सवाईमाधोपुर जिले के शिवाड़ नामक स्थान पर स्थित शिवालय को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक श्री घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को भगवान शंकर के निवास के रूप में द्धादशवां एवं अंतिम ज्योतिर्लिंग मानने पर हालाँकि कुछ विवाद है किन्तु यहाँ के लोगों के पास इसके पक्ष में कई प्रमाण भी है जिनसे वे इसे 12 ज्योतिर्लिंग सिद्ध करते हैं। यह शिवालय राज्य के सवाई माधोपुर जिले के ग्राम शिवाड़ में देवगिरि पहाड़ के अंचल में स्थित है, जो जयपुर से मात्र 100 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे सं.12 पर बरोनी से 21 किलोमीटर दूर स्थित है। यह जयपुर कोटा रेलमार्ग पर ईसरदा रेल्वे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है।
घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग का यह पवित्र मंदिर कई वर्षो पुराना है। वर्षभर में लाखों लोग यहाँ आते है। देवगिरी पर्वत पर बना घुश्मेश्वर उद्यान रात के समय लाइटिंग में अदभुत छटा बिखेरता हैं। श्रद्धालुओं की मण्डली शिवरात्रि [फाल्गुन महीने (फरवरी- मार्च)] एवं श्रावण मास के दौरान बहुत ही रंगीन नजर आती है। भगवान शिव के बहारवें (द्धादशवें) ज्योतिर्लिंग के स्थान के बारे में पिछले वर्षो मेँ कई दावे व आपत्तियां उठाई गई। लेकिन इस स्थान के पक्ष में शिवपुराण के प्रमाण दिए जाते हैं कि यह द्धादशवां ज्योतिर्लिंग शिवालय,शिवाड़ (राजस्थान) में ही स्थित है। वे बताते हैं कि शिवपुराण के अनुसार बाहरवां (द्धादशवां) ज्योतिर्लिंग शिवालय में है। शिव महापुराण कोटि रूद्र संहिता के अध्याय 32 से 33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग शिवालय में स्थित है। प्राचीन काल में शिवाड का नाम शिवालय ही था। इस आधार पर 12 वां ज्योतिर्लिंग यही होना चाहिए।
इस क्षेत्र के चार द्वार है-
1. पूर्व द्वार का नाम सर्वसप है, जहां के रक्षक भैरव है। वर्तमान शिवाड़ के नजदीक सारसोप नाम का एक गांव बसा हुआ है। यहां भैरव का स्थान आज भी मौजूद है। सर्वसप का नाम ही अपभ्रंश होकर सारसोप हो गया है।
2. दूसरे द्वार का को वृषभ द्वार कहते है। इसे अब ‘बहड़’ कहा जाता है जो शिवाड़ के उत्तर दिशा में है।
3. तीसरे द्वार या पश्चिम द्वार का नाम नाटयशाना द्वार लिखा मिलता है। शिवाड़ के पश्चिम में स्थित ‘नटवाड़ा’ गांव का नाम इस नाम से काफी मिलता-जुलता है।
4. चौथे द्वार का नाम ईश्वर द्वार है जहां ‘ईश्वरेश्वर’ नामक शिवलिंग होने का उल्लेख है। इस स्थान पर आज ‘ईसरदा’ नाम का ग्राम बसा है। यहां आज भी ईश्वरेश्वर नाम का शिवलिंग विद्यमान है।
पुराणों में इस क्षेत्र के पास ‘वशिष्टि’ नदी का वर्णन है, जो अब अपभ्रंश होकर ‘बनास नदी’ बन गई है। इसके किनारे एक मंदार वन का जिक्र है जहां आज ‘मंडावर’ नाम का ग्राम बसा हुआ है।
उत्तर पश्चिम में एक सुरसर नाम का सरोवर होना लिखा है जो बाद में टूटकर नाला बन गया और अब वहां पर सिरस ग्राम बसा हुआ है। वशिष्टि नदी के तट पर एक बिल्व पत्रों के वन की चर्चा भी पुराण ने की है। यह वन वर्तमान में बनास नदी के तट पर सुरेली स्टेशन के पास मौजूद है।
