Skip to main content

*** Mangibai -The synonymous of Terhtali dance***
***तेरहताली नृत्य की पर्याय नृत्यांगना माँगीबाई-***






Recipient of numerous awards by presenting Rajasthan's famous Terahtali dance for fifty consecutive years, the dancer Mangibai born in Banila village of Chittorgarh district. At the age of only ten years her child marriage was done in Pali district's Padarla village which is famous for Terahtali dance. She learned all the nuances of the art of Terahtali dance from his brother-in-law Gormdas in this village. This dance was ancestral occupation of their family and community, so Mangibai also adopted this dance as the profession. In the beginning she performed dances in the villages around her village, but in 1954, a day came when she performed for the first time in front of thousand audience in a Gaaduliya Louhar's  conference held ar Chittaurgarh in the presence of Jawaharlal Nehru and enchanted all the audience by her charming choreography. After this unforgettable first presentation by establishing records of success, Mangibai reached at a such position that she came to be equated with Terahtali dance. Besides many cities of the country she has gained immense appreciation from showing her skills in countries like Germany, Italy, England, America, Russia, Spain, Canada etc. She got place in the list of India's well-known artists published by THE INDIAN COUNCIL FOR CULTURAL RELATIONS EMPANELMENT - UNIT and in a list of UNESCO's component organisation 'Asia-Pacific database on Intelligible Cultural Heritage'.


पचास वर्षों से लगातार राजस्थान का प्रसिद्ध तेरहताली नृत्य को प्रस्तुत कर कई पुरस्कार प्राप्त करने वाली नृत्यांगना मांगीबाई का जन्म चित्तौड़गढ़ जिले के बनिला गांव में हुआ। मात्र दस वर्ष की आयु में ही इनका बाल विवाह पाली जिले के तेरहताली नृत्य के लिए प्रसिद्ध पादरला गांव में कर दिया गया। यहाँ उन्होंने अपने जेठ गोरमदास से तेरहताली नृत्य की कला की सभी बारीकियां सीखी। यह नृत्य उनके परिवार तथा जाति का पुश्तैनी धंधा है, इसलिए मांगीबाई ने भी इस नृत्य को धंधे के रूप में अपनाया। शुरुआत के दिनों में वो अपने आसपास के गांवों में ही यह नृत्य करती थी, किंतु एक दिन ऐसा आया जब प्रथम बार उन्होंने सन 1954 में पं. जवाहर लाल नेहरू की उपस्थिति में चित्तौड़गढ़ में आयोजित गाड़िया लुहार सम्मेलन में हजारों दर्शकों के समक्ष यह नृत्य प्रस्तुत कर सभी को अपनी नृत्यकला से मोहित कर लिया। इस अविस्मरणीय प्रथम प्रस्तुति के बाद मांगीबाई एक के बाद एक सफलता के आयाम स्थापित करती हुई आज इस स्थिति में पहुंच गई है कि उन्हें तेरहताली नृत्य का पर्याय माना जाने लगा। वो अब तक देश के कई शहरों के अलावा जर्मनी, इटली, इंग्लैंड, अमेरिका, रूस, स्पेन, कनाडा आदि देशों में भी अपने हुनर का जलवा दिखा कर असीम प्रशंसा अर्जित कर चुकी है। INDIAN COUNCIL FOR CULTURAL RELATIONS EMPANELMENT – UNIT द्वारा प्रकाशित भारत के प्रसिद्ध की कलाकारों की सूची में तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के घटक यूनेस्को की संस्था 'एशिया पेसिफिक डेटाबेस ऑन इंटेजिबल कल्चरल हेरिटेज' की सूची में भी मांगीबाई को स्थान दिया गया है।
 

 Characteristics of Terhtali - 


  • The Padarli village of Pali district is highly acclaimed for this dance where this dance is performed by women's groups of Kamad community.

  • Men chant the bhajans of folk deity Baba Ramdevji's Leela with playing tanpura during this dance. 

  • The total of thirteen Manjiras (Cymbals) are tied at the hands and feet of dancer which ring during the dance. Hence this dance is called as Terahtali dance.

  • The dancer is being adorned in Rajasthani dress and nine manjiras are being tied linearly on her right leg between the knee cap and toe and a Manjira on each elbow of her hand.

  •  Two Mnjira present in opened position on fingers of both hands of dancer. When the opened Manjiras of both hands are played with the rhythm on tied Manjiras while dancing, the unique association of music and dance establishes an amazing scene.

