राजस्थान के कुछ
भाग मौर्यों के
अधीन या प्रभाव
क्षेत्र में थे।
अशोक का बैराठ
का शिलालेख तथा
उसके उत्तराधिकारी कुणाल
के पुत्र सम्प्रति
द्वारा बनवाए गए मन्दिर
मौर्यों के प्रभाव
की पुष्टि करते
हैं। कुमारपाल प्रबन्ध
तथा अन्य जैन
ग्रंथों से अनुमानित
है कि चित्तौड़
का किला व
चित्रांग तालाब मौर्य राजा
चित्रांग का बनवाया
हुआ है। चित्तौड़
से कुछ दूर
मानसरोवर नामक तालाब
पर राज मान
का, जो मौर्यवंशी
माना जाता है,
वि. सं. 770 का
शिलालेख कर्नल टॉड को
मिला, जिसमें माहेश्वर,
भीम, भोज और
मान ये चार
नाम क्रमशः दिए
हैं। कोटा के
निकट कणसुवा (कसुंआ)
के शिवालय से
795 वि. सं. का
शिलालेख मिला है,
जिसमें मौर्यवंशी राजा धवल
का नाम है।
इन प्रमाणों से
मौर्यों का राजस्थान
में अधिकार और
प्रभाव स्पष्ट होता है।
हर्षवर्धन की मृत्यु
के बाद भारत
की राजनीतिक एकता
पुनः विघटित होने
लगी। इस युग
में भारत में
अनेक नए जनपदों
का अभ्युदय हुआ।
राजस्थान में भी
अनेक राजपूत वंशों
ने अपने-अपने
राज्य स्थापित कर
लिए थे, इसमें
मारवाड़ के प्रतिहार
और राठौड़, मेवाड़
के गुहिल, सांभर
के चौहान, आमेर
के कछवाहा, जैसलमेर
के भाटी इत्यादि
प्रमुख हैं। शिलालेखों
के आधार पर
हम कह सकते
हैं कि छठी
शताब्दी में मण्डोर
के आस-पास
प्रतिहारों का राज्य
था और फिर
वही राज्य आगे
चलकर राठौड़ों को
प्राप्त हुआ। लगभग
इसी समय सांभर
में चौहान राज्य
की स्थापना हुई
और धीरे-धीरे
वह राज्य बहुत
शक्तिशाली बन गया।
पांचवीं या छठी
शताब्दी में मेवाड़
और आसपास के
भू-भाग में
गुहिलों का शासन
स्थापित हो गया।
दसवीं शताब्दी में
अर्थूंणा तथा आबू
में परमार शक्तिशाली
बन गये। बारहवीं
तथा तेरहवीं शताब्दी
के आस-पास
तक जालौर, रणथम्भौर
और हाड़ौती में
चौहानों ने पुनः
अपनी शक्ति का
संगठन किया परन्तु
उसका कहीं-कहीं
विघटन भी होता
रहा। (संदर्भ- माध्यमिक शिक्षा बोर्ड,
राजस्थान की राजस्थान अध्ययन की पुस्तक)
हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम जाता है। हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था। हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की। हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा । वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क
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