उद्भव
एवं विकास-
Stages of Integration of
Rajasthan- राजस्थान के एकीकरण के चरण-
Before discussing on History of
Legislature in Rajasthan, we take a quick glance at the Seven Stages of
formation of Rajasthan. These Seven Stages of formation of Rajasthan (1948-1956) are as follows-
राजस्थान में विधानसभा के इतिहास पर व्यापक चर्चा करने से पूर्व हम राजस्थान के गठन के सात चरणों पर एक दृष्टिपात करेंगे. राजस्थान (1948-1956) के गठन या एकीकरण के सात चरण इस प्रकार है-
Name of Group, States, Date of Integration-
1. Matsya Union- Alwar, Bharatpur,
Dholpur, Karauli on 17-03-1948
2. Rajasthan Union- Banswara, Bundi,
Dungarpur, Jhalawar, Kishangarh, Kota, Pratapgarh, Shahpura, Tonk on 25-03-1948
3. United
State of Rajasthan- Udaipur also joined with the other
Union of Rajasthan on 18-04-1948
4. Greater
Rajasthan- Bikaner, Jaipur, Jaisalmer & Jodhpur also joined with
the United State of Rajasthan on 30-03-1949
5. United State of Greater Rajasthan- Matsya Union also merged in Greater Rajasthan on 15-05-1949
6. United Rajasthan-
18 States of United Rajasthan merged with Princely State Sirohi except Abu
& Delwara on 26-01-1950
7. Re-organised
Rajasthan- Under the State Re-organisation Act,1956 the erstwhile
part ‘C’ State of Ajmer, Abu Road Taluka, former part of princely State Sirohi
which was merged in former Bombay State & Sunel Tappa region of the former
Madhya Bharat merged with Rajasthan & Sironj sub district of Jhalawar
district was transferred to Madhya Pradesh on 01-11-1956.
संघ का नाम, सम्मिलित हुई रियासतें/राज्य, एकीकरण दिनांक-
1. मत्स्य संघ- अलवर भरतपुर धौलपुर करौली, दिनांक 17-03-1948
2. राजस्थान संघ Rajasthan Union- बाँसवाड़ा बूँदी डूंगरपुर झालावाड़ किशनगढ़ कोटा प्रतापगढ़ शाहपुरा और टौंक, दिनांक 25-03-1948
3. संयुक्त राजस्थान राज्य- उदयपुर रियासत का संयुक्त राजस्थान में विलय, दिनांक 18-04-1948
4. वृहद् राजस्थान- बीकानेर जयपुर जैसलमेर जोधपुर भी संयुक्त राजस्थान में जुड़े, दिनांक 30-03-1949
5. संयुक्त वृहद् राजस्थान- मत्स्य संघ का वृहद् राजस्थान में विलय, दिनांक 15-05-1949
6. राजस्थान संघ- आबू और दिलवाडा को छोड़ कर सिरोही राज्य का संयुक्त वृहद् राजस्थान के 18 राज्यो में विलय, दिनांक 26-01-1950
7. पुनर्गठित राजस्थान या आधुनिक राजस्थान- इसमें State Re-organisation Act,1956 the
erstwhile part ‘C’ के तहत अजमेर तथा रियासतकालीन राज्य सिरोही का अंग रहे आबूरोड तालुका {आबू व दिलवाड़ा} जो पूर्व में बंबई राज्य में मिल चुका था एवं पूर्व मध्य भारत के अंग रहे सुनेल टप्पा का राजस्थान संघ में विलय। साथ ही झालावाड़ जिले के सिरोंज उप जिला को मध्य प्रदेश में शामिल किया गया, दिनांक 01-11-1956
The evolution of the House of People's Representative in
Rajasthan- the erstwhile Rajputana is one of the important developments in the
annals of the constitutional history of India. Rajputana consisting of
twenty-two small and big Princely States. Though these Princely States were
declared to have been annexed to the Union of India on 15 August, 1947, the
process of merger and their unification became complete only in April, 1949, in
five phases. In the first phase of merger four Princely States of Alwar,
Bharatpur, Dholpur and Karauli formed the Matsya Union
and it was inaugurated on 17th March, 1948. The
Cabinet of this Union was formed under the Leadership of Shri Shobha Ram. The
Union of Rajasthan, consisting of Banswara, Bundi, Dungarpur, Jhalawar,
Kishangarh, Pratapgarh, Shahapura, Tonk and Kota, was inaugurated on 25 March, 1948. The Kota State
got the honour of being the capital of this Union. The Kota
Naresh Maharao Bheem Singh was appointed as the Rajpramukh and Shri Gokul Lal
Asawa was appointed as the Chief Minister. But only three days after its
inauguration the Maharana of Udaipur Shri Bhupal Singh decided to join this Union which was
accepted by the Government of India. The Maharana of Udaipur was appointed as
Rajpramukh and the Kota Naresh was appointed as Up- Rajpramukh of this Union
and the Cabinet was formed Under the leadership of Shri Manikya Lal Verma. This
Union was inaugurated by Pt. Jawaharlal Nehru on
18 April, 1948 named as 'United State of
Rajasthan'.
The formation of the Union of Rajasthan paved the way for
the merger of big states like Bikaner, Jaisalmer, Jaipur and Jodhpur with the
Union and formation of Greater Rajasthan. It was
formally inaugurated on 30 March, 1949 by Sardar
Vallabh Bhai Patel. The Maharana Bhupal Singh
of Udaipur was appointed as the Maha-Rajpramukh, Maharaja of Jaipur was appointed as the Rajpramukh and the Kota Naresh was appointed as the Up- Rajpramukh. The Cabinet was formed under the leadership of Shri Hira
Lal Shastri. Matsya Union was merged with Greater Rajasthan on 15 May, 1949.
The First Rajasthan Legislative
Assembly (1952–57) was inaugurated on 31 March 1952. It had a strength of 160
members. The strength was increased to 190 after the merger of the erstwhile
Ajmer State with Rajasthan in 1956. The Second (1957–62) and Third (1962–67) Legislative
Assemblies had a strength of 176. The Fourth (1967–72) and Fifth (1972–77)
Legislative Assembly comprised 184 members each. The strength became 200 from
the Sixth (1977–1980) Legislative Assembly onwards. The(Fourteenth) Legislative
Assembly was commence on 21 January 2013.
राजस्थान (तत्कालीन राजपूताना) में
जनप्रतिनिधि सभा का विकास भारत के संवैधानिक इतिहास के
कालक्रम की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। राजपूताना में बाईस छोटी और बड़ी
रियासते थी। इन रियासतों को 15 अगस्त 1947 को भारतीय संघ में विलय की घोषणा की गई, हालांकि इन रियासतों के विलय और उनके
एकीकरण की प्रक्रिया पांच चरणों में अप्रैल, 1949 में पूरी हुई। पहले चरण में चार रियासतों अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली के को विलय कर 'मत्स्य संघ' का गठन किया गया तथा इसका 17 मार्च, 1948 को उद्घाटन किया गया। इस संघ का
मंत्रिमंडल श्री शोभाराम के नेतृत्व में बनाया गया। 25
मार्च, 1948 को ही बांसवाड़ा, बूंदी, डूंगरपुर, झालावाड़, किशनगढ़, प्रतापगढ़, शाहपुरा, टोंक और कोटा को मिलाकर 'राजस्थान-संघ' का उद्घाटन किया गया। 'कोटा राज्य' को इस संघ की राजधानी होने
का गौरव मिला। कोटा नरेश महाराव भीम सिंह को राजप्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया तथा श्री
गोकुललाल असावा को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। लेकिन इसके
उद्घाटन के केवल तीन दिन बाद ही उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह ने इस संघ में शामिल
होने का फैसला किया जिसे भारत सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया गया। उदयपुर के
महाराणा को इस संघ के राजप्रमुख तथा कोटा नरेश को उप-राजप्रमुख के रूप में नियुक्त
किया गया और श्री माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में मंत्रिमंडल का गठन किया गया।
इस संयुक्त राजस्थान नाम के इस संघ का उद्घाटन 18 अप्रैल 1948 पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा किया गया।