घुश्मेश्वर महात्म्य की प्राचीन कथा-
प्राचीनकाल में देवगिरी पर्वत के पास एक सुधर्मा नामक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था। उसकी कोई संतान नहीं थी। इसलिए उसने अपनी छोटी बहन धुश्मा के साथ सुधर्मा का विवाह करा दिया। घुश्मा शिव भक्त थी। शिवभक्ति के कारण घुश्मा पुत्रवती हो गई। पुत्र को देख कर सुदेहा के मन में ईर्ष्या होने लगी और वही ईर्ष्या इतनी बढ़ गई कि सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर निकटवर्ती सरोवर में डाल दिया। दूसरे दिन जब घुश्मा पार्थिव शिवलिंग का पूजन कर विसर्जन करने गई तो भगवान शिव प्रकट हुए और उसके पुत्र को जीवित करके घुश्मा से वर मांगने को कहा। तब घुश्मा ने कहा, ”हे प्रभु! लोगों की रक्षणार्थ आप सदैव इसी स्थान पर निवास करें। भगवान शिव भगवान ने उसी सरोवर की तरफ देखकर यह वर दिया कि यह सरोवर शिवलिंगों का स्थान हो जाए। तब से वह तीनों लोकों में ‘शिवालय’ नाम से प्रसिद्ध हो गया। बताया जाता है कि विक्रम संवत् 1835 में इस सरोवर की खुदाई तत्कालीन राजा ठाकुर शिवसिंह ने करवाई। उन्हें बहुत सारे शिवलिंग मिले, जिनको उन्होंने घुश्मेश्वर के प्रागंण में दो मंदिर बनवाकर एक-एक जललहरी में 22-22 शिवलिंग स्थापित करवाये। ये जललहरियां यहां आज भी मौजूद हैं। इससे भी उपर्युक्त कथा की फष्टि होती है कि शिकराण में जिस शिवालय का उल्लेख है, वह यही सरोवर है।
घुश्मेश्वर के दक्षिण में देवगिरी नामक एक पर्वत है। सफेद पत्थरों वाला यह पर्वत अद्भुत दिखाई देता है। इसके चारों ओर के पर्वत मटमैले पत्थरों के हैं। अत: इन मटमैले पर्वतों के बीच में सफेद देवगिरी पर्वत बिल्कुल कैलाश सदृश्य दिखाई देता है।
मंदिर के पुजारियों के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग प्राचीनकाल से ही चमत्कारी रहा है। यहां के रहने वाले पूर्वज एवं पंडित यहां के चमत्कार के बारे में बहुत बताते हैं। उनके अनुसार, महमूद गजनवी जब मथुरा से सोमनाथ की ओर जा रहा था तो घुश्मेश्वर मंदिर भी मार्ग में पड़ा। उसने यहां भी लूटपाट मचाने की चेष्टा की। तत्कालीन राजा चन्द्रसेन इसकी सूचना मिलते ही मंदिर की रक्षा के लिए सेना लेकर आ पहुंचा। तब घोर युद्ध हुआ। राजा चन्द्रसेन, उनके पुत्र इन्द्रसेन व सेनापति आदि ने युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। गजनवी ने मंदिर को तोड़ दिया तथा उसके पास में एक मस्जिद बनाई जो आज भी विद्यमान है। युद्ध के बाद महमूद का सेनापति सालार मसूद खजाना लूटने की इच्छा से शिवलिंग के पास पहुंचा तो जलहरी में से एक बिजली जैसा प्रचंड प्रकाश दिखाई दिया। इससे भयभीत होकर वह मूर्छित हो गया और वहां से भाग निकला।
शिवाड़ के श्री घुश्मेश्वर की वेबसाइट http://www.ghushmeshwar.com/hi/ghushmeshwar_shiwar.php में द्धादशवे ज्योतिर्लिंग श्री घुश्मेश्वर के ग्राम शिवाड़ (शिवालय) जिला-सवाईमाधोपुर (राजस्थान) में स्थित होने के निम्नलिखित प्रमाण दिए गए हैं:-
