साहित्य
की यात्रा को सांगोपांग समझने के लिए उसका काल-विभाजन किया जाता है। साहित्य के काल-विभाजन
का आधार उस समय के साहित्य में प्रचलित धाराओं, प्रवृत्तियों तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि आदि
होता है। राजस्थानी भाषा एवं साहित्य हेतु बहुत से देशी-विदेशी विद्वानों ने कई
शोध किए हैं तथा वर्तमान में इस तरह के बहुत से शोध किए भी जा रहे हैं। साहित्य के विद्वान राजस्थानी साहित्य का काल-विभाजन करने की
दिशा में एकमत नहीं है। इस सम्बन्ध में अलग-अलग विद्वानों द्वारा किए गए काल-विभाजन
यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं-
(1) डॉ. एल. पी. टैस्सीटोरी द्वारा राजस्थानी-साहित्य का काल-विभाजन-
(क) प्राचीन डिंगळ काल- सन् 1250
ई. से सन् 1650 ई. तक।
(ख) अर्वाचीन डिंगळ काल- सन् 1650
ई. से वर्तमान तक।
(2) डॉ. सीताराम लालस द्वारा राजस्थानी साहित्य का काल-विभाजन-
(क) आदिकाल- वि. सं. 800 से
वि. सं. 1460 तक।
(ख) मध्यकाल- वि. सं.
1460 से वि. सं. 1900 तक।
(3) डॉ. मोतीलाल मेनारिया द्वारा काल-विभाजन-
डॉ. मोतीलाल मेनारिया ने अपने ग्रंथ ‘राजस्थानी
भासा और साहित्य’ में
राजस्थानी साहित्य का काल-विभाजन इस तरह किया है-
(क) प्रारंभकाल- वि. सं.
1045 से 1460 तक।
(ख) पूर्व मध्यकाल- वि. सं.
1460 से 1700 तक।
(ग) उत्तर मध्यकाल- वि. सं.
1900 तक।
(घ) आधुनिक काल- वि. सं. 1900 से
वर्तमान तक।
(4) डॉ. हीरालाल माहेश्वरी द्वारा काल-विभाजन-
(क) प्रारंभिक काल- सन् 1050 से सन् 1450 तक।
(ख) मध्यकाल- सन् 1450 से सन् 1850 तक।
(ग) आधुनिक काल- सन् 1850-57 से 1947-50
तक एवं सन् 1950 से वर्तमान तक।
(5) प्रो कल्याण सिंह शेखावत द्वारा काल-विभाजन-
प्रो
कल्याण सिंह शेखावत ने अपने ग्रंथ ‘राजस्थानी भासा एवं साहित्य’ में राजस्थानी
साहित्य का काल-विभाजन इस प्रकार किया है-
1. आरंभिक काल-
(क) अभिलेखीय काल- वि. सं. 800 से वि. सं. की 12वीं सदी तक।
(ख) वीरगाथा काल- वि. सं. 1250 से वि. सं. 1450 तक।
2. मध्यकाल-
(क) भक्तिकाल- वि. सं. 1450 से 1650 तक।
(ख) रीतिकाल- वि. सं. 1650 से 1850 तक।
3. आधुनिक काल-
(क) प्रथम चरण-
सन् 1850 से सन् 1920 तक।
(ख) द्वितीय चरण-
सन् 1920 से सन् 1947 तक।
(ग) तृतीय चरण-
सन् 1947 से वर्तमान तक।
हिंदी साहित्य का आदिकाल राजस्थानी के बिना शून्य है।
ReplyDeleteसही फ़रमाया डॉ. राजेन्द्र सिंघवी साहब....धन्यवाद...
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