राजस्थान-संघ के गठन ने बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर तथा जयपुर जैसे बड़े राज्यों के राजस्थान-संघ में विलय एवं वृहद्
राजस्थान के गठन का मार्ग प्रशस्त किया। वृहद्
राजस्थान का औपचारिक रूप से उद्घाटन 30 मार्च, 1949 को सरदार
वल्लभ भाई पटेल द्वारा किया गया। उदयपुर के महाराणा
भूपालसिंह को महा राजप्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया, जयपुर के महाराजा को राजप्रमुख और कोटा
नरेश को उप राजप्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया तथा श्री हीरालाल शास्त्री के
नेतृत्व में राज्य के मंत्रिमंडल गठन किया गया। वृहद् राजस्थान के साथ मत्स्य संघ का विलय 15 मई 1949 को सम्पन्न हुआ।
प्रथम राजस्थान विधान सभा (1952-57) का उद्घाटन 31 मार्च, 1952 को किया गया। इसकी सदस्य-क्षमता 160 सदस्यों की थी। तत्कालीन अजमेर राज्य के विलय के बाद विधानसभा की क्षमता 1956 में बढ़ कर 190 हो गई। द्वितीय (1957-62) और तृतीय (1962-67) विधान सभाओं की सदस्य संख्या 176 थी। चौथी (1967-1972) और पांचवीं (1972-1977) विधान सभा प्रत्येक में 184 सदस्य शामिल थे। छठी विधान सभा (1977-1980) एवं इसके बाद से यह सदस्य संख्या 200 है।
History Before Independence- स्वतंत्रता से पूर्व का
इतिहास-
1. Bikaner State- बीकानेर राज्य-
The process of the creation of a Legislative Council had
started during the final phase of the formation of Rajasthan. This process
continued upto the beginning of 1952. In the meantime Shri Hira Lal Shastri
submitted his resignation from the Chief Ministership and the interim
government was formed on 26 April, 1951. Though the Rajasthan Vidhan Sabha came
in to existence in March 1952, the people of Rajasthan had experienced some
kind of a parliamentary democracy even under the princely rule. The Maharaja
Ganga Singh of Bikaner was one such progressive king who made a gift of the
House of Representatives to the people of Bikaner State in 1913. Certain
improvements were made in the set up of the Legislative Assembly during the
year 1937. The Strength of the House was raised to 51, out of which 26 members
were to be elected and 25 were to be nominated. Out of 26 members, 3 members
were to be elected by the Tajimi Sardars, 10 by the State District Boards, 12
by the Municipalities and one by Businessmen and Industrialists. These changes
were implemented in the year 1942.
The Bikaner Act No.3 of 1947 had a
provision with regard to the Legislature, consisting of Raj Sabha and Dhara
Sabha. The elections for Raj Sabha & Dhara Sabha were scheduled to be held
on 28 September, 1948. But on account of the decision taken by the Bikaner
Praja Mandal on 8 August, 1948 to boycott the elections, the enforcement of the
Bikaner Act No.3 of 1947 and constitution of Raj Sabha and Dhara Sabha there
under was postponed.
राजस्थान के गठन के अंतिम चरण के दौरान
विधानसभा के सृजन की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। यह प्रक्रिया 1952 की शुरुआत तक
जारी रही। इस बीच श्री हीरालाल शास्त्री ने मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा दे
दिया तथा 26 अप्रैल 1951 को एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया। यद्यपि राजस्थान
विधानसभा मार्च 1952 में अस्तित्व में आई थी, किन्तु रियासतों के शासन के तहत भी राजस्थान के लोग एक तरह
के संसदीय लोकतंत्र का कुछ अनुभव कर चुके थे। बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह एक ऐसे
ही प्रगतिशील राजा थे जिन्होंने 1913 में बीकानेर राज्य के नागरिकों के लिए
प्रतिनिधि सभा के गठन का उपहार दिया था। वर्ष 1937 के दौरान विधानसभा के स्वरूप
में कुछ सुधार किया गया। सदन की क्षमता बढ़ा कर 51 कर दी गई जिसमें से 26 सदस्य
निर्वाचित होने वाले थे तथा 25 सदस्य मनोनीत किए जाने वाले थे। इसमें 26 सदस्यों
में से 3 सदस्यों को ताजिमी सरदारों द्वारा, 10 को राज्य जिला बोर्डों द्वारा, 12 को नगर पालिकाओं द्वारा और एक सदस्य
को व्यवसायियों व उद्योगपतियों द्वारा निर्वाचित करने का प्रावधान किया गया। इन
परिवर्तनों को वर्ष 1942 में लागू किया गया।
1947 के बीकानेर
अधिनियम संख्या-3 में विधानमंडल में दो सभाओं 'राज सभा
और धारा सभा' के होने का
प्रावधान था। राज सभा तथा धारा सभा के लिए चुनाव 28 सितंबर, 1948 को आयोजित
किया जाना तय किया गया। लेकिन बीकानेर प्रजामंडल द्वारा चुनाव का बहिष्कार करने के
8 अगस्त 1948 को लिए गए निर्णय के कारण 1947 के बीकानेर अधिनियम सं-3 के प्रवर्तन
और उसके तहत राज सभा और धारा सभा के गठन को स्थगित कर दिया गया।
2. Jodhpur State- जोधपुर राज्य-
Despite the growing political awareness
amongst the people of the state, and their increasing activities Maharaja Ummed
Singh of Jodhpur had accepted the principle of people's participation in the
administration only in the 1940s and accorded his approval to the setting up of
the Central and District Advisory Boards.
राज्य के लोगों
में बढ़ती राजनीतिक जागरूकता और उनकी बढ़ती गतिविधियों के बावजूद जोधपुर के
महाराजा उम्मेद सिंह ने 1940 के दशक में प्रशासन में लोगों की
भागीदारी के सिद्धांत को स्वीकार किया तथा सेंट्रल और जिला सलाहकार बोर्ड की
स्थापना के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान की।
3. Jaipur State- जयपुर राज्य-
In view of the various reforms initiated by Maharaja Ram
Singh during the fifth decade of the nineteenth century in political, social
and educational fields, the Jaipur State was considered as a progressive State.
But the impact of the political activities going on in other parts of the
country on the people of that State, was so profound that even the creation of
a Vidhan Samiti(1923), consisting of both official and non-official members,
fell short of their expectation.
Maharaja Mansingh constituted a Central Advisory Board in
1939 with a view to eliciting public opinion through representatives on matters
of public interest and importance. It consisted of 13 nominated members and 35
non-official members and was given the power to advise on matters relating to
medical facilities, sanitation, public works, roads, wells & buildings,
public education, rural upliftment, marketing, commerce & trade etc. It was
inaugurated on 18 March, 1940.
The House of Representatives and the Vidhan Parishad were
to be set up on 1 June, 1944 as per the Jaipur Government Act, 1944. The House
of Representatives was to consist of 120 elected members and five nominated
non-official members, out of a total of 145 members. And out of 51 members of
the Vidhan Sabha, 37 members were to be elected and 14 were to be nominated.
They were to hold office for 3 years. The Prime Minister was to be appointed as
the ex-officio Chairman of both the Houses and senior most Ministers of the Executive
Council were to be appointed as the Deputy Chairmen of the House of
Representatives and the Vidhan Parishad respectively. They were to be elected
on the basis of joint voters list. Seats were also reserved for Muslims. It was
incumbent that a candidate taking part in the election should be a voter
himself and should have the requisite qualification with regard to age,
education and citizenship. The Legislators had the freedom of speech and they
could not be arrested during the meetings of the House.
The Vidhan Parishad had the powers to
ask Questions, adopt Resolutions, to present more Adjournment Motions, and to
make laws. It was also given the powers to discuss the Budget and vote on it.
But it was beyond its power to enact laws with regard to the Maharaja and the
Army of the State.
उन्नीसवीं सदी के पांचवें दशक के दौरान महाराजा रामसिंह
द्वारा राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षिक क्षेत्रों में शुरू
किये गए विभिन्न सुधारों को देखते हुए जयपुर राज्य को एक प्रगतिशील राज्य के रूप
में माना जाता था। लेकिन देश के अन्य हिस्सों में चल रही राजनीतिक गतिविधियों का
राज्य के लोगों पर प्रभाव के कारण सरकारी एवं गैर-सरकारी दोनों प्रकार के सदस्यों
को मिलाकर बनाई जाने वाली एक विधान समिति (1923) के भी निर्माण का कदम भी जनता की
उम्मीद से छोटा पड़ गया।
सार्वजनिक हित व महत्व के मामलों पर प्रतिनिधियों के माध्यम
से जनता की राय जानने की दृष्टि से जयपुर के महाराजा मानसिंह ने 1939 में एक
केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड का गठन किया। इसमें 13 मनोनीत सदस्य तथा 35 गैर सरकारी
सदस्य शामिल थे। इसको चिकित्सा सुविधाओं, स्वच्छता, लोक निर्माण, सड़कों, कुओं व भवनों, सार्वजनिक शिक्षा, ग्रामीण उत्थान, विपणन, वाणिज्य और व्यापार आदि से संबंधित मामलों पर सलाह देने के
अधिकार दिए गए। इसका उद्घाटन 18 मार्च, 1940 को किया गया।
जयपुर सरकार अधिनियम, 1944 के अनुसार प्रतिनिधि सभा व विधान परिषद की स्थापना 1
जून 1944 को की जानी थी। 145 सदस्यों की कुल संख्या वाली प्रतिनिधि सभा का निर्माण
120 निर्वाचित सदस्य तथा पांच मनोनीत गैर सरकारी सदस्यों से मिलकर करना था। और
विधान सभा के 51 सदस्यों में से 37 सदस्य निर्वाचित होने थे तथा 14 सदस्य मनोनीत किए जाने थे। उनका
कार्यकाल 3 साल था। प्रधानमंत्री को दोनों सदनों के पदेन अध्यक्ष के रूप में
नियुक्त किया जाना था। कार्यकारी परिषद के वरिष्ठतम मंत्रियों को प्रतिनिधि सभा
तथा विधान परिषद के उप-सभापति के रूप में नियुक्त किए जाना था। ये संयुक्त मतदाता
सूची के आधार पर निर्वाचित किये जाने थे। मुसलमानों के लिए भी सीटें आरक्षित थी।
चुनाव में खड़ा होने के लिए उम्मीदवार का स्वयं एक मतदाता होना आवश्यक था तथा उसमें उम्र, शिक्षा और नागरिकता से संबंधित अपेक्षित योग्यताएं होनी चाहिए। विधायकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी तथा उन्हें सदन की बैठकों के दौरान गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था।
विधान परिषद को प्रश्न पूछने, प्रस्ताव पारित करने, अधिक स्थगन प्रस्ताव पेश करने, एवं कानून बनाने की शक्तियां थी। इसको बजट पर चर्चा करने तथा इस पर मतदान करने का भी अधिकार दिया गया था, लेकिन महाराजा तथा राज्य की सेना के संबंध में कानून बनाना इसके अधिकार से परे था।
4. Udaipur State- उदयपुर राज्य-
Under the pressure of changed political situation in Udaipur,
a Reforms Committee headed by Shri Gopal Singh was constituted in May, 1946.
The Committee consisted of official and non-official members including
five representative of the Praja Mandal. The Committee submitted its report on
29 September, 1946. It was recommended in the report that a Constituent
Assembly should be constituted to prepare a Constitution for Mewar that the
Constituent Assembly was to consist of 50 members and each member was to be
elected from a constituency consisting of fifteen thousand voters. The office
of the Chairman was to be held by the Maharana himself and the Vice-Chairman
was to be elected by the members. The Reforms Committee of the year 1946 had
also recommended to the Maharana that a responsible Government may be set up in
Mewar and the Maharana may entrust his powers to that Government. But the
Maharana did not accept this recommendation.
However, the Maharana had eventually to agree to the
setting up of an Executive Council in October, 1946, to which he appointed Shri
Mohan Lal Sukhadia and Shri Hira Lal Kothari as the representatives of the
Praja Mandal and Shri Raghubir Singh as the representative of the Regional
Council. Besides, the Maharana declared to enforce Constitutional reforms
expeditiously. On 16 February 1946, in accordance with the commitment, the
Maharana promised to constitute a Vidhan Sabha.
Maharana Bhupal Singh announced certain
reforms on 3 March, 1947. According to these reforms a Vidhan Sabha consisting
of 46 elected members and some non-official members was constituted. The Vidhan
Sabha was given the powers to enact laws on all such matters which had not been
kept out of its jurisdiction in particular. The Vidhan Sabha was empowered
under certain restrictions, to discuss and vote on the Budget. The
responsibility to implement the decisions taken by the Vidhan Sabha was
bestowed on Ministers.
बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति के दबाव के कारण उदयपुर में मई, 1946 में श्री गोपाल सिंह की अध्यक्षता
में एक सुधार समिति गठित की गई। समिति में प्रजामंडल के पांच प्रतिनिधियों सहित
सरकारी तथा गैर-सरकारी सदस्य शामिल थे। समिति ने 29 सितंबर 1946 को अपनी रिपोर्ट
सौंपी। इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि मेवाड़ के लिए एक संविधान तैयार करने
के लिए एक संविधान सभा गठित की जानी चाहिए। इस संविधान सभा में 50 सदस्य होने
चाहिए तथा इसका प्रत्येक सदस्य, पंद्रह हजार मतदाताओं से मिलकर बने एक निर्वाचन क्षेत्र से
निर्वाचित होना चाहिए। इसके अध्यक्ष महाराणा स्वयं होने थे तथा उपाध्यक्ष सदस्यों
द्वारा निर्वाचित किया जाना था। वर्ष 1946 की सुधार समिति ने महाराणा को सिफारिश की
थी कि मेवाड़ में एक उत्तरदायी सरकार स्थापित की जा सकती है तथा महाराणा उस सरकार
को अपनी शक्तियां भी सौंप सकते हैं। किन्तु महाराणा ने इस सिफारिश को स्वीकार नहीं
किया।
हालांकि, महाराणा अक्टूबर, 1946 में एक कार्यकारी परिषद की स्थापना करने के लिए अंततः
सहमत थे जिसके लिए प्रजा मंडल के प्रतिनिधि के रूप में श्री मोहनलाल सुखाडिया तथा
श्री हीरालाल कोठारी एवं क्षेत्रीय परिषद के प्रतिनिधि के रूप में श्री रघुवीर
सिंह को नियुक्त किया। इसके अलावा, महाराणा ने संवैधानिक सुधारों को शीघ्र लागू करने की घोषणा
की। अपनी प्रतिबद्धता के अनुसार 16 फ़रवरी 1946 को महाराणा ने एक विधान सभा का गठन
करने का वादा किया।
महाराणा भूपाल सिंह ने 3 मार्च, 1947 को कुछ सुधारों की घोषणा की। इन सुधारों के अनुसार 46 निर्वाचित सदस्यों और कुछ गैर सरकारी
सदस्यों से मिलकर एक विधानसभा का गठन किया गया। विधानसभा को ऐसे सभी मामलों पर
कानून बनाने का अधिकार दिया गया जिन्हें विशेष रूप से इसके अधिकार क्षेत्र से बाहर
नहीं रखा गया था। विधानसभा को कुछ प्रतिबंधों के तहत बजट पर चर्चा तथा वोट करने का अधिकार दिया गया। विधानसभा द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करने की जिम्मेदारी मंत्रियों को दी गई।
5. Bharatpur State- भरतपुर राज्य-
In persuance of the decision announced by Maharaja Kishan
Singh on 2 March 1927 regarding setting up of a "Governing Committee"
a Governing Committee Constitution Law, 1927 was enforced on 27 September,
1927. But the Committee could not be constituted due to the demise of the
Maharaja on 27 March 1929
and the administration of the State came under the Department of Political
Affairs of the Indian Government. But immediately after the announcement for
holding the elections for the Committee, the officials of the State decided to
merge the State with Matsya Union.
एक "शासी समिति" की स्थापना के संबंध में 2 मार्च, 1927 को महाराजा किशन सिंह द्वारा किये गए
निर्णय की घोषणा के अनुसरण में 27 सितंबर, 1927 को एक "शासी समिति संविधान कानून-1927" लागू किया गया। लेकिन 27 मार्च, 1929 को महाराजा का निधन हो जाने के कारण
समिति गठित नहीं की जा सकी तथा राज्य का प्रशासन भारत सरकार के राजनीतिक मामलों के
विभाग के अंतर्गत आ गया। लेकिन समिति के लिए चुनाव कराने के लिए
घोषणा के तुरंत बाद ही, राज्य के
अधिकारियों ने राज्य का मत्स्य संघ में विलय करने का फैसला किया गया।
6. Bundi State- बूंदी राज्य-
Maharaja Ishwar Singh of Bundi set up the 'Dhara Sabha"
on 18 October, 1943. It consisted of 23 members out of which 12 were elected
members and 11 were nominated members. The members of the Tehsil Advisory
Boards and the Town Council elected members to the `Sabha'. The Dhara Sabha had
the power to ask questions to the Government and to adopt Resolutions on matter
of Public interest. The Committee did not possess any constitutional and
economic powers. Its status was not higher than that of an Advisory Committee.
बूंदी के महाराजा ईश्वर सिंह ने 18 अक्टूबर 1943 पर 'धारा सभा "की स्थापना की। इसमें 12
चुने गए सदस्यों और 11 मनोनीत सदस्यों सहित 23 सदस्य शामिल थे। तहसील सलाहकार
बोर्ड एवं नगर परिषद के सदस्यों द्वारा 'सभा' के सदस्यों का निर्वाचन किया गया। धारा सभा को सरकार से
प्रश्न पूछने तथा जनहित के मुद्दों पर आधारित प्रस्तावों को अपनाने की शक्तियां
थी। समिति को किसी भी प्रकार के संवैधानिक एवं आर्थिक अधिकार प्राप्त नहीं थे।
इसकी स्थिति एक सलाहकार समिति से अधिक नहीं थी।
7. Banswara State- बांसवाड़ा राज्य-
The Maharaja of Banswara formed a
"Rajya Parishad" on 3 February, 1939. All the 32 members of the
Council were nominated members which included seven employees and eight
`Jagirdars'. The`Rajya Parishad' had the power to put questions, adopt
Resolutions and enforce laws with the assent of the Maharaja. The `Diwan' of
the State was the ex-officio Chairman of the 'Parishad'.
Thereafter, in pursuance of the wishes of the Maharaja, The State Constitution
Act, 1946 was implemented in order to bring changes in the organisation of the
`Parishad.' According to the provisions of this Act, out of 35 members of the
Vidhan Sabha, 32 were to be elected members and 3 ministers of the State
Council were to be ex-officio members; and the power of the Vidhan Sabha
were to be the same as that of the earlier `Parishad'. The elections to the
Vidhan Sabha were held in September, 1947 in which the Praja Mandal of Banswara
got the majority. The session of the Vidhan Sabha was inaugurated on 18 March,
1948. It was decided to summon the Budget Session on 30 March, 1948 but The Banswara
State got merged into the Rajasthan Union before that date.
बांसवाड़ा के
महाराजा ने 3 फरवरी, 1939 को एक "राज्य परिषद" का गठन किया। परिषद के
32 सदस्यों में सभी मनोनीत सदस्य थे जिनमें सात कर्मचारी तथा आठ `जागीरदार 'शामिल थे। `राज्य परिषद' को प्रश्न करने, संकल्पों को
अपनाने तथा महाराजा की स्वीकृति के साथ कानूनों को लागू करने की शक्तियां थी।
राज्य के दीवान `परिषद' पदेन अध्यक्ष थे।
इसके बाद परिषद के संगठन में परिवर्तन लाने के लिए महाराजा की इच्छा के अनुसरण में
''राज्य संविधान
अधिनियम, 1946'' लागू किया गया। इस
अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, विधानसभा के 35
सदस्यों में से 32 निर्वाचित सदस्य तथा 3 मंत्रियों का पदेन सदस्य होना था। विधान
सभा की शक्तियां पहले की 'परिषद' के अनुरूप ही रखी
गई। सितंबर, 1947 में हुए विधानसभा के चुनावों में बांसवाड़ा के
प्रजामंडल को बहुमत प्राप्त हुआ। विधान सभा के सत्र का उद्घाटन 18 मार्च 1948 को
किया गया। 30 मार्च,1948 को बजट सत्र बुलाने का निर्णय किया गया लेकिन इस
दिनांक से पूर्व ही बांसवाड़ा राज्य का राजस्थान संघ में विलय हो गया।
8. Ajmer State - अजमेर राज्य-
The Ajmer State was known as Ajmer-Marwar Pradesh before
the commencement of the constitution of India. After the inclusion of the Ajmer
State in the first schedule of the Constitution as category `C' State, the
Legislative Assembly was set up in May, 1952 with the election of 30 members
from 6 double member and 18 single-member constituencies of the Ajmer State
Legislative Assembly.
The Ajmer Legislative Assembly had
Committees like The Estimates Committee, The Public Accounts Committee, The
Privilege Committee, The Assurance Committee and The Petition Committee. The
Ajmer Legislative Assembly met on 4, 5 and 6 April, 1956 to consider the States
Reorganisation Bill, 1956 and it approved the merger of The Ajmer State into
the Rajasthan State on November, 1956 and the members of its Legislative
Assembly were duly treated as members of the first Rajasthan State Legislative
Assembly for its remaining term.
भारत के संविधान के प्रारंभ होने से ठीक पहले 'अजमेर राज्य,' 'अजमेर मेरवाड़ा प्रदेश' के रूप में जाना जाता था। संविधान की
पहली अनुसूची में अजमेर राज्य को श्रेणी 'सी' राज्य के रूप में
शामिल किए जाने के बाद, अजमेर राज्य
विधानसभा की 6 डबल सदस्य निर्वाचन क्षेत्रों एवं 18 एकल सदस्य निर्वाचन क्षेत्रों
के चुनाव के साथ 30 सदस्यों की विधानसभा मई, 1952 में स्थापित की गई।
अजमेर विधानसभा
में प्राक्कलन समिति, लोक लेखा समिति, विशेषाधिकार समिति, एश्योरेंस समिति
और याचिका समिति जैसी समितियां थी। राज्य पुनर्गठन विधेयक, 1956 पर विचार
करने के लिए अजमेर विधान सभा की बैठक 4, 5 और 6 अप्रैल
1956 को आयोजित हुई तथा विधानसभा ने अजमेर राज्य के नवंबर 1956 में राजस्थान राज्य
में विलय को मंजूरी दी तथा इस विधानसभा के सदस्यों को अपनी शेष अवधि के लिए
राजस्थान राज्य की प्रथम विधानसभा के विधिवत सदस्य के रूप में व्यवहृत किया गया।
स्रोत- राजस्थान
विधानसभा की वेबसाइट
Super notes 📒
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