स्वतन्त्रता पूर्व राजस्थान का शैक्षिक परिदृश्य-
देशी शिक्षा (इंडिजिनियस एज्यूकेशन )
Indegenous Education in Rajasthan Before Indipendence
- 1818 से पूर्व प्रचलित शिक्षा के ब्रिटिश दस्तावेजों में देशी शिक्षा (इंडिजिनियस
एज्यूकेशन) सम्बोधित किया हैं।
- उसके बाद में विकसित
होने वाली शिक्षा प्रणाली को अंग्रेजी शिक्षा, पाश्चात्य शिक्षा या आधुनिक शिक्षा के नाम से सम्बोधित किया है लेकिन इसमें अंग्रेजी
पाश्चात्य और भारतीय शिक्षा तत्वों के तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के समावेश होने के
कारण इसे आधुनिक शिक्षा कहना उपयुक्त होगा।
-औपचारिक शिक्षा
धार्मिक संस्कार-हिन्दुओं में उपनयन और मुसलमानों में बिस्मिल्लाह रस्म के बाद
प्रारम्भ होती थी।
-अभिलेखागार सामग्री
और प्राच्य विद्या प्रतिष्ठानों की पाण्डुलिपियों के अध्ययन के आधार पर शिक्षा
व्यवस्था को दो भागों में विभक्त करके अध्ययन किया जा सकता हैं-
पहला प्राथमिक और दूसरा उच्च शिक्षा।
1. देशी
प्राथमिक शिक्षा-
- प्राथमिक शिक्षा के
रूप में हिन्दुओं की पाठशाला, चटशाला, जैनियों के उपाषरा, वानिका
और मुसलमानों के मकतब थे। इनके अतिरिक्त मंदिर, मस्जिद
के आंगन, चौपाल, किसी विशिष्ट शिक्षक एवं व्यक्ति का घर, बरामदा,
दूकानें व अन्य स्थान आदि शिक्षण केन्द्र होते थे। परिवार भी प्राथमिक और व्यावसायिक
शिक्षा के प्रमुख केन्द्र होते थे,
वंशानुगत आधार पर माता-पिता व परिवार के
वरिष्ठ सदस्य बालक को शिक्षित करते थे।
- उच्च शिक्षा के केन्द्र के रूप में हिन्दुओं के
मठ, जैनियों के उपाषरा और मुसलमानों के मदरसे प्रमुख स्थल थे।
पाठ्यक्रम-
पाठ्यक्रम भी दो भागों में विभक्त था-
1.
धार्मिक 2. गैर धार्मिक।
- प्राथमिक शिक्षा
लिखना, पढ़ना और हिसाब (गणित) तक सीमित थी।
- पाठशाला में हिन्दी
एवं संस्कृत पढ़ाई जाती थी।
- उपाषरा में हिन्दी
एवं प्राकृत पढ़ाई जाती थी।
- मकतब में फारसी एवं
उर्दू पढ़ाई जाती थी।
- राजस्थान महत्त्वपूर्ण
व्यापारिक मार्ग होने के कारण स्थानीय भाषा और फारसी प्रशासनिक भाषा होने के कारण
उर्दू के अध्ययन का प्रचलन भी शिक्षण संस्थाओं में था।
- गणित के अन्तर्गत 01 से 100 तक गिनती और 1/2
(आधा) से 11 तक के पहाड़े पढ़ाते तथा दूसरे सोपान में ढ़य्या (2=1/2) एवं सवाया 1=1/4
और दस के आगे के पहाड़े, माप-तोल,
गुणा ब्याज, राशि, लब्धि
वर्गीकरण के सूत्र तथा बही-खाता रखने की विधि सिखाई जाती थी।
- देशी शिक्षा
में बही-खाता विधि को महाजनी लिपि या वाणियावाटी लिपि गणित भी कहा जाता था क्योंकि
इसमें व्याकरण की कठिनाइयों से बचने के लिये संकेत भाषा का प्रयोग किया जाता था।
- पाठ्यक्रम का दूसरा भाग धार्मिक शिक्षा से प्रेरित था, जिसमें देवी देवताओं की कथा, त्यौहार, जीवनापयोगी वस्तुएँ,
पूजा सामग्री विधि, खान-पान, श्रृंगार, वस्त्रों के फलों के नाम,
नैतिक शिक्षा आदि।
- मदरसों में कुरान,
फातिहा (दफनाने के समय पढ़ा जाता है) हकीकत,
करीमा,
तारीखें आदि पाठ्यक्रम का भाग थे।
शिक्षक
-
1. गुरु एवं जोशी जी- पाठशाला और चटशाला आदि के शिक्षक।
2. आचार्य व महन्त- मठ एवं अस्थल के शिक्षक।