  • During the dance, the Terahtali dancers perform dance in sitting position with several expressions and body language and physical balance with putting a prayer plate, vase, lamp on the head and holding a sword in the mouth.

  • The Terahtali dancer shows his art feat in the dance by ringing Terahtalis (13 cymbals) with lying on ground and rotating her body in circular movement but there is not a single miss of ringing cymbal.

  • The dancer transfers simple flow of this dance in the pure beauty perception in such a way, that as such as the dance is displayed, it is developed in high order great rhythm, excellent balance and attractive agility skills.  

तेरहताली की विशेषताएँ- 


  • इस नृत्य के लिए पाली जिले का पादरली गाँव अत्यधिक ख्याति प्राप्त है जहाँ की कामड़ जाति की महिलाओं के समूह द्वारा यह नृत्य किया जाता है। 

  • इसमें पुरुष तानपुरे पर लोक देवता बाबा रामदेव जी की लीला से संबंधित भजनों का गायन करते हैं। 

  • इस नृत्य में हाथ और पांव पर कुल तेरह मंजीरे बंधे रहते हैं जो नृत्य के दौरान बजते हैं। इस कारण इस नृत्य को तेरहताली कहते हैं।

  • इसमें नृत्यांगना राजस्थानी लिबास में सजी-धजी रहती है तथा उसके दाएँ पैर पर एड़ी से घुटने के मध्य रेखीयक्रम में नौ मंजीरे बंधे होते हैं तथा एक-एक मंजीरा दोनों हाथों की कुहनियों पर होते हैं।

  • दोनों हाथ की उँगलियों पर दो मंजीरे खुली हुई स्थिति में होते हैं। हाथ के दोनों खुले हुए मंजीरों को जब नाचते हुए बंधे हुए मंजीरों पर लय के साथ बजाया जाता है तो संगीत व नृत्य के अनूठे संगम से अद्भुत समा बंध जाता है। 

  • इस नृत्य के दौरान तेरहताली नृत्यांगनाएं सिर पर पूजा की थाली, कलश, दीपक रखकर तथा मुंह में तलवार दबाकर अनेकानेक भाव भंगिमाओं एवं शारीरिक संतुलन के साथ बैठकर नृत्य करती हैं। 

  • इस नृत्य में नृत्यांगना लेट कर तेरहताली बजाना, चक्कर लगाकर तेरहताली बजाना जैसे करतब इस बेहतरीन ढंग से प्रदर्शित करती है कि मजाल है एक भी मंजीरा बजने से चूक जाए। 

  • इस नृत्य के सरल प्रवाह को नृत्यांगना इस तरह से शुद्ध सौन्दर्य बोध में स्थानांतरित करती है कि यह नृत्य जैसे-जैसे प्रदर्शित होता जाता है, वैसे-वैसे यह उच्च कोटि के श्रेष्ठ ताल-लय, उत्कृष्ट संतुलन तथा आकर्षक चपलता के कौशल के रूप में विकसित होता है।


Awards and honors achieved by the 72-year-old Mangibai -

  • Sangeet Natak Akademi Award by the President and the Prime Minister of  India.

  • Rajasthani folk dance Terhtali award

  • The prestigious Meera award by the Government of Rajasthan.

  • Honored at district level by the District Collector of Pali.

  • Honored by Department of Tourism, Government of India.

  • Included in the list of India's well-known artists published by THE INDIAN COUNCIL FOR CULTURAL RELATIONS EMPANELMENT - UNIT 

  • Included in the list of UNESCO's component organisation 'Asia-Pacific database on Intelligible Cultural Heritage'.

 72 वर्षीय मांगीबाई द्वारा अर्जित पुरस्कार व सम्मान- 

  • भारत के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री द्वारा संगीत नाटक अकादमी अवार्ड।  

  • राजस्थान सरकार द्वारा प्रतिष्ठित मीरा पुरस्कार।

  • राजस्थानी लोकनृत्य तेरहताली पुरस्कार।  

  • जिला कलक्टर पाली द्वारा जिला स्तरीय सम्मान। 

  • पर्यटन विभाग भारत सरकार द्वारा सम्मान।

  •  INDIAN COUNCIL FOR CULTURAL RELATIONS EMPANELMENT – UNIT की प्रसिद्ध की कलाकारों की सूची में स्थान। 

  • संयुक्त राष्ट्र संघ के घटक यूनेस्को की संस्था एशिया पेसिफिक डेटाबेस ऑन इंटेजिबल कल्चरल हेरिटेज की सूची में स्थान






Popular posts from this blog

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली