· Kumbhalgarh is situated between Lat. 25º 09' N; Long. 73º 36' E.· It is in the Kelwada village of Kelwada tehsil of district Rajsamand.· It is at a distance of about 80 km northwest of Udaipur amidst the Aravalli hills.· Due to its strategic location, it is considered as the second most important fort of Rajasthan.· It was constructed by Rana Kumbha of Mewar state of Rajasthan between AD 1443 and 1458.· Its architect was famous architect 'Mandan'.· It is believed that this fort was built on the site of an older palace of a Jaina prince 'Samprati' of the second century BC.· Mewar's rular Rana Fateh Singh (1885-1930 AD), one of the greatest builders of his time, built Badal Mahal inside this fort.· The important architectures within the fort are Badal Mahal, Kumbha Mahal, Hindu and Jain Temples, water reservoirs, bawris, cenetophs etc. |
· कुम्भलगढ़ 25° 09' उत्तरी अक्षांश तथा 73° 36' पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है।· यह राजसमंद जिले की केलवाड़ा तहसील में केलवाड़ा ग्राम के निकट स्थित है।· यह उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में लगभग 80 कि.मी. दूर अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित है।· सामरिक महत्व के कारण इसे राजस्थान के दूसरे महत्वपूर्ण किले का स्थान दिया जाता है।· इसका निर्माण राजस्थान की मेवाड़ रियासत के गौरवशाली शासक राणा कुम्भा ने 1443 से 1458 के मध्य करवाया था।· इसके वास्तुकार प्रसिद्ध वास्तुकार 'मंडन' थे।· ऐसा माना जाता है कि इस किले का निर्माण ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के जैन राजकुमार 'सम्प्रति' के प्राचीन महल के स्थान पर करवाया गया था।· अपने समय के प्रसिद्ध भवन निर्माणकर्ता, मेवाड़ के शासक राणा फतेह सिंह (1885-1930 ई.) ने इस किले के अन्दर बादल महल का निर्माण करवाया।· किले के अन्दर महत्वपूर्ण स्थापत्यों में बादल महल, कुंभा महल, हिन्दू तथा जैन मंदिर, जलाशय, बावड़ियां, छतरियां आदि हैं। |
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The following are the brief account of important monuments inside the fort: |
किले के भीतर महत्वपूर्ण स्मारकों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है: |
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Gateways-· The fort can be entered from the south through a gate known as Aret Pol, followed by this gateway there are Halla Pol, Hanuman Pol, Ram Pol and Vijay Pol gateways.· The Hanuman Pol is significant as it enshrines an image of Hanuman which was brought by Rana Kumbha from Mandavpur.· The magnificent complex at the top of the fort is approached further through three gateways viz., the Bhairon Pol, the Nimboo Pol and the Paghra Pol.· Another gateway Danibatta, situated on the east, connects Mewar region with Marwar. |
प्रवेश द्वार-· किले में प्रवेश दक्षिण दिशा से अरेट पोल नामक द्वार से होता है जिसके बाद हल्ला पोल, हनुमान पोल, राम पोल तथा विजय पोल नामक दरवाजे हैं।· हनुमान पोल में हनुमान जी की एक प्रतिमा है जिसे राणा कुम्भा मांडवपुर से लाए थे।· किले के शिखर के भव्य परिसर में तीन द्वारों यथा भैरों पोल, नीम्बू पोल तथा पाघड़ा पोल से गुजर कर प्रवेश किया जाता है।· पूर्व में एक अन्य द्वार है जिसे दानीबट्टा के नाम से जाना जाता है। यह द्वार मेवाड़ क्षेत्र को मारवाड़ से जोड़ता है। |
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Ganesh Temple-· The Ganesh temple, located along the road leading to the palaces, was constructed during the time of Maharana Kumbha.· According to one of the inscriptions of Kirti-stambha of Chittorgarh fort, Rana Kumbha consecrated an image of Ganesha in this temple. |
गणेश मंदिर-· महलों की ओर जाने वाले मार्ग पर स्थित गणेश मंदिर का निर्माण महाराणा कुम्भा के समय में करवाया गया था।· चित्तौड़गढ़ किले के कीर्तिस्तंभ के एक शिलालेख के अनुसार राणा कुम्भा ने इस मंदिर में गणेश की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई थी। |
