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History of Legislature in Rajasthan -- राजस्थान में विधानमंडल का इतिहास

उद्भव एवं विकास-
Stages of Integration of Rajasthan- राजस्थान के एकीकरण के चरण-
Before discussing on History of Legislature in Rajasthan, we take a quick glance at the Seven Stages of formation of Rajasthan. These Seven Stages of formation of Rajasthan  (1948-1956) are as follows-
राजस्थान में विधानसभा के इतिहास पर व्यापक चर्चा करने से पूर्व हम राजस्थान के गठन के सात चरणों पर एक दृष्टिपात करेंगे. राजस्थान (1948-1956) के गठन या एकीकरण के सात चरण इस प्रकार है-

Name of Group, States, Date of Integration-
1. Matsya Union- Alwar, Bharatpur, Dholpur, Karauli  on 17-03-1948
2. Rajasthan Union- Banswara, Bundi, Dungarpur, Jhalawar, Kishangarh, Kota, Pratapgarh, Shahpura, Tonk on 25-03-1948
3. United State of Rajasthan- Udaipur also joined with the other Union of Rajasthan on 18-04-1948
4. Greater Rajasthan- Bikaner, Jaipur, Jaisalmer & Jodhpur also joined with the United State of Rajasthan on 30-03-1949
5. United State of Greater Rajasthan- Matsya Union also merged in Greater Rajasthan on 15-05-1949
6. United Rajasthan-
18 States of United Rajasthan merged with Princely State Sirohi except Abu & Delwara on 26-01-1950
7. Re-organised Rajasthan- Under the State Re-organisation Act,1956 the erstwhile part ‘C’ State of Ajmer, Abu Road Taluka, former part of princely State Sirohi which was merged in former Bombay State & Sunel Tappa region of the former Madhya Bharat merged with Rajasthan & Sironj sub district of Jhalawar district was transferred to Madhya Pradesh on 01-11-1956.

संघ का नाम, सम्मिलित हुई रियासतें/राज्य, एकीकरण दिनांक-
1. मत्स्य संघ- अलवर भरतपुर धौलपुर करौली, दिनांक 17-03-1948
2. राजस्थान संघ Rajasthan Union- बाँसवाड़ा बूँदी डूंगरपुर झालावाड़ किशनगढ़ कोटा प्रतापगढ़ शाहपुरा और टौंक, दिनांक 25-03-1948
3. संयुक्त राजस्थान राज्य- उदयपुर रियासत का संयुक्त राजस्थान में विलय, दिनांक 18-04-1948
4. वृहद् राजस्थान- बीकानेर जयपुर जैसलमेर जोधपुर भी संयुक्त राजस्थान में जुड़े, दिनांक 30-03-1949
5. संयुक्त वृहद् राजस्थान- मत्स्य संघ का वृहद् राजस्थान में विलय, दिनांक 15-05-1949
6. राजस्थान संघ- आबू और दिलवाडा को छोड़ कर सिरोही राज्य का संयुक्त वृहद् राजस्थान के 18 राज्यो में विलय, दिनांक 26-01-1950
7. पुनर्गठित राजस्थान या आधुनिक राजस्थान- इसमें State Re-organisation Act,1956 the erstwhile part ‘C’ के तहत अजमेर तथा रियासतकालीन राज्य सिरोही का अंग रहे आबूरोड तालुका {आबू दिलवाड़ा} जो पूर्व में बंबई राज्य में मिल चुका था एवं पूर्व मध्य भारत के अंग रहे सुनेल टप्पा का राजस्थान संघ में विलय। साथ ही झालावाड़ जिले के सिरोंज उप जिला को मध्य प्रदेश में शामिल किया गया, दिनांक 01-11-1956

The evolution of the House of People's Representative in Rajasthan- the erstwhile Rajputana is one of the important developments in the annals of the constitutional history of India. Rajputana consisting of twenty-two small and big Princely States. Though these Princely States were declared to have been annexed to the Union of India on 15 August, 1947, the process of merger and their unification became complete only in April, 1949, in five phases. In the first phase of merger four Princely States of Alwar, Bharatpur, Dholpur and Karauli formed the Matsya Union and it was inaugurated on 17th March, 1948. The Cabinet of this Union was formed under the Leadership of Shri Shobha Ram. The Union of Rajasthan, consisting of Banswara, Bundi, Dungarpur, Jhalawar, Kishangarh, Pratapgarh, Shahapura, Tonk and Kota, was inaugurated on 25 March, 1948. The Kota State got the honour of being the capital of this Union. The Kota Naresh Maharao Bheem Singh was appointed as the Rajpramukh and Shri Gokul Lal Asawa was appointed as the Chief Minister. But only three days after its inauguration the Maharana of Udaipur Shri Bhupal Singh decided to join this Union which was accepted by the Government of India. The Maharana of Udaipur was appointed as Rajpramukh and the Kota Naresh was appointed as Up- Rajpramukh of this Union and the Cabinet was formed Under the leadership of Shri Manikya Lal Verma. This Union was inaugurated by Pt. Jawaharlal Nehru on 18 April, 1948 named as 'United State of Rajasthan'. 

The formation of the Union of Rajasthan paved the way for the merger of big states like Bikaner, Jaisalmer, Jaipur and Jodhpur with the Union and formation of Greater Rajasthan. It was formally inaugurated on 30 March, 1949 by Sardar Vallabh Bhai Patel. The Maharana Bhupal Singh of Udaipur was appointed as the Maha-Rajpramukh, Maharaja of Jaipur was appointed as the Rajpramukh and the Kota Naresh was appointed as the Up- Rajpramukh. The Cabinet was formed under the leadership of Shri Hira Lal Shastri. Matsya Union was merged with Greater Rajasthan on 15 May, 1949.

The First Rajasthan Legislative Assembly (1952–57) was inaugurated on 31 March 1952. It had a strength of 160 members. The strength was increased to 190 after the merger of the erstwhile Ajmer State with Rajasthan in 1956. The Second (1957–62) and Third (1962–67) Legislative Assemblies had a strength of 176. The Fourth (1967–72) and Fifth (1972–77) Legislative Assembly comprised 184 members each. The strength became 200 from the Sixth (1977–1980) Legislative Assembly onwards. The(Fourteenth) Legislative Assembly was commence on 21 January 2013.

राजस्थान (तत्कालीन राजपूताना) में जनप्रतिनिधि सभा  का विकास भारत के संवैधानिक इतिहास के कालक्रम की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। राजपूताना में बाईस छोटी और बड़ी रियासते थी। इन रियासतों को 15 अगस्त 1947 को भारतीय संघ में विलय की घोषणा की गई, हालांकि इन रियासतों के विलय और उनके एकीकरण की प्रक्रिया पांच चरणों में अप्रैल, 1949 में पूरी हुई। पहले चरण में चार रियासतों अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली के को विलय कर 'मत्स्य संघ' का गठन किया गया तथा इसका 17 मार्च, 1948 को उद्घाटन किया गया। इस संघ का मंत्रिमंडल श्री शोभाराम के नेतृत्व में बनाया गया। 25 मार्च, 1948 को ही बांसवाड़ा, बूंदी, डूंगरपुर, झालावाड़, किशनगढ़, प्रतापगढ़, शाहपुरा, टोंक और कोटा को मिलाकर  'राजस्थान-संघ' का  उद्घाटन किया गया। 'कोटा राज्य' को इस संघ की राजधानी होने का गौरव मिला। कोटा नरेश महाराव भीम सिंह को राजप्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया तथा श्री गोकुललाल असावा को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। लेकिन इसके उद्घाटन के केवल तीन दिन बाद ही उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह ने इस संघ में शामिल होने का फैसला किया जिसे भारत सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया गया। उदयपुर के महाराणा को इस संघ के राजप्रमुख तथा कोटा नरेश को उप-राजप्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया और श्री माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में मंत्रिमंडल का गठन किया गया। इस संयुक्त राजस्थान नाम के इस संघ का उद्घाटन 18 अप्रैल 1948 पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा किया गया।
राजस्थान-संघ के गठन ने बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर तथा जयपुर जैसे बड़े राज्यों के राजस्थान-संघ में विलय एवं वृहद् राजस्थान के गठन का मार्ग प्रशस्त किया। वृहद् राजस्थान का औपचारिक रूप से उद्घाटन 30 मार्च, 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा किया गया। उदयपुर के महाराणा भूपालसिंह को महा राजप्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया, जयपुर के महाराजा को राजप्रमुख और कोटा नरेश को उप राजप्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया तथा श्री हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में राज्य के मंत्रिमंडल गठन किया गया। वृहद् राजस्थान के साथ मत्स्य संघ का विलय 15 मई 1949 को सम्पन्न हुआ।
प्रथम राजस्थान विधान सभा (1952-57) का उद्घाटन 31 मार्च, 1952 को किया गया। इसकी सदस्य-क्षमता 160 सदस्यों की थी। तत्कालीन अजमेर राज्य के विलय के बाद विधानसभा की क्षमता 1956 में बढ़ कर 190 हो गई। द्वितीय (1957-62) और तृतीय (1962-67) विधान सभाओं की  सदस्य संख्या 176 थी। चौथी (1967-1972) और पांचवीं (1972-1977) विधान सभा प्रत्येक  में 184 सदस्य शामिल थे। छठी विधान सभा (1977-1980) एवं इसके बाद से यह सदस्य संख्या 200 है।

History Before Independence- स्वतंत्रता से पूर्व का इतिहास-

1. Bikaner State- बीकानेर राज्य-
The process of the creation of a Legislative Council had started during the final phase of the formation of Rajasthan. This process continued upto the beginning of 1952. In the meantime Shri Hira Lal Shastri submitted his resignation from the Chief Ministership and the interim government was formed on 26 April, 1951. Though the Rajasthan Vidhan Sabha came in to existence in March 1952, the people of Rajasthan had experienced some kind of a parliamentary democracy even under the princely rule. The Maharaja Ganga Singh of Bikaner was one such progressive king who made a gift of the House of Representatives to the people of Bikaner State in 1913. Certain improvements were made in the set up of the Legislative Assembly during the year 1937. The Strength of the House was raised to 51, out of which 26 members were to be elected and 25 were to be nominated. Out of 26 members, 3 members were to be elected by the Tajimi Sardars, 10 by the State District Boards, 12 by the Municipalities and one by Businessmen and Industrialists. These changes were implemented in the year 1942.
The Bikaner Act No.3 of 1947 had a provision with regard to the Legislature, consisting of Raj Sabha and Dhara Sabha. The elections for Raj Sabha & Dhara Sabha were scheduled to be held on 28 September, 1948. But on account of the decision taken by the Bikaner Praja Mandal on 8 August, 1948 to boycott the elections, the enforcement of the Bikaner Act No.3 of 1947 and constitution of Raj Sabha and Dhara Sabha there under was postponed.

राजस्थान के गठन के अंतिम चरण के दौरान विधानसभा के सृजन की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। यह प्रक्रिया 1952 की शुरुआत तक जारी रही। इस बीच श्री हीरालाल शास्त्री ने मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा दे दिया तथा 26 अप्रैल 1951 को एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया। यद्यपि राजस्थान विधानसभा मार्च 1952 में अस्तित्व में आई थी, किन्तु रियासतों के शासन के तहत भी राजस्थान के लोग एक तरह के संसदीय लोकतंत्र का कुछ अनुभव कर चुके थे। बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह एक ऐसे ही प्रगतिशील राजा थे जिन्होंने 1913 में बीकानेर राज्य के नागरिकों के लिए प्रतिनिधि सभा के गठन का उपहार दिया था। वर्ष 1937 के दौरान विधानसभा के स्वरूप में कुछ सुधार किया गया। सदन की क्षमता बढ़ा कर 51 कर दी गई जिसमें से 26 सदस्य निर्वाचित होने वाले थे तथा 25 सदस्य मनोनीत किए जाने वाले थे। इसमें 26 सदस्यों में से 3 सदस्यों को ताजिमी सरदारों द्वारा, 10 को राज्य जिला बोर्डों द्वारा, 12 को नगर पालिकाओं द्वारा और एक सदस्य को व्यवसायियों व उद्योगपतियों द्वारा निर्वाचित करने का प्रावधान किया गया। इन परिवर्तनों को वर्ष 1942 में लागू किया गया।
1947 के बीकानेर अधिनियम संख्या-3 में विधानमंडल में दो सभाओं 'राज सभा और धारा सभा' के होने का प्रावधान था। राज सभा तथा धारा सभा के लिए चुनाव 28 सितंबर, 1948 को आयोजित किया जाना तय किया गया। लेकिन बीकानेर प्रजामंडल द्वारा चुनाव का बहिष्कार करने के 8 अगस्त 1948 को लिए गए निर्णय के कारण 1947 के बीकानेर अधिनियम सं-3 के प्रवर्तन और उसके तहत राज सभा और धारा सभा के गठन को स्थगित कर दिया गया।

2. Jodhpur State- जोधपुर राज्य-
Despite the growing political awareness amongst the people of the state, and their increasing activities Maharaja Ummed Singh of Jodhpur had accepted the principle of people's participation in the administration only in the 1940s and accorded his approval to the setting up of the Central and District Advisory Boards.

राज्य के लोगों में बढ़ती राजनीतिक जागरूकता और उनकी बढ़ती गतिविधियों के बावजूद जोधपुर के महाराजा उम्मेद सिंह ने 1940 के दशक में प्रशासन में  लोगों की भागीदारी के सिद्धांत को स्वीकार किया तथा सेंट्रल और जिला सलाहकार बोर्ड की स्थापना के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान की।

3. Jaipur State- जयपुर राज्य-
In view of the various reforms initiated by Maharaja Ram Singh during the fifth decade of the nineteenth century in political, social and educational fields, the Jaipur State was considered as a progressive State. But the impact of the political activities going on in other parts of the country on the people of that State, was so profound that even the creation of a Vidhan Samiti(1923), consisting of both official and non-official members, fell short of their expectation.

Maharaja Mansingh constituted a Central Advisory Board in 1939 with a view to eliciting public opinion through representatives on matters of public interest and importance. It consisted of 13 nominated members and 35 non-official members and was given the power to advise on matters relating to medical facilities, sanitation, public works, roads, wells & buildings, public education, rural upliftment, marketing, commerce & trade etc. It was inaugurated on 18 March, 1940.

The House of Representatives and the Vidhan Parishad were to be set up on 1 June, 1944 as per the Jaipur Government Act, 1944. The House of Representatives was to consist of 120 elected members and five nominated non-official members, out of a total of 145 members. And out of 51 members of the Vidhan Sabha, 37 members were to be elected and 14 were to be nominated. They were to hold office for 3 years. The Prime Minister was to be appointed as the ex-officio Chairman of both the Houses and senior most Ministers of the Executive Council were to be appointed as the Deputy Chairmen of the House of Representatives and the Vidhan Parishad respectively. They were to be elected on the basis of joint voters list. Seats were also reserved for Muslims. It was incumbent that a candidate taking part in the election should be a voter himself and should have the requisite qualification with regard to age, education and citizenship. The Legislators had the freedom of speech and they could not be arrested during the meetings of the House.

The Vidhan Parishad had the powers to ask Questions, adopt Resolutions, to present more Adjournment Motions, and to make laws. It was also given the powers to discuss the Budget and vote on it. But it was beyond its power to enact laws with regard to the Maharaja and the Army of the State.

उन्नीसवीं सदी के पांचवें दशक के दौरान महाराजा रामसिंह द्वारा राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षिक क्षेत्रों में शुरू किये गए विभिन्न सुधारों को देखते हुए जयपुर राज्य को एक प्रगतिशील राज्य के रूप में माना जाता था। लेकिन देश के अन्य हिस्सों में चल रही राजनीतिक गतिविधियों का राज्य के लोगों पर प्रभाव के कारण सरकारी एवं गैर-सरकारी दोनों प्रकार के सदस्यों को मिलाकर बनाई जाने वाली एक विधान समिति (1923) के भी निर्माण का कदम भी जनता की उम्मीद से छोटा पड़ गया।

सार्वजनिक हित व महत्व के मामलों पर प्रतिनिधियों के माध्यम से जनता की राय जानने की दृष्टि से जयपुर के महाराजा मानसिंह ने 1939 में एक केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड का गठन किया। इसमें 13 मनोनीत सदस्य तथा 35 गैर सरकारी सदस्य शामिल थे। इसको चिकित्सा सुविधाओं, स्वच्छता, लोक निर्माण, सड़कों, कुओं व भवनों, सार्वजनिक शिक्षा, ग्रामीण उत्थान, विपणन, वाणिज्य और व्यापार आदि से संबंधित मामलों पर सलाह देने के अधिकार दिए गए। इसका उद्घाटन  18 मार्च, 1940 को किया गया।

जयपुर सरकार अधिनियम, 1944 के अनुसार प्रतिनिधि सभा व विधान परिषद की स्थापना 1 जून 1944 को की जानी थी। 145 सदस्यों की कुल संख्या वाली प्रतिनिधि सभा का निर्माण 120 निर्वाचित सदस्य तथा पांच मनोनीत गैर सरकारी सदस्यों से मिलकर करना था। और विधान सभा के 51 सदस्यों में से 37 सदस्य निर्वाचित होने थे तथा  14 सदस्य मनोनीत किए जाने थे। उनका कार्यकाल 3 साल था। प्रधानमंत्री को दोनों सदनों के पदेन अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जाना था। कार्यकारी परिषद के वरिष्ठतम मंत्रियों को प्रतिनिधि सभा तथा विधान परिषद के उप-सभापति के रूप में नियुक्त किए जाना था। ये संयुक्त मतदाता सूची के आधार पर निर्वाचित किये जाने थे। मुसलमानों के लिए भी सीटें आरक्षित थी। चुनाव में खड़ा होने के लिए उम्मीदवार का स्वयं एक मतदाता होना आवश्यक था तथा उसमें उम्र, शिक्षा और नागरिकता से संबंधित अपेक्षित योग्यताएं होनी चाहिए। विधायकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी तथा उन्हें सदन की बैठकों के दौरान गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था।

विधान परिषद को प्रश्न पूछने, प्रस्ताव पारित करने, अधिक स्थगन प्रस्ताव पेश करने, एवं कानून बनाने की शक्तियां थी। इसको बजट पर चर्चा करने तथा इस पर मतदान करने का भी अधिकार दिया गया था, लेकिन महाराजा तथा राज्य की सेना के संबंध में कानून बनाना इसके अधिकार से परे था।

4. Udaipur State- उदयपुर राज्य-
Under the pressure of changed political situation in Udaipur, a Reforms Committee headed by Shri Gopal Singh was constituted in May, 1946. The Committee consisted of  official and non-official members including five representative of the Praja Mandal. The Committee submitted its report on 29 September, 1946. It was recommended in the report that a Constituent Assembly should be constituted to prepare a Constitution for Mewar that the Constituent Assembly was to consist of 50 members and each member was to be elected from a constituency consisting of fifteen thousand voters. The office of the Chairman was to be held by the Maharana himself and the Vice-Chairman was to be elected by the members. The Reforms Committee of the year 1946 had also recommended to the Maharana that a responsible Government may be set up in Mewar and the Maharana may entrust his powers to that Government. But the Maharana  did not accept this recommendation.

However, the Maharana had eventually to agree to the setting up of an Executive Council in October, 1946, to which he appointed Shri Mohan Lal Sukhadia and Shri Hira Lal Kothari as the representatives of the Praja Mandal and Shri Raghubir Singh as the representative of the Regional Council. Besides, the Maharana declared to enforce Constitutional reforms expeditiously. On 16 February 1946, in accordance with the commitment, the Maharana promised to constitute a Vidhan Sabha.

Maharana Bhupal Singh announced certain reforms on 3 March, 1947. According to these reforms a Vidhan Sabha consisting of 46 elected members and some non-official members was constituted. The Vidhan Sabha was given the powers to enact laws on all such matters which had not been kept out of its jurisdiction in particular. The Vidhan Sabha was empowered under certain restrictions, to discuss and vote on the Budget. The responsibility to implement the decisions taken by the Vidhan Sabha was bestowed on Ministers.

बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति के दबाव के कारण उदयपुर में मई, 1946 में श्री गोपाल सिंह की अध्यक्षता में एक सुधार समिति गठित की गई। समिति में प्रजामंडल के पांच प्रतिनिधियों सहित सरकारी तथा गैर-सरकारी सदस्य शामिल थे। समिति ने 29 सितंबर 1946 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि मेवाड़ के लिए एक संविधान तैयार करने के लिए एक संविधान सभा गठित की जानी चाहिए। इस संविधान सभा में 50 सदस्य होने चाहिए तथा इसका प्रत्येक सदस्य, पंद्रह हजार मतदाताओं से मिलकर बने एक निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित होना चाहिए। इसके अध्यक्ष महाराणा स्वयं होने थे तथा उपाध्यक्ष सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाना था। वर्ष 1946 की सुधार समिति ने महाराणा को सिफारिश की थी कि मेवाड़ में एक उत्तरदायी सरकार स्थापित की जा सकती है तथा महाराणा उस सरकार को अपनी शक्तियां भी सौंप सकते हैं। किन्तु महाराणा ने इस सिफारिश को स्वीकार नहीं किया।

हालांकि, महाराणा अक्टूबर, 1946 में एक कार्यकारी परिषद की स्थापना करने के लिए अंततः सहमत थे जिसके लिए प्रजा मंडल के प्रतिनिधि के रूप में श्री मोहनलाल सुखाडिया तथा श्री हीरालाल कोठारी एवं क्षेत्रीय परिषद के प्रतिनिधि के रूप में श्री रघुवीर सिंह को नियुक्त किया। इसके अलावा, महाराणा ने संवैधानिक सुधारों को शीघ्र लागू करने की घोषणा की। अपनी प्रतिबद्धता के अनुसार 16 फ़रवरी 1946 को महाराणा ने एक विधान सभा का गठन करने का वादा किया।

महाराणा भूपाल सिंह ने 3 मार्च, 1947 को कुछ सुधारों की घोषणा की।  इन सुधारों के अनुसार 46 निर्वाचित सदस्यों और कुछ गैर सरकारी सदस्यों से मिलकर एक विधानसभा का गठन किया गया। विधानसभा को ऐसे सभी मामलों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया जिन्हें विशेष रूप से इसके अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं रखा गया था। विधानसभा को कुछ प्रतिबंधों के तहत बजट पर चर्चा तथा वोट करने का अधिकार दिया गया। विधानसभा द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करने की जिम्मेदारी मंत्रियों को दी गई।

5. Bharatpur State- भरतपुर राज्य-
In persuance of the decision announced by Maharaja Kishan Singh on 2 March 1927 regarding setting up of a "Governing Committee" a Governing Committee Constitution Law, 1927 was enforced on 27 September, 1927. But the Committee could not be constituted due to the demise of the Maharaja on 27 March 1929 and the administration of the State came under the Department of Political Affairs of the Indian Government. But immediately after the announcement for holding the elections for the Committee, the officials of the State decided to merge the State with Matsya Union.

एक "शासी समिति" की  स्थापना के संबंध में 2 मार्च, 1927 को महाराजा किशन सिंह द्वारा किये गए निर्णय की घोषणा के अनुसरण में 27 सितंबर, 1927 को एक "शासी समिति संविधान कानून-1927" लागू किया गया। लेकिन 27 मार्च, 1929 को महाराजा का निधन हो जाने के कारण समिति गठित नहीं की जा सकी तथा राज्य का प्रशासन भारत सरकार के राजनीतिक मामलों के विभाग के अंतर्गत आ गया। लेकिन समिति के लिए चुनाव कराने के लिए घोषणा के तुरंत बाद ही, राज्य के अधिकारियों ने राज्य का मत्स्य संघ में विलय करने का फैसला किया गया।

6. Bundi State- बूंदी राज्य-
Maharaja Ishwar Singh of Bundi set up the 'Dhara Sabha" on 18 October, 1943. It consisted of 23 members out of which 12 were elected members and 11 were nominated members. The members of the Tehsil Advisory Boards and the Town Council elected members to the `Sabha'. The Dhara Sabha had the power to ask questions to the Government and to adopt Resolutions on matter of Public interest. The Committee did not possess any constitutional and economic powers. Its status was not higher than that of an Advisory Committee.

बूंदी के महाराजा ईश्वर सिंह ने 18 अक्टूबर 1943 पर 'धारा सभा "की स्थापना की। इसमें 12 चुने गए सदस्यों और 11 मनोनीत सदस्यों सहित 23 सदस्य शामिल थे। तहसील सलाहकार बोर्ड एवं नगर परिषद के सदस्यों द्वारा 'सभा' के सदस्यों का निर्वाचन किया गया। धारा सभा को सरकार से प्रश्न पूछने तथा जनहित के मुद्दों पर आधारित प्रस्तावों को अपनाने की शक्तियां थी। समिति को किसी भी प्रकार के संवैधानिक एवं आर्थिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। इसकी स्थिति एक सलाहकार समिति से अधिक नहीं थी।

7. Banswara State- बांसवाड़ा राज्य-
The Maharaja of Banswara formed a "Rajya Parishad" on 3 February, 1939. All the 32 members of the Council were nominated members which included seven employees and eight `Jagirdars'. The`Rajya Parishad' had the power to put questions, adopt Resolutions and enforce laws with the assent of the Maharaja. The `Diwan' of the State was the ex-officio   Chairman of the 'Parishad'. Thereafter, in pursuance of the wishes of the Maharaja, The State Constitution Act, 1946 was implemented in order to bring changes in the organisation of the `Parishad.' According to the provisions of this Act, out of 35 members of the Vidhan Sabha, 32 were to be elected members and 3 ministers of the State Council were to be ex-officio members; and the power of the Vidhan Sabha were to be the same as that of the earlier `Parishad'. The elections to the Vidhan Sabha were held in September, 1947 in which the Praja Mandal of Banswara got the majority. The session of the Vidhan Sabha was inaugurated on 18 March, 1948. It was decided to summon the Budget Session on 30 March, 1948 but The Banswara State got merged into the Rajasthan Union before that date.

बांसवाड़ा के महाराजा ने 3 फरवरी, 1939 को एक "राज्य परिषद" का गठन किया। परिषद के 32 सदस्यों में सभी मनोनीत सदस्य थे जिनमें सात कर्मचारी तथा आठ `जागीरदार 'शामिल थे। `राज्य परिषद' को प्रश्न करने, संकल्पों को अपनाने तथा महाराजा की स्वीकृति के साथ कानूनों को लागू करने की शक्तियां थी। राज्य के दीवान `परिषद' पदेन अध्यक्ष थे। इसके बाद परिषद के संगठन में परिवर्तन लाने के लिए महाराजा की इच्छा के अनुसरण में ''राज्य संविधान अधिनियम, 1946'' लागू किया गया। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, विधानसभा के 35 सदस्यों में से 32 निर्वाचित सदस्य तथा 3 मंत्रियों का पदेन सदस्य होना था। विधान सभा की शक्तियां पहले की 'परिषद' के अनुरूप ही रखी गई। सितंबर, 1947 में हुए विधानसभा के चुनावों में बांसवाड़ा के प्रजामंडल को बहुमत प्राप्त हुआ। विधान सभा के सत्र का उद्घाटन 18 मार्च 1948 को किया गया। 30 मार्च,1948 को बजट सत्र बुलाने का निर्णय किया गया लेकिन इस दिनांक से पूर्व ही बांसवाड़ा राज्य का राजस्थान संघ में विलय हो गया।

8. Ajmer State - अजमेर राज्य-
The Ajmer State was known as Ajmer-Marwar Pradesh before the commencement of the constitution of India. After the inclusion of the Ajmer State in the first schedule of the Constitution as category `C' State, the Legislative Assembly was set up in May, 1952 with the election of 30 members from 6 double member and 18 single-member constituencies of the Ajmer State Legislative Assembly.
The Ajmer Legislative Assembly had Committees like The Estimates Committee, The Public Accounts Committee, The Privilege Committee, The Assurance Committee and The Petition Committee. The Ajmer Legislative Assembly met on 4, 5 and 6 April, 1956 to consider the States Reorganisation Bill, 1956 and it approved the merger of The Ajmer State into the Rajasthan State on November, 1956 and the members of its Legislative Assembly were duly treated as members of the first Rajasthan State Legislative Assembly for its remaining term.

भारत के संविधान के प्रारंभ होने से ठीक पहले 'अजमेर राज्य,' 'अजमेर मेरवाड़ा प्रदेश' के रूप में जाना जाता था। संविधान की पहली अनुसूची में अजमेर राज्य को श्रेणी 'सी' राज्य के रूप में शामिल किए जाने के बाद, अजमेर राज्य विधानसभा की 6 डबल सदस्य निर्वाचन क्षेत्रों एवं 18 एकल सदस्य निर्वाचन क्षेत्रों के चुनाव के साथ 30 सदस्यों की विधानसभा मई, 1952 में स्थापित की गई।

अजमेर विधानसभा में प्राक्कलन समिति, लोक लेखा समिति, विशेषाधिकार समिति, एश्योरेंस समिति और याचिका समिति जैसी समितियां थी। राज्य पुनर्गठन विधेयक, 1956 पर विचार करने के लिए अजमेर विधान सभा की बैठक 4, 5 और 6 अप्रैल 1956 को आयोजित हुई तथा विधानसभा ने अजमेर राज्य के नवंबर 1956 में राजस्थान राज्य में विलय को मंजूरी दी तथा इस विधानसभा के सदस्यों को अपनी शेष अवधि के लिए राजस्थान राज्य की प्रथम विधानसभा के विधिवत सदस्य के रूप में व्यवहृत किया गया।
स्रोत- राजस्थान विधानसभा की वेबसाइट

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हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली