजस्थान के लिए महत्वपूर्ण है कि लंकाधिपति की सुसराल भी जोधपुर को कहा जाता है क्योंकि रावण की रानी मंदोदरी का संबंध जोधपुर की प्राचीन राजधानी मंडोर से माना जाता हैं।
हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम जाता है। हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था। हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की। हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा । वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क
Comments
Post a Comment
Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार