Skip to main content

National Research Centre on Seed Spices (NRCSS), Tabiji, Ajmer (Rajasthan)-
राष्ट्रीय बीज मसाला अनुसंधान केन्द्र, तबीजी, अजमेर-



National Research Centre on Seed Spices (NRCSS), Tabiji, Ajmer (Rajasthan)-
Spices are an integral part of our daily lives in Indian food. We use many spices in our food. We use leaves, flowers, fruits, seeds and roots of various plants as spices. Most part of these are seed spices such as coriander, mustard seeds, cumin, celery, fennel, Kalonji, methi etc. Seed Spices are annual herbs, whose dried seed or fruits are useful as spices. They are nature’s gift to humankind and add flavour to our food in addition to having preservative and medicinal value. There are about 20 seed spices grown in India. The most prominent among them are cumin, coriander, fennel, fenugreek, ajwain, dill, nigella, celery, aniseed and caraway. Realizing the potential of seed spices crops for providing income security to the people of arid to semi-arid zone, the Indian Planning Commission, as recommended by the working group of Department of Agricultural Research and Education, approved establishment of National Research Centre on Seed Spices, Ajmer (NRCSS) during IXth five year plan. The Centre came into existence on 22 April 2000.
The National Research Centre on Seed Spices is an apex centre of Indian Council of Agricultural Research working on improvement of seed spices and betterment of their stakeholders since its inception in 2000. The purpose of this institute is to carry out basic, applied and strategic research for the improvement of seed spices crops. Presently the research in this centre, is mainly concentrated on development of high yielding varieties with high essential oil content and resistance to biotic and abiotic stresses. The Institute has already developed 11 varieties of 8 seed spice crops. Controlling cumin wilt and blight diseases is now receiving major attention.
Besides these, agronomic practices are also being standardized for different crops. Research work has also started in Plant Pathology, Plant Physiology, Soil Science and Entomology. Research on protected cultivation and organic farming and application of Good Agricultural Practices (GAP) is also on the anvil. The seed processing plant has also been established and the research on post harvest technology of the seed spices particularly processing and storage is being initiated. The Institute is housed in the newly constructed Laboratory Cum administrative Building and equipped laboratories. This National Centre is now considerably expanding its research programme by initiating collaboration with a number of research institutions and universities. The Research Centre has also opened up its portal to post graduate students who wish to work on seed spices. Research Centre  also started a Farmers Club and a Farm Consultancy Service to effectively transfer the technology developed by centre.
Objectives of centre-  
1.   To conduct basic and strategic research to enhance production, productivity and quality of seed spices with special reference to export and domestic demand. 
2.   To serve as national repository of seed spices germplasm, relevant information and establishing global gene bank for seed spices. 
3. To establish relevant institutional linkages nationally and internationally, offer consultancy and training. 
4.  To monitor the adoption of new and existing technologies to make sure that research is targeted to the needs of farming community.

Mandate Crop-

Crop
Scientific Name
Ajwain
Trachyspermum ammi
Aniseed  or anise
Pimpinella anisum L.
Caraway or karavi
Carum carvi L.
Celery
Apium graveolens L.
Coriander
Coriandrum sativum L.
Cumin
Cuminum cyminum L.
Dill
Anethum graveolens L.
Fennel
Foeniculum vulgare Mill.
Fenugreek
Trigonella foenumgraecum L
Nigella
Nigella sativa L.

राष्ट्रीय बीज मसाला अनुसंधान केन्द्र, तबीजी, अजमेर-

भारत में मसालें हमारे दैनिक जीवन के भोजन के अभिन्न अंग है हम अपने भोजन में कई मसाले प्रयोग करते हैं हम मसालों के रूप में पौधों के पत्ते, पुष्प, फल, बीज, तथा जड़ काम में लेते हैं इनमें से सर्वाधिक भाग से बीजीय मसालों जैसे धनिया, राई, जीरा, अजवाइन, सौंफ, कलोंजी, मैथी आदि का है बीजीय मसालें वार्षिक जड़ी बूटी हैं जिनके सूखे बीज या फलों का हम मसाले के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। ये मानव जाति के लिए प्रकृति का उपहार हैं तथा ये परिरक्षक और औषधीय मूल्य के होने के अलावा हमारे भोजन में स्वाद बढ़ाते हैं। भारत में 20 प्रकार के  बीज मसाले उगाये जाते हैं। इनमें जीरा, धनिया, सौंफ, मेथी, राई, अजवाइन, लोंग आदि प्रमुख बीज मसाले हैंअर्द्ध शुष्क क्षेत्र के लिए शुष्क के लोगों को आय सुरक्षा प्रदान करने के लिए बीज मसाले फसलों की क्षमता को देखते हुए भारत सरकार के कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के कार्य समूह की सिफारिश के अनुसार भारतीय योजना आयोग ने नौवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान अजमेर में राष्ट्रीय बीज मसाला अनुसंधान केन्द्र (NRCSS) की स्थापना को मंजूरी दी यह केंद्र 22 अप्रैल 2000 को अस्तित्व में आया
तबीजी, अजमेर में स्थित राष्ट्रीय बीज मसाला अनुसंधान केन्द्र वर्ष 2000 में अपनी स्थापना के बाद से बीज मसालों में सुधार और उनके हितधारकों की भलाई पर काम कर रहा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) का एक प्रमुख केंद्र है। इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य बीज मसालों की फसलों में सुधार के लिए, बुनियादी अनुप्रयुक्त तथा रणनीतिक अनुसंधान कार्य करना है। वर्तमान में यह केन्द्र में मुख्य रूप से जैविक और अजैविक तनाव का प्रतिरोध करने वाली उच्च आवश्यक तेल तथा अधिक उपज देने वाली किस्मों के विकास एवं अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। संस्थान 8 बीज मसाला फसलों की 11 किस्में विकसित कर चुका है। जीरा विल्ट और तुषार रोगों को नियंत्रित करने में अब प्रमुख ध्यान दिया जा रहा है
इनके अलावा विभिन्न फसलों के लिए सस्य विज्ञान पद्धतियों को भी मानकीकृत किया जा रहा है। प्लांट पैथोलॉजी, प्लांट फिजियोलॉजी, मृदा विज्ञान और कीटविज्ञान में अनुसंधान का काम भी शुरू हो गया है। संरक्षित खेती और जैविक खेती तथा 'अच्छी कृषि पद्धतियों' (Good Agricultural Practices-जीएपी) के अनुप्रयोग पर अनुसंधान विचाराधीन भी है। एक बीज प्रसंस्करण संयंत्र भी स्थापित किया गया है और विशेष रूप से कटाई उपरांत बीज मसाले के प्रसंस्करण और भंडारण की प्रौद्योगिकी पर अनुसंधान शुरू किया जा रहा है, इस हेतु संस्थान में सुसज्जित प्रयोगशालायें स्थित है। यह राष्ट्रीय केन्द्र अब कई अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग से अपने अनुसंधान कार्यक्रमों का विस्तार करने पर विचार कर रहा है। अनुसंधान केन्द्र ने भी बीज मसाले पर कार्य करने के इच्छुक स्नातकोत्तर छात्रों के लिए अपना पोर्टल भी खोल दिया है। अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी का प्रभावी रूप से हस्तांतरण के लिए भी एक किसान क्लब और एक फार्म कंसल्टेंसी सर्विस भी शुरू की गई है।

केंद्र के उद्देश्य
  1. निर्यात और घरेलू मांग के विशेष संदर्भ में बीज मसाले के उत्पादन, उत्पादकता व गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बुनियादी एवं रणनीतिक अनुसंधान का संचालन करना।
  2. बीज मसाले जर्मप्लाज्म, प्रासंगिक जानकारी देने के लिए राष्ट्रीय भंडार के रूप में सेवाएँ प्रदान करना तथा बीज मसाले के लिए वैश्विक जीन बैंक की स्थापना करना
  3. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक संस्थागत संपर्क स्थापित करने के लिए परामर्श और प्रशिक्षण प्रदान करना
  4. अनुसन्धान में नई व मौजूदा प्रौद्योगिकी अपनाने की निगरानी करना ताकि यह सुनिश्चित हो कि अनुसंधान कृषक समुदाय की जरूरतों को लक्षित रहे

    अधिदेश फसलें Mandate Crops-

Crop फसल
Scientific Name वैज्ञानिक नाम
Ajwain अजवाइन
Trachyspermum ammi
Aniseed  or anise  विलायती सौंफ
Pimpinella anisum L.
Caraway or karavi शाहजीरा या काला जीरा
Carum carvi L.
Celery अजमोद
Apium graveolens L.
Coriander धनिया
Coriandrum sativum L.
Cumin जीरा
Cuminum cyminum L.
Dill शतपुष्प या सोआ या सुआ
Anethum graveolens L.
Fennel सौंफ
Foeniculum vulgare Mill.
Fenugreek मैथी
Trigonella foenumgraecum L
Nigella कलोंजी
Nigella sativa L.

Comments

  1. किसान क्लब की प्रक्रिया बताये

    ReplyDelete
  2. शोफ की खेती के बारे में बताये

    ReplyDelete
  3. मोबाइल न 8003306606

    ReplyDelete
  4. Seo Ajmer | SEO Ajmer - http://seoonlineajmer.blogspot.com

    ReplyDelete
  5. आप से जुड़ने का क्या तरीका है जिस से हमें आप के संस्थान के द्वारा चलाई जाने वाली योजना का पता चल सके
    Gautam oswal 9024583131

    ReplyDelete
    Replies
    1. Hamari sanstha ki koi yojna nahi chalayi ja rahi hai.

      Delete
  6. अजमेर पुष्कर में मिर्चि का सबसे अच्छा बीज कोनसा है

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...