3. भट्टारक- उपाषरा, वानिका के शिक्षक।
4. मौलवी एवं उलेमा- मकतब एवं मदरसे के शिक्षक ।
2. देशी उच्च शिक्षा-
- उच्च शिक्षा के केन्द्र के रूप में हिन्दुओं के मठ, जैनियों के उपाषरा और मुसलमानों के मदरसे प्रमुख स्थल थे।
- उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम भी धार्मिक और गैर धार्मिक में विभाजित था।
- धार्मिक शिक्षा उच्च आध्यात्मिक शिक्षा से सम्बद्ध थी।
- मठ में कर्मकाण्ड, अस्थल में धर्म की किसी विशेष शाखा का अध्ययन, वेदों और ग्रंथों का मदरसों में इस्लामिक कानून, इलाही आदि का अध्ययन कराया जाता था।
- धर्म के अतिरिक्त उच्च शिक्षा केन्द्रों पर भूगोल, इतिहास, भाषा विज्ञान, अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, खगोल विद्या, आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा का भी ज्ञान दिया जाता था।
- तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में जयपुर स्थित जन्तर मन्तर महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, कृषि केन्द्र क्षेत्र में जुताई के चिन्ह्, अभियांत्रिक क्षेत्र में विशाल महल, किले, जलमहल, नहरों, पुल, कुओं, बावड़ियों का निर्माण तकनीकी शिक्षा का परिणाम था।
- धातु पिघलाने की तकनीकी भी महत्त्वपूर्ण ज्ञानार्जन था। कर्नल टॉड को दक्षिणी राजस्थान जावर क्षेत्र में जस्ता, धातु, ताम्बे, टिन और लोहा पिघलाने वाले बकयंत्र या मिट्टी के बने भमके नदी के किनारे मिले थे।
3. देशी महिला शिक्षा-
- महिलाओं की
शिक्षा औपचारिक और अनौपचारिक दोनों ही प्रकार की थी। अधिकांशतः राजपरिवार, कुलीन वर्ग व चारण
जाति की महिलाओं, जैन साध्वियों और राजपरिवार से सम्बद्ध दास दासियों में
शिक्षा का प्रचलन था।
- राजकीय
अभिलेखागार में “जनानी ड्योढ़ी तहरीर” नाम से पृथक् वर्ग का संग्रह है जिससे पता
चलता है कि राजपरिवारों से सम्बन्ध महिलाएं सांस्कृतिक मूल्यों और सैन्य शिक्षा
लेती थी।
- राजस्थान में
अनेक विदुषी चारण महिलाएं हुई है।
- महिला शिक्षा का
सबसे मजबूत स्तम्भ उपाषरा था जिसमें जैन साध्वियां व महिलाएं अध्ययनरत रहती थी। वे भाषा, साहित्य एवं
अनुवाद के कार्य में निपुण होती थी।
- व्यावसायिक
परिवारों से सम्बद्ध महिलाएं परिवार में ही रहते हुए अपने पारिवारिक व्यवसाय की
शिक्षा ग्रहण करती थी।
देशी शिक्षा में प्रशासनिक व्यवस्था-
- इस व्यवस्था में एक
निश्चित प्रशासनिक व्यवस्था का अभाव था। संस्था में प्रवेश, समय सारणी, परीक्षा, उत्तीर्ण
प्रमाण पत्र शुल्क की आज के समान व्यवस्था नही थी।
- शुल्क के रूप में “सीधा प्रथा” प्रचलित थी। अर्थात् विद्यार्थी शिक्षक के लिए अन्न व अन्य
भोजन सामग्री लाते थे। शिक्षा पूर्ण होने पर गुरु दक्षिणा भेंट की जाती थी।
- शासक शिक्षा को
प्रोत्साहन देने के लिये विधि द्वारा बाध्य नहीं था, वह अपनी स्व-प्रेरणा से शिक्षण कार्य करने वालों को करमुक्त
जमीन (जागीर) अनुदान करते थे।
- हिन्दुओं को दी जाने
वाली जागीर को “माफी जागीर” और मुसलमानों को दी
जाने वाली जागीर “मदद ए माश” जागीर कहलाती थीं, यह जागीर कर मुक्त होती थी।
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