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Vedi Temple-· The Vedi temple was built by Rana Kumbha in AD 1457 for performing rituals after completion of the fort.· This double story building was erected on a high platform.· The temple faces west. It is octagonal with thirty-six pillars supporting the domical ceiling.· A triple shrined temple dedicated to goddesses is located to the east of this temple. |
वेदी मंदिर-· राणा कुम्भा द्वारा वर्ष 1457 में किले के पूर्ण हो जाने के पश्चात् धार्मिक अनुष्ठान करवाने के लिए वेदी मंदिर का निर्माण करवाया था।· यह दो मंजिला भवन एक ऊंचे चबूतरे पर स्थापित किया गया है।· यह मंदिर पश्चिमोन्मुखी है। यह अष्टभुजाकार है जिसके 36 स्तंभ गुम्बदनुमा छत को सहारा देते हैं।· देवियों को समर्पित एक मंदिर इस मंदिर के पूर्व में स्थित है। |
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Neelkanth Mahadev Temple-· The Neelkanth Mahadev temple, situated to the east of Vedi shrine, was built in AD 1458 and enshrines a Siva Ling in the sanctum.· This temple is built on raised platform accessible from west through a flight of steps.· The temple consists of a sanctum and an open pillared canopy (mandapa) all around.· The shrine can be viewed from all sides with entrance from all the four directions.· A stone inscription on the left pillar of the western gate mentions about its renovations by Rana Sanga. |
नीलकंठ महादेव मंदिर-· वेदी मंदिर के पूर्व में स्थित यह मंदिर 1458 में बनवाया गया था तथा इसके गर्भगृह में एक शिवलिंग है।· यह मंदिर एक ऊंचे उठे हुए चबूतरे पर निर्मित है जहां पश्चिम से सीढ़ियों द्वारा पहुंचा जा सकता है।· मंदिर में एक गर्भगृह तथा चारों ओर स्तंभों वाला एक खुला मंडप है।· गर्भगृह सर्वतोभद्र है जिसमें चारों दिशाओं से प्रवेश किया जा सकता है।· पश्चिमी द्वार के बाएं स्तंभ पर प्रस्तर उत्कीर्ण शिलालेख में राणा सांगा द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराये जाने का उल्लेख किया गया है। |
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Parsvanatha Temple-· This temple was constructed by Nar Singh Pokhad in Vikrama Samvat 1508 (AD 1451).· It consists a 3 feet high statue of Jain Tirthankara Parsvanatha. |
पार्श्वनाथ मंदिर-· यह मंदिर नाहरसिंह द्वारा विक्रम संवत 1508 (1451 ई.) में बनवाया गया था।· इसमें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की 3 फीट ऊँची प्रतिमा स्थित है। |
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Bawan Devi Temple-· This is a famous Jain temple, which derives its name from the fifty-two (bawan) shrines in a single compound built around the main shrine.· The bigger shrine among the temple-group consists of a sanctum, a gap and an open pavilion (mandapa).· An image of Jaina Tirthankara is carved on the lalata-bimba of the doorway.· The smaller shrines are devoid of any idols. |
बावन देवी मंदिर-· यह एक प्रसिद्ध जैनमंदिर है जिसका यह नाम मुख्य मंदिर के आसपास एक ही अहाते में निर्मित बावन मंदिरों के कारण पड़ा है।· इस मंदिर-समूह के बड़े मंदिर में एक देव मंदिर, अन्तराल तथा एक खुला मंडप है।· मुख्य द्वार के ललाट-बिम्ब पर जैन तीर्थंकर की एक मूर्ति उत्कीर्ण है।· इस मंदिर समूह के छोटे मंदिरों में कोई मूर्ति नहीं है। |
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Golerao Group of Temples-· The Golerao group of temples is situated adjacent to Bawan Devi Temple and bears of nine shrines confined by a circular wall.· On its exterior the shrines are adorned with beautiful carved sculptures of gods-goddesses.· On the basis of architectural style, the temples-group may be ascribed to the period of Rana Kumbha.· A sculpture consists an inscription dated V. S. 1516 (AD 1459) which states about one Govinda. |
गोलेराव मंदिर-समूह-· गोलेराव मंदिर-समूह, बावन देवी मंदिर से लगा हुआ है तथा इसमें नौ देव-मंदिर हैं, जो एक वृत्ताकार दीवार से घिरे हुए हैं।· इन मंदिरों का बाह्य भाग देवी-देवताओं की नक्काशीदार सुन्दर मूर्तियों से विभूषित हैं।· इसकी वास्तुकला के आधार पर यह मंदिर-समूह राणा कुम्भा के काल का माना जाता है।· यहाँ एक मूर्ति पर विक्रमी सम्वत् 1516 (1459 ई.) का शिलालेख उत्कीर्ण है, जिसमें किसी गोविंदा का उल्लेख है। |
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Mamadeo Temple-· This temple is also known as Kumbha Shyam, and it consists of a flat roofed sanctum and a pillared pavilion (mandapa).· An inscription of Rana Kumbha giving detailed history of Kumbhalgarh was fixed on this temple.· A large number of carved statues of gods-goddesses were found from the compound of this temple. |
मामादेव मंदिर-· यह मंदिर कुम्भ-श्याम के नाम से भी जाना जाता है तथा इसमें समतल छत वाला गर्भगृह तथा स्तंभों वाला एक मंडप है।· कुम्भलगढ़ के विस्तृत इतिहास का विवरण देते हुए राणा कुम्भा का एक शिलालेख इस मंदिर पर लगाया गया है।· इस मंदिर के परिसर से देवी-देवताओं की नक्काशीदार मूर्तियां बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं। |
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Pitalia Dev Temple-· This east facing Jain shrine is situated in the northern side of the fort which was built by a Pitalia Jain Seth in V. S. 1512 (AD 1455) on a raised plinth.· This temple consists of a pillared sabha-mandapa and a sanctum having entrances from all the four directions.· The jangha is adorned with images of gods and goddesses besides asparas and dancers. |
पीतलिया देव मंदिर-· विक्रम सम्वत् 1512 (1455ई.) में एक पीतलिया जैन सेठ द्वारा उठी हुई कुर्सी पर निर्मित यह पूर्वोन्मुखी जैन मंदिर किले के उत्तरी भाग में है।· इस मंदिर में स्तंभ वाला सभा-मंडप तथा एक देवमंदिर है, जिसमें चारों दिशाओं से प्रवेश हो सकता है।· जंघा को अप्सराओं तथा नर्तकों की मूर्तियों के अतिरिक्त देवी-देवताओं के चित्रों से सजाया गया है। |
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Kumbha Palace-· The palace of Rana Kumbha is located near to the Pagda Pol.· This palace is a two storey building.· It consists of two rooms, a corridor in the middle and open spaces.· The rooms are provided with jharokhas and windows in stones. |
कुम्भा महल-· राणा कुम्भा का यह महल पगड़ा पोल के निकट स्थित है।· यह एक दो मंजिला भवन है।· इसमें दो कक्ष, बीच में एक बरामदा तथा खुली जगह है। कमरों में पत्थर के झरोखे तथा खिड़कियां हैं। |
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Birth Place of Maharana Pratap-· The palace known as 'Jhalia ka Malia' or the 'Palace of Queen Jhali' is situated near Pagda Pol.· This is believed to be the palace where Maharana Pratap was born.· It is constructed of rubble stone with plain walls and flat roof. The traces of painting can still be seen on the wall. |
महाराणा प्रताप का जन्म स्थान-· 'झालिया का मलिया' या 'झाली रानी के महल' के नाम से विख्यात हवेली पगड़ा पोल के निकट स्थित है।· ऐसा माना जाता है कि यही वह महल है, जहां महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था।· यह अनगढ़ पत्थरों से निर्मित सादी दीवारों व समतल छत वाला महल है। यहाँ चित्रकारी के अवशेष अभी भी दीवारों पर देखे जा सकते हैं। |
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Badal Mahal-· Badal Mahal is situated at the highest point of the fort.· This palace is profusely decorated with wall paintings.· It was built by Rana Fateh Singh (AD 1885-1930).· The palace is a two storey structure divided into two interconnected distinct portions i.e. the Zanana Mahal and the Mardana Mahal.· The Zanana mahal is provided with stone jalis which facilitated the queens to see the court proceedings and other events in privacy. |
बादल महल-· बादल महल किले के सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित है।· यह महल भित्ति चित्रों से सुसज्जित है।· इसका निर्माण राजा फतेह सिंह (1885-1930) द्वारा करवाया गया था।· यह दो मंजिला भवन है जिसे दो भागों जनाना महल और मर्दाना महल में विभाजित किया गया है।· जनाना महल में पत्थर की जालियाँ लगी हैं जिनसे रानियां राजदरबार की कार्रवाई और अन्य कार्यक्रम देखा करती थीं। |
हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम जाता है। हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था। हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की। हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा । वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क
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