कालीबंगा टीला |
कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी (प्राचीन सरस्वती नदी) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई.पू. माना जाता है, किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई। 1953 ई. में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए. घोष (अमलानंद घोष) को जाता है। इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 1961 से 1969 के मध्य 'श्री बी. बी. लाल', 'श्री बी. के. थापर', 'श्री डी. खरे', के. एम. श्रीवास्तव एवं 'श्री एस. पी. श्रीवास्तव' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था। कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा 'आमरी, हड़प्पा व कोट दिजी' (सभी पाकिस्तान में) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में कालीबंगा में एक पुरातत्वीय संग्रहालय स्थापित किया गया था, जिसमें इस हड़प्पा स्थल पर 1961-69 के बीच की गई खुदाई से प्राप्त सामग्रियों को रखा गया है। यह स्थान प्राचीन समय में चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध था। ये चूडियाँ पत्थरों की बनी होती थी। इसमें मिली काली चूड़ियों की वजह से ही इसे कालीबंगा कहा गया। पंजाबी में 'वंगा' का अर्थ चूडी होता है, इसलिए काली वंगा अर्थात काली चूडियाँ।
यहाँ तीन टीले के प्राप्त हुए है, जिनमें से बीच में एक बड़ा टीला (KLB-2), इससे छोटा एक टीला (KLB -1) पश्चिम में और सबसे छोटा टीला (KLB -3) पूर्व में स्थित है।
प्राप्त टेराकोटा |
सिन्धु-पूर्व सभ्यता का दुर्ग-
कालीबंगा में हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की तरह सुरक्षा दीवार से घिरे दो टीले पाए गए हैं। कुछ पुरातत्वविज्ञों के अनुसार यदि हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को सैंधव सभ्यता की प्रथम दो राजधानियां माना जा सकता है तो इस स्थान को सैंधव सभ्यता की तृतीय राजधानी कह सकते हैं। यहाँ के पूर्वी टीले की सभ्यता प्राक्-हड़प्पाकालीन थी। कालीबंगा में सिन्धु-पूर्व सभ्यता की इस बस्ती में दुर्ग के भी प्रमाण मिले हैं तथा यह किलेबन्दी कच्ची ईंटों से बनी थी, जो नगर की सुरक्षा का साधन थी। अन्य हड़प्पा कालीन नगरों की भांति कालीबंगा दो प्रकार के दुर्गों में विभाजित था- नगर दुर्ग (या गढ़ी) और निम्न दुर्ग। नगर दुर्ग समान्तर चतुर्भुजाकार का था। यहाँ का किला 30x20x10 सेमी की मिट्टी की कच्ची ईंटों से निर्मित है। किलेबन्दी के उत्तरी भाग में प्रवेश मार्ग था, जिससे सरस्वती नदी तक पहुँच सकते थे।
नगर नियोजन-
पुरातत्वविद् मानते हैं कि यहाँ की खुदाई ने हड़प्पा सभ्यता के महानगर का एक नक्शा तैयार किया है, जो शायद सही मायने में भारतीय सांस्कृतिक विरासत का प्रथम नगर था। कालीबंगा में हुए उत्खनन में प्राचीन नगर के अस्तित्व के प्रमाण प्राप्त हुए हैं, जिन्हें 5 स्तरों में देखा जा सकता है। ये नगर मिट्टी की चौड़ी दीवारों से बने थे। ये दीवारें मिट्टी की ईंटों से बनाई जाती थी। ईंटों की चुनाई करने के बाद इन पर प्लास्तर कर दिया जाता था। साधारणतया इन मकानों में 4-5 बड़े कमरे, एक दालान (आँगन) व कुछ छोटे कमरे होते थे। मकानों के आगे चबूतरे थे। कमरों के फर्श को चिकनी मिट्टी से लीपा जाता था। कहीं-कहीं पकी हुई ईंटों के फर्श भी प्राप्त हुए हैं। ये ईंटें शायद धूप में पकाई जाती थी। अपशिष्ट जल के निकास के लिए गोलाकार भांड थे, जिन्हें एक-दूसरे पर लगा कर रखा जाता था, जिससे पानी इधर-उधर नहीं फैलकर जमीन में सोख लिया जाता था। छतें मिट्टी और लकड़ी की बल्लियों व मिट्टी की बनाई जाती थी। छत पर जाने के लिए सीढियां थी। नगर की सड़के चौड़ी और पक्की थी। सुरक्षा के लिए नगर के चारों तरफ चौड़ी दीवार और खाइयाँ बनी थी। नगर के दूसरे किनारे पर बड़े कमरे, कुआं तथा दालान बना है, जिससे अनुमान लगता है कि नगर के आसपास सुरक्षा हेतु दुर्ग व्यवस्था थी। यहाँ पर मोहनजोदड़ो जैसी उच्च-स्तर की जल निकास व्यवस्था का आभास नहीं होता है। किन्तु यह जरुर है कि यद्यपि भवनों का निर्माण कच्ची ईंटों से किया जाता था, किंतु नालियों, कुओं तथा स्नानागारों में पकाई गई ईंटों का प्रयोग किया गया है।
भोजन पकाने की व्यवस्था-
कालीबंगा के मकानों में दो प्रकार के चूल्हे प्राप्त हुए हैं-
1. जमीन से कुछ अन्दर 2. जमीन के ऊपर।
नीचे वाले चूल्हों में ईंधन देने तथा धुंआ निकालने के लिए विशेष छेद बने थे। ये चूल्हे वर्तमान तंदूर के लगभग समान हैं।
बैलगाड़ी का अस्तित्व-
यहाँ प्राप्त हुए मिट्टी के खिलौनों, पहियों एवं मवेशियों की हड्डियों पर हुई शोध में पुरातत्वविद इन्हें बैलगाड़ी के अस्तित्व का अप्रत्यक्ष प्रमाण मानते हैं।
हवन कुण्डों के साक्ष्य-
कालीबंगा के दुर्ग टीले के दक्षिण भाग में मिट्टी और कच्चे ईटों के बने हुए पाँच चबूतरे मिले हैं, जिसके शिखर पर हवन कुण्डों के होने के साक्ष्य मिले हैं।
कृषि-
कालीबंगा में नगर सुनियोजित ढंग से बसाये गए थे। यहाँ के नागरिक सभ्य एवं समझदार थे। यहाँ एक टीले की खुदाई से जुते हुए खेत के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे ज्ञात होता है कि यहाँ के नागरिकों के जीविकोपार्जन का साधन कृषि था। यहाँ प्राप्त जुता हुआ खेत शायद सबसे प्राचीन जुता हुआ खेत है। यहाँ प्राप्त खेत विश्व के प्राचीनतम खेतों का नमूना है। माना जाता है कि संस्कृत साहित्य में वर्णित ''बहुधान्यक क्षेत्र'' यही है। इन खेतों में दो तरह की फसलों को एक साथ उगाया जाता था। कालीबंगा में मिले 'प्राक् सैंधव संस्कृति' के एक जुते हुए खेत के कुंडों के बीच की दूरी पूर्व से पश्चिम की ओर 30 से.मी. है और उत्तर से दक्षिण की ओर 1.10 मीटर है। माना जाता है कि कम दूरी के खांचों में चना एवं अधिक दूरी के खाचों में सरसों बोई जाती थी। इनमें ग्रिड की तरह धारियों वाले निशान है।
लघु पाषाण उपकरण-
यहाँ के उत्खनन में लघु पाषाण उपकरण, मणिक्य, मिट्टी के मनके, शंख, कांच व मिट्टी की चूड़ियां, खिलौना, गाड़ी के पहिए, बैल की खण्डित मृण्मूर्ति, सिलबट्टे आदि के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
ताँबे के औज़ार व मूर्तियाँ-
ताँबे के औज़ार |
इस युग में पत्थर व ताँबे दोनों प्रकार के उपकरण प्रचलित थे, परंतु पत्थर के उपकरणों का प्रयोग अधिक होता था। यहाँ से दैनिक जीवन प्रयुक्त होने वाली वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। कालीबंगा में उत्खनन से प्राप्त पुरावशेषों में ताँबे (धातु) से निर्मित औज़ार, हथियार तथा मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जिससे पता चलता है कि ये मानव प्रस्तर युग से ताम्रयुग में प्रवेश कर चुका था।
ताँबे का बैल |
प्राप्त मुहरें-
प्राप्त मुहरें |
कालीबंगा से शैलखड़ी की मुहरें और मिट्टी की छोटी मुहरे महत्त्वपूर्ण वस्तुएं प्राप्त हुई हैं। मिट्टी की मुहरों पर सरकण्डे के छाप या निशान से यह लगता है कि इनका प्रयोग पैकिंग के लिए किया जाता रहा होगा। कालीबंगा से हड़प्पा सभ्यता की मिट्टी पर बनी मुहरें मिली हैं, जिन पर वृषभ व अन्य पशुओं के चित्र व सैन्धव लिपि से मिलती जुलती लिपि में अंकित लेख है जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। वह लिपि दाएँ से बाएँ लिखी जाती थी। एक सील पर किसी अराध्य देव की आकृति है। कालीबंगा से प्राप्त मुहरें 'मेसोपोटामिया' की मुहरों के जैसी है।
यहाँ पर प्राप्त पत्थर से बने बाट से पता चलता है कि यहाँ का मनुष्य तौलने के बाट का उपयोग करना सीख गया था। मोहरों एवं तौल के बाट से पता चलता है कि यहाँ के लोग व्यापार भी करते थे।
ईटें-
कालीबंगा की प्राक्-सैंधव बस्तियों में प्रयुक्त होने वाली कच्ची ईटें 30x20x10 सेमी, 40x20x10 सेमी एवं 30x15x7.5 सेमी आकार की होती थी। यहाँ से मिले मकानों के अवशेषों से पता चलता है कि सभी मकान कच्ची ईटों से बनाये गये थे, किन्तु नालियों एवं कुओं में पक्की ईटों का प्रयोग किया गया था। यहाँ पर कुछ ईटें अलंकृत भी पायी गई हैं। कालीबंगा का एक फर्श पूरे हड़प्पा-काल का एक मात्र ऐसा उदाहरण है, जहाँ अलंकृत ईटों का प्रयोग किया गया है। इस पर प्रतिच्छेदी वृत का अलंकरण किया गया है।
मूर्तियाँ-
ताँबे या मिट्टी की बनी मूर्तियाँ, पशु-पक्षी व मानव कृतियाँ मिली हैं जो मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के समान हैं। पशुओं में बैल, बंदर व पक्षियों की मूर्तियाँ मिली हैं जिससे पता लगता हैकि पशु-पालन, व कृषि में बैल का उपयोग किया जाता था।
अंत्येष्ठी स्थल-
कालीबंगा के दक्षिण-पश्चिम में शवों को गाड़ने के लिए अंत्येष्ठी स्थल था। यहाँ शव विसर्जन के 37 उदाहरण मिले हैं। यहाँ अंत्येष्ठी संस्कार की तीन विधियां प्रचलित थी-
1. पूर्व समाधीकरण
2. आंशिक समाधिकरण
3. दाह संस्कार
यहाँ पर बच्चे की खोपड़ी मिले है जिसमें 6 छेद हैं, इसे 'जल कपाली' या 'मस्तिष्क शोध' की बीमारी का पता चलता है। यहाँ से एक कंकाल मिला है जिसके बाएं घुटने पर किसी धारदार कुल्हाड़ी से काटने का निशान है।
भूकम्प के साक्ष्य-
यहाँ से भूकम्प के प्राचीनतम प्रमाण मिलते हैं। यह माना जाता है कि सम्भवतः घग्घर नदी के सूख जाने से कालीबंगा का विनाश हो गया।
👌👍
ReplyDeleteThanks.
DeleteVery useful
ReplyDeleteThanks
सराहना के लिए आभार
DeleteI can Say Hanumangarh or Kalibanga is the place where Harappa is still alive
ReplyDeleteYEAH..
DeleteI will anytime would like to visit Harappa our old culture
ReplyDeleteSure..
Delete😊
DeleteNice
ReplyDeleteधन्यवाद् आभार आपका
Delete👍
ReplyDeleteधन्यवाद् आभार आपका...
ReplyDeleteVery good bro carryonn air bhi dalo
ReplyDeleteThank you so much. Will try to give more post about Rajasthan.
Deletevery nice :)
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleterajasthan JEN 2016 DEGREE KE PAPER KA QUESTION NO 1 BIJOLIYA KA SHILALEKH AAPKE YAHI SE AAYA THA
ReplyDeleteAB RAJ JEN 2020 K LIYE KOI SUJHAV HOTO DEVE _/\_
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