1. शिवालय नामक स्थान में प्रकट :-
1. शिवालय नामक स्थान में प्रकट :-
शिवपुराण कोटि रूद्र संहिता के अध्याय 32 से 33 के अनुसार घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग शिवालय नामक स्थान पर होना चाहिये।
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्री शैले मल्लिकार्जुनम ।
उज्जयिन्यां महाकालंओंकारं ममलेश्वरम ।।
केदारं हिमवत्प्रष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम ।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्रयम्बकं गोतमी तटे ।।
वैधनाथं चितभूमौ नागेशं दारुकावने ।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं तु शिवालये ।।
पुरातनकाल में इस स्थान का नाम शिवालय था जो अपभ्रंश होता हुआ, शिवाल से शिवाड़ नाम से जाना जाता है।
2. इसके दक्षिण में देवगिरी पर्वत स्थित है:-
शिवपुराण कोटि रूद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार- घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के दक्षिण में देवत्व गुणों वाला देवगिरी पर्वत है।
शिवपुराण कोटि रूद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार- घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के दक्षिण में देवत्व गुणों वाला देवगिरी पर्वत है।
दक्षिणस्यां दिशि श्रैष्ठो गिरिर्देवेति संज्ञकः महाशोभाविन्तो नित्यं राजतेऽदभुत दर्शन: तस्यैव निकटः ऐको भारद्धाज कुलोदभव: सुधर्मा नाम विप्रशच न्यवसद् ब्रह्मवित्तमः ।।
शिवालय (शिवाड़) स्थित ज्योतिर्लिंग मंदिर के दक्षिण में भी तीन श्रृंगों वाला धवल पाषाणों का प्राचीन पर्वत है जिसे देवगिरी नाम से जाना जाता है। यह महाशिवरात्रि पर एक पल के लिये स्वर्णमय हो जाता है जिसकी पुष्टि बणजारे की कथा में होती है जिसने देवगिरी से मिले स्वर्ण प्रसाद से ज्योतिर्लिंग की प्राचीरें एवं ऋणमुक्तेष्वर मंदिर का निर्माण प्राचीनकाल में करवाया।
3. उत्तर में शिवालय सरोवर:-
शिवपुराण कोटि रूद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार घुश्मेश्वर प्रादुर्भाव कथा में भगवान शिव ने घुश्मा को निम्न वरदान दिया।
शिवपुराण कोटि रूद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार घुश्मेश्वर प्रादुर्भाव कथा में भगवान शिव ने घुश्मा को निम्न वरदान दिया।
तदोवाच शिवस्तत्र सुप्रसन्नो महेश्वर: स्थास्येत्र तव नाम्नाहं घुश्मेशाख्यः सुखप्रदः।44।
घुश्मेशाख्यं सुप्रसिद्धं में जायतां शुभ: इदं सरस्तु लिंगानामालयं जयतां सदा।45।
तस्माच्छिवालयं नाम प्रसिद्धं भुवनत्रये सर्वकामप्रदं हयेत दर्शनात्स्यात्सदासरः।46।
तब शिव ने प्रसन्न होकर कहा है घुश्मे मैं तुम्हारे नाम से घुश्मेश्वर कहलाता हुआ सदा यहां निवास करूंगा और सबके लिये सुखदायक होऊंगा, मेरा शुभ ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर नाम से प्रसिद्ध हो। यह सरोवर शिवलिंगों का आलय हो जाये तथा उसकी तीनों लोकों में शिवालय के नाम से प्रसिद्धि हो। यह सरोवर सदा दर्शन मात्र से ही अभीष्ठों का फल देने वाला हो।
1837 ई. (वि.सं.1895) में ग्राम शिवाड़ स्थित सरोवर की खुदाई करवाने पर दो हजार शिवलिंग मिले जो इसके शिवलिंगों का आलय होने की पुष्टि करते हैं तथा इसके शिवालय नाम को सार्थक करते है। मंदिर के परम्परागत पाराशर ब्राह्मण पुजारियों का गोत्र शिवालया है।
4. धर्माचार्यों की सम्मति:-
कई विद्वान,धर्माचार्य,पुरातत्वविद्,शोधार्थी इस स्थान की यात्रा कर चुके है तथा इसके वास्तविक घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग होने की पुष्टि कर चुके हैं।
कई विद्वान,धर्माचार्य,पुरातत्वविद्,शोधार्थी इस स्थान की यात्रा कर चुके है तथा इसके वास्तविक घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग होने की पुष्टि कर चुके हैं।
- अनन्तविभूषित जगदगुरु श्रीमद् शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी सरस्वती, ज्योतिर्मठ
- श्री नन्द नन्दनानन्द सरस्वती, वाराणसी
- श्री साम्ब दीक्षित दामोदर उपाध्याय, कर्नाटक
- श्री महामंड्लेशवर श्री कान्ताचार्य जी, बाराबंकी
- ब्रह्मलीन स्वामी कृष्णानन्द जी महाराज, जयपुर
- श्री रतन अग्रवाल, तत्कालीन निदेशक पुरातत्व एवं संग्रहालय, जयपुर
- महामंडलेशवर स्वामी श्री रामानन्द सरस्वती, पुण्यतीर्थ, मौजी बाबा की गुफा कोटा(राज.)
- महामंडलेशवर स्वामी श्री अवधेश कुमाराचार्य (गागरोन पीठ) रामधाम, कोटा।
- महामंडलेशवर हेमा सरस्वती, पुण्यतीर्थ, मौजी बाबा की गुफा कोटा(राज.)
- श्री अवधेश कुमार जी, गलता पीठ, जयपुर (राज.)
- श्री राघवाचार्य जी वेदान्ती महाराज, बड़ी का धाम, सीकर
- श्री नारायण दास जी महाराज, नईदिल्ली
- आचार्य पीयूष जी महाराज, श्री गयाप्रसाद फाउन्ड़ेशन ट्रस्ट, वृन्दावन धाम
- स्वामी श्री रामदयाल जी महाराज, शाहपुरा, भीलवाडा
- महामंडलेशवर आचार्य मनोहर तीर्थ, जयपुर (राज.)
5. कल्याण का लेख-
कल्याण (श्री कल्याण 55, 4 अप्रेल 81 गीता प्रेस गोरखपुर) द्धारा पं. पुरूषोत्तम शर्मा का घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग शिवाड़ पर आधारित लेख छापते हुऐ नीचे टिप्पणी दी है। ”इस लेख से दो देवगिरी पर्वत सिद्ध होते है। कल्याण के तीर्थांक एवं शिवपुराणांक में भी घुश्मेश्वर सम्बन्धी चरण प्रकाशित हुऐ है, संभव है भ्रांतिवश लोगों द्धारा कर्नाटक स्थित प्रसिद्ध देवगिरी के समीपस्थ पहले घुश्मेश्वर की कल्पना की हो।
कल्याण (श्री कल्याण 55, 4 अप्रेल 81 गीता प्रेस गोरखपुर) द्धारा पं. पुरूषोत्तम शर्मा का घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग शिवाड़ पर आधारित लेख छापते हुऐ नीचे टिप्पणी दी है। ”इस लेख से दो देवगिरी पर्वत सिद्ध होते है। कल्याण के तीर्थांक एवं शिवपुराणांक में भी घुश्मेश्वर सम्बन्धी चरण प्रकाशित हुऐ है, संभव है भ्रांतिवश लोगों द्धारा कर्नाटक स्थित प्रसिद्ध देवगिरी के समीपस्थ पहले घुश्मेश्वर की कल्पना